बुद्धि की अवधारणा — अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत (Concept Of Intelligence)

इस लेख में हम निम्न बिंदुओं पर चर्चा करेंगे —
  • बुद्धि की अवधारणा (Concept Of Intelligence)
  • बुद्धि की परिभाषा (Definition Of Intelligence)
  • बुद्धि के सिद्धांत (Principal Of Intelligence)
  • बुद्धि के प्रकार (Type Of Intelligence)
  • बुद्धि की प्रकृति (Nature Of Intelligence)
  • बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक (Factors Determining Intelligence)


प्रस्तावना -

बुद्धि के कारण ही, मानव अन्य सभी प्राणियों से सर्वश्रेष्ठ है। बुद्धि चाहे मनुष्य की जैसी भी योग्यता हो लेकिन ये मानव की खुद के लिए व अंतोगत्वा राष्ट्र की प्रगति के लिए एक अहम निर्धारक तत्व हैं। अत: इस योग्यता को जानने, जाँचने व परखने के लिए मनुष्य सभ्यता के शुरूआती दौर से ही प्रयासरत व जिज्ञासु रहा है। 



बुद्धि का अर्थ एवं परिभाषा -

बुद्धि एक ऐसा सामान्य शब्द है जिसका हम अपने दिन-प्रतिदिन के बोलचाल की भाषा में काफी करते हैं। तेजी से सीखने तथा समझने, अच्छा स्मरण तथा तार्किक चिंतन (Logical Thinking) आदि गुणों के लिए हम दिन प्रतिदिन की भाषा में बुद्धि शब्द का प्रयोग करते हैं। मनोविज्ञान में बुद्धि शब्द का प्रयोग इस सामान्य अर्थ से हटकर विशेष अर्थ में होता है। प्रारंभ से ही मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि शब्द को परिभाषित करने की कोशिश की है। सबसे पहले बोरिंग (Boring,1923) ने बुद्धि की एक औपचारिक परिभाषा (Formal Definition) दी और कहा कि बुद्धि परीक्षण जो मापता है, वही बुद्धि है (Intelligence is what intelligence test measures)। परन्तु, इस परिभाषा से बुद्धि के स्वरूप के बारे में कुछ खास पता नहीं चलता। क्योंकि बुद्धि को मापने के लिए बहुत परीक्षण हैं। इनमें किस परीक्षण द्वारा किए गए मापन को बुद्धि कहा जाएगा। बोरिंग के बाद अनेक मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित करने की कोशिश की है। इन सभी परिभाषाओं को मूलतः तीन भागों में बाँटा गया है -

1. समायोजन की योग्यता के रूप में बुद्धि 
   (Intelligence as an ability to adjust) -

प्रथम वर्ग की परिभाषा में बुद्धि को वातावरण के साथ समायोजन करने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है। ऐसी कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -

स्टर्न के अनुसार - 

“बुद्धि जीवन की नई परिस्थितियों तथा समस्याओं के अनुरूप सामान्य समायोजन योग्यता है।”

“Intelligence is a general adptation to new condition and problem of life."


वर्ट के अनुसार -

“बुद्धि अपेक्षाकृत नई परिस्थितियों में समायोजन करने की जन्मजात क्षमता है।”

“Intelligence is the innate capacity to adapt relatively to new situations”.


क्रूज़ के अनुसार -

“बुद्धि नई तथा विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में समुचित रूप से समायोजन करने की योग्यता है।”

“Intelligence is the ability to adjust adequately to new and different situations.”

इन परिभाषा के अनुसार बुद्धि जीवन में आने वाले विभिन्न परिस्थितियों तथा नई-नई समस्याओं के साथ अनुकूलन या समायोजन करने की सामान्य मानसिक योग्यता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि बुद्धि वह योग्यता है जिससे व्यक्ति अपने व्यवहार को इस प्रकार से पुनर्गठित (Organize) करता है कि वह नवीन परिस्थितियों में अधिक उपयुक्त (Appropriately) एवं प्रभावपूर्ण (Effective) ढंग से कार्य कर सकें। इस प्रकार की परिभाषाओं के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो बदलती परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को सरलता, सुगमता व शीघ्रता से बदलने में सक्षम होता है।


2. सीखने की योग्यता के रूप में बुद्धि 
(Intelligence As An Ability To Learn) -

दूसरे वर्ग की परिभाषाओं में बुद्धि को सीखने की योग्यता के रूप में परिभाषित किया गया है बुद्धि को सीखने की योग्यता के रूप में स्पष्ट करने वाले कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -


बकिंघम के अनुसार -

“बुद्धि सीखने की योग्यता है।”

“Intelligence is the ability to learn”.


डियिरबोर्न के अनुसार -

“बुद्धि अधिगम करने की क्षमता अथवा अनुभवों से लाभ उठाने की योग्यता है।”

“Intelligence is the capacity to learn auto profit by experience.”

इन परिभाषा के अनुसार बुद्धि शीघ्रता व व्यापकता से नवीन ज्ञान प्राप्त करने की योग्यता है। दूसरे शब्दों में व्यक्ति के द्वारा प्राप्त किए जाने वाले अधिगम अनुभवों की सम्भाव्य, व्यापकता व विस्तृतता ही उसकी बुद्धि का घोतक है। इस प्रकार की परिभाषाओं के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो अत्यंत शीघ्रता से नवीन बातों को आत्मसात कर लेता है।


3. चिंतन योग्यता के रूप में बुद्धि 
(Intelligence is an ability to think abstractly) -

तीसरे वर्ग की परिभाषाएं बुद्धि को अमूर्त चिंतन करने की योग्यता के रूप में परिभाषित करती है। अल्फ्रेड बिने के द्वारा दी गई परिभाषा इसी वर्ग में आती है। इस प्रकार की कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -


विने के अनुसार - 

 “बुद्धि अब बोध पर आधारित खोजपरकता, जो उचित ढंग से तर्क करने तथा उचित ढंग से निर्णय करने से इंगित होती है, के रूप में व्यक्त की जा सकती है।”

“Intelligence may be characterized as inventiveness dependent upon comprehension and marked by purposefulness and corrective judgement.”

टरमैन के अनुसार -

“व्यक्ति उसी अनुपात में बुद्धिमान होता है जितनी उसमें अमूर्त चिंतन करने की योग्यता है।”

“An individual is intelligent in proportion as he is able to carry on abstract thinking.”

इन परिभाषाओं के अनुसार बुद्धि विभिन्न परिस्थिति में (विशेषकर उन परिस्थितियों में जिनके समाधान हेतु शाब्दिक तथा आंकिक संकेतों का प्रयोग आवश्यक होता है) संप्रत्ययों, संकेतों तथा प्रतीकों का प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करने की क्षमता है। इस प्रकार की परिभाषाओं के अनुसार बुद्धिमान व्यक्ति अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking) करने में अधिक सक्षम होता है।


बुद्धि की व्यापक परिभाषा
(Comprehensive Definition of Intelligence) -

बुद्धि की परिभाषाओं के उपरोक्त वर्गीकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि बुद्धि की परिभाषाओं के तीनों वर्गों में मुख्य अंतर दृष्टिकोण का है। वास्तव में तीनों वर्ग एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं यह तीनों वर्ग बुद्धि के तीन विमाओं- समायोजन योग्यता, अधिगम योग्यता व अमूर्त चिंतन योग्यता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
स्पष्ट है कि तीनों वर्गों की परिभाषाएँ एक दूसरे की पूरक हैं तथा प्रत्येक परिभाषा एकाकी ढंग से बुद्धि के केवल एक पक्ष पर बल देती है। वस्तुतः यदि कोई व्यक्ति बुद्धि की कोई व्यापक परिभाषा देना चाहें तो उसे उसमें इन तीनों योग्यताओं को सम्मिलित करना होगा। वैश्लर (Wechsler), राबिन्सन तथा राबिन्सन (Robinson and Robinson) एवं स्टोडार्ड (Stoddard) ने उपरोक्त तीनों पक्षों को सम्मिलित करके वृद्धि की अत्यंत व्यापक परिभाषाएँ दी हैं, जिन्हें मनोवैज्ञानिक जगत में पर्याप्त मान्यता प्राप्त है। अतः यहाँ पर इन तीनों परिभाषाओं की चर्चा करना समीचीन ही होगा। 

वैश्लर ने बुद्धि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा कि -

 “बुद्धि किसी व्यक्ति के द्वारा उद्देश्यपूर्ण ढंग से कार्य करने, तार्किक चिन्तन करने तथा वातावरण के साथ प्रभावपूर्ण ढंग से क्रिया करने की सामूहिक योग्यता है।"

“Intelligence is the aggregate or global capacity of the individual to act purposefully, to think rationally and to deal effectively with his environment.”


राबिन्सन तथा राबिन्सन के अनुसार, 

“बुद्धि से तात्पर्य संज्ञानात्मक व्यवहारों के उस सम्पूर्ण वर्ग से है जो सूझ के साथ समस्या समाधान करने , नयी परिस्थितियों से अनुकूलन करने , अमूर्त ढंग से सोचने तथा अपने अनुभवों से लाभ उठाने सम्बन्धी किसी व्यक्ति की क्षमता को इंगित करता है।" 

“Intelligence refers to the whole clan of cognitive behaviours which reflect an individual's capacity to solve problems with insight , to adapt himself to new situation to think abstractly and to profit from has experience.” 


स्टोडार्ड ने बुद्धि को परिभाषित करते हुए लिखा है कि -

“बुद्धि कठिनता, अमूर्तता, जटिलता, मितव्ययिता, लक्ष्य की अनुकूलता, सामाजिक मूल्य व मौलिकता की उत्पत्ति से युक्त क्रियाओं को करने तथा शक्ति की एकाग्रता तथा संवेगात्मक दबावों का प्रतिरोध करने की आवश्यकता वाली परिस्थितियों में इन क्रियाओं को बनाये रखने की योग्यता है।”
 
“Intelligence is the ability to undertake activities that are characterized by difficulty, complexity, abstractness, economy, adaptiveness to a goal, social value and the emergence of originals and to maintain such activities under conditions that demand a concentration of energy and resistence to emotional forces.”


अतः उपरोक्त परिभाषा से यह निष्कर्ष निकलता है कि बुद्धि वह योग्यता है जिससे मनुष्य अपनी नई आवश्यकताओं के अनुकूल अपने चिंतन को चेतन रूप से अभियोजित कर लेता है। 


बुद्धि की प्रकृति –

इन सभी परिभाषाओं से बुद्धि की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाला जा सकता है-
  1. बुद्धि वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करने की क्षमता है। 
  2. बुद्धि सीखने की क्षमता है। 
  3. बुद्धि अमूर्त चिंतन करने की क्षमता है।
  4. बुद्धि विभिन्न क्षमताओं का समग्र योग है।
  5. यह व्यक्ति के समस्या समाधान करने की योग्यता को प्रदर्शित करता है। 
  6. बुद्धि को प्रत्यक्ष व्यवहार के आधार पर मापा जा सकता है। 
  7. बुद्धि द्वारा ही किसी समस्या के समाधान में गत अनुभूतियों का लाभ मिलता है। 
  8. बुद्धि विवेकशील चिंतन करने की योग्यता है।
  9. बुद्धि के विकास के लिए आनुवांशिकी व वातावरण दोनों ही उत्तरदायी कारक है। 
  10. यह अपनी ऊर्जा को किसी कार्य को करने में संकेन्द्रण की क्षमता है।
  11. बुद्धि मानसिक परिपक्वता का द्योतक हैं।
  12. यह आगमन विधि व निगमन विधि द्वारा तर्क करने की योग्यता है।
  13. यह उच्च श्रेणी के चिंतन प्रक्रिया के लिए आवश्यक हैं। 
  14. यह एक प्रत्यक्षण / सूझ की योग्यता है। 
  15. यह जटिल, कठिन, मितव्यय  अमूर्त व सामाजिक मूल्यों वाले कार्य को करने की योग्यता है। 
  16. बुद्धि शाब्दिक व अशाब्दिक योग्यता है।
  17. बुद्धि एक परिकल्पित सम्प्रत्यय है। 
  18. बुद्धि को सतर्कता, धारणा, विचार एवं प्रतीक, स्वयं की आलोचना करने की क्षमता, आत्मविश्वास और तीव्र प्रेरणा की क्षमता के रूप में समझा जा सकता है। 
  19. बुद्धि में व्यक्तिगत भिन्नतायें पायी जाती है।
  20. बुद्धि को किसी कार्य करने की प्रणाली के द्वारा अवलोकन किया जा सकता है।


बुद्धि के प्रकार 
(Types of Intelligence)-
 
यद्यपि बुद्धि को एक सामूहिक योग्यता के रूप में परिभाषित किया जाता है तथापि कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को अनेक प्रकार की बताया है। ई० एल० थॉर्नडाइक (E.L. Dhorndike) ने बुद्धि को तीन वर्गों में विभाजित किया -

  1. सामाजिक बुद्धि 
  2. स्थूल बुद्धि 
  3. अमूर्त बुद्धि 

1. सामाजिक बुद्धि (Social Intelligence) - 

सामाजिक बुद्धि से अभिप्राय व्यक्तियों को समझने तथा उनके साथ व्यवहार करने की योग्यता से है। दैनिक जीवन को विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में सामंजस्य बनाने में सामाजिक बुद्धि महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। वास्तव में यह अन्य व्यक्तियों के साथ परस्पर अन्तर्क्रिया करने की योग्यता की द्योतक है। सामाजिक बुद्धि से युक्त व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ शीघ्रता व सुगमता से समायोजन कर लेता है, जबकि सामाजिक बुद्धि के अभाव में व्यक्ति को सामाजिक सम्बन्ध बनाने तथा उन्हें बनाए रखने में कठिनाई होती है। सामाजिक बुद्धि व्यक्ति में सामाजिक कौशल (Social Skills) विकसित करके उन्हें समाज में व्यवहार कुशल बनाती है। सामाजिक बुद्धि से युक्त व्यक्ति प्रायः अन्य व्यक्तियों से अच्छे सामाजिक सम्बन्ध (Social Relations) बनाते हैं तथा समाज में सम्मान तथा प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। ऐसे व्यक्ति अच्छे नेता बनते हैं। 


2. स्थूल बुद्धि (Concrete Intelligence) - 

इसे मूर्त बुद्धि भी कहते हैं। स्थूल बुद्धि से तात्पर्य विभिन्न वस्तुओं को समझने तथा उनका प्रयोग करने की योग्यता से है। यह वास्तविक परिस्थितियों को समझने तथा उनके अनुकूल व्यवहार करने की योग्यता है। दैनिक जीवन में विभिन्न प्रकार के उपकरणों के प्रयोग में स्थूल बुद्धि की आवश्यकता होती है। ऐसी बुद्धि वाले व्यक्ति जीवन में भौतिकवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति सफल व्यापारी बन सकते हैं। 

3. अमूर्त बुद्धि (Abstract Intelligence) - 

अमूर्त बुद्धि से अभिप्राय शाब्दिक तथा गणितीय संकेतों को समझने व प्रयोग करने की योग्यता से है। लिखने, पढ़ने तथा तार्किक चिन्तन में अमूर्त बुद्धि की आवश्यकता होती है। अमूर्त बुद्धि का सर्वोच्च रूप गणित या विज्ञान के सूत्रों व समीकरणों में तथा दार्शनिक विचारों में परिलक्षित होता है। ऐसी बुद्धि वाले व्यक्ति प्रायः कलाकार, चिन्तक, वैज्ञानिक होते हैं।


इसके अतिरिक्त आजकल बुद्धि के और दो प्रकारों की चर्चा की जाती है, जो निम्नलिखित है - 

1. संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Intelligence) -

यह बुद्धि अपने संवेग व दूसरों के संवेगों को समझने में सहायक है। यह संवेगात्मक समस्याओं को हल करने में मदद करती हैं। 

2. आध्यात्मिक बुद्धि (Spiritual Intelligence) -

यह व्यक्ति के आध्यात्मिक परिपक्वता का सूचकांक है। ऐसी बुद्धि वाले व्यक्ति स्व अनुशासित, कर्तव्यपरायण, परोपकारी, चेतना का विकसित स्वरूप वाले होते हैं। इसके सोचने का तरीका मानवतावादी उपागम पर आधारित होता है।


 बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक 
(Factors determining Intelligence)
 
बुद्धि एक जन्मजात योग्यता है अथवा अर्जित योग्यता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। मनोवैज्ञानिक इस बात पर एकमत नहीं हो पाए हैं कि बुद्धि को निर्धारित करने वाला मुख्य कारक वंशानुक्रम (Heredity) है या वातावरण (Environment) है। बुद्धि वंशानुक्रम से निर्धारित होती है या वातावरण से, वस्तुतः प्रश्न के सम्बन्ध में सदैव ही दो मत रहे हैं। एक मत के अनुयायी मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बुद्धि मुख्य रूप से वंशानुक्रम से निर्धारित होती है तथा वातावरण की इसमें गौण भूमिका रहती है। इसके विपरीत दूसरे मत के मानने वाले मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि का निर्धारण मुख्य रूप से वातावरण के द्वारा होता है तथा वंशानुक्रम का इसमें कोई विशेष महत्व नहीं है। बुद्धि के सम्बन्ध में इस प्रकार के मतभेद को मनोविज्ञान में प्रकृति-पोषण विवाद (Nature-Nurture Controversy) भी कहा जाता है। 


वंशानुक्रम (Heredity) –

व्यक्तिगत भिन्नता के कारकों को ज्ञात करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रारम्भ हो गये थे। बिटिश वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन (Galton) ने अनेक महान व्यक्तियों के पारिवारिक इतिहास का अध्ययन किया तथा पाया कि उनमें से अनेक व्यक्ति परस्पर रक्त सम्बन्धी थे। इस परिणाम के आधार पर उसने कहा कि उच्च कोटि की बुद्धि प्रायः कुछ विशिष्ट कुलों में ही दृष्टिगोचर होती है। तब उन्होंने व्यक्तिगत भिन्नता की वंशानुक्रमी प्रकृति की मान्यता का प्रतिपादन किया। गाल्टन ने 1866 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में बुद्धि की विभिन्नता का एकमात्र कारक जैविकीय वंशानुक्रम को बताया था। 



उस समय के अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने गाल्टन के इस विचार को एकदम से एक स्वीकृत तथ्य के रूप में ग्रहण कर लिया था। बाद में टरमैन (Terman) तथा गोडार्ड (Goddard) आदि मनोवैज्ञानिकों ने भी अनेक व्यक्तियों के पारिवारिक इतिहास का अध्ययन करके बुद्धि के वंशानुक्रमीय होने की मान्यता की पुष्टि की थी। जुड़वाँ बच्चों तथा भाई - बहनों पर किये गये अध्ययनों के आधार पर भी कुछ मनोवैज्ञानिकों के द्वारा इस मान्यता की पुष्टि की गई है। सन् 1966 में आर्थर जेनसेन (Arthour Jensen) ने बुद्धिलब्धि पर किये गये अनुसंधानों का सर्वेक्षण करके निष्कर्ष निकाला कि बुद्धि मुख्यतः वंशानुक्रम से निर्धारित होती है। उसने कहा कि बुद्धि के लगभग 75 से 80 प्रतिशत भाग का निर्धारण जेनेटिक विभिन्नताओं (Genetic Differences) से होता है, जबकि शेष 20 से 25 प्रतिशत का निर्धारण वातावरणीय प्रभावों (Environmental Influence) से होता है। 

वातावरण ( Environment ) - 

बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में आयोवा विश्वविद्यालय में किए गए अनुसंधान कार्यों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर बुद्धि तथा वातावरण से संबंध स्थापित किया जाने लगा। अनेक समाजशास्त्रियों तथा मानव व्यवहारवादियों ने भी कहा कि बालक का वातावरण उसकी  मानसिक योग्यता को प्रभावित करता है। विलियम्स (Welliams) आदि मनोवैज्ञानिको ने अपने - अपने अध्ययनों से वातावरण की महत्ता को सिद्ध करने का प्रयास किया। इन लोगों ने बताया कि अनुकूल वातावरण में ही मानसिक योगयता का विकास होता है तथा अनुपयुक्त वातावरण में रहने से बुद्धि कुंठित हो जाती है। इस प्रकार से इन मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक योग्यता तथा बुद्धि को वातावरण के द्वारा निर्धारित होने वाला गुण बताया तथा वंशानुक्रम के महत्व को अस्वीकार कर दिया। बेंजामिन ब्लूम (Benjamin Bloom 1964) , कार्ल ब्राइटर व सिगफ्रैड एंजिलमैन (Carl Bereiter and Siegfriend Engelmann,1966) तथा क्लार्क व क्लार्क (Clark and Clarke, 1559) आदि वातावरण वादियों ने बुद्धिलब्धि पर किये गये अनुसंधानों के आधार पर बुद्धि को वातावरण से प्रभावित होने वाला गुण बताया। उनके अनुसार जन्म से लेकर चार वर्ष आयु तक की अवधि में उत्तम वातावरण प्रदान करके बालकों की बुद्धिलब्धि को बढ़ाया जा सकता है। 

वंशानुक्रम तथा वातावरण की अन्तर्क्रिया
 (Heredity-Environment Interaction)-
 
वंशानुक्रमवादियों तथा वातावरण के द्वारा बुद्धि के सम्बन्ध में अपने अपने पक्ष में प्रमाण प्रस्तुत किये जाने की होड़ के फलस्वरूप इस प्रकरण पर एक विवाद सा उत्पन्न हो गया है। वंशानुक्रम मनोवैज्ञानिक बुद्धि पर वातावरण के प्रभाव को स्वीकार नहीं करते हैं तथा वातावरणवादी मनोवैज्ञानिक वंशानुक्रम के महत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं। वास्तव में अनुसंधानों से बुद्धि के वंशानुक्रम में या वातावरण से निर्धारित होने के सम्बन्ध में कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं प्राप्त हो सका है। कुछ अनुसंधानों से बुद्धि के वंशानुक्रम से निर्धारित होने के परिणाम प्राप्त होते हैं, जबकि कुछ अनुसंधान बुद्धि को वातावरण से निर्धारित होने के परिणाम देते हैं। बुद्धिलब्धि परीक्षणों के निर्माण में संलग्न अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि को जन्मजात स्वीकार किया, जबकि अधिगम सिद्धान्तों के प्रतिपादन में लगे अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के वातावरण से प्रभावित होने की धारणा को स्वीकार किया जैव रसायन, प्रजननशास्त्र विकास, मनोविज्ञान आदि क्षेत्रों में विकास प्रक्रिया का गहन अध्ययन किया गया तथा इसके निष्कर्षों के आधार पर वंशानुक्रम व वातावरण की अन्तक्रिया के दृष्टिकोण का विचार प्रतिपादित किया गया। वर्तमान समय में यही मत अधिक मान्य है। इस मत के अनुसार बौद्धिक विकास के लिए वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। वे मानते हैं कि सभी प्रकार का विकास इन दोनों की अन्तक्रिया का परिणाम होता है। बालक के बौद्धिक विकास में भी वंशानुक्रम तथा वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है। वंशानुक्रम पर हमारा नियंत्रण लगभग नहीं के बराबर होता है, जबकि वातावरण को हम इच्छानुसार परिवर्तित कर सकते हैं। स्वस्थ प्रेरणादायक तथा उत्तेजनापूर्ण वातावरण प्रदान करके बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास अधिकतम स्तर तक किया जा सका है। शैशवावस्था में बालक को प्राप्त अच्छे वातावरण के फलस्वरूप उनकी बुद्धिलब्धि को बढ़ाने के अनेक सफल प्रयोग हो चुके हैं। 



बुद्धि के सिद्धान्त
 (Theories of Intelligence)

 बुद्धि के सिद्धान्त से अभिप्राय बुद्धि की प्रकृति तथा संरचना के क्रमबद्ध स्पष्टीकरण से है। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि की प्रकृति तथा संरचना को जानने के लिए अनेक विश्लेषणात्मक अध्ययन किये हैं। इस प्रकार के अध्ययनों का मुख्य उद्देश्य बुद्धि के तत्वों या कारकों को ज्ञात करना था, जिससे बुद्धि की जटिल प्रक्रिया को अधिक अच्छे ढंग से समझा जा सके। बुद्धि के सिद्धान्तों को प्रायः उनके द्वारा प्रतिपादित कारकों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इन्हें बुद्धि के कारकीय सिद्धान्त (Factorial Theories of Intelligence) कहा जाता है। इन कारकीय सिद्धान्तों के प्रतिपादक मनोवैज्ञानिकों को दो वर्गों-पिण्डक वर्ग (Humpers) तथा विभाजक वर्ग (Splitters) में बांटा जाता है। पिण्डक वर्ग के मनोवैज्ञानिक बुद्धि को एक सामान्य या संगठित पिण्ड रूपी क्षमता के रूप में स्वीकार करते हैं जबकि विभाजक वर्ग के मनोवैज्ञानिक पृथक- पृथक अनेक योग्यताओं के रूप में बुद्धि को देखते हैं। बुद्धि के कुछ प्रमुख कारकीय सिद्धान्त निम्नवत सूचीबद्ध किये जा सकते हैं -

1. एक कारक सिद्धान्त (Uni Factor Theory) 
2. द्वि-कारक सिद्धान्त (Two Factors Theory)
3. बहु -कारक सिद्धान्त (Multi-Factors Theory) 
4. समूह-कारक सिद्धान्त (Group-Factors Theory) 
5. जॉन गिलफोर्ड का बुद्धि का त्रिविमीय संरचना प्रतिमान (Structure of intellect - Guilford)
6. बहु बुद्धि सिद्धांत - हॉवर्ड गार्डनर (Multiple Intelligence - Gardner)


1. एक कारक सिद्धान्त ( Uni Factor Theory ) - 

बुद्धि का एक कारक सिद्धान्त प्राचीन सिद्धान्त है तथा यह सिद्धान्त बुद्धि मापन हेतु परीक्षण निर्माण के प्रथम पैंतीस वर्षों तक अत्यधिक प्रचलित रहा था। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि एक ऐसी अविभाज्य इकाई (Undivisible Unit) के रूप में कार्य करती है जिसके द्वारा समस्त मानसिक क्रियायें प्रारम्भ, सम्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं। बिने (Binet), टरमैन (Terman) तथा स्टर्न (Stern) जैसे मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया था, परन्तु आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने कालान्तर में इस सिद्धान्त को लगभग अस्वीकार कर दिया है। परिणामतः अब इसे बुद्धि के प्राचीन (Classical) व अमान्य (Out dated) सिद्धान्त के रूप में देखा जाता है। 




2. द्वि-कारक सिद्धान्त (Two - Factor Theory)- 

द्वि-कारक सिद्धान्त का प्रतिपादन अंग्रेज मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन (Spearman) महोदय ने सन् 1904 में किया था। स्पीयरमैन ने कहा कि बुद्धि दो प्रकार के कारकों से मिलकर बनी है। कारकों ये दो प्रकार क्रमश, सामान्य योग्यता कारक तथा विशिष्ट योग्यता कारक है। उसने सामान्य योग्यता कारक को जी-कारक (G Factor) का नाम दिया तथा कहा कि यह जन्मजात योग्यता है। इसे सामान्य क्योंकि सभी प्रकार की क्रियाओं को करने में इसकी आवश्यकता होती है। विभिन्न व्यक्तियों में जी-कारक भिन्न-भिन्न मात्रा में उपस्थित रहता है। दैनिक जीवन के कार्यों में जी-कारक का उपयोग अधिक होता है। विशिष्ट योग्यता कारक को स्पीयरमैन ने एस-कारक (S-Factor) का नाम दिया है। जी-कारक के विपरीत एस-कारक विशिष्ट योग्यताओं का एक समूह होता है। एस-कारक एक अर्जित योग्यता होती है। विभिन्न प्रकार के मानसिक कार्यों में अलग-अलग विशिष्ट योग्यताओं की आवश्यकता होती है। किसी भी व्यक्ति में विभिन्न विशिष्ट योग्यताएँ अलग-अलग मात्रा में उपस्थित होती हैं। उदाहरण के लिए आंकिक गणना तथा शब्द प्रवाह दोनों ही प्रकार की मानसिक क्रियाओं में जी-कारक की निश्चय ही महत्वपूर्ण भूमिका है, परन्तु इसके साथ-साथ आंकिक गणना सम्बन्धी कार्यों को करने के लिए आंकिक योग्यता तथा शब्द प्रवाह के लिए शाब्दिक योग्यता का होना भी अत्यन्त आवश्यक है। स्पष्ट है कि जी-कारक तथा एस-कारक दोनों मिलकर ही व्यक्ति को किसी मानसिक कार्य को सम्पन्न करने की क्षमता प्रदान करते हैं। स्पीयरमैन ने जी-कारक को वास्तविक मानसिक शक्ति कहा है, क्योंकि यह सभी मानसिक क्रियाओं के लिए आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होता है। 





3. बहु कारक सिद्धान्त (Multi- Factor Theory)- 

थार्नडाइक (Thorndike) ने बुद्धि के बहुकारक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि अनेक स्वतंत्र कारकों से मिलकर बनी है। इन स्वतंत्र कारकों में से प्रत्येक कारक किसी विशिष्ट मानसिक योगयता का आंशिक ढंग से प्रतिनिधित्व करता है। व्यक्ति के द्वारा किसी भी मानसिक कार्य को सम्पन्न करने में ऐसे अनेक छोटे-छोटे कारक एक साथ मिलकर सहायता करते हैं। विभिन्न प्रकार के मानसिक कार्यों में इन छोटे-छोटे कारकों के भिन्न-भिन्न समुच्चयों (Sets) अर्थात् समूहों की आवश्यकता होती है। यदि कोई दो मानसिक कार्य एक-दूसरे से सम्बन्धित  होते हैं तो बहु-कारक सिद्धान्त के अनुसार इसका कारण दोनों मानसिक कार्यों को करने में कुछ कारकों का  उभयनिष्ठ होना है। यह सिद्धान्त सामान्य बुद्धि जैसे किसी कारक के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है। थार्नडाइक का यह सिद्धान्त वास्तव में बुद्धि का आणविक सिद्धान्त प्रतीत होता है। थार्नडाइक ने यह भी स्वीकार किया कि कुछ मानसिक क्रियाओं में काफी तत्व उभयनिष्ठ रहते हैं, जिसके कारण इस प्रकार की मानसिक क्रियाओं को किसी एक वर्ग में रखकर विशिष्ट नाम देना व्यावहारिक दृष्टि से लाभप्रद हो सकता है। शब्दार्थ, शब्द-प्रवाह, गणना, स्मृति आदि मानसिक क्रियाओं के कुछ ऐसे ही वर्ग हो सकते हैं।



 4. समूह-कारक सिद्धान्त (Group-Factor Theory) - 

स्पीयरमैन का द्वि-कारक सिद्धान्त तथा थार्नडाइक का बहुकारक सिद्धान्त बुद्धि के सम्बन्ध में दो पूर्णतया विपरीत विचार प्रस्तुत करते हैं। इन दोनों  के द्वारा प्रतिपादित बुद्धि सिद्धान्तों के बीच का समन्वय समूह-कारक सिद्धान्त है। थर्सटन (Thurstone) समूह-कारक सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि न तो मुख्य रूप से सामान्य कारक से निर्धारित होती है तथा असंख्य सूक्ष्म व विशिष्ट तत्वों से मिलकर बनी है। वरन कुछ प्राथमिक कारकों में मिलकर बनी होती है। उनके अनुसार एक जैसी मानसिक क्रियाओं में कोई एक प्राथमिक कारक उभयनिष्ठ होता है जो उन सभी क्रियाओं को मनोवैज्ञानिक व कार्यवाहक दृष्टि से समाकलित करता है तथा यही प्राथमिक कारक उन क्रियाओं का अन्य मानसिक क्रियाओं से विभेद स्पष्ट करता है। इस प्रकार से कुछ मानसिक क्रियायें एक समूह का निर्माण करती हैं, जिनमें कोई एक प्राथमिक कारक या समूह कारक भूमिका अदा करता है। मानसिक क्रियाओं के किसी दूसरे समूह में कोई दूसरा प्राथमिक कारक होता है तथा किसी तीसरे समूह में कोई तीसरा कारक होता है। इस प्रकार से मानसिक क्रियाओं के अनेक समूह होते हैं तथा प्रत्येक समूह का एक अलग प्राथमिक कारक होता है, जो समूह की क्रियाओं को समन्वय व समिष्टिता प्रदान करके उन्हें कार्यवाहक इकाई बनाता है। ये प्राथमिक कारक एक-दूसरे से पृथक व स्वतंत्र होते हैं। 
थर्सटन तथा उनके सहयोगियों ने कारक विश्लेषण नामक सांख्यिकी प्रविधि का प्रयोग करके 6 प्राथमिक कारकों का पता लगाया था जिन्हें उन्होंने प्राथमिक मानसिक योग्यता (Primary Mental Ability) के नाम से संबोधित किया।




N - अंकिक कारक ( Numerical Factor )
V- शाब्दिक कारक ( Verbal Factor)
S - स्थानिक कारक ( Spatial Factor )
W - वाक्पटुता कारक (Word Fluency)
R - तार्किक कारक (Reasoning Factor)
M - स्मृति कारक (Memori Factor)

प्रत्येक जटिल मानसिक कार्य में अच्छा कार्य को की कुछ न कुछ आवश्यकता पड़ती है इसीलिए थर्सटन ने इन्हें प्राथमिक मानसिक योग्यता है कहां है परंतु किसी मानसिक कार्य को करने में इनमें से कुछ कारकों का अधिक उपयोग होता है जब भी किसी अन्य मानसिक कार्य को करने में किन है दूसरे कारकों का अधिक उपयोग हो सकता है।


5.जॉन गिलफोर्ड का बुद्धि का त्रिविमीय संरचना प्रतिमान 
    (Structure of intellect - Guilford) -

जॉन गिलफोर्ड (1900-1987) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने बुद्धि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होंने बुद्धि को त्रिविमीय संरचना के रूप में समझने का प्रस्ताव रखा, जिसका वर्णन नीचे किया गया है:

1. सामग्री (Content): यह सूचना या ज्ञान का प्रकार है जिस पर व्यक्ति कार्य करता है। इसमें चार श्रेणियां शामिल हैं:

  • मूर्त (Figural): दृश्य या स्थानिक जानकारी, जैसे आकार, रंग, पैटर्न आदि।
  • प्रतीकात्मक (Symbolic): अक्षर, अंक, शब्द और अन्य प्रतीकों से संबंधित जानकारी।
  • अवधारणात्मक (Semantic): विचारों, अवधारणाओं और ज्ञान से संबंधित जानकारी।
  • व्यवहारिक (Behavioral): सामाजिक व्यवहार, भावनाओं और मानवीय बातचीत से संबंधित जानकारी।

2. संक्रियाएं (Operations): यह वह मानसिक क्रिया है जो व्यक्ति सूचना पर करता है। इसमें छह श्रेणियां शामिल हैं:

  • ज्ञान (Cognition): सूचना को पहचानना और उसका वर्गीकरण करना।
  • स्मृति (Memory): सूचना को याद रखना और पुनः प्राप्त करना।
  • अभिसारी चिन्तन (Convergent Thinking): विभिन्न सूचनाओं से एक अकेला सही उत्तर ढूंढना।
  • अपसारी चिन्तन (Divergent Thinking): एक समस्या के लिए विभिन्न और नए समाधान उत्पन्न करना।
  • मूल्यांकन (Evaluation): सूचना का आकलन और निर्णय लेना।
  • संक्रियात्मक (Production): सूचना को परिवर्तित और नई चीजें बनाना।

3. उत्पाद (Products): यह सूचना को संसाधित करने के परिणामस्वरूप बनने वाली इकाई है। इसमें चार श्रेणियां शामिल हैं:

  • इकाई (Unit): एकल वस्तु या तत्व।
  • वर्ग (Class): संबंधित तत्वों का समूह।
  • संबंध (Relation): तत्वों के बीच का संबंध।
  • प्रणाली (System): तत्वों के जटिल और संगठित समूह।

इस प्रकार, गिलफोर्ड का त्रिविमीय संरचना प्रतिमान बुद्धि को 4 × 6 × 4 = 96 अलग-अलग क्षमताओं के मिश्रण के रूप में समझता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति मूर्त वस्तुओं (सामग्री) के साथ अभिसारी चिन्तन (संक्रिया) का उपयोग करके एक वर्ग (उत्पाद) बनाने की क्षमता प्रदर्शित कर सकता है।

गिलफोर्ड के सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:

  • बुद्धि एक एकल इकाई नहीं है, बल्कि विभिन्न क्षमताओं का एक जटिल संयोजन है।
  • व्यक्ति विभिन्न कौशल क्षेत्रों में अलग-अलग क्षमता प्रदर्शित कर सकते हैं।
  • कोई भी परीक्षण सभी बुद्धि क्षमताओं को पूर्ण रूप से माप नहीं सकता है।
  • शिक्षा को विभिन्न प्रकार की बुद्धि को विकसित करने के लिए डिज़ाइन किया जाना चाहिए।

उदाहरण:

  • एक छात्र जो आसानी से गणित की समस्याओं को हल कर लेता है (अभिसारी चिन्तन - संख्यात्मक सामग्री), वह कला में उतना रचनात्मक नहीं हो सकता (अपसारी चिन्तन - दृश्य सामग्री)।
  • एक शिक्षक विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों का उपयोग करके विभिन्न प्रकार की बुद्धि को लक्षित कर सकता है, जैसे कि प्रयोगशाला कार्य (मूर्त), कविता लेखन (प्रतीकात्मक), चर्चाएँ (अवधारणात्मक), और सामुदायिक सेवा परियोजनाएँ (व्यवहारिक)।

6. बहु बुद्धि सिद्धांत - हॉवर्ड गार्डनर 
    (Multiple Intelligence - Gardner) -

हॉवर्ड गार्डनर एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने 1983 में बहु बुद्धि सिद्धांत (Multiple Intelligences Theory) प्रस्तुत किया। इस सिद्धांत के अनुसार, बुद्धि एक अकेली, एकात्मक इकाई नहीं है, बल्कि यह विभिन्न प्रकार की बुद्धि का समूह है। गार्डनर ने शुरुआत में 8 प्रकार की बुद्धि की पहचान की थी, जिन्हें बाद में बढ़ाकर 9 कर दिया गया।

बहु बुद्धि सिद्धांत के मुख्य बिंदु:

  • बुद्धि एकाधिक होती है: विभिन्न प्रकार की बुद्धि होती हैं, जैसे कि भाषाई, तार्किक-गणितीय, स्थानिक, शारीरिक-गतिज, संगीतमय, अंतःवैयक्तिक, और पारस्परिक।
  • बुद्धि स्वतंत्र होती है: प्रत्येक बुद्धि एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से विकसित होती है।
  • बुद्धि गतिशील होती है: बुद्धि समय के साथ बदल सकती है और विकसित हो सकती है।
  • बुद्धि संदर्भ-आधारित होती है: बुद्धि का प्रदर्शन विभिन्न संदर्भों में भिन्न हो सकता है।


बहु बुद्धि सिद्धांत के प्रकार:

हॉवर्ड गार्डनर द्वारा प्रस्तुत बहु बुद्धि सिद्धांत में 9 प्रकार की बुद्धि का वर्णन किया गया है।

1. भाषाई बुद्धि:

  • भाषा को समझने, बोलने, लिखने और उपयोग करने की क्षमता।
  • इसमें पढ़ना, लिखना, कहानी सुनाना, कविता लिखना, भाषाओं का अध्ययन करना, और सार्वजनिक बोलना शामिल है।
  • भाषाई बुद्धि वाले लोग अक्सर लेखक, वक्ता, अनुवादक, शिक्षक, और पत्रकार बनते हैं।

2. तार्किक-गणितीय बुद्धि:

  • तार्किक सोच, समस्या समाधान, और संख्याओं के साथ काम करने की क्षमता।
  • इसमें पैटर्न पहचानना, विश्लेषण करना, तर्क करना, और वैज्ञानिक सोच शामिल है।
  • तार्किक-गणितीय बुद्धि वाले लोग अक्सर वैज्ञानिक, गणितज्ञ, इंजीनियर, प्रोग्रामर, और अर्थशास्त्री बनते हैं।

3. स्थानिक बुद्धि:

  • दृश्य जानकारी को समझने और हेरफेर करने की क्षमता।
  • इसमें मानचित्र और चित्रों को समझना, दिशा-निर्देशों का पालन करना, और दृश्य कला बनाना शामिल है।
  • स्थानिक बुद्धि वाले लोग अक्सर कलाकार, वास्तुकार, इंजीनियर, नाविक, और पायलट बनते हैं।

4. शारीरिक-गतिज बुद्धि:

  • अपनी शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करने और उपयोग करने की क्षमता।
  • इसमें समन्वय, संतुलन, गति, और शक्ति शामिल है।
  • शारीरिक-गतिज बुद्धि वाले लोग अक्सर एथलीट, नर्तक, अभिनेता, शल्य चिकित्सक, और कारीगर बनते हैं।

5. संगीतमय बुद्धि:

  • संगीत को समझने, बनाने और प्रदर्शन करने की क्षमता।
  • इसमें लय, ताल, और धुन को समझना और गाना, बजाना, और संगीत रचना शामिल है।
  • संगीतमय बुद्धि वाले लोग अक्सर संगीतकार, गायक, वादक, संगीत शिक्षक, और ध्वनि इंजीनियर बनते हैं।

6. अंतःवैयक्तिक बुद्धि:

  • अपनी भावनाओं और दूसरों की भावनाओं को समझने की क्षमता।
  • इसमें आत्म-जागरूकता, आत्म-नियमन, सहानुभूति, और सामाजिक कौशल शामिल हैं।
  • अंतःवैयक्तिक बुद्धि वाले लोग अक्सर मनोवैज्ञानिक, परामर्शदाता, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, और नेता बनते हैं।

7. पारस्परिक बुद्धि:

  • दूसरों के साथ संबंध बनाने और बनाए रखने की क्षमता।
  • इसमें संचार, टीम वर्क, नेतृत्व, और संघर्ष समाधान शामिल हैं।
  • पारस्परिक बुद्धि वाले लोग अक्सर राजनीतिज्ञ, व्यवसायी, शिक्षक, विक्रेता, और राजनयिक बनते हैं।

8. प्राकृतिक बुद्धि:

  • प्रकृति में विभिन्न स्वरूपों को पहचानने और समझने की क्षमता।
  • इसमें जानवरों, पौधों, और मौसम के बारे में ज्ञान शामिल है।
  • प्राकृतिक बुद्धि वाले लोग अक्सर जीवविज्ञानी, वनस्पति विज्ञानी, पारिस्थितिकीविद्, और किसान बनते हैं।

9. अस्तित्वगत बुद्धि:

  • जीवन के अर्थ और उद्देश्य के बारे में सोचने की क्षमता।
  • इसमें दर्शन, धर्म, और आध्यात्मिकता शामिल हैं।
  • अस्तित्वगत बुद्धि वाले लोग अक्सर दार्शनिक, धार्मिक नेता, कलाकार, और लेखक बनते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी लोगों में सभी प्रकार की बुद्धि होती है, लेकिन कुछ लोगों में कुछ प्रकार की बुद्धि दूसरों की तुलना में अधिक विकसित होती हैं। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बुद्धि स्थिर नहीं होती


बहु बुद्धि सिद्धांत का महत्व:

  • शिक्षा में: यह सिद्धांत शिक्षकों को छात्रों की विभिन्न प्रकार की बुद्धि को समझने और उन्हें उनकी क्षमताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में मदद कर सकता है।
  • व्यवसाय में: यह सिद्धांत व्यवसायों को अपने कर्मचारियों की विभिन्न प्रकार की बुद्धि का उपयोग करने और उन्हें अधिक उत्पादक बनाने में मदद कर सकता है।
  • व्यक्तिगत विकास में: यह सिद्धांत लोगों को अपनी विभिन्न प्रकार की बुद्धि को समझने और उन्हें अपनी क्षमताओं को विकसित करने में मदद कर सकता है।

बहु बुद्धि सिद्धांत शिक्षा, व्यवसाय और व्यक्तिगत विकास के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि बुद्धि एक जटिल विषय है और विभिन्न प्रकार की बुद्धि होती है।



निष्कर्ष -

बुद्धि एक समग्र क्षमता है जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिन्तन करता है तथा वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है अर्थात् बुद्धि को कई तरह की क्षमताओं का योग माना जाता है। 

बुद्धि उन क्रियाओं को समझने की क्षमता है जो जटिल, कठिन, अमूर्त, मितव्यय, किसी लक्ष्य के प्रति अनुकूलनशील, सामाजिक व मौलिक हो तथा कुछ परिस्थिति में वैसी क्रियाओं को करना जो शक्ति की एकाग्रता तथा सांवेगिक कारकों का प्रतिरोध दिखाता है।

बुद्धि को संज्ञानात्मक व्यवहारों का संपूर्ण समूह माना गया है जो व्यक्ति में सूझ द्वारा समस्या समाधान करने की क्षमता, नई परिस्थितियों के साथ समायोजन करने की क्षमता, अमूर्त रूप से सोचने की क्षमता तथा अनुभवों से लाभ उठाने की क्षमता को परिलक्षित करता है। 





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