मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता (Mental Retardation And Mental illnesses)
मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता
(Mental Retardation And Mental illnesses)
सामान्य अंधविश्वास और सच्चाई -
यद्यपि कि विगत दशकों में मानसिक मंदता के प्रति लोगों में जारुकता आयी है, परन्तु अभी भी प्रायः मानसिक मंदता को 'मानसिक रोग' समझा जाता है। मानसिक मंदता और मानसिक रोग दो भिन्न संकल्पनायें /अवस्था है। इस सन्दर्भ में, भारत में कानूनी विकास का अध्ययन बड़ा दिलचस्प होगा। भारत में आजादी से पूर्व इंडियन लूनासी ऐक्ट, 1912 (Indian Lunacy Act 1912) में आया। इस कानून के तहत मानसिक मंदता और मानसिक रोग दोनों को समान माना गया और समान प्रावधान किये गये। यह कानून स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग चार दशकों बाद भी लागू रहा। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे परिवर्त्तन हुए, मानसिक मंदता को मानसिक रोग से इतर मानकर दोनों के लिये अलग-अलग प्रावधान किये गये परन्तु भारत में 1986 तक दोनों में कोई कानूनी अंतर नहीं किया गया है।
1987 में पहली बार मानसिक रोग को मानसिक मंदता से अलग माना गया और मंटल हेल्थ ऐक्ट 1987 के तहत मानसिक रूग्णता के लिये अलग प्रावधान बनाये गये। यहाँ पर भी, मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता को अलग-अलग मान तो लिये गये पर, प्रावधान बनाया गया सिर्फ मानसिक रोग के लिये। उपरोक्त कानून से मानसिक मंदता को पूरी तरह अलग रखा गया। मानसिक मंद बालकों को सम्मिलित करते हुए, भारत में पहला कानून बना वह है विकलांग जन कानून, 1995 जिसमें मानसिक मंदता की कानूनी परिभाषा के साथ ही उनके लिए विशिष्ट प्रावधान किये गये।
वर्तमान स्थिति -
आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक मंद बच्चों को 'पागल' कहा जाना एवं माना जाना आम है। इसके अलावा भी, मानसिक मंदता के प्रति विभिन्न भ्रांतियाँ हमारे समाज में फैली हुई है।
जैसे - यह बुरी आत्माओं के प्रभाव की वजह से होता है। मानसिक मंदता झाड़ - फूँक से ठीक हो सकती है। शादी कर दिये जाने पर मानसिक मंदता ठीक हो सकती है। मानसिक मंदता एक छुआछूत का रोग है जो साथ बैठने, साथ खेलने आदि से किसी को भी हो सकता है। मानसिक मंदता माँ-बाप के पिछले जन्म के कर्मों का फल है आदि।
आप सहमत होंगे कि इस वैज्ञानिक युग में उपरोक्त मान्यताओं का कोई आधार नहीं। मानसिक मंदता न तो बुरी आत्माओं के प्रभाव से होती है और न ही झाड़ - फूँक से उसे खत्म किया जा सकता है। मानसिक मंदता एक मानसिक अवस्था है, कोई छुआछूत का रोग नहीं कि मानसिक मंद व्यक्ति को छूने, साथ खेलने या बैठने से किसी को हो जाये। मानसिक मंदता के बहुत सारे संभावित कारणों का पता लगाया जा चुका है और बच्चों में मानसिक मंदता का माँ-बाप के पिछले जन्म के कर्मों से कोई लेना-देना नहीं है।
इन भ्रांतियों में सबसे सामान्य भ्रांति है मानसिक मंदता को मानसिक रूग्णता मान लेना जो कि न केवल कम पढ़े लिखे लोगों में, बल्कि उन पढ़े लिखे लोगों में भी मौजूद है जिनमें विकलांगता के प्रति जागरुकता नहीं है।
मानसिक मंदता मानसिक रूग्णता से पूर्णतया भिन्न है। जैसे मानसिक मंदता एक अवस्था (State of vina) है, अतः इसे ठीक नहीं किया जा सकता है, हाँ नियमित प्रशिक्षण के द्वारा उनका सामान्य जीवन अनुकूलतम स्तर तक लाया जा सकता है। 'मानसिक रोग' बीमारी हे , जिसे पूर्णतया ठीक किया जा सकता है और व्यक्ति एक सामान्य जीवन यापन कर सकता है। मानसिक मंदता में व्यक्ति की बुद्धि-लब्धि (IQ) 70 से कम होनी आवश्यक है, परन्तु मानसिक रोग के लिये ऐसा कोई मापदण्ड नहीं है। मानसिक रोग एक कम बुद्धि वाले को भी हो सकता है और एक उच्च बुद्धि-लब्धि वाले व्यक्ति को भी। जैसा कि आपने पिछली इकाई में पढ़ा, मानसिक मंद व्यक्तियों में अनुकूलनीय व्यवहार में भी कमी पायी जाती है, परन्तु मानसिक रूग्णता में व्यक्ति का अनुकूलनीय व्यवहार पूर्णतया सामान्य हो सकता है। इसके अतिरिक्त सबसे विशिष्ट बात यह है कि मानसिक मंदता विकासात्मक अवस्था अर्थात् 18 वर्ष से पूर्व ही हो सकती है, जबकि मानसिक रूग्णता किसी भी उम्र में हो सकती है।
आगे दिये गये टेबल में मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता में, विभिन्न मानदंडो के आधार पर, अन्तर दर्शाया गया है। जो इनके बीच का अन्तर समझने में आपकी मदद करेगा।
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