वाद विवाद विधि (Discussion Method)

वाद विवाद विधि 
(Discussion Method) 

इस विधि को तर्क विधि एवं चर्चा विधि के नाम से भी जाना जात है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली बाल केंद्रित है। आज यह आवश्यक है कि विद्यार्थी कक्षा में अधिक से अधिक सक्रिय रहे अर्थात् विद्यार्थी को कक्षा शिक्षण के समय अपने शिक्षक के साथ तथा अन्य साथियों के साथ विषय से सम्बन्धित परस्पर बातचीत करनी चाहिए। विद्यार्थी कक्षा में मात्र एक निष्क्रिय श्रोता नहीं है। इसलिए कक्षा में विषय से सम्बन्धित बातचीत या वाद विवाद अब शिक्षा का एक आवश्यक और लोकतान्त्रिक अंग माना जाने लगा है। यह विधि छात्रों को अपने विचारों को कहने, सुनने, शंकाओ का निवारण करने एवं प्रश्न पूछने आदि का पूरा अवसर प्रदान करती है। जिससे वे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सके। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वाद - विवाद विधि शिक्षण की वह विधि है। जिसमे शिक्षक और शिक्षार्थी परस्पर मिलकर किसी प्रकरण, प्रश्न या समस्या के सम्बन्ध में स्वतंत्रता पूर्वक सामूहिक वातावरण में विचारों का आदान प्रदान करते हैं।


सैटलर एवं मिलर के अनुसार,

“वाद विवाद दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा सहयोगपूर्ण ढ़ंग से विचारों एवं सूचनाओं का आदान - प्रदान करके किये जाने वाला ऐसा विचारशील चिन्तन है जिसे किसी समस्या के समाधान या उसकी विशेष जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।” 

“Discussion is a reflective thinking by two or more person who co-operatively exchange information and ideas in effort to solve a problem on to gain better understanding of a problems"



जेम्स एम.ली के अनुसार,
   
“वाद विवाद एक शैक्षिक सामूहिक प्रक्रिया है जिसमें अध्यापक एवं छात्र सहयोग पूर्ण ढंग से किसी समस्या या प्रकरण पर बातचीत करते हैं।”

“Discussion is an educational group activity in which the teacher and students co-operative talk over some problem or topics.”


योकम एवं सिम्पसन के अनुसार ,

“वाद विवाद बातचीत का एक विशिष्ट स्वरूप है। इसमें सामान्य बातचीत की अपेक्षा अधिक विस्तृत एवं विवेकयुक्त विचारों का आदान-प्रदान होता है। सामान्यता वाद-विवाद में महत्वपूर्ण विचारों को सम्मिलित किया जाता है।”

“Discussion is a special form of conversation. It is an exchange of ideas of a more reason and detailed kind than that found in ordinary conversation and generally involves the conversation of important ideas and purpose.”


वाद विवाद शिक्षण की वह विधि है जिसमें अध्यापक और छात्र परस्पर मिलजुलकर पाठ्यक्रम से संबंधित किसी प्रकरण, समस्या के ऊपर स्वतंत्रापूर्वक सामूहिक वातावरण में अपने विवेकपूर्ण विचारों का आदान प्रदान करते हैं तथा समस्या समाधान के लिए आम सहमति द्वारा किसी निर्णय पर पहुंचने की कोशिश करते हैं। प्रकरण विशेष से संबंधित अपनी शंकाओं का निवारण करते हैं और सामूहिक विचार-विमर्श के द्वारा विषय से संबंधित आवश्यक ज्ञान और कुशलताओं आदि का अर्जन करते हैं।




विचार-विमर्श पद्धति के पद 
(Step Of Discussions Method) -

विचार विमर्श के निम्नलिखित चार पद होते हैं -

  1. विषय का चयन (Selection Of Topic/Subject)
  2. विचार-विमर्श हेतु तैयारियां (Preparation For Discussions)
  3. विचार विमर्श का संचालन (Execution Of Discussions)
  4. विचार विमर्श का मूल्यांकन (Evaluation Of Discussions)


1. विषय का चयन (Selection Of Topic) -

विचार विमर्श के लिए विषय का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि विषय यदि अच्छा होगा तो अधिक से अधिक छात्र विचार विमर्श में बढ़-चढ़कर भाग लेंगे, अन्यथा रुचि के अभाव में विचार-विमर्श आगे बढ़ाना ही कठिन हो जाता है अतः विषय के चयन में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए 

  • विषय छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल हो ताकि छात्र उस पर विचार विमर्श कर सकें।

  • विषय ऐसा होना चाहिए कि जिस पर विचार विमर्श किया जा सके। भूगोल की प्रत्येक विषय वस्तु ऐसी नहीं होती जिस पर विचार विमर्श किया जा सके अपितु विषय वस्तु में जो भाग विचार-विमर्श के लिए उपयुक्त हो उसी पर विचार-विमर्श कराया जाए।




2. विचार-विमर्श हेतु तैयारियां 
  (Preparation For Discussions) –

विचार विमर्श प्रारंभ करने से पूर्व छात्रों को भी विचार-विमर्श के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होता है क्योंकि जब तक छात्र पूरी तैयारी के साथ नहीं आते विचार-विमर्श में ठीक से भाग नहीं ले सकते। अतः अध्यापक का कार्य होता है कि वह छात्रों को विषय की प्रकृति आवश्यकता एवं उसकी उपयोगिता से परिचित कराएं। छात्रों को यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि विचार-विमर्श के लिए जिस विषय का चयन किया गया है। उस पर अधिक से अधिक जानकारी किन किन स्रोतों तथा संदर्भों से एकत्र की जा सकती है। इसके अतिरिक्त छात्रों को विचार विमर्श के नियमों से भी भलीभांति अवगत करा देना चाहिए।


3. विचार विमर्श का संचालन 
    (Execution Of Discussions) -

विचार विमर्श का संचालन यदि सुनियोजित ढंग से ना किया जाए तो निर्धारित उद्देश्यों को भलीभांति प्राप्त नहीं किया जा सकता। अतः जब विचार-विमर्श चल रहा हो तो अध्यापक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • जो छात्र विचार-विमर्श में भाग नहीं ले रहे हो उन्हें सहभाग के लिए प्रेरित किया जाए।
  • विचार-विमर्श की प्रक्रिया निर्धारित उद्देश्यों की ओर अग्रसर होनी चाहिए।
  • जब छात्र किन्हीं विशेषताओं की व्याख्या ना कर पाए तो उन तथ्यों को स्वयं अध्यापक द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए।
  • विचार विमर्श करते समय छात्रों में एक दूसरे के प्रति वैमनस्य का भाव ना आने दिया जाए।
  • एक समय में एक ही छात्र अपने विचार व्यक्त करें।
  • विचार विमर्श के अंत में, वार्ता का सारांश या निष्कर्ष अवश्य प्रस्तुत किया जाए।

समानता विचार-विमर्श का संचालन व्यवस्था दो प्रकार से की जा सकती है –

  • कक्षा को छोटे-छोटे समूहों में बांटकर।
  • पूरी कक्षा का एक समूह बनाकर।


4. विचार विमर्श का मूल्यांकन 
    (Evaluation Of Discussions) –

अध्यापक द्वारा शिक्षण में किसी भी विधि का प्रयोग किया जाए, शिक्षण का उद्देश्य छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना है अतः विचार विमर्श का मूल्यांकन भी उद्देश्य के परिपेक्ष में ही होना चाहिए। यदि निर्धारित उद्देश्यों को पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया जा सका है तो शिक्षक को उन कारणों की खोज करनी चाहिए। साथ ही यह भी पता लगाना चाहिए कि विचार-विमर्श में ऐसी क्या कमियां रह गई। जिसकी वजह से उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकी। इसके अतिरिक्त अध्यापक को यह देखना चाहिए कि विचार विमर्श की तैयारी एवं संचालन में क्या-क्या कठिनाइयां सामने आई। जिससे उन्हें भावी विचार-विमर्श में दूर किया जा सके। इस प्रकार अध्यापक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति सफलतापूर्वक कर सकते हैं।


विचार विमर्श पद्धति के गुण 
(Merits of discussion method) –

  1. इस पद्धति में प्रत्येक छात्र कक्षा का सक्रिय सदस्य रहता है।
  2. विचार विमर्श से छात्रों में चिंतन तथा तर्क शक्ति का विकास होता है।
  3. विचार-विमर्श पद्धति स्वतंत्र अध्ययन पर बल देती है।
  4. विचार-विमर्श प्रजातांत्रिक सिद्धांत पर आधारित है।
  5. यह पद्धति छात्रों को विषय वस्तु का चयन तथा संगठन करना सिखाती है।
  6. छात्रों में अपने विचारों को सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की योग्यता का विकास होता है।
  7. छात्रों में एक दूसरे की भावनाओं का आदर करने तथा परस्पर विरोधी विचारों को स्वीकार करने की आदत का विकास होता है।
  8. छात्रों में समालोचनात्मक चिंतन का विकास होता है।


विचार विमर्श पद्धति की सीमाएं 
(Demerits Of Discussion Method) —

  1. इस विधि से अध्ययन करने में समय अधिक लगता है।
  2. विषय वस्तु के सभी भागों का अध्ययन इस विधि से नहीं किया जा सकता।
  3. विचार विमर्श का संचालन ठीक ना होने पर कुछ छात्रों का एकाधिकार हो जाता है।
  4. निरर्थक बातों पर भी विचार विमर्श हो जाता है जिससे समय नष्ट होता है।
  5. छात्रों में आपसी मतभेद व ईर्ष्या-द्वेष की भावना भी विकसित हो सकती है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

अधिगम के सिद्धांत (Theories Of learning) ( Behaviorist - Thorndike, Pavlov, Skinner)

अधिगम की अवधारणा (Concept of Learning)

बुद्धि की अवधारणा — अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत (Concept Of Intelligence)

बन्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory of Bandura)

माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर कमीशन: (1952-1953) SECONDARY EDUCATION COMMISSION

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) University Education Commission

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

विशिष्ट बालक - बालिका (Exceptional Children)