व्यक्तित्व (Personality)

व्यक्तित्व की अवधारणा —

  विगत अध्यायों में बुद्धि तथा संवेगात्मक बुद्धि की प्रकृति एवं इसके मापन की चर्चा की जा चुकी है। व्यक्ति के व्यवहार के संज्ञानात्मक पक्ष के साथ-साथ गैर-संज्ञानात्मक पक्ष (Non-Cognitive Aspects) भी शैक्षिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं तथा मनोविज्ञान में इसके अध्ययन की भी आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में एवं इसके बाद के कुछ अध्यायों में व्यवहार के कुछ गैर-संज्ञानात्मक पक्षों जैसे व्यक्तित्व, अभिवृत्ति, रुचि, मूल्य आदि की चर्चा की गयी है। निःसन्देह शिक्षाशास्त्र, समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान जैसे व्यावहारिक विज्ञानों में व्यक्तित्व का संप्रत्यय एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्तिगत, संस्थागत एवं सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में आने वाली तरह-तरह की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तित्व का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्याय में व्यक्तित्व का अर्थ, प्रकृति तथा सिद्धान्तों की चर्चा प्रस्तुत की गयी है।



व्यक्तित्व का अर्थ

(Meaning of Personality) — 


व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग साधारण बातचीत के दौरान बहुतायत से किया जाता है। साधारण बातचीत में प्रयुक्त 'व्यक्तित्व' शब्द किसी ऐसे गुण या विशेषता को इंगित करता है, जिसे सभी व्यक्ति विभिन्न परिस्थतियों में व्यवहार करने तथा पारम्परिक सम्बन्धों की दृष्टि से विशेष महत्व देते हैं। सुभाष का व्यक्तित्व अत्यन्त अजीब सा है, श्रुति का तो कोई व्यक्तित्व ही नहीं है, जैसे वाक्यांश आम बोलचाल के दौरान प्रायः सुनने को मिलते रहते हैं। यद्यपि सामान्य बोलचाल में व्यक्तित्व शब्द का उपयोग तो बहुतायतः से किया जाता है, परन्तु 'व्यक्तित्व' शब्द को परिभाषित करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है। फिर भी सभी व्यक्ति अपने स्तर से समझते हैं कि इस प्रकार के वाक्यांशों से क्या अभिप्राय है। स्पष्ट है कि सामान्य अर्थों में व्यक्तित्व से तात्पर्य शारीरिक गठन, रंगरूप, वेशभूषा, बातचीत के ढंग तथा कार्य व्यवहार जैसे विभिन्न गुणों के संयोजन (unification) से लगाया जाता है। व्यक्तित्व शब्द के अंग्रेजी पर्याय 'पर्सनालिटी' (Personality) का शाब्दिक अर्थ भी व्यक्ति के बाह्य गुणों या बाह्य आचरण को इंगित करता है। वस्तुतः अंग्रेजी शब्द (Personality) शब्द का उद्भव लैटिन भाषा के शब्द पर्सोना (Persona) से हुआ है, जिसका अर्थ मुखौटा है। पर्सोना शब्द का अभिप्राय उस पहनावे या वेशभूषा से था, जिसे पहनकर नाटक के पात्र रंगमंच पर किसी अन्य व्यक्ति का अभिनय करते थे। अतः पर्सनालिटी शब्द का शाब्दिक अर्थ व्यक्ति के बाह्य दिखावे मात्र को इंगित करता है। व्यक्तित्व शब्द का यह अर्थ निश्चय ही एक अत्यन्त संकुचित व सीमित अर्थ है। आधुनिक संदर्भ में मानव व्यक्तित्व शब्द को एक अत्यन्त व्यापक शब्द के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तथा मनोविज्ञान की दृष्टि से इसका वास्तविक अर्थ इसके परम्परागत शाब्दिक अर्थ से पर्याप्त भिन्न होता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्तित्व एक अत्यन्त जटिल, भ्रामक तथा अस्पष्ट प्रकृति वाला संप्रत्यय है, जिसकी सर्वमान्य एवं पूर्णतया यथार्थ एवं स्पष्ट परिभाषा देना न केवल कठिन बल्कि लगभग असंभव सा कार्य है। मनोविज्ञान के साहित्य में यद्यपि व्यक्तित्व शब्द की अनेक परिभाषाएँ मिलती हैं परन्तु उनमें पर्याप्त भिन्नताएँ पाई जाती हैं। वस्तुतः व्यक्तित्व की ये विभिन्न परिभाषायें किसी एक मत पर सहमत नहीं हो पाती हैं। निःसन्देह व्यक्तित्व एक ऐसी अपरोक्ष विशेषता है, जिसे विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग ढंग से देखा तथा परिभाषित किया है।



गिलफोर्ड के अनुसार, 


'व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है। "

Personality is an integrated pattern of traits.


वुडवर्थ के शब्दों में,


 'व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार की एक समग्र विशेषता है।' 

Personality is the total quality of an individual's behaviour.


डेशील के अनुसार, 


'व्यक्तित्व व्यवहार प्रवृत्तियों का एक समग्र रूप है, जो व्यक्ति के मानसिक समायोजन में अभिव्यक्त होता है।'

Personality of an individual is the sum total of behaviour trends manifested in his social adjustment.



ड्रेवर के शब्दों में- 


“व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के उस एकीकृत तथा गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है जिसे व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में व्यक्त करता है। "

Personality is the term used for the integrated and dynamic organization of the physical, mental, moral and social qualities of the individual as that manifest itself to other people, in the give and take of social life." 


बिग तथा हण्ट के शब्दों में- 


“व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार प्रतिमान इसकी समस्त विशेषताओं के योग को व्यक्त करता है।" 

Personality refers to the whole behavioural pattern of an individual to the totality of its characteristics.




आइजेंक (1947) के अनुसार, 


“वातावरण एवं वंशानुक्रम द्वारा निर्धारित व्यक्ति के वास्तविक अथवा सम्भावित व्यवहार प्रतिमानों का योग ही व्यक्तित्व है। इसकी उत्पत्ति और विकास चर मुख्य क्षेत्रों, संज्ञानात्मक क्षेत्र (बुद्धि), क्रियात्मक क्षेत्र (चरित्र), भावात्मक क्षेत्र (चित्र प्रकृति) तथा दैहिक क्षेत्र (शारीरिक गठन) जिनमें ये व्यवहार प्रतिमान संगठित होते हैं, की वर्तमान अंतः क्रिया द्वारा होता है। 


"Personality is the sum total of the actual or potential behaviour patterns of the organism as determined by heredity and environment, it originates and develops through the functional interaction of the four main sectors into which these. behaviour patterns are organised: the cognitive sector (Intelligence), the conative sector (Character), the affective sector (Temperament) and the somatic sector (Constitution)."


व्यक्तित्व के क्षेत्र में किये गये अध्ययनों के आधार पर आइजेंक (1970) ने व्यक्तित्व की एक दूसरी महत्वपूर्ण परिभाषा देते हुए कहा है- “व्यक्तित्व व्यक्ति की उन अभिप्रेरणात्मक अवस्थाओं का सापेक्ष रूप से स्थिर संगठन है जिनकी उत्पत्ति जैविक अन्तर्नोदों तथा सामाजिक व भौतिक वातावरण के बीच अंतः क्रिया के परिणामस्वरूप होती है।"


"Personality is relatively stable Organization of person's motivational dispositions arising from interaction between biological drives and social and physical environment."


आलपोर्ट (Allport) ने सन् 1937 में व्यक्तित्व की लगभग 50 परिभाषाओं का विश्लेषण व वर्गीकरण किया तथा निष्कर्ष निकाला कि —


 'व्यक्तित्व व्यक्ति के अन्दर उन मनोशारीरिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है, जो वातावरण के साथ उसका एक अनूठा समायोजन स्थापित करते हैं।'


Personality is the dynamic organization within the individual of those psycho-physical systems that determine his unique adjustment to his environment.




आलपोर्ट के द्वारा प्रस्तुत की गयी व्यक्तित्व की इस परिभाषा को मनोविज्ञान में सर्वाधिक मान्यता प्रदान की जाती है। इस परिभाषा के ऊपर विश्लेषणात्मक दृष्टि डालने से स्पष्ट हो जाता है कि यह व्यक्तित्व के सम्बन्ध में तीन प्रमुख बातों की ओर संकेत करती है


(i) व्यक्तित्व की प्रकृति संगठनात्मक तथा गत्यात्मक है। 

(ii) व्यक्तित्व में मनो तथा शारीरिक दोनों ही प्रकार के गुण समाहित रहते है

(iii) व्यक्तित्व वातावरण के साथ समायोजन से अभिलक्षित होता है।


व्यक्तित्व की प्रकृति के संगठनात्मक होने से तात्पर्य है कि व्यक्तित्व केवल किसी एक गुण या गुणों के अलग-अलग समूहों से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है, वरन् सभी गुणों के एक मिले-जुले या समन्वित रूप से अभिव्यक्त होता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व गुणों का एक समग्र रूप है। व्यक्तित्व का गत्यात्मक पक्ष बताता है कि व्यक्तित्व कोई जड़ या स्थिर विशेषता नहीं है, बल्कि इसमें एक प्रकार की परिवर्तनशीलता तथा नम्यता होती है। दूसरे शब्दों में, व्यक्तित्व कोई स्थायी विशेषता न होकर, एक परिवर्तनशील विशेषता होती है। परिस्थितियों के अनुरूप व्यक्ति तरह-तरह से समायोजन करता रहता है जिसके प्रभाव से उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन होते रहते हैं। परन्तु व्यक्तित्व के गत्यात्मक रूप का यह अर्थ कदापि नहीं है कि व्यक्तित्व तेजी से बदलता रहता है तथा आज कोई व्यक्तित्व है तो कल कोई दूसरा व्यक्तित्व होगा। व्यक्तित्व काफी लम्बे अन्तराल में अन्य परिस्थितियों से प्रभावित होकर अत्यन्त मंद गति से गतिशील होता है। व्यक्ति के तात्कालिक गुण ही किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का सही-सही प्रदर्शन करते हैं।


व्यक्तित्व एक मनो- शारीरिक तंत्र है अर्थात् इसमें न केवल शारीरिक गुण वरन् मनोवैज्ञानिक गुण भी निहित रहते हैं। व्यक्ति के विभिन्न शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक गुण मिलकर उसके कुल व्यक्तित्व की रचना करते हैं। इस प्रकार से व्यक्तित्व के संप्रत्यय में स्वास्थ्य, शारीरिक गठन, वेशभूषा, वाणी, हावभाव जैसे अनेक शारीरिक गुण तथा मैत्रीभाव, परोपकार, समाजसेवा, बुद्धि, स्वभाव, चरित्र जैसे अनेकानेक मनोवैज्ञानिक गुण समाहित रहते हैं। केवल शारीरिक गुणों या केवल मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व के सम्बन्ध मैं कुछ भी कहना निःसन्देह, व्यक्तित्व के अधूरे पक्ष को प्रस्तुत करना होता है।


वातावरण के साथ व्यक्ति का समायोजन स्थापित करने तथा उसे बनाये रखने में उसका व्यक्तित्व एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वास्तव में वातावरण के साथ समायोजन करने की प्रक्रिया के दौरान ही किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुरूप वातवरण के साथ एक अनूठे ढंग से समायोजन करता है। समायोजन का यह अनूठा ढंग ही उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिचायक होता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहारों एवं विचारों को क्रियाशील (Active) बनाता है एवं निर्देशित (Direct) करता है एवं उसे समाज में समायोजित (Adjust) करता है।


यहाँ यह इंगित करना उचित ही होगा कि सन् 1961 में आलपोर्ट ने अपनी इस परिभाषा में संशोधन करते हुए इसके अंतिम शब्दों अर्थात् वातावरण के साथ अनूठा समायोजन (Unique Adjustment to his Environment) को बदलकर विशिष्ट व्यवहार तथा विचार (Characteristic Behaviour and Thought) कर दिया था। इस संशोधन के द्वारा आलपोर्ट ने इंगित किया कि व्यक्तित्व केवल वातावरण के साथ व्यक्ति के समायोजन को ही निर्धारित नहीं करता है वरन् व्यक्ति की एक अलग पहचान बताने वाले उसके विशिष्ट व्यवहार एवं विचारों का निर्धारण भी करता है।


व्यक्तित्व के प्रकार —

(Types of Personality)


 व्यक्तित्व के प्रकार से तात्पर्य व्यक्तियों के ऐसे वर्ग से है जो व्यक्तित्व गुणों की दृष्टि से एक दूसरे के काफी समान है एवं दूसरे प्रकार से पर्याप्त भिन्नता रखते हैं। व्यक्तित्व को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के द्वारा भिन्न-भिन्न ढंगों से वर्गीकृत किया गया है। व्यक्तित्व के वर्गीकरण में इस विभिन्न का मुख्य कारण मनोवैज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग दृष्टिकोणों से व्यक्तित्व के प्रकारों को देखना है। प्राचीन भारतीय व पाश्चात्य परम्पराओं में व्यक्तियों को तरह-तरह से वर्गीकृत करने के सन्दर्भ मिलते हैं। जैसे यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स ने व्यक्तियों को भावशून्य (Phlegmatic), क्रोधी (Choleric), आशावादी (Sanguira) तथा शिक्षावादी (Melogcholic) में बाँटा था। इसी प्रकार से सांख्य दर्शन में सतोगुणी, रजोगुणी तथा तमोगुणी व्यक्तियों की चर्चा मिलती है। मानव व्यक्तित्व के कुछ प्रमुख वर्गीकरण निम्नवत् लिखे जा सकते हैं


शरीर रचना दृष्टिकोण

(Constitutional View-Point) — 


शरीर रचना की दृष्टि से क्रेचमर (Kretschmer) ने सन् 1925 में व्यक्तित्व को तीन प्रकार का मानते हुए व्यक्तियों को निम्न तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया है-


(i) लम्बकाय (Asthenic)- ऐसे व्यक्ति लम्बे तथा दुबले-पतले शरीर वाले होते हैं। ये दूसरों से घनिष्ठ सम्बन्ध से बचते हैं तथा अपने क्रोध को सीधे-सीधे अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे व्यक्ति आत्मकेन्द्रित, संकोची, बौद्धिक, स्व-आलोचक व अन्तर्मुखी प्रकृति के होते हैं।


(ii) सुडौलकाय (Athletic)- ऐसे व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट तथा स्वस्थ शरीर वाले होते हैं। ये सामान्य व्यक्तित्व गुणों जैसे विनोदप्रियता, संयमता, कर्मशील, परिश्रमी, महत्वाकांक्षी व समर्पित आदि को रखने वाले व्यक्ति होते हैं।


(iii) गोलकाय (Pyknic)- ऐसे व्यक्ति नाटे तथा मोटे होते हैं। ये सुख व दुख, क्रियाशील व निष्क्रिय, उत्साह व निरुत्साह आदि के बीच झूलते रहते हैं। कभी खुश कभी दुखी, कभी क्रियाशील कभी निष्क्रिय, कभी उत्साही कभी उत्साह विहीन रहते हैं। ऐसे व्यक्ति सरल स्वभाव, आराम पसन्द, मिलनसार व सामाजिक प्रकार के होते हैं।


शैल्डन (Sheldon) ने सन् 1942 में उपरोक्त वर्गीकरण को गोलाकार (Endo-morphic), आयताकार (Mesomorphic) तथा लम्बाकार (Ectomorphic) के रूप में प्रस्तुत किया था।


सामाजिक दृष्टिकोण 

(Social View-Point) —


जर्मन मनोवैज्ञानिक जुंग (Jung) के अनुसार सामाजिक अन्तर्क्रिया (Social Interaction) के की दृष्टि से व्यक्तियों को निम्न तीन भागों में बाँटा जा सकता है प्रकार


(i) अन्तर्मुखी (Introvert)- ऐसे व्यक्ति संकोची, लज्जाशील, एकान्तप्रिय, मितभाषी, भविष्य केन्द्रित, सतर्क, शान्त, तर्क प्रधान, जल्दी घबराने वाले, आत्मकेंद्रित, अध्ययनशील, आत्मचिन्तक तथा असामाजिक प्रकृति के होते हैं।


(ii) बहिर्मुखी (Extrovert) - ऐसे व्यक्ति व्यवहार कुशल, चिन्तामुक्त, सामाजिक, आशावादी, वाकपटु, व्यावहारिक, अहंवादी, अच्छे वक्ता, नेतृत्व, प्रवृत्ति, साहसिक, आक्रामक तथा लोकप्रिय प्रकृति के होते हैं। 


(iii) उभयमुखी (Ambivert) - इस प्रकार के व्यक्ति न तो पूरी तरह से अन्तर्मुखी होते हैं और न ही पूरी तरह से बहर्मुखी होते हैं। वस्तुतः ऐसे व्यक्तियों में कुछ गुण अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के तथा कुछ गुण बहिर्मुखी व्यक्तित्व के पाये जाते हैं। इन्हें विकासोन्मुखी व्यक्तित्व वाला भी कहा जाता है।



मूल्य दृष्टिकोण

(Values View-Point)


मूल्यों के आधार पर स्प्रेन्जर (Sprenger) ने व्यक्तित्व को छह भागों में वर्गीकृत किया है। उसके अनुसार व्यक्ति के छः प्रकार निम्नवत् होते हैं


(i) सैद्धान्तिक (Theoretical) — ऐसे व्यक्तियों में ज्ञान की पिपासा होती है। ये अपने सिद्धान्तों के अनुरूप कार्य करते हैं तथा बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यों व विद्वानों को पसन्द करते हैं। 


(ii) आर्थिक (Economic) — ऐसे व्यक्ति धन व भौतिक सुख प्राप्ति के इच्छुक होते हैं तथा सदैव धन-वैभव प्राप्ति की दिशा में क्रियाशील रहते हैं।


(iii) धार्मिक (Religious) - ऐसे व्यक्ति ईश्वर में विश्वास रखने वाले, दैवीय विपदाओं से डरने वाले तथा धार्मिक परम्पराओं व नियमों के अनुरूप कार्य करने वाले होते हैं। 


(iv) राजनीतिक (Political) -  ऐसे व्यक्ति राजनीतिक विचारों के होते हैं। ये सदैव राजनैतिक दाँव पेंचों व छल-प्रपंच में लिप्त रहते हैं तथा राजनीतिक पद प्राप्ति के इच्छुक रहते हैं।


(v) सामाजिक (Social)- ऐसे व्यक्ति दयालु, सहानुभूतिपूर्ण, त्यागी, परोपकारी प्रवृत्ति के होते हैं। ये जनहित में व्यक्तिगत हित को छोड़ देते हैं तथा अन्यों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। 


(vi) कलात्मक (Asthetic) — ऐसे व्यक्ति सौंदर्य के पुजारी होते हैं। इनमें ललित कलाओं, संगीत, काव्य, नृत्य, चित्रकला, प्राकृतिक सौंदर्य, बागवानी, सजावट आदि के प्रति विशेष लगाव होता है।



भारतीय दृष्टिकोण

(Indian View Point) —


भारतीय दर्शन की सर्वोच्च रचना श्रीमद्भगवद् गीता में व्यक्तित्व के तीन गुणों यथा- सत्व गुण, रजोगुण तथा तमोगुण की चर्चा की गयी है। गीता में अध्याय 14 के श्लोक 9 में कहा गया है कि सत्वगुण व्यक्ति को सुख में लगाता है, रजोगुण व्यक्ति को कर्म में लगाता है तथा तमोगुण व्यक्ति को प्रमाद में लगाता है। इन तीनों गुणों के आधार पर व्यक्तियों को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है


(i) सात्विकी - ऐसे व्यक्तियों में सत्वगुण की प्रधानता होती है। ऐसे व्यक्ति ज्ञानी, शान्त, निर्मल, परहितकारी, धार्मिक व सौम्य स्वभाव के होते हैं। सत्व प्रधान व्यक्ति सत्त प्रवृत्ति के होते हैं तथा इन्हें देवता के स्वरूप माना जाता है।


(ii) राजसी —  ऐसे व्यक्तियों में रजोगुण की अधिकता होती है। ये साहसी, वीर, उद्यमी, दबंग तथा कामना व आसक्ति की प्रवृत्ति से युक्त होते हैं। रजस् प्रधान व्यक्ति चंचल प्रकाँति के होते हैं तथा गृहस्थ केन्द्रित होते हैं।


(iii) तामसी —  ऐसे व्यक्तियों में तमोगुण की बहुलता होती है। ये प्रमादी, सुस्त, झगड़ालू, आलसी, क्रोधी तथा अनावश्यक लड़ाई-झगड़ा करने वाले होते हैं। तमस प्रधान व्यक्ति स्वार्थी प्रकृति के होते हैं तथा दूसरों को कष्ट पहुँचाना पसन्द करते हैं।


स्पष्ट है कि सात्विकी व तामसी प्रवृत्ति व्यक्तित्व सातत्य (Personality Continum) के दो छोर हैं तथा राजसी प्रवृत्ति इनके बीच स्थित रहती है। सत्व आदर्श को, रजस वास्तविकता को एवं तमस अवांछनीयता की ओर इशारा करते हैं।


भारतीय दर्शन व संस्कृति के इस पक्ष के अलावा भारतीय दृष्टिकोण के एक अन्य पक्षआयुर्वेद के अनुसार भी व्यक्तियों को उनकी प्रकृति के आधार पर निम्न तीन भागों में बाँटा जा सकता है


(i) वात प्रधान व्यक्ति- इस प्रकार के व्यक्तियों में वात तत्व की प्रधानता होती है जिसके कारण वे वात रोगों से पीड़ित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से मोटे होते हैं।


(ii) पित्त प्रधान व्यक्ति- इस प्रकार के व्यक्तियों में पित्त तत्व की प्रधानता होती है तथा वे पित्तजनित रोगों से पीड़ित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति दुर्बल, पतले तथा क्रोधी स्वभाव के होते हैं।


(iii) कफ प्रधान व्यक्ति- इस प्रकार के व्यक्तियों में कफ तत्व की प्रधानता होती है तथा वे कफ जनित रोगों से पीड़ित होते हैं। ऐसे व्यक्ति दुबले-पतले होते हैं।








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