सोशल मीडिया: स्वार्थपरायणता का एक मंच (Social Media: A Platform Of Self Interest)

 मेरी राय में, सोशल मीडिया को उस सीमा तक विनियमित किया जाना चाहिये जहाँ तक वह जनहित को नुकसान पहुँचाता हो


— एलोन मस्क


सोशल मीडिया अंतर्निहित रूप से एक स्वार्थपरायण माध्यम है।


प्रस्तावना -

सोशल मीडिया आज के डिजिटल युग में एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी इसका गहरा प्रभाव है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, और टेलीग्राम ने दुनिया को एक साथ जोड़ने का कार्य किया है, जहां लोग अपने विचार, भावनाएँ और घटनाएँ दुनिया भर के साथ साझा कर सकते हैं। लेकिन इन सभी सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, सोशल मीडिया के अंतर्निहित स्वार्थपरायणता का भी एक बड़ा पहलू है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता अक्सर अपनी छवि, प्रसिद्धि और पहचान को बढ़ावा देने के लिए इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं। स्वार्थपूर्ण प्रवृत्तियों, जैसे 'लाइक्स', 'फॉलोअर्स', और 'शेयर' की संख्या में वृद्धि, इस माध्यम के एक अनजाने पहलू को उजागर करती है। यह प्रवृत्ति कभी-कभी वास्तविकता से अधिक आभासी दुनिया को प्राथमिकता देती है, जिसके कारण व्यक्तित्व निर्माण, मानसिक स्वास्थ्य और समाजिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस संदर्भ में, यह सवाल उठता है कि क्या सोशल मीडिया अंतर्निहित रूप से स्वार्थपरायण है, या यह केवल एक परिदृश्य है जो उपयोगकर्ता की मानसिकता पर निर्भर करता है।


मानव के संवाद करने, जानकारी प्राप्त करने और बाह्य दुनिया के समक्ष स्वयं को अभिनीत करने की शैली में परिवर्तन लाकर सोशल मीडिया आधुनिक युग का सर्वव्यापी पहलू बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म जो मुख्यतः आत्म-अभिव्यक्ति, वैयक्तिक ब्रांडिंग और वैयक्तिक विचारों पर आधारित हैं, से वैयक्तिक रूप से संवाद करने और सामाजिक गतिशीलता में परिवर्तन आया है। यद्यपि सोशल मीडिया कनेक्टिविटी, सूचना के प्रसार और समुदाय के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है किंतु इससे आत्म-प्रचार और आत्ममोह की संस्कृति को भी बढ़ावा मिलता है।


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपयोक्ताओं को ऑनलाइन परिवेश में सावधानीपूर्वक व्यक्तित्व निर्धारित करने और उसे नियंत्रित करने का साधन प्रदान करते हैं। इस प्रकार से स्वयं की प्रस्तुति, जिसे प्रायः इंप्रेशन मैनेजमेंट के रूप में संदर्भित किया जाता है, से व्यक्तियों को अपनी उपलब्धियाँ, शारीरिक रूप और सामाजिक स्थिति दर्शाने की सुविधा मिलती है। स्वयं की अनुकूल छवि प्रस्तुत करने की इच्छा से ऐसा आचरण विकसित हो सकता है जिसमें वास्तविक संवाद के बजाय वैयक्तिक लाभ की प्राथमिकता होती है। उदाहरण के लिये उपयोक्ता चुनी हुई एडिटेड फोटो पोस्ट कर सकते हैं, उपलब्धियाँ साझा कर सकते हैं और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये प्रदर्शनकारी कार्रवाई में संलग्न हो सकते हैं।


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की संरचना में शामिल लाइक, कमेंट और शेयर जैसी विशेषताएँ पुष्टीकरण और स्वीकृति की मांग के दुष्चक्र को बढ़ावा देती हैं। उपयोगकर्त्ता इन आभासी पुष्टियों की अभिलाषा के आदि हो सकते हैं, जिससे ध्यान आकृष्ट करने वाली जानकारी को वास्तविक संवाद पर प्राथमिकता मिलती है। पुष्टीकरण की यह आवश्यकता एक स्वकेंद्रित मानसिकता को बढ़ावा दे सकती है, जहाँ प्राथमिक लक्ष्य प्रामाणिक वार्ता अथवा नातों को प्रगाढ़ करने के स्थान पर मान्यता प्राप्त करना होता है।


किये गए अध्ययनों के अनुसार सोशल मीडिया के इस्तेमाल और आत्ममोह और आत्म-सम्मान के मुद्दों के बढ़ते स्तर के बीच सहसंबंध है। आत्ममोही व्यक्ति सोशल मीडिया की ओर आकर्षित होते हैं क्योंकि यह स्व-प्रशंसा और सार्वजनिक स्वीकृति के लिये मंच प्रदान करता है। इसके विपरीत, निम्न स्तर के आत्म-सम्मान वाले लोग बाहरी मान्यता प्राप्त करने के लिये सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः तुलना और ईर्ष्या का चक्र बनता है। इस गतिशीलता से व्यक्तिवाद और आत्म-केंद्रितता सुदृढ़ होती है, जिससे सोशल मीडिया स्वार्थपरायण प्रवृत्तियों की पूर्ति करने वाला माध्यम बनता है।


आधुनिक पश्चिमी समाजों, विशेष रूप से नवउदारवाद की विचारधाराओं से प्रभावित सामाजों में व्यष्टिवाद और वैयक्तिक सफलता का कीर्तिगान किया जाता है। सोशल मीडिया इस सांस्कृतिक प्रवृत्ति को ऐसे मंच प्रदान करके बढ़ाता है जहाँ वैयक्तिक उपलब्धियों और जीवन शैली को व्यापक दर्शकों तक प्रसारित किया जाता है। व्यष्टिवाद की विचारधारा पर केंद्रित होने से साझा मूल्यों और समुदाय-उन्मुख चिंतन का ह्रास हो सकता है जो एक ऐसी स्वार्थपरायण मानसिकता को बढ़ावा देता है जहाँ वैयक्तिक ब्रांडिंग और स्वार्थ को प्राथमिकता दी जाती है।


सोशल मीडिया से एक ऐसे परिवेश को बढ़ावा मिलता है जिसमें सामाजिक तुलना निरंतर जारी रहती है। इस प्रकार उपयोगकर्त्ता अन्य व्यक्तियों के जीवन के आदर्श चित्रण के संपर्क में आते हैं, जिससे अयोग्यता और ईर्ष्या की भावना जनित होती है। इस प्रतिस्पर्द्धी परिवेश से व्यक्तियों में एक-दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्द्धा होती है, जहाँ वास्तविक संबंधों को प्रगाढ़ करने के बजाय दूसरों से आगे निकलने पर ज़ोर दिया जाता है। इसके परिणामस्वरुप एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा मिलता है जिसमें सामुदाय के कल्याण के स्थान पर वैयक्तिक सफलता एवं मान्यता को महत्त्व दिया जाता है।


सोशल मीडिया पर प्रभावक संस्कृति का उदय स्वयं के वस्तुकरण का उदाहरण है। प्रभावशाली लोग वैयक्तिक ब्रांड विकसित करते हैं और ऑनलाइन परिवेश में धन अर्जन करते हैं जिससे प्रायः वैयक्तिक अभिव्यक्ति और व्यावसायिक हितों के बीच भेद करना मुश्किल होता है। यह प्रवृत्ति सोशल मीडिया की स्वाभाविक स्वार्थपरायण प्रकृति को उजागर करती है, जहाँ व्यक्ति स्वयं ही विपणन और उपभोग हेतु एक उत्पाद में निरूपित होता है। फॉलोअर, प्रायोजनों और मुद्रीकरण के अवसरों की अभिलाषा प्रामाणिक आत्म-अभिव्यक्ति और सामुदायिक जुड़ाव को प्रभावित कर सकती है।


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को एक अटेंशन इकोनॉमी की संज्ञा दी जा सकती है, जहाँ विज्ञापन के पैसे का इस्तेमाल उपयोगकर्त्ता की भागीदारी को मुद्रीकृत करने के लिये किया जाता है। इन प्लेटफॉर्म के व्यवसाय मॉडल ऐसे व्यवहारों को प्रोत्साहित करते हैं जो उपयोगकर्त्ता का ध्यान और ऑनलाइन बिताया गया समय अधिकतम करते हैं। इसमें प्रायः ऐसे एल्गोरिदम शामिल होते हैं जो संवेदनात्मक, भावनात्मक रूप से आवेशित या विवादास्पद सामग्री को प्राथमिकता देते हैं, जिससे उपयोगकर्त्ता आत्म-प्रचार और ध्यान आकर्षण की लालसा के आचरण में संलग्न होते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया कंपनियों के आर्थिक प्रोत्साहन उपयोगकर्त्ताओं की स्वार्थपरायण प्रवृत्तियों के साथ संरेखित होते हैं और उन्हें प्रबलित करते हैं।


उपयोगकर्त्ता डेटा का संग्रह और मुद्रीकरण सोशल मीडिया व्यवसाय मॉडल का मुख्य पहलू है, जिसे अक्सर सर्विलांस कैपिटलिज़्म के रूप में वर्णित किया जाता है। लक्षित विज्ञापन और वैयक्तिक सामग्री देने के लिये उपयोगकर्त्ताओं की ऑनलाइन गतिविधियों, अधिमान्यताओं और आचरण को ट्रैक उनका विश्लेषण किया जाता है। इस व्यवहार में उपभोक्ता की गोपनीयता और कल्याण को प्रभावित करते हुए लाभ को प्राथमिकता दी जाती है, जो कि स्व-हित की ओर एक बड़े औद्योगिक बदलाव का संकेत है। व्यावसायिक लाभ के लिये वैयक्तिक डेटा का दोहन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को चलाने वाली स्वार्थपरायण प्रेरणाओं को रेखांकित करता है।


सोशल मीडिया उपभोक्ता व्यवहार और जीवनशैली विकल्पों को बहुत अधिक प्रभावित करता है, प्रायः भौतिकवाद तथा विशिष्ट उपभोग को बढ़ावा देता है। प्रभावशाली व्यक्ति और लक्षित विज्ञापन उपयोगकर्त्ताओं की इच्छाओं और आकांक्षाओं को आकार देते हैं, उन्हें ऐसे उत्पाद एवं सेवाएँ खरीदने के लिये प्रोत्साहित करते हैं जो उनके ऑनलाइन व्यक्तित्व के अनुरूप हों। यह उपभोक्तावादी संस्कृति वैयक्तिक संतुष्टि और स्टेटस सिंबल पर ध्यान केंद्रित करती है, जिससे सोशल मीडिया इंटरैक्शन की स्वार्थपरायण प्रकृति को बल मिलता है।


आत्म-प्रस्तुति और मान्यता की चाहत पर जोर देने से सोशल मीडिया पर रिश्तों की गुणवत्ता खराब हो सकती है। प्रामाणिक संबंधों के लिये भेद्यता, सहानुभूति और पारस्परिकता की आवश्यकता होती है, जो प्रायः सोशल मीडिया इंटरैक्शन की प्रदर्शनकारी प्रकृति से समझौता कर लेते हैं। उपयोगकर्त्ता वास्तविक संवाद से पूर्व एक आदर्श छवि को कायम रख सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संवाद बनावटी और भावनात्मक रूप से कम अंतरंग हो सकती है।


सोशल मीडिया पर मान्यता की आकांक्षा और लगातार सामाजिक तुलना मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है। अध्ययनों ने अत्यधिक सोशल मीडिया प्रयोग को चिंता, अवसाद और एकाकीपन के बढ़ते स्तरों से जोड़ा है। आदर्श मानकों के अनुरूप होने का दबाव और छूट जाने का डर (FOMO) इन नकारात्मक परिणामों में योगदान देता है, जो एक स्वार्थपरायण सोशल मीडिया संस्कृति की मनोवैज्ञानिक परिणामों को उजागर करता है।


सोशल मीडिया एल्गोरिदम जो जुड़ाव को प्राथमिकता देते हैं, प्रायः विवादास्पद और ध्रुवीकरण करने वाली कंटेंट/विषय-वस्तु को बढ़ावा देते हैं, जिससे इको चैम्बर्स बनते हैं जहाँ उपयोगकर्त्ता ऐसी जानकारी के संपर्क में आते हैं जो उनके मौजूदा विश्वासों को पुष्ट करती है। इससे एक खंडित और ध्रुवीकृत समाज बन सकता है, जहाँ रचनात्मक संवाद और आपसी समझ स्वार्थपरायण व्यवहार तथा पुष्टि पूर्वाग्रह से कमज़ोर हो जाती है। उपयोगकर्त्ताओं की स्वार्थपरायण प्रवृत्तियाँ, प्लेटफॉर्म के लाभ-संचालित उद्देश्यों के साथ मिलकर, सामाजिक विभाजन को बढ़ाती हैं और सामूहिक समस्या-समाधान में बाधा डालती हैं।


सोशल मीडिया की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक गतिशीलता के बारे में उपयोगकर्त्ताओं को शिक्षित करने से इसकी स्वार्थी प्रवृत्तियों को कम करने में मदद मिल सकती है। डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम जो आलोचनात्मक विचार, मीडिया साक्षरता और नैतिक ऑनलाइन व्यवहार पर बल देते हैं, व्यक्तियों को सोशल मीडिया का अधिक सोच-समझकर एवं जिम्मेदारी से उपयोग करने के लिये सशक्त बना सकते हैं। आत्म-धारणा व रिश्तों पर सोशल मीडिया के प्रभाव के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देकर, उपयोगकर्त्ता अपनी ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में अधिक सूचित विकल्प बना सकते हैं।


सोशल मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म में निहित स्वार्थ को नियंत्रित करने में भूमिका निभानी चाहिये। नैतिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म डिज़ाइन करना जो उपयोगकर्त्ता की भलाई, गोपनीयता और वास्तविक कनेक्शन को प्राथमिकता देते हैं, स्वार्थी व्यवहार के नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं। इसमें ऐसी सुविधाएँ लागू करना शामिल हो सकता है जो सकारात्मक इंटरैक्शन को बढ़ावा देती हैं, उपयोग के पैटर्न को सीमित करती हैं और उपयोगकर्त्ता के डेटा को शोषण से बचाती हैं।


सामुदायिक सहभागिता और सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने वाली पहल सोशल मीडिया पर व्यक्तिवाद से सामुदायिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है। ऐसे अभियान जो उपयोगकर्त्ताओं को सामाजिक कारणों का समर्थन करने, सामुदायिक परियोजनाओं में भाग लेने और सार्थक वार्ता में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करते हैं, वे एकजुटता एवं साझा उद्देश्य की भावना को बढ़ावा दे सकते हैं। सामूहिक कल्याण के लिये सोशल मीडिया की कनेक्टिविटी का लाभ उठाकर, उपयोगकर्त्ता इसकी अंतर्निहित स्वार्थी प्रवृत्तियों का प्रतिकार कर सकते हैं।


भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए सेल्फी विद डॉटर अभियान ने लोगों को सोशल मीडिया पर अपनी बेटियों के साथ सेल्फी साझा करने के लिये प्रोत्साहित किया। इसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और समाज में बेटियों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।


स्वच्छ भारत अभियान ने लाखों भारतीयों को स्वच्छता अभियानों में भाग लेने के लिये प्रेरित करने हेतु सोशल मीडिया का प्रयोग किया। लोगों ने ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्मों पर अपने प्रयासों और प्रगति को साझा किया, जिससे स्वच्छ भारत की दिशा में एक सामूहिक आंदोलन को गति मिली।


डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और नॉलेज इकॉनमी में बदलना था। सोशल मीडिया ने जागरूकता फैलाने और विभिन्न डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों, ई-गवर्नेंस पहलों एवं ऑनलाइन सेवाओं में भागीदारी को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।


सोशल मीडिया एक जटिल और बहुआयामी माध्यम है जो अपने उपयोगकर्त्ताओं के मूल्यों और व्यवहारों को दर्शाता है और बढ़ाता है। जबकि यह कई लाभ प्रदान करता है जो आत्म-प्रचार, मान्यता प्राप्त करने और व्यक्तिवाद की संस्कृति को भी बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया की स्वार्थपर प्रकृति में योगदान देने वाले मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक कारक इसके प्रयोग के लिये अधिक विचारशील एवं नैतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करते हैं। डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, उपयोगकर्त्ता-केंद्रित प्लेटफॉर्म डिज़ाइन करने और समुदाय-उन्मुख पहलों को प्रोत्साहित करके, समाज अपने निहित स्वार्थ को कम करते हुए सोशल मीडिया की सकारात्मक क्षमता का दोहन कर सकता है। ऐसा करने से, सोशल मीडिया एक ऐसे उपकरण के रूप में विकसित हो सकता है जो न केवल व्यक्तियों को जोड़ता है बल्कि सामाजिक संरचना को भी सुदृढ़ करता है और सामूहिक कल्याण को बढ़ावा देता है।



सोशल मीडिया सामाजिक बाधाओं को कम कर रहा है। यह लोगों को पहचान के आधार पर नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों के बल पर जोड़ता है।


— नरेंद्र मोदी





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