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पश्चिमी दार्शनिक प्रणाली (Western Philosophical System)

  पश्चिमी दार्शनिक प्रणाली (Western Philosophical System) दर्शन सम्प्रदायों में पाश्चात्य भारतीय को दर्शन किया गया है जिसमें पाश्चात्य दर्शन के ऊर्ध्वाधर विकास का अनुसरण करता है क्योंकि पाश्चात्य दर्शन का विकास आश्चर्यजनक वस्तुओं एवं क्रियाओं को देखने से उत्पन्न कौतूहल (जिज्ञासा) को शान्त करने के प्रत्यय के रूप में हुआ है तथा पाश्चात्य दर्शन में मूल्य मीमांसा या तत्त्व मीमांसा के पहलुओं के प्रति बौद्धिक उत्सुकता पाई जाती है। पाश्चात्य दर्शन का उद्भव स्वयं को जानो से हुआ है जिसका उल्लेख अपोलो के मन्दिर में लिखे लेख में मिलता है। अतः पाश्चात्य दार्शनिक सम्प्रदायों को समझने के लिए हमें इसके इतिहास पर प्रकाश डालना अति आवश्यक है। इस अवधारणा को ध्यान में रखते हुए हम विभिन्न पाश्चात्य सम्प्रदायों के दर्शन का वर्णन आगे करने जा रहे हैं -

हिंदी शिक्षण ( Hindi Pedagogy For CTET )

भाषा (Language) भाषा हमारे विचारों को व्यक्त करने तथा दूसरों के विचारों को समझने का एक साधन है। केवल संप्रेषण का माध्यम ही नहीं इसके अन्य कुछ प्रकार्य है:  1. भाषा विचारों के आदान-प्रदान के साधन के रूप में 2. भाषा सामाजिक जीवन को सार्थक करने के रूप में 3. भाषा ज्ञान प्राप्ति के साधन के रूप में  4. भाषा साहित्य, कला, संस्कृति और सभ्यता को विकसित करने में सहायक के रूप में

माँग-आधारित परीक्षा या ऑन डिमांड परीक्षा (On Demand Exam)

माँग-आधारित परीक्षा (On Demand Exam) - ‘माँग-आधारित परीक्षा’ या ‘ऑन डिमांड परीक्षा‘ उस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार जब एक विद्यार्थी को आवश्यकता या सुविधा हो तो उसके अनुसार उसकी माँग होने पर ही उसकी परीक्षा ली जाए। परीक्षा या आंकलन के इस वैकल्पिक स्वरूप को शुरू करने की जरूरत परंपरागत परीक्षा प्रणाली में आवश्यक लचीलापन लाने की जरूरत के कारण हो महसूस की गई। यह तो एक खुला तथ्य है कि पूर्ण वर्ष में एक निश्चित तिथि पर एक बार या दो बार परीक्षा लेने की परंपरागत प्रणाली अधिगमकर्ता के आंकलन में खुलापन और लचीलापन के मापदंड को प्राप्त नहीं कर सकती है। ऑन-डिमांड परीक्षा की अवधारणा विद्यार्थियों को जरूरी लचीलापन, खुलापन और स्वतंत्रता देने के विचार के कारण ही अस्तित्व में आई, जिससे विद्यार्थियों का अपनी अधिगम गति के अनुसार मूल्यांकन या आंकलन किया जा सके।

ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam)

  ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam) - आज तकनीकी विकास की जो गति है उसी का परिणाम है कि जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, फिर भला शिक्षा का क्षेत्र इससे कैसे अछूता रह सकता है। परीक्षा कार्य को गति प्रदान करने के लिए और मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यंत आवश्यक हो गया है। 

ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System)

परिचय —  शिक्षा में छात्रों द्वारा की गई प्रगति और अधिकांश का मूल्यांकन अति आवश्यक और अनिवार्य है। अध्यापकों के लिये भी यह जानना उपयोगी और सन्तोषप्रद होता है कि उनके शिक्षण से उनके विद्यार्थी कितना लाभान्वित हुये हैं। इसके अतिरिक्त अभिभावक भी यह जानने के लिये उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चों ने कैसी प्रगति की है। इसे जानकर शिक्षक और अभिभावक बच्चों का सही मार्ग दर्शन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को भी अपनी शैक्षिक उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे वे अपनी शैक्षिक योजनायें उसी के अनुसार बनाते हैं। हमारे देश में वर्षों से इसके लिये परीक्षाओं की व्यवस्था होती रही है। जिसमें छात्र प्रश्न पत्रों में दिये गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं और परीक्षकों द्वारा उन्हें अंक प्रदान किये जाते रहे हैं। यह अंक 0 से 100 तक के प्राप्तांक हो सकते हैं। इनके आधार पर पूर्व निर्धारित मनचाहे विभाजन के आधार पर छात्रों को प्रथम, द्वितीय या तृतीय श्रेणी प्रदान कर दी जाती है। यह प्रणाली वर्षों से बिना किसी संशोधन या परिवर्धन के चली आ रही है, जिसका कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं है। 

व्यक्तित्व (Personality)

व्यक्तित्व की अवधारणा —   विगत अध्यायों में बुद्धि तथा संवेगात्मक बुद्धि की प्रकृति एवं इसके मापन की चर्चा की जा चुकी है। व्यक्ति के व्यवहार के संज्ञानात्मक पक्ष के साथ-साथ गैर-संज्ञानात्मक पक्ष (Non-Cognitive Aspects) भी शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं तथा मनोविज्ञान में इसके अध्ययन की भी आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में एवं इसके बाद के कुछ अध्यायों में व्यवहार के कुछ गैर-संज्ञानात्मक पक्षों जैसे व्यक्तित्व, अभिवृत्ति, रुचि, मूल्य आदि की चर्चा की गयी है। निःसन्देह शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान जैसे व्यावहारिक विज्ञानों में व्यक्तित्व का संप्रत्यय एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्तिगत, संस्थागत एवं सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली तरह-तरह की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तित्व का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में व्यक्तित्व का अर्थ, प्रकृति तथा सिद्धान्तों की चर्चा प्रस्तुत की गयी है।

महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

  महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन  (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi) महात्मा गांधी का जीवन परिचय —  महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था। महात्मा गांधी बचपन का नाम मोहनदास था। महात्मा गांधी के पिता श्री कर्मचन्द गांधी पोरबन्दर रियासत के दीवान थे और महात्मा गांधी की माता श्रीमती पुतलीबाई थी। महात्मा गांधी जी को पोरबन्दर के प्राथमिक स्कूल में प्रवेश दिलाया। जब गांधी जी की आयु सात वर्ष की थी तो वे अपने माता-पिता के साथ राजकोट हाईस्कूल में प्रविष्ट हो गए और यहीं से महात्मा गांधी 1887 ई0 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। 

मदन मोहन मालवीय जी का शिक्षा दर्शन ( Education Philosophy Of Madan Mohan Malviya Ji )

‘ मदन मोहन मालवीय जी के शैक्षिक विचार ’ ( मदन मोहन मालवीय जी का शिक्षा दर्शन ) ( प्रश्न ) पं० मदन मोहन मालवीय के शिक्षा सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए। ‘या’ पं० मदन मोहन मालवीय के शिक्षा दर्शन को स्पष्ट कीजिए। ( उत्तर )

मदन मोहन मालवीयजी का जीवन - दर्शन (Life - Philosophy of Madan Mohan Malaviyaji)

मालवीयजी का जीवन - दर्शन  पं० मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म के अनन्य भक्त एवं उपासक थे और उनका वेदों, स्मृतियों, पुराणों, उपनिषदों, शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों की बातों में पूर्ण विश्वास था। वे किसी एक वाद या सिद्धान्त से बँधे नहीं थे बल्कि वे सभी सम्प्रदायों की अच्छी बातों पर विश्वास करते थे। पं० मालवीय के जीवन - दर्शन से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्य हैं —

राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration )

(प्रश्न) राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?

शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration Through Education)

( प्रश्न ) शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण कैसे संभव है ? ‘या’ राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षा किस प्रकार सहायक हो सकती है?  ( उत्तर ) शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण - राष्ट्रीय भावना का विकास शिक्षा द्वारा संभव है, क्योंकि राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना का संचार शिक्षा के द्वारा प्रभावशाली ढंग से होता है। शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय भावना या राष्ट्रीय एकीकरण विकसित करने के निम्नलिखित उपाय हैं

पं० मदन मोहन मालवीय (PT. MADAN MOHAN MALVIYA)

  भारतीय चिंतक पं० मदन मोहन मालवीय   INDIAN THINKERS PT. MADAN MOHAN MALVIYA  (1861-1946 )  पं० मदन मोहन मालवीय जी के जीवन और कार्य  जीवन और कार्य — पं० मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद के अहियापुर मुहल्ला (इसे अब मालवीय नगर कहते हैं।) में 25 दिसम्बर, 1861 ई ० में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० ब्रजनाथ व्यास और माता का नाम श्रीमती मूना देवी था। इनका परिवार साधारण था, पिता कथा वार्ता से जीवन निर्वाह करते थे। वे बड़े धर्मनिष्ठ, कट्टर एवं मृदुभाषी थे। इनकी माता बड़े सरल, उदार एवं कोमल हृदय वाली थी, जिससे सारे मुहल्ले में वे लोकप्रिय थीं। यह छाप पं० मदन मोहन मालवीय पर भी पड़ी। घर पर ही इनको नागरी और संस्कृत को शिक्षा शुरू में मिली। बुद्धि के तेज होने से इन्होंने बहुत से श्लोक कंठस्थ का लिये। बाद में पं० हरदेवजी की धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला और फिर पं० देवकीनन्दजी द्वारा व्यवस्थापित विद्या धर्म प्रवर्द्धनी सभा की पाठशाला में इन्हें संस्कृत और धर्म की शिक्षा मिली। संस्कृत पढ़ते हुए पं० मदन मोहन को अंग्रेजी पढ़ने का शौक हुआ। आर्थिक कठिनाई होते हुए भी पिता ने इनको अंग्रेजी पढ़ाना स्वीकार किया। इनके प

Project Methool (योजना विधि)

योजना  (Project) किसी भी काम को करने से पहले उसका भौतिक या गैर भौतिक रूप से उसका रूपरेखा तैयार कर लेना ही योजना कहलाती हैं। योजना भविष्य के लिए कार्रवाई के एक विशेष पाठ्यक्रम को तय करने का एक व्यवस्थित प्रयास है, यह समूह गतिविधि के उद्देश्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों के निर्धारण की ओर जाता है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि योजना तथ्यों का चयन से संबंधित है और भविष्य में प्रस्तावित गतिविधियों के दृश्य और निरूपण के संबंध में मान्यताओं के निर्माण और उपयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children)

अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children) परिचय — शारीरिक अशक्तता वाले बच्चों में अंग संचालन की समस्यायें पाई जाती हैं। अंग संचालन के दोषों का सम्बन्ध मांसपेशियों और शरीर के जोड़ों से है, जो अंगों अथवा हाथ पाँवों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की विषमताओं वाले विद्यार्थियों को, शिक्षण की उन गतिविधियों में, जिसमें शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है, सीखने में कठिनाई होती है। यद्यपि उनमें कक्षा के दूसरे बच्चों के समान ही अनुदेश द्वारा सीखने की मानसिक क्षमता होती है, परन्तु शारीरिक विषमता के कारण उन्हें अपने अध्ययन के समय विशेष समस्याओं का सामना करना  पड़ता है। उदाहरण के लिये यदि किसी बच्चे की उंगलियों की मांसपेशियाँ कठोर हो गई हैं, तो उसे लिखने में निश्चय ही कठिनाई होती है। कुछ बच्चों में बैठने आदि की मुद्रा को लेकर समस्याएं हो सकती हैं, जिससे वे शीघ्र ही थक जाते हैं। उन्हें सीखने में कठिनाई आती है ,और कुछ निश्चित क्रियाओं के सम्पादन में अधिक समय लेते हैं। प्रायः ऐसे बच्चों में कक्षा में समायोजन की समस्यायें भी पाई जाती हैं। अनेक बार कक्षा के अपने ही सहपाठी इन्हें नहीं स्वी

दृष्टिबाधित बालक (Visually Impaired Child)

दृष्टिबाधित बालक (Visually Impaired Child) प्रस्तावना — हम जानते हैं कि हम अपने आस-पास के परिवेश के बारे में जानकारी अपनी ज्ञानेन्दियों के माध्यम से उनके साथ सम्पर्क स्थापित कर करते हैं इसलिये ज्ञानेन्द्रियों को 'ज्ञान का द्वार' भी कहा जाता है मुख्यतः ज्ञानेन्द्रियां पांच प्रकार की होती है। ये पांच ज्ञानेन्द्रियां  क्रमशः आंख, कान, नाक, जिह्ना तथा त्वचा है। इन पाँचो इन्द्रियों का अपना महत्व है। परन्तु आंखों का महत्व जीवन में अतिविशेष है क्योंकि सबसे अधिक अनुभव हम आंखों से ही प्राप्त करते हैं।  यह एक प्रमाणित तथ्य है कि मनुष्य वातावरण से प्राप्त सभी सूचनाओं का लगभग 80 प्रतिशत आंखों के माध्यम से प्राप्त करता है। इसी कारण आंख को मस्तिष्क का बाह्य विस्तार भी कहा जाता है। ऐसे में यदि आंखों की कार्यक्षमता में रूकाबट उत्पन्न हो जाए या इसका शरीर में अभाव हो तो मानव दृष्टि जैसे प्राकृतिक उपहार से वंचित हो जाता है। प्रस्तुत इकाई में विस्तार से दृष्टिबाधिता का अर्थ, प्रकार, कारण एवं रोकथाम के साथ है दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लक्षणों सम्बन्धित जानकारियाँ प्रस्तुत हैं —

श्रवण बाधित बालक या श्रवण संबंधित दोष से ग्रसित बालक (Children With Hearing Impairments)

श्रवण बाधित बालक  या श्रवण संबंधित दोष से ग्रसित बालक (Children With Hearing Impairments)   प्रस्तावना – हम जानते हैं की मनुष्य अपनी इन्द्रियों के माध्यम से ही अपने वातावरण से जुड़ता है। पाँच प्रमुख इन्द्रियों में श्रवण एक महत्वपूर्ण इन्द्रिय है। क्योंकि न की यह सिर्फ वातावरण में मौजूद ध्वनियों को सुनने में सहायता करती है बल्कि वाणी एवं भाषा के विकास के लिए पूर्वपेक्षित भी है। श्रवण एक दूरस्थ इन्द्रिय के रूप में हमें खतरों से बचाती है बोलने की क्षमता प्रदान करने के साथ ही मनोरंजन हेतु स्वाभाविक इन्द्रिय की तरह भी कार्य करती है। श्रवण प्रक्रिया के बाधित होने से मनुष्य का सामान्य जीवन तथा उसका अन्य क्रियाकलाप के समस्त पहलु प्रभावित होते है। प्रस्तुत इकाई में विस्तार से श्रवण बाधिता का अर्थ, वर्गीकरण तथा विशेषताओं सम्बन्धित जानकारियाँ प्रस्तुत हैं।