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माँग-आधारित परीक्षा या ऑन डिमांड परीक्षा (On Demand Exam)

माँग-आधारित परीक्षा (On Demand Exam) - ‘माँग-आधारित परीक्षा’ या ‘ऑन डिमांड परीक्षा‘ उस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार जब एक विद्यार्थी को आवश्यकता या सुविधा हो तो उसके अनुसार उसकी माँग होने पर ही उसकी परीक्षा ली जाए। परीक्षा या आंकलन के इस वैकल्पिक स्वरूप को शुरू करने की जरूरत परंपरागत परीक्षा प्रणाली में आवश्यक लचीलापन लाने की जरूरत के कारण हो महसूस की गई। यह तो एक खुला तथ्य है कि पूर्ण वर्ष में एक निश्चित तिथि पर एक बार या दो बार परीक्षा लेने की परंपरागत प्रणाली अधिगमकर्ता के आंकलन में खुलापन और लचीलापन के मापदंड को प्राप्त नहीं कर सकती है। ऑन-डिमांड परीक्षा की अवधारणा विद्यार्थियों को जरूरी लचीलापन, खुलापन और स्वतंत्रता देने के विचार के कारण ही अस्तित्व में आई, जिससे विद्यार्थियों का अपनी अधिगम गति के अनुसार मूल्यांकन या आंकलन किया जा सके।

ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam)

  ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam) - आज तकनीकी विकास की जो गति है उसी का परिणाम है कि जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, फिर भला शिक्षा का क्षेत्र इससे कैसे अछूता रह सकता है। परीक्षा कार्य को गति प्रदान करने के लिए और मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यंत आवश्यक हो गया है। 

ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System)

परिचय —  शिक्षा में छात्रों द्वारा की गई प्रगति और अधिकांश का मूल्यांकन अति आवश्यक और अनिवार्य है। अध्यापकों के लिये भी यह जानना उपयोगी और सन्तोषप्रद होता है कि उनके शिक्षण से उनके विद्यार्थी कितना लाभान्वित हुये हैं। इसके अतिरिक्त अभिभावक भी यह जानने के लिये उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चों ने कैसी प्रगति की है। इसे जानकर शिक्षक और अभिभावक बच्चों का सही मार्ग दर्शन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को भी अपनी शैक्षिक उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे वे अपनी शैक्षिक योजनायें उसी के अनुसार बनाते हैं। हमारे देश में वर्षों से इसके लिये परीक्षाओं की व्यवस्था होती रही है। जिसमें छात्र प्रश्न पत्रों में दिये गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं और परीक्षकों द्वारा उन्हें अंक प्रदान किये जाते रहे हैं। यह अंक 0 से 100 तक के प्राप्तांक हो सकते हैं। इनके आधार पर पूर्व निर्धारित मनचाहे विभाजन के आधार पर छात्रों को प्रथम, द्वितीय या तृतीय श्रेणी प्रदान कर दी जाती है। यह प्रणाली वर्षों से बिना किसी संशोधन या परिवर्धन के चली आ रही है, जिसका कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं है। 

व्यक्तित्व (Personality)

व्यक्तित्व की अवधारणा —   विगत अध्यायों में बुद्धि तथा संवेगात्मक बुद्धि की प्रकृति एवं इसके मापन की चर्चा की जा चुकी है। व्यक्ति के व्यवहार के संज्ञानात्मक पक्ष के साथ-साथ गैर-संज्ञानात्मक पक्ष (Non-Cognitive Aspects) भी शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं तथा मनोविज्ञान में इसके अध्ययन की भी आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में एवं इसके बाद के कुछ अध्यायों में व्यवहार के कुछ गैर-संज्ञानात्मक पक्षों जैसे व्यक्तित्व, अभिवृत्ति, रुचि, मूल्य आदि की चर्चा की गयी है। निःसन्देह शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान जैसे व्यावहारिक विज्ञानों में व्यक्तित्व का संप्रत्यय एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्तिगत, संस्थागत एवं सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली तरह-तरह की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तित्व का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में व्यक्तित्व का अर्थ, प्रकृति तथा सिद्धान्तों की चर्चा प्रस्तुत की गयी है।