Project Methool (योजना विधि)

योजना 

(Project)


किसी भी काम को करने से पहले उसका भौतिक या गैर भौतिक रूप से उसका रूपरेखा तैयार कर लेना ही योजना कहलाती हैं।


योजना भविष्य के लिए कार्रवाई के एक विशेष पाठ्यक्रम को तय करने का एक व्यवस्थित प्रयास है, यह समूह गतिविधि के उद्देश्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों के निर्धारण की ओर जाता है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि योजना तथ्यों का चयन से संबंधित है और भविष्य में प्रस्तावित गतिविधियों के दृश्य और निरूपण के संबंध में मान्यताओं के निर्माण और उपयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।




प्रोजेक्ट की विशेषताएं 

(Characteristics of Project) —


  1.  प्रोजेक्ट का एक सुनिश्चित उद्देश्य होना चाहिए।

  2. प्रोजेक्ट में क्रिया को प्रधानता दी जानी चाहिए।

  3. क्रियाएँ अर्थपूर्ण तथा स्वयं में पूर्ण होती चाहिए।

  4. प्रोजेक्ट में दिए जाने वाले कार्य वास्तविक परिस्थितियों में होने चाहिए।

  5. प्रोजेक्ट के कार्य छात्रों के लिए उपयोगी होने चाहिए।

  6. प्रोजेक्ट में छात्रों को कार्य चुनने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

  7. क्रिया करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित तथा प्रेरित करना चाहिए।


प्रोजेक्ट के प्रकार

(Types of Projects)‌  —


  1. व्यक्तिगत प्रोजेक्ट (Individual Project)

  2. सामूहिक प्रोजेक्ट (Group Project) 


किल्पैट्रिक महोदय के अनुसार प्रायोजनाएँ चार प्रकार की होती है —


  1. सृजनात्मक या रचनात्मक प्रायोजना (Creative or Constructive Project) 

  2. कलात्मक प्रयोजना (Artistic Project)

  3. समस्यात्मक प्रायोजना (Problematic Project) 

  4. अभ्यास की प्रायोजना (Drill Project) 



Project Methool 

(योजना विधि)


किलपैट्रिक महान दार्शनिक एवं शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी (John Dewey) के शिष्य थे। (W.H Kilpatrick)  ने योजना विधि को 1918 में डीवी  के प्रयोजनवाद (Pragmatism) के सिद्धांत पर आधारित करके निश्चित रूप प्रदान किया।


किलपैट्रिक (W.H Kilpatrick) के अनुसार,


“प्रोजेक्ट सामाजिक वातावरण में पूर्ण संलग्नता  से किया जाने वाला उद्देश्य पूर्ण कार्य है।”


 प्रो ० स्टीवेन्सन ( Prof. Stevenson ) के अनुसार,


“प्रोजेक्ट एक समस्यात्मक कार्य है, जिसका समाधान अपनी स्वाभाविक परिस्थितियों के अंतर्गत पूर्णता को प्राप्त करता है।”


पार्कर (Parker) के अनुसार,


“प्रोजेक्ट क्रिया  की एक इकाई है, जिसमें शिक्षार्थियों को योजना और उद्देश्य निर्धारित करने के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।”


बेलाई (Ballard) के अनुसार,


 "प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का ही भाग है , जो विद्यालय में सम्पादित किया जाता है।”




योजना पद्धति के पद

 (Steps of Project Method)


  1. उद्देश्य का निर्धारण करना (Formulating Objectives)

  • परिस्थिति उत्पन्न करना  (Creating The Situation)

  • योजना का चयन करना  (Selecting The Project)


  1. कार्यक्रम बनाना (Planning The Project)

  2. क्रियान्वयन या निष्पादन करना (Executing Or Performing The Project)

  3. योजना का मूल्यांकन करता (Evaluation The Project)

  4. योजना का आलेखन (Recording the project)




प्रायोजन विधि के लाभ

(Merit Of Project Method)


  1.  यह विधि विभिन्न मनोवैज्ञानिक नियमों एवं सिद्धांतों पर आधारित है।


  1. यह एक बाल केंद्र विधि है।


  1. छात्रों द्वारा स्वयं योजना बनाने तथा उसका क्रियान्वयन करने के कारण उनमें कार्य करने की तत्परता (Readiness) रहती है, जो कि प्रभावी अधिगम के लिए अति आवश्यक है। 


  1. छात्रों को तत्पर अन्तः क्रिया तथा विचारों के आदान प्रदान का अवसर मिलता है।


  1.  छात्रों में रचनात्मक (Constructive) तथा सृजनात्मक (Creative) योग्यताओं विकास होता है।


  1. यह विधि उपयोगिता, क्रियाशीलता, वास्तविकता तथा कार्य करने की स्वतन्त्रता के सिद्धान्तों पर आधारित है। 


  1. इस विधि के द्वारा सीखने पर छात्रों में वैज्ञानिक तथा खोजपूर्ण दृष्टिकोण का विकास होता है। 


  1. छात्रों को स्वाभाविक परिस्थितियों में सीखने का अवसर मिलता है।


  1. छात्रों में सहयोग, सद्‌भाव, उत्तरदायित्व आदि अन्य सामाजिक गुणों का विकास होता है।


  1. इस विधि में छात्रों को करके सीखने,(Learning By Doing) तथा अनुभवो द्वारा सीखने (Learning Through Experiences) का अवसर मिलता है।


  1. इस विधि द्वारा अर्जित ज्ञान अधिक स्थाई तथा दीर्घकालीन (Durable) हो जाता है।


  1. छात्रों में आत्म विश्वास तथा आत्म-अनुशासन विकसित करने में सहायक है। 


  1. इसके द्वारा शिक्षण करने पर गृहकार्य का भार (Load of Howe Work) कम किया जा सकता है।


  1. यह एक व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक उपाग़म (Approach) है। 


प्रायोजन विधि की सीमाएँ या कमियाँ 

(Limitations / Demerits of Project Method) 


  1.  इस विधि द्वारा शिक्षण करने पर समय तथा श्रम अधिक लगता है।


  1. भूगोल में प्रत्येक प्रकरण/प्रत्यय को इस विधि द्वारा पढ़ाना सम्भव नहीं है। 


  1. यह अधिक महँगी/खर्चीली विधि है। 


  1. यदि प्रायोजन का संचालन भली-भाँति न किया जाए तो इसमें कुछ ही छात्रों का प्रभुत्व हो जाता है।


  1. इसके द्वारा शिक्षण करने पर अधिक वैज्ञानिक उपकरण, प्रयोगशाला तथा अन्य सहायक और सन्दर्भ सामग्री की आवश्यकता होती है। 


  1. यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है।


  1. इस विधि पर आधारित पाठ्य पुस्तकों तथा अन्य सामग्री का अभाव है।


  1. इसके द्वारा शिक्षण करने पर विद्यालय की संपूर्ण समय सारणी प्रभावित हो जाती है।


  1. इसमें अध्यापक से अधिक अपेक्षाएं की जाती है तथा अतिरिक्त काम का बोझ भी बढ़ जाता है जो कि व्यवहारिक रूप में संभव नहीं हो पाता है।


  1. इसके द्वारा अधिक क्रमबद्ध, संगठित तथा नियमित अधिगम नहीं हो पाता है।


  1.  इसके द्वारा शिक्षण करने पर संपूर्ण पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करना संभव नहीं है।



प्रोजेक्ट विधि में अध्यापक की भूमिका 

( Role of Teacher in Project Method ) 


जैसा कि सर्वविदित है कि छात्रों को उत्साहित तथा प्रेरित करने में अध्यापक की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। प्रोजेक्ट विधि में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों की भूमिकाओं का अपना अपना महत्व है। इस विधि में अध्यापक की भूमिका को अग्र लिखित बिंदुओं में स्पष्ट कर सकते हैं —


  1. इस विधि में अध्यापक एक मित्र, मार्गदर्शक तथा सहभागी के रूप में कार्य करता है ना कि एक तानाशाह तथा कमांडर के रूप में।


  1. अध्यापक को कक्षा में प्रजातांत्रिक वातावरण प्रदान करना चाहिए।


  1. परियोजना की प्रगति के प्रति अध्यापक को सक्रिय तथा सतर्क रहना चाहिए।


  1. अध्यापक को अंतर्मुखी तथा शर्मीली (Introvert And Shy) प्रकृति के छात्रों को सक्रियता से भाग लेने के लिए अधिक अवसर प्रदान करने चाहिए।


  1. अध्यापक को छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास तथा वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण देने का प्रयास करना चाहिए।


  1. अध्यापक को व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ज्ञान होना चाहिए तभी वह छात्रों को उनकी रुचिओं, क्षमताओं और योग्यताओं के अनुरूप कार्य एवं उत्तर दायित्व सौंप सकता है।


  1. शिक्षक को विषय संबंधी पर्याप्त अनुभव तथा जानकारी होनी चाहिए।



  1. प्रारंभ से लेकर अंत तक अध्यापक को सक्रिय रहकर छात्रों की गतिविधियों तथा प्रगति का निरीक्षण करना चाहिए।




प्रोजेक्ट विधि के विषय

(Topics of Project Methods)


लघु कक्षा में छात्रों को निम्न प्रकार के प्रोजेक्ट दिए जा सकते हैं—


  1. चित्र एकत्रित करना।

  2. घर व पाठशाला के रेखा चित्र व मॉडल बनाना।

  3. स्थानीय प्रदेश में पाई जाने वाली मिट्टी के प्रकारों का विवरण तैयार करना।

  4. दैनिक मौसम का निरीक्षण कर उसका अभिलेख तैयार करना।

  5. भौगोलिक भ्रमण।

  6. भौगोलिक महत्व की वस्तुओं का संग्रह हाल है तैयार करवाना।



उच्च कक्षाओं के लिए निम्न प्रोजेक्ट उपयुक्त होंगे —


  1. स्थानीय प्रदेश के विभिन्न प्रकार के मानचित्र तैयार करना।

  2. स्कूल में कृषि की योजना।

  3. सब्जी एवं फलों के बगीचे लगवाए जाएं।

  4. भौगोलिक भ्रमण के ऊपर लेख लिखवाना।

  5. किसी नदी की घाटी का मॉडल चिकनी मिट्टी से बनवाया जाए।

  6. विभिन्न प्रदेशों में रहने वालों के जीवन का अभिनय करना जैसे -  लैप, सैमोयेद, एस्किमो, नागा आदि।

  7. भूकंप या किसी पर्वत का मॉडल बनाना।

  8. पास पड़ोस में पाई जाने वाली मिट्टी का विवरण तैयार करना।

  9. विद्यालय के निकट के मार्गों का मानचित्र खींचना।

  10. स्थानीय फसलें बोने और उनके तैयार होने का विवरण तैयार करना।


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