गैग्ने का सीखने का पदानुक्रम (Gagne's Hierarchy Of Learning) (Basic Condition Of Learning)

गेने ने अधिगम को इस रूप में परिभाषित किया है, 

“अधिगम मानव - संस्कार एवं क्षमता में परिवर्तन है जो कुछ समय तक धारण किया जाता है तथा जो केवल वृद्धि की प्रक्रियाओं के ऊपर ही आरोप्य नहीं है।”

गेने की इस परिभाषा में चार बिंदु स्पष्ट होते हैं जो निम्न है–

  1. सीखना व्यवहार में परिवर्तन है। 
  2. व्यवहार परिवर्तन संभाव्य हो सकते हैं। 
  3. व्यवहार व क्षमता में होने वाले परिवर्तन दीर्घकालिक नहीं होते हैं। 
  4. अधिगम शब्द का प्रयोग क्षमताओं में होने वाले उन परिवर्तनों के लिए नहीं होता जो परिपक्वता के कारण होते हैं।


गेने की धारणा है कि साधारण व्यवहार के लिए कुछ पूर्व आवश्यकताओं का निर्धारण करना जरूरी होता है, जैसे- बोध स्तर के शिक्षण के लिए स्मृति स्तर का शिक्षण पूर्व आवश्यकता होती है।

गेने ने शिक्षण को परिभाषित करते हुए कहा है कि- 

"छात्र के लिए बाह्या रूप में अधिगम परिस्थितियों की व्यवस्था करना ही शिक्षण होता है। इन अधिगम परिस्थितियों की व्यवस्था में स्तरीकरण किया जाता है। प्रत्येक अधिगम परिस्थिति के लिए उनकी पूर्व परिस्थिति छात्र के लिए आवश्यक होती है जिससे धारण शक्ति विकसित होती है।”


गेने (Gagne,1965) ने अपनी पुस्तक ‘दी कंडिशन्स ऑफ लर्निंग’ (The Conditions of Learning) में सीखने के मूल आठ प्रकार का वर्णन किया है। गेने द्वारा बतलाए गए सभी आठ प्रकार के सीखने की एक खास विशेषता यह है कि वे सभी श्रृंखलाबद्ध क्रम (hierarchical order) में होते हैं। श्रृंखला में सबसे ऊपर समस्या समाधान सीखना (problem-solving learning) है तथा सबसे नीचे सांकेतिक सीखना (signal learning) है। श्रृंखला या पिरामिड (pyramid) के किसी भी स्तर पर के सीखने की प्रक्रिया होने के लिए यह आवश्यक है कि उसके नीचे के सभी प्रकार के सीखना हो चुके हों। जैसे श्रृंखला के चौथे स्तर पर शाब्दिक साहचर्य सीखना (verbal association learning) है जिसे सम्पन्न होने के लिए उसके नीचे के तीनों तरह के सीखने की प्रक्रिया का सम्पन्न होना अनिवार्य है। गेने (Gagne) द्वारा बताए गए सभी आठ प्रकार के सीखना शृंखलाबद्ध क्रम में निम्नांकित हैं —

 (Gagne's Hierarchy Of Learning)



1. सांकेतिक सीखना (Signal learning) – 

सांकेतिक सीखना क्लासिकी अनुबंधन सीखना (classical conditioning learning) के समान होता है जिसमें कोई तटस्थ उद्दीपन के साथ कोई स्वाभाविक उद्दीपन (natural stimulus or unconditional stimulus) को एक साथ कई बार दिया जाता है । पैवलव (Pavlov) के क्लासिकी अनुबन्धन प्रयोग में घंटी की आवाज (एक तटस्थ उद्दीपन) तथा भोजन (स्वाभाविक उद्दीपन) को साथ - साथ कुछ प्रयास तक देने पर कुत्ता मात्र घंटी की आवाज पर लार का स्राव करना सीख गया था। इस तरह का सीखना सांकेतिक सीखना के उदाहरण हैं। पैवलव के क्लासिकी अनुबन्धन को मनोवैज्ञानिकों ने ‘टाइप - एस अनुबन्धन' (Type - S conditioning) भी कहा है। 

2. उद्दीपन - अनुक्रिया सीखना 
(Stimulus - Response learning) –

वैसे सीखना को उद्दीपन - अनुक्रिया कहा जाता है जिसमें प्राणी किसी उद्दीपन के प्रति एक ऐच्छिक क्रिया (voluntary response) करता है जिसका परिणाम उस पर सुखद होता है और वह धीरे - धीरे उस उद्दीपन के प्रति वही अनुक्रिया करना सीख लेता है। स्कीन्नर (Skinner) का क्रियाप्रसूत अनुबन्धन (operant conditioning) या जिसे सीखना साधनात्मक अनुबन्धन (instrumental conditioning) भी कहा जाता है , एक उद्दीपन - अनुक्रिया का उदाहरण है जिसमें स्कीन्नर बाक्स (Skinner box) में चूहा लिवर दबाने की प्रक्रिया को सीख लेता है। स्कीन्नर के साधनात्मक अनुबन्धन को मनोवैज्ञानिकों ने ‘टाइप-आर अनुबन्धन’ (Type - R conditioning) भी कहा है। 

3. सरल श्रृंखला का सीखना 
  (Learning of simple chaining)–

 गेने ( Gagne ) ने इस तरह के सीखना से तात्पर्य एक क्रम (sequence) में होने वाले अलग - अलग कई उद्दीपन - अनुक्रिया संबंधों के सेट (set) से बताया है। इस प्रकार का सीखना पेशीय सीखना (motor learning) में पाया जाता है। जैसे एक कार चलाना , दरवाजा खोलना , तबला बजाना आदि ऐसे पेशीय सीखना के उदाहरण हैं जिनमें कई छोटी - छोटी अनुक्रियाएँ एक क्रम में सम्मिलित होती हैं। जब ये सारी अनुक्रियाएँ आपस में संबंधित होती हैं, तो व्यक्ति कार चला पाता है या दरवाजा खोल पाता है या तबला बजा पाता है। 

 4. शाब्दिक साहचर्य सीखना 
    (Verbal association learning ) – 

शाब्दिक साहचर्य सीखना वैसे सीखना को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति को उद्दीपन - अनुक्रिया का ऐसा क्रम (sequence) सीखना होता है जिसमें शाब्दिक अभिव्यक्ति (verbalization) निहित होती है। जैसे कविता याद करना , शब्दावली सीखना , कहानी याद करना आदि शाब्दिक साहचर्य के कुछ उदाहरण हैं। 

5. विभेदीकरण सीखना 
    (Learning discrimination) – 

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है , इसमें व्यक्ति विभिन्न उद्दीपनों के प्रति विभिन्न अनुक्रिया (responses) करना सीखता है। जैसे बालकों द्वारा त्रिभुज एवं चतुर्भुज में अंतर सीखना , बीजगणित तथा अंकगणित में अंतर सीखना , फुटबॉल तथा क्रिकेट में अंतर सीखना विभेदीकरण सीखना के कुछ उदाहरण हैं।

6. संप्रत्यय सीखना (Concept learning) – 

कई वस्तुओं के सामान्य गुणों के आधार पर कोई विशेष अर्थ को सीखना संप्रत्यय सीखना कहा जाता है। जैसे 'भालू’ , 'बाघ' , 'सिंह' तथा 'सियार’ शब्दों में एक सामान्य गुण अर्थात जंगली पशु का संप्रत्यय छिपा है। यहाँ 'जंगली पशु' के संप्रत्यय को सीखना संप्रत्यय सीखना का एक नमूना होगा। 

7. नियम सीखना (Rule learning) – 

नियम (rule or principle) का सीखना एक महत्त्वपूर्ण सीखना है। इस तरह का सीखना संप्रत्यय सीखना पर सर्वाधिक आधारित होता है। नियम से दो या दो से अधिक संप्रत्ययों (concepts) के बीच एक नियमित संबंध (regular relationship) का पता चलता है। इस तरह के सीखना से व्यक्ति का ज्ञान - भंडार विकसित होता है। जैसे बालकों द्वारा व्याकरण , गणित , विज्ञान आदि के विभिन्न नियमों का सीखना इसी तरह के सीखने की श्रेणी में आता है। 


8. समस्या समाधान सीखना 
(Problem solving learning) -

समस्या समाधान सीखना गेगनी (Gagne) के श्रृंखलाबद्ध सीखना की सबसे ऊपरी अवस्था (highest stage) है। इस तरह के सीखना में व्यक्ति किसी नियम (principle or rule) का उपयोग करके कोई समस्या का समाधान करता है और एक नए तथ्य को सीखता है। 


गेगनी (Gagne , 1965) ने सीखने के इन आठ प्रकारों (types) को बताते समय एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य जो स्पष्ट किया , वह यह था कि इनमें चौथी अवस्था के सीखना अर्थात शाब्दिक साहचर्य (verbal association) का सीखना तथा इससे ऊपर के अन्य सभी स्तरों का सीखना ही शिक्षकों के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्ग में शिक्षकों द्वारा दिया जानेवाला निर्देश (instruction) में मूलतः चौथी अवस्था से आठवीं अवस्था के सीखना निहित होते हैं। पहली अवस्था से तीसरी अवस्था के सीखना का महत्त्व शिक्षकों के लिए मात्र इतना ही है कि वे चौथी अवस्था के सीखना के लिए छात्रों में एक आवश्यक पृष्ठभूमि का निर्माण करने में मदद करते हैं।


निष्कर्ष -

जैसा कि पीछे इंगित किया जा चुका है, गैने के द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त वर्णित अष्टपदी अधिगम सोपानिकी सीखने के आठ प्रकारों को एक क्रम में व्यवस्थित करके अधिगम की प्रकृति को समझने में सहायता अवश्य मिली है। यही कारण है कि अधिगम सोपानिकी रूपी गैने के इस अभिनव प्रयास को सीखने के मनोविज्ञान में अत्यंत सार्थक स्वीकार किया जाता है।





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