मैसलों का मानवतावादी अधिगम सिद्धांत (Humanistic Learning Theory Of Maslow)
मैस्लो का आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत
(Need Hierarchy Theory Of Maslow)
मैसलों के आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1954 में खुद मैस्लो के द्वारा किया गया। वे सर्वप्रथम ऐसे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने स्वः यथार्थो या आत्मसिद्धि (Self Actualization) के महत्व को स्वीकार किया तथा वैज्ञानिक अध्ययन किया। इन प्रत्यय पर एवं इसे मुख्य अभिप्रेरक मान कर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत कहा जाता है। मैस्लो एक मानवतावादी प्रोफेसर थे।
मैस्लो को मानवतावाद का पिता (Father Of Humanism) कहा जाता है।
मैस्लो के इस सिद्धांत को निम्न नामों से भी जाना जाता है -
1. स्वः यथार्थीकरण सिद्धान्त
(Need Theory of Motivation)
2. अभिप्रेरणा का सिद्धांत
(Need Theory of Motivation)
(Motivation Theory)
3. मांग व पूर्ति का सिद्धांत
(Demand And Supply Theory)
4. मानवतावादी सिद्धांत
(Humanistic Theory)
5. आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत
(Need Hierarchy Theory)
6. नाभिकीय सिद्धांत
(Nuclear Theory)
इस सिद्धान्त के अनुसार प्राणी (मनुष्य या पशु) अपने अस्तित्व को बचाने के लिए आवश्यकताओं की कमी या मांग महसूस करता है। आवश्यकता उत्पन्न होने से व्यक्ति क्रियाशील या सक्रिय हो जाता है तथा एक विशेष प्रकार का व्यवहार करता है। इस व्यवहार की प्रकृति बहु अभिप्रेरित (Multi - Motivative) होती है। मनुष्य की ये आवश्यकताएँ जैविक तथा मनोवैज्ञानि दोनों ही प्रकार की हो सकती हैं। मैस्लो महोदय ने इन आवश्यकताओं की पूर्ति के परम्परागत उपागमों का तर्कयुक्त परीक्षण किया तथा बताया कि मानव की आवश्यकताएँ एक अनुक्रम (Hierarchy) या सीढ़ी (Ladder) के रूप में की जा सकती हैं। यह आवश्यकताएं मुख्य रूप से 5 हैं जिन्हें हम नियम चित्र के माध्यम से अनुक्रम या सीढ़ी के रूप में दिखा सकते हैं -
(Need Hierarchy Theory Of Maslow) |
मैस्लो के अनुसार,
आवश्यकताएं एक क्रम में व्यवस्थित होती हैं उनका कहना था कि जैसे ही एक साधारण प्रकार की आवश्यकता की संतुष्टि होती है वैसे ही उससे उच्च प्रकार की आवश्यकता सक्रिय हो जाती है तथा की आवश्यकता ऊपर अनुक्रम में दिखाई गई हैं उनका वर्णन निम्नलिखित है -
1. शारीरिक या जैविकीय आवश्यकता
(Physiological Or Biological Need) -
सभी आवश्यकताओं का स्रोत जैविक रासायनिक होता है मैंस्लो के अनुक्रम में यह सबसे निम्न प्रकार की आवश्यकता होती है यह वह आवश्यकता होती हैं जिनकी पूर्ति होनी बहुत जरूरी होती है। यदि इनकी पूर्ति नहीं हो पाती है तो इससे उच्च प्रकार की आवश्यकता भी सक्रिय नहीं होती है क्योंकि यह जीवन आवश्यकताएं मानव का केंद्र बिंदु होती हैं एक जैविक हार्दिक आवश्यकता है कभी-कभी इतनी प्रबल हो जाती हैं कि वह इनके लिए सामाजिक मूल्यों व मांगों की भी अवहेलना कर देता है।
उदाहरणार्थ-
यदि कोई बालक भूखा प्यासा है तो यह उसकी सारी आवश्यकता होती है अब यदि व्यक्ति भूखा है तो उसे भोजन जरूर चाहिए जब तक उसको भोजन नहीं मिलेगा उसका तनाया क्रियाशीलता खत्म नहीं होगी तथा वह इसकी प्राप्ति के लिए चोरी या छीना झपटी कुछ भी कर सकता है।
2. सुरक्षा मांग की आवश्यकता (Safety Need) -
मैसलों के अनुसार , जब मनुष्य की जैविक " आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है तब व्यक्ति के सुरक्षा को आवश्यकता पड़ती है जिनका संबंध सुरक्षा से होता हैं। ये आवश्यकताएँ शारीरिक तथा सांवेगिक दोनों प्रकार से होती है। इन आवश्यकताओं के अन्तर्गत शारीरिक सुरक्षा , जीवन में स्थिरता , निर्भरता , बचाव , भय, या चिंता आदि आती हैं। मनुष्य इसकी प्राप्ति हेतु साधन सामग्री पर विचार करता है व इन्हें जुटाने के लिए हर सम्भव प्रयास करता है। तभी हम प्राय: देखते है कि जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति होने के बाद व्यक्ति का यदि अपना घर नहीं है तो वह अपने घर के विषय में सोचता है।
कुछ फिक्स्ड डिपॉजिट या बीमा वगैरह कराता है। साधारणतः देखा गया है कि इस प्रकार की आवश्यकताएं बालक की अपेक्षा बालिकाओं में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। इस प्रकार की जैविक आवश्यकताएँ मानव में ही नहीं सभी प्राणियों में विद्यमान होती है । कुछ का सम्बन्ध इससे अधिक होता है तथा इसके लिए वे धनसंग्रह करके भवन बनाते हैं , भूमि या जमीन खरीदते हैं तथा इस प्रकार का कार्य करके वे अपना जीवन सुरक्षित करते हैं। इस तरह की आवश्यकता में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के डर तथा असुरक्षा से बचने की कोशिश करता है।
3. स्नेह या प्रेम की आवश्यकता
(Need of Belongingness and Love) -
यह भी निम्नआवश्यकता में आता है। प्रथम व द्वितीय प्रकार की आवश्यकता पूरी होने के बाद इस की आवश्यकता की बारी आती है। जब व्यक्ति अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर लेता है तो वह समाज से प्रेम व सहानुभूति की अपेक्षा करता है व इसके तहत अपने निकट संबंधियों , व दूसरे लोगों सम्बन्ध कायम करता है। इस प्रकार की आवश्यकताएं सामाजिक जीवन के साथ , मनुष्य की मनोवैज्ञानिक प्रकृति को प्रदर्शित करती है। इस तरह की आवश्यकता के कारण व्यक्ति परिवार, स्कूल , धर्म आदि के साथ तादाम्य (Identification) स्थापित करता है। इस तरह वह परिवार , मित्र आदि के साथ प्रेम स्थापित कर उनसे प्रेम चाहता है।
इस आवश्यकता को भी दो वर्गों में बाँटा गया हैं -
(i) आत्मप्रेम (Self - Love)
(ii) दूसरों से प्रेम चाहना (Need of Love from Others)
प्रत्येक व्यक्ति में आत्मप्रेम की आवश्यकता होती है। दूसरों से प्रेम चाहने की प्रत्येक व्यक्ति की चाहत होती है। उदाहरण के लिए- सामाजिक स्तर , सामाजिक प्रतिष्ठा तथा प्रसिद्धि आदि की आकांक्षा। समाज में प्रेम स्नेह , सहानुभूति पाने के लिए व्यक्ति हर सम्भव प्रयास करता है। यदि मनुष्य की आत्मप्रेम आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं होती तो उसके व्यक्तित्व में बाधाएँ उत्पन्न होती है तथा व्यक्ति में हीन भावना आ जाती है।
4. सम्मान माँग या आवश्यकता
(Esteem Needs)-
यह एक उच्चस्तरीय आवश्यकता है। जब व्यक्ति की उपरोक्त तीनों आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है तो व्यक्ति में सम्मान प्राप्त करने की आवश्यकता उत्पन्न होती है। समाज में मधुर सम्बन्धों के साथ व्यक्ति अहं तथा आत्मसम्मान को भी बनाए रखने का प्रयास करता है।
ये भी दो भागों में विभाजित हैं -
1. आत्मसम्मान (Self Esteem) -
- आत्मसम्मान (Self Respect)
- स्व मूल्यांकन (Self Assessment)
2. दूसरों से सम्मान चाहना (Relating to respect from Others) -
- इज्जत (Reputation)
- स्तर (Status)
- सामाजिक सफलता (Social Success)
- प्रसिद्धि (Fame)
स्वमूल्यांकन की आवश्यकता उन लोगों में उत्पन्न होती है। जो पूर्ण रूप से व्यवस्थित होते हैं तथा जिनकी निम्न स्तर की आवश्यकताएं पूर्ण हो जाती हैं। उदाहरणार्थ- जैसे एक प्रोफेसर जो पर्याप्त प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका हो वह किसी भी नए कार्य को करने की चिन्ता नहीं करता है। हाँ वह यह अवश्य सोच सकता है कि कौन सा कार्य उसे स्वीकार करना चाहिए व कौन सा नहीं। यही आत्मसम्मान की आवश्यकता है। दूसरों से सम्मान पाने की आवश्यकता की पूर्ति तथा दूसरों से अच्छा अनुभव करने की इच्छा की पूर्ति यह सम्मान वह दूसरों को उपहार देकर या वस्त्र आदि देकर भी करता है ।
कॉपर स्मिथ (Copper Smith) ने पाया कि जिनकी स्वमूल्यांकन की आवश्यकता पूर्ण नहीं होती है उनमें व्यक्तित्व सम्बन्धी बाधाएँ पैदा होती हैं व हीनभावना भी होती है।
5. स्व - यथार्थीकरण माँग या आवश्यकता
(Need of Self Actualization) -
यह व्यक्ति की सबसे उच्च स्तर की आवश्यकता है तथा यह एक जटिल प्रत्यय है जिसे आसानी से समझा नहीं जा सकता है।
मार्गन , किंग और विस्ज के अनुसार ,
“व्यक्ति की अपनी क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता को आत्मसिद्धि कहा जाता है।”
"Self - actualization refers to an individuals need to develop his or her potentialities.”
आत्मसिद्धि की आवश्यकता ऐसी होती है जो प्रत्येक व्यक्ति में पूर्ण नहीं होती है। वह अपने नीचे की स्तर की आवश्यकता की पूर्ति में ही लगा रहता है और जिनमें ये आवश्यकता पूरी हो जाती है उस व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास काफी हद तक पूर्ण होता है तथा ऐसे व्यक्तियों में डर , चिन्ता आदि नहीं के बराबर होता हैं।
मैसलो के अनुसार , आत्मानुभूति आवश्यकता का अर्थ है- एक संगीतज्ञ को संगीत प्रस्तुत करना चाहिए , कवि को कविता प्रस्तुत करनी चाहिए। यदि वह आत्मसंतुष्टि चाहता हो अर्थात् एक व्यक्ति को वही होना चाहिए जो वह हो सकता है। यह सबसे उच्च प्रकार की आवश्यकता है। यह आवश्यकता तभी अनुभव होती है जब व्यक्ति की अन्य सभी प्रकार की आवश्यकताएँ पूर्ण होती है तथा उनकी प्राप्ति के लिए व्यक्ति को अधिक शक्ति नहीं लगानी पड़ती है। यह ऐसी अवस्था है जहाँ व्यक्ति अपनी सभी योग्यताओं एवं अन्तःक्षमताओं से पूर्णतया अवगत हो जाता है तथा उनके अनुरूप अपने आपको विकसित करने की इच्छा रखता है।
स्व - यथार्थीकरण की विशेषताएँ -
स्व - यथार्थीकरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
- कुशल प्रत्यक्षीकरण का प्रदर्शन
- स्वतंत्र अभिव्यक्ति
- समस्या केन्द्रित समझ
- सम्बन्ध स्थापित करना
- सृजनात्मकता का गुण
- उच्च प्रकार की सादगी
- स्वयं व अन्य को मान्यता देना
- मानवता से जुड़ाव
- हंसी मजाक का स्वभाव
- लचीला होना
- निष्पक्षता
- एकांतवास में रहना पसंद होता है।
- ये वास्तविकता को कुशलता से समझते हैं।
मैस्लो के सिद्धांत की विशेषताएं
(Characteristics Of Maslow's Theory) -
इस सिद्धांत की निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं -
1. मैसलो के अनुसार, आवश्यकता अभिप्रेरक का कार्य करती है व इनकी पूर्ति के लिए व्यक्ति क्रियाशील रहता है।
2. मैसलो ने अपनी इन पाँच आवश्यकताओं को एक क्रम में बाँटा है। प्रथम तीन निम्न स्तर फिर दो उच्च स्तर की। इनका कहना था कि ये आवश्यकताएँ एक क्रम में पूरी होती हैं, पहले निम्न , फिर उच्च।
3. इनके अनुसार व्यक्ति जैसे - जैसे ऊपर के क्रम की आवश्यकता की पूर्ति की ओर बढ़ता है व अन्तिम आवश्यकता पूर्ण होने पर वह पूर्ण व्यक्तित्व वाला व्यक्ति बन जाता है।
(मैस्लो के सिद्धांत का शैक्षिक निहितार्थ)
1. विद्यार्थियों को अधिगम अनुभव प्रदान करते हुए हर अवस्था में मानव के तरह ही उनके साथ व्यवहार करना चाहिए। ना की मशीन एवं पदार्थों की भांति व्यवहार करना चाहिए।
2. हमें बच्चों के आत्म प्रतिष्ठा के विकास पर बल देना चाहिए।
3. विद्यार्थियों को यह पता होना चाहिए कि वह अपने आप में क्या कर सकता है तथा उसका स्वयं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए।
4. विद्यार्थियों को खुलकर अपने आप को जैसा वह चाहता है वैसा ही अभिव्यक्ति प्रदान करना चाहिए।
5. विद्यार्थियों को ना कभी सकारात्मक पुनर्बलन और ना ही उनकी आलोचना करनी चाहिए।
6. विद्यार्थियों को स्वअनुशासन की तरफ प्रेरित करना चाहिए क्योंकि स्वअनुशासन बाहर से थोपे गए अनुशासन से सदैव अच्छे परिणाम दिखाता है।
7. शिक्षा की प्रक्रिया को बाल केंद्र बनाना चाहिए।
8. अध्यापक को विद्यार्थियों के आत्म का सदैव सम्मान करना चाहिए तथा उनको यह प्रयास करना चाहिए कि उनके अंदर अपनी योग्यता को लेकर कोई हीन भावना नहीं होनी चाहिए।
9. शिक्षण और अधिगम की किसी भी योजना में मानवीय शक्ति, क्षमता और जीवन के उच्चतम मूल्यों के विकास पर पूरा पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
Expended Theory Of Maslow
1970 के दशक से इस बात पर बहस और चर्चा होती रही है कि क्या मास्लो ने उन सभी प्रेरक चरणों की पहचान की है जो मनुष्यों को प्रेरित करते हैं। कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि ज़रूरतों के पदानुक्रम के लिए और अधिक स्तर होने चाहिए। अधिकांश इस बात से सहमत प्रतीत होते हैं कि आवश्यकताओं के पदानुक्रम में तीन नए जोड़ होने चाहिए। इसलिए मास्लो ने आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत में तीन नए परिवर्धन किए -
1. ज्ञान और समझ (संज्ञानात्मक आवश्यकताएं) (Cognitive Needs)
2. सौंदर्यशास्त्र की आवश्यकता (Need for Aesthetics)
3. श्रेष्ठता (Transcendence)
1. ज्ञान और समझ (संज्ञानात्मक आवश्यकताएँ) -
यह सीखने की आवश्यकता है और स्पष्ट रूप से विकास की आवश्यकता होगी। लोगों में नई चीजें तलाशने और सीखने या अपने आसपास की दुनिया को समझने की इच्छा होती है। संज्ञानात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थता आत्म-साक्षात्कार तक पहुँचना कठिन बना सकती है। आत्म-साक्षात्कार व्यक्तिगत रूप से बढ़ने के बारे में है और ज्ञान और समझ हासिल करने का एक अधिक जटिल रूप है।
2. सौंदर्यशास्त्र की आवश्यकता -
यह हमारे जीवन में सुंदरता और मनभावन परिवेश की इच्छा के बारे में है। अव्यवस्था के माध्यम से, हम व्यवस्था और संतुलन चाहते हैं। हम उन चीजों की सराहना करना चाहते हैं जो हमें सुंदर लगती है।
3. श्रेष्ठता -
श्रेष्ठता खुद से आगे बढ़ने की इच्छा है। विस्तारित पदानुक्रम में इसे आत्म-साक्षात्कार के बाद रखा जाता है, जिससे यह पदानुक्रम में उच्चतम स्तर बन जाता है। अपनी उत्कृष्ट ज़रूरतों को पूरा करने की चाह रखने वाले लोग दूसरों की मदद करके या पूरी तरह से उन कारकों से प्रेरित हो सकते हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं करते हैं। वे अपने निचले स्तर की जरूरतों को संतोषजनक ढंग से पूरा करने में इतने आश्वस्त हैं कि उन्हें दूसरों की जरूरतों की चिंता है।
(Expended Theory Of Maslow)
मास्लो के आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत के अंतर्गत आने वाले प्रमुख तत्व -
1. शारीरिक एवं जैविक की आवश्यकता
(Physical And Biological Needs) -
- वायु (Air)
- पानी (Water)
- खाना (Food)
- आवास (Shelter)
- गर्मी (Heat)
- आराम (Rest)
- नींद (Sleep)
- संभोग (Sex)
2. सुरक्षा आवश्यकता (Safety Needs) -
- तत्वों से सुरक्षा (Protection From Elements)
- सुरक्षा (Security)
- आज्ञा (Order)
- कानून (Law)
- स्थिरता (Stability)
- निर्भरता (Dependency)
3. प्रेम और आत्मीयता की आवश्यकता
(Love and Belongingness Need) -
- मित्रता (Friendship)
- आत्मीयता (Intimacy)
- स्नेह (Affection)
- प्रेम (Love)
- परिवार (Family)
- दोस्त (Friends)
- रूमानी संबंध (Romantic Relationship)
- शादी (Marriage)
4. आत्मसम्मान की आवश्यकता
(Self - Esteem Need) -
- उपलब्धि (Achievement)
- प्रभुत्व (Mastery)
- स्वतंत्रता (Independence)
- स्थिति (Status)
- प्रभुता (Dominance)
- प्रतिष्ठा (Prestige)
- प्रबंधकीय जिम्मेदारी (Managerial Responsibility)
5. संज्ञानात्मक आवश्यकताएं (Cognitive Need) -
- ज्ञान (Knowledge)
- अर्थ (Meaning)
- समझ (Sence)
6. सौंदर्यशास्त्र की आवश्यकता
(Need for Aesthetics) -
- सराहना (Appreciation)
- सुंदरता के लिए खोज (Search For Beauty)
- संतुलन (Balance)
- रूप (Forms)
7. स्व यथार्थीकरण (Self Actualization Needs)-
- व्यक्तिगत गुणों को पहचानना
- (Realizing Personal Properties)
- समस्या समाधान गतिविधि (Problem Solving Activity)
- रचनात्मकता (Creativity)
- श्रेष्ठतम अनुभव (Peak Experience)
8. श्रेष्ठता (Transcendence) -
- दूसरों के आत्मानुभूति में सहायता
- Helping Others To Realize Actualization
मैस्लो के सिद्धान्त की आलोचनाएँ
(Criticism of Maslow's Theory) -
मैस्लो के आत्मसिद्धि सिद्धान्त को निम्न कारकों के आधार पर आलोचित किया गया है—
1. इस सिद्धान्त के प्रतिपादन हेतु मैसलो ने केवल 10 प्रयोज्य ही लिए थे लेकिन मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि इतने कम प्रयोज्य पर किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं हो सकता हैं ।
2. आलोचकों का कहना है कि मैसलो ने अपने सिद्धान्त में केवल उच्च वर्ग तथा मध्य वर्ग को ही लिया। अतः ये सिद्धान्त दो वर्गों के लिए ही उचित है लेकिन इन्होंने निम्न वर्ग की उपेक्षा की। अतः ये उन पर लागू नहीं होता है क्योंकि ऐसे लोगों की आवश्यकताएँ कभी पूर्ण नहीं होती हैं। अतः वे आगे के क्रम की आवश्यकताओं के विषय में सोच नहीं पाते हैं।
3. मैसलो ने आत्मसिद्धि के जो भी गुण बताए उनसे सभी मनोवैज्ञानिक सहमत नहीं।
4. मैसलो ने अपने अनुक्रम में बताया कि आवश्यकताएं एक अनुक्रम में पूरी होती हैं। पहले निम्न , फिर उच्च। उनका कहना था कि तृतीय या चौथी आवश्यकता तभी पूर्ण होती है जब व्यक्ति की इससे पहले की द्वितीय या तृतीय आवश्यकता पूर्ण हो जबकि आलोचकों का कहना है कि हमेशा ऐसा ही हो, यह आवश्यक नहीं। ऐसा भी हो सकता है कि सबसे निम्न स्तर की आवश्यकता की संतुष्टि करने के बाद उसमें दूसरे या तीसरे प्रकार की आवश्यकता न उत्पन्न होकर चौथे प्रकार की आवश्यकता उत्पन्न हो जाए। ऐसी पुष्टि विलियम एवं पेज ने अपने अध्ययन में की।
5. मैसलो ने जिन आवश्यकताओं को बताया, उनका आधार क्या है, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक , ये नही बताया।
उदाहरण के लिए –
प्यास की आवश्यकता को ले लीजिए। व्यक्ति को प्यास लगती है लेकिन किन - किन शारीरिक परिवर्तनों से ये उत्पन्न होता है। ये नहीं बताया है।
6. आलोचकों ने कहा है कि आवश्यकता को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति में प्रतिस्पर्धा का विकास हो जाता है जो आगे चलकर घृणा एवं द्वेष में परिवर्तित हो जाता है।
निष्कर्ष -
इन आलोचनाओं के बावजूद भी मैसलो का आवश्यकता-पदानुक्रम सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण माना गया। क्योंकि इन्होंने अभिप्रेरणा की व्याख्या करने में जैविक , सामाजिक , तथा व्यवहार सम्बन्धी प्रभावों को शामिल किया है।
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