अधिगम की अवधारणा (Concept of Learning)

प्रस्तावना - 

सीखना निरन्तर चलने वाली एक सार्वभौमिक व मानसिक प्रक्रिया है। जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक व्यक्ति के साथ चलती है। सीखने को हम अधिगम के नाम से भी जानते है। सीखने की गति परिस्थितियों एवं आवश्यकतानुसार परिवर्तित होती रहती है। परन्तु इसकी स्थिति में कभी विरामावस्था एवं अस्थिरता नहीं आती है। मनुष्य को सीखने या अधिगम के लिए किसी विशेष परिस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है। व्यक्ति कही भी, कभी भी, किसी भी समय किसी से भी, कुछ भी सीख सकता है। वह न केवल शिक्षा संस्थान में बल्कि परिवार, संस्कृति, मित्रमण्डली, पड़ोसियों, राह चलते, सिनेमा, अपरिचित व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों इत्यादि सभी के परोक्ष - अपरोक्ष रूप से कुछ न कुछ अवश्य सीखता है। अधिगम का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि व्यक्ति का अधिकाशयता व्यवहार सीखने से अथवा सीखने की प्रक्रिया से प्रभावित रहता है। सीखना जीवन की सफलता का आधार है। 


इसलिए वुडवर्थ ने कहा है कि - 

“सीखना विकास की प्रक्रिया है ।” 
“Learning is a process of development.”



 सीखने का अर्थ एवं परिभाषा 
(Meaning & Definition of Learning) 

सामान्य अर्थ मे ‘सीखना’ व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है। (Learning return to change in behaviour) परन्तु सभी स्तर के व्यवहार में हुए परिवर्तन को सीखना नहीं कहा जाता हैं। व्यवहार में परिवर्तन थकान, दवा खाने से, बीमारी, परिपक्वता (Maturation) आदि से भी होता है। परन्तु ऐसे परिवर्तनों की सीखना नहीं कहा जाता है जो अभ्यास (Practice) या अनुभूति (Experience) के फलस्वरूप होते है। प्रायः इसी तरह के परिवर्तन का उद्देश्य व्यक्ति को किसी दिए हुए वातावरण में समायोजन (Adjustment) करने में मदद करने से होता है। 

अतः यह कहा जाता है कि सीखना व्यवहार में वैसे परिवर्तन को कहा जाता है जो अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप होता है तथा जिसका उद्देश्य व्यक्ति को समायोजन करने में मदद से होता है। (Learning return to change in behaviour as a function of practice or experience with a view to make adjustment in the environment) सीखना या अधिगम वैसे तो सामान्य रूप से बोलचाल की भाषा में प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। प्रत्येक व्यक्ति नित्य प्रतिदिन अपने जीवन में अनुभवों को इक्ट्ठा करता रहता है। ये नवीन अनुभव मानव के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इन अनुभवों का नवीन परिस्थितियों में उपयोग करना ही सीखना है। निःसन्देह अधिगम से तात्पर्य अनुभवों द्वारा व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया से है। 

सीखने से तात्पर्य है संचयी उन्नति। उन्नति के स्वरूप का आकलन उन परिवर्तनों द्वारा किया जा सकता है जो उस समय होते है जबकि सीखने की क्रिया हो रही होती है। जीवन के प्रारम्भ में बालक में सीखने की प्रक्रिया का स्वरूप अपरिष्कृत, रूक्ष एवं समन्वेषी होता है। उस समय बालक के कार्य व्यवहारों में विभिन्नता दृष्टिगोचर नहीं होती तथा उसकी प्रतिक्रियाएं प्रायः दोषपूर्ण होती है। उचित शिक्षा के द्वारा वह कम त्रुटियाँ करना सीख लेता है। वह अपने कार्यों में एकरूपता लाता है और निर्णय करने की क्षमता का विकास करता है। बालक के लिए शिक्षा प्रकार, सीखने की दिशा एवं तत्सम्बन्धी पाठ्यक्रम बालक की अभिवृद्धि और विकास की अवस्थाओं पर निर्भर होता है। 


सीखने के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने हेतु कुछ मनोवैज्ञानिकों ने अपनी अपनी परिभाषा दी है। जो इस प्रकार है-


स्किनर के अनुसार - 

“सीखना व्यवहार में उत्तरोतर साँमजस्य की प्रक्रिया है।”

“Learning is a process of progressive behaviour adaption”. 





वुडवर्थ के अनुसार- 

“नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को अर्जन करने की प्रक्रिया ही अधिगम प्रक्रिया है।”

“The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning”. 



किम्बले के अनुसार- 

“पुर्नवलित अभ्यास के फलस्वरूप व्यवहार जन्य क्षमता में आने वाले अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति का परिवर्तन अधिगम है।”

"Learning is a relativaly permanent change in behaviour potentiality that occures as a result of reinforced practice.”



जे.पी. गिलफर्ड के अनुसार -

“व्यवहार के कारण व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम हैं।” 

"Learning is any change in behaviour resulting from behaviour."



क्रो तथा क्रो के अनुसार -

“सीखना आदतों , ज्ञान तथा अभिवृतियों का अर्जन है।”

"Learning is the acqisition of habits, knowledge and attitudes"  


क्रोनवैक के अनुसार- 

“अधिगम अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।

“Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience.”  


गेट्स तथा अन्य -

“अनुभव एवं प्रशिक्षण के द्वारा व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों को अधिगम कहते हैं।"  

“Learning is the modification of behaviour through experience & training.”



गार्डनर मरफी के अनुसार- 

“सीखने के अर्न्तगत वातावरणीय आवश्कताओं की पूर्ति के लिए व्यवहार में आए समस्त परिमार्जन समाहित रहते हैं।”


हेनरी पी . स्मिथ के अनुसार -

अनुभव के प्रतिफल के रूप में नये व्यवहार का अर्जन अथवा पुराने व्यवहार का सुदृढ़ीकरण या निर्थलीकरण सीखना है।" 

"Learning is the acquisition of new behaviour or the strengthening or weakening of old behaviour as the result of experience.” 


हिलगार्ड के अनुसार -

“अधिगम वह प्रक्रिया है जिसमें अभ्यास अथवा प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार का उद्भव होता है अथवा व्यवहार में परिवर्तन होता है।" 

"Learning is the process by which behaviour is originated or changed through practice or training."

ऊपर की परिभाषाओं एवं अनेक अन्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा दी गई लगभग परिभाषाओं, यदि एक संयुक्त विश्लेषण किया जाए, तो सीखने का स्वरूप बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता इस तरह के विश्लेषण करने पर हम निम्नांकित निष्कर्ष पर पहुँचते है -


अधिगम की विशेषताएं -


1. सीखना व्यवहार में परिवर्तन को कहा जाता है। 
(Learning is the change in behaviour) -

प्रत्येक सीखने की प्रक्रिया में व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है। अगर परिस्थिति ऐसी है जिसमें व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन नहीं होता है, तो उसे हम सीखना नहीं कहेगें व्यवहार में परिवर्तन एक अच्छा एवं अनुकूली (Adaptive) परिवर्तन भी हो सकता है या खराब एवं कुसमंजित (Maladaptive) परिवर्तन भी हो सकता है। साइकिल चलाना सीखना, स्वेटर बुनना सीखना आदि व्यवहार में एक अच्छा एवं अनुकूल परिवर्तन का उदाहरण है। परन्तु कभी कभी व्यक्ति कई बुरी आदतों जैसे चोरी करना, झूठ बोलना आदि को भी सीख लेता है। व्यवहार में ऐसे परिवर्तन खराब एवं कुसमंजित परिवर्तन के उदाहरण हैं। सीखने से तात्पर्य व्यवहार में इन दोना तरह के परिवर्तन से होता है।

2. व्यवहार में परिवर्तन अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप होता है। 
(The change in behaviour occure as a function of practice or experience) -

सीखने की प्रक्रिया में व्यवहार में जो परिवर्तन होता है, वह अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप होता है। यहाँ अभ्यास (Practice) से तात्पर्य किसी प्रकार के प्रशिक्षण से होता है। जिसमें व्यक्ति किसी प्रक्रिया को बार बार दुहराते हुए तथा अपनी गलतियों को सुधारते हुए सीखता है। अनुभूति (Experience) से यहाँ तात्पर्य व्यक्ति की आकस्मिक अनुभूतियों (Chance Experience) से होता है। जो व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाता है। एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझाया जा सकता है। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति टाइप करना सीख रहा है। स्वभावतः टाइप करने की प्रक्रिया को वह एक प्रशिक्षण के आधार पर सीख रहा है क्योंकि वह बार - बार टाइप करता है तथा प्रत्येक बार में अपनी हुई गलतियों को सुधारते भी जाता है। अन्त में वह बिना किसी प्रकार की गलती के ही टाइप करना सीख लेता है। यहाँ व्यवहार में परिवर्तन एक प्रशिक्षण के फलस्वरूप हुआ। प्रत्येक प्रक्रिया को सीखने के लिए व्यक्ति को अभ्यास की ही जरूरत नहीं पड़ती है। ऐसा भी होता है कि वह मात्र एक बार के अनुभव (Experience) में ही उसे सीख लेता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति का हाथ एक गर्म स्टोव पर अचानक पड़ जाता है , तो वह मात्र एक ही बार के अनुभव में सीख लेता है कि उसे गर्म स्टोव पर हाथ नहीं रखना चाहिए।

3. व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन होता है।
(There is relatively permanent change in behaviour) -

ऊपर दी गई परिभाषाओं में इस बात पर विशेष रूप से बल डाला गया है कि सीखने में व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन होता है। अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन व्यवहार वैसे परिवर्तन को कहा जाता है जो एक खास समय तक एक तरह से स्थायी होता है। उस खास समय की कोई निश्चित अवधि नहीं होती है। वह कुछ दिन का भी हो सकता है कुछ महीने का भी उदाहरण यदि कोई व्यक्ति टाइप करना सीखता है। तो उसके व्यवहार में हुआ इस तरह का परिवर्तन कुछ समय तक स्थायी होता है। अभ्यास न करने से सम्भव है कि तीन महीने या पाँच महीने में व्यक्ति फिर से टाइप करना भूल जाए। तब यह कहा जाऐगा कि व्यक्ति के व्यवहार में हुआ परिवर्तन तीन या पाँच महीने के लिए ही स्थायी था।


अधिगम की प्रकृति एवं विशेषताएँ 
(Nature and Characteristics of Learning) 

योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार, सीखने की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. सीखना सम्पूर्ण जीवन चलता है।
(Learning is a Life Long Process) -

सीखने की प्रक्रिया जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती है। 


2. सीखना परिवर्तन है।
(Learning is Change) -

व्यक्ति स्वयं दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार विचारों, इच्छाओं एवं भावनाओं आदि में करता है। गिलफोर्ड के अनुसार, "सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।”

3.सीखना सार्वभौमिक है।
(Learning is Universal) -
 
सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी में भी पाया जाता है।


4.सीखना समायोजन है।
(Learning is Adjustment) -

सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को नई परिस्थिति एवं वातावरण के अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है। गेट्स एवं अन्य के अनुसार, सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है। 

5. सीखना विकास है।
(Learning is Growth) - 

व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों के द्वारा कुछ न कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है।

6. सीखना नया कार्य करना है।
(Learning Is Doing Something New) - 

वुडवर्थ के अनुसार - सीखना कोई नया कार्य करना है परंतु उसमें उसने एक शर्त लगा दी। उसने कहा कि सीखना, नया कार्य करना तबी है जब यह कार्य पुनः किया जाए और अन्य कार्यों में प्रकट हो।


7. सीखना अनुभवों का संगठन है।
(Learning is Experience) -

सीखना न तो नए अनुभवों की प्राप्ति है और न ही पुराने अनुभवों का योग वरन नए और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे - जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बात सीखता जाता है, वैसे - वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता जाता है।

8. सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है।
(Learning is Purposive)– 

सीखना उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है।

9. सीखना विवेकपूर्ण होता है।
(Learning is Rational) -


मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य नहीं बल्कि विवेकपूर्ण कार्य है । उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे - समझे किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। 

10. सीखना सक्रिय क्रिया है।
(Learning is Active Deed) - 

सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डॉल्टन विधि, प्रोजेक्ट विधि आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियों हैं जो बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं। 

11. सीखना खोज है।
(Learning is Discovery)-

वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल ने कहा है, सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है , जिसे एक व्यक्ति खोजना और जानना चाहता है। 

12. सीखना वातावरण की उपज है।
(learning is a product of Environment) - 

सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वह वैसी ही बातें सीखता है। यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करें कि बालक अधिक से अधिक अच्छी बातों को सीख सकें। 

13. सीखना व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों है।
 (Learning is Personal and Social Both ) -

सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही , परन्तु इससे भी अधिक सामाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्प्सन के अनुसार, सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।


अधिगम की आवश्यकता एवं महत्व
(Need And Importance Of Learning) 

अधिगम समस्त प्राणियों के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है बिना अधिगम किसी जीव का कोई प्रयोग नहीं है। वास्तविक रूप में अधिगम मनुष्य को अन्य जीवों से भिन्न करता है। व्यक्ति जब अपनी शैशवावस्था में होता है तो वह काफी लाचार एवं दूसरों पर निर्भर होता है। परन्तु धीरे - धीरे अधिगम के माध्यम से समाज का एक उत्कृष्ट नागरिक बन जाता है। अतः वह अधिगम निम्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण होता है।

1. अधिगम हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को समझने में सहायता करता है तथा उन्हें प्राप्त करने एवं पूरा करने में सहायता करता है। जिस प्रकार एक शेर को शिकार करने के लिए तेज,, फुर्तीला होना चाहिए अन्यथा वह जीवित नहीं रह पाएंगे। इसी प्रकार एक व्यक्ति हो जीवन भर चम्मच से खिलाया नहीं जा सकता है। जैसे जैसे वह बढ़ता है वह स्वयं खाना सीख लेता है तो था तब वह स्वयं भोजन प्राप्त करने के तरीके भी सीख लेता है।

2. अधिगम नए वातावरण में सामंजस्य स्थापित करने में सहायक होता है। वे प्रायः वातावरण के परिवर्तनों से अनुकूलन करने हेतु उसकी जीवनशैली का अनुकूलन करते हैं। न केवल तापमान या परिस्थितियाँ बल्कि हमें प्रतिदिन नए लोग, स्थान, नौकरियों एवं सम्बन्धों हेतु स्वयं को अनुकूल करना पड़ता है जिसमें अधिगम हमारी सहायता करता है। 

3. अधिगम हमें विभिन्न परिस्थितियों एवं खतरों की प्रतिक्रिया या उत्तर देने में सहायता करता है। अधिगम के बिना सामान्य जीवन अस्तित्व असम्भव हैं।

4. अधिगम व्यक्ति को कार्य कुशल बनाता है तथा उच्च स्थिति प्राप्त करने में सहायता करता है।  

5. अधिगम व्यक्ति को किसी भी विषय का गहन अध्ययन प्रदान करता है जो किताबी ज्ञान द्वारा नहीं दिया जा सकता है।

6. सम्पूर्णता में अधिगम व्यक्ति की योग्यता एवं प्रवृत्ति का निर्धारण करता है जो उसके जीवन में प्राप्त होने वाली सफलता का निर्धारण होता है। व्यक्ति के प्रतिदिन की सामग्री व्यक्ति अवधारणाओं के अधिगम में सहायक होता है। अर्थात जीतने वाले कुछ अलग नहीं करते वे सिर्फ उसी काम को अलग तरीके से करते हैं । 

7. जब तक हमें शिक्षा एवं अनुभव दोनों प्राप्त नहीं होते तब तक अधिगम कभी पूरा नहीं होता है। विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम से हम नागरिकों के अधिकारों एवं कर्तव्यों को सीखते हैं परन्तु अच्छे नैतिक गुण परिवार से एवं अनुभव कम्पनी के अच्छे व्यवहार से आते हैं। जब तक ये सब गुण व्यक्ति में न हो तब तक वह एक उत्कृष्ट व्यक्ति नहीं बन सकता। अतः उपरोक्त समस्त तथ्यों से हमें ज्ञात होता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए अधिगम का महत्त्वपूर्ण स्थान है।



अधिगम के प्रकार
 (Type Of Learning) 

अधिगम को अनेक प्रकारों में व्यक्त किया जा सकता है -

(I) किए जाने वाले कार्य की प्रकृति के आधार पर तीन प्रमुख प्रकारों में बांटा गया है जो इस प्रकार हैं -

1. शाब्दिक अधिगम ( Verbal Learning ) -
शाब्दिक अधिगम से तात्पर्य शब्द भंडार, भाषा कौशल तथा भाषाई विषय वस्तु पर आधारित विषय वस्तु को सीखने से है।


2. गत्यात्मक अधिगम ( Motor Learning ) - 
गत्यात्मक अधिकतम से अभिप्राय शरीर के विभिन्न अंगों के संचालन में तथा शारीरिक कौशलों में निपुणता अर्जित करने से है। नृत्य करना, कार चलाना, घुड़सवारी करना, व्यायाम करना आदि गत्यात्मक कौशल के उदाहरण हैं।


3. समस्या समाधान अधिगम ( Problem Solving Learning)- 
समस्या समाधान अधिगम के अंतर्गत जीवन में आने वाले नवीन समस्याओं के समाधान के तरीके को सीखना आता है।



(II) शैक्षिक आधार पर अधिगम को निम्न तीन प्रकारों में बांटा गया है - 

1. संज्ञानात्मक अधिगम (Cognitive Learning) -
संज्ञानात्मक अधिगम का संबंध शिक्षार्थी द्वारा विभिन्न तत्वों का ज्ञान सूचना व अन्य बौद्धिक कौशलों के अर्जन से होता है। इसके अंतर्गत ज्ञान, बोध, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण व मूल्यांकन आदि आते हैं।


2. भावात्मक अधिगम (Affective Learning) -
भावात्मक अधिगम का संबंध व्यक्ति के दृष्टिकोण मूल्य भाव तथा श्रमिकों के द्वारा सीखने से होता है। इसके अंतर्गत आग्रहण, प्रतिक्रिया, अनुमोदन, संगठन व स्वभावीकरण आदि आते हैं।


3. क्रियात्मक अधिगम ( Motor Learning ) -
क्रियात्मक अधिगम से तात्पर्य भौतिक तथा गामिक नियंत्रण के द्वारा विभिन्न कौशलों को सीखने से होता है।
इसके अंतर्गत प्रत्ययीकरण, मनोमिति, निर्देशित, प्रतिक्रिया, कार्य कौशल व जटिल व व्यवहार आदि आते हैं। 



सीखना एवं परिपक्वन 
( Learning and Maturation)


सीखना और परिपक्वन ये दोनों प्रक्रियाओं कुछ इस प्रकार से जुड़ी हैं कि कभी कभी निश्चित रूप से यह कहना कठिन हो जाता है कि व्यवहार सम्बन्धी किन परिवर्तनों के पीछे सीखने की प्रक्रिया का हाथ है तथा किनके पीछे परिपक्वता का। इसे जानने के लिए हमें इन दोनों प्रक्रियाओं में निहित अन्तर को भली-भांति समझ लेना आवश्यक हो जाता है। 

परिपक्वन एक नैसर्गिक प्रक्रिया है इसके लिए बाह्य उद्दीपनों की आवश्यकता नहीं है। यह एक प्रकार से मानव की अर्न्तनिहित शक्तियों का विकास है। जैसे बीज से पत्ते, टहनी, फल - फूल इत्यादि प्राप्त हो जाते हैं वैसे ही प्राकृतिक रूप में किसी पूर्व अनुभव, अधिगम या प्रशिक्षण के बिना परिपक्वन की क्रिया के फलस्वरूप जन्मजात योग्यताओं और शक्तियों में वृद्धि हो जाती है तथा प्राणी में आवश्यक परिवर्तन आ जाते है। बिग्गी (Biggi) एवं हंट (Hunt) ने परिपक्वन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए निम्न विचार व्यक्त किए हैं -

“परिपक्वन एक विकासात्मक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति समय के साथ-साथ उन सभी विशेषताओं और गुणों को ग्रहण करता है जिसकी नींव उसके गर्भ में आने के समय ही उसकी कोशिकाओं में रखी जा चुकी है।”

"Maturation is a development process within which a person from time to time manifests different traits, the blue print of which have been carried in his cells from the time of his conception" 

इस प्रकार परिपक्वन का सम्बन्ध उन सभी परिवर्तनों से होता है जो कि नैसर्गिक और सामान्य बुद्धि से जुड़े हुए होते हैं। दूसरी ओर अधिगम या सीखना व्यक्ति में होने वाले उन परिवर्तनों के लिए प्रयुक्त होता है जिसके लिए आवश्यक रूप से वंशानुक्रम की प्रक्रिया उत्तरदायी नहीं होती। इन्हें सीखने में अनुभव की आवश्यकता पड़ती है और विशेष प्रयत्न भी करने पड़ते हैं। सीखने की प्रक्रिया के दौरान व्यवहार में जो परिवर्तन होते हैं वे सदैव किसी न किसी प्रक्रिया प्रशिक्षण अथवा अनुभव के - फलस्वरूप प्राप्त होते है। अतः परिपक्वन को सीखने से अलग करके देखा जाए तो हम निम्न परिणाम तक पहुंच सकते है. 

“अगर व्यवहार के किसी पक्ष का विकास आयु के बढ़ने के साथ-साथ बिना किसी अभ्यास और प्रशिक्षण की सहायता से स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होता है तो विकास के लिए परिपक्वन की क्रिया को ही उत्तरदायी ठहराया जाता है।”

पक्षियों का हवा में उड़ना आदि क्रिया विशुद्ध रूप में परिपक्वता का परिणाम कही जा सकती है। लेकिन मानव की अधिकांश क्रियाओं में निश्चित रूप से यह कहना कठिन हो जाता है कि वे परिपक्वता का परिणाम है या सीखने का उदाहरण के लिए हम बच्चे में भाषा के विकास को ले सकते हैं यह ठीक है कि बच्चा बोलना और भाषा का प्रयोग करना तब तक नहीं सीखता जब तक वह परिपक्वन की एक विशेष अवस्था या आयु पर नहीं पहुंच पाता परन्तु केवल परिपक्वन ग्रहण करने या आयु में बड़ा होने मात्र से सबको बोलना तथा प्रयोग करना नहीं आता उसे यह सबकुछ सीखाना पड़ता है।

वास्तव में देखा जाए तो परिपक्वन और सीखना ये दोनों क्रियाएं एक दूसरे में बहुत अधिक सम्बन्धित है। दोनों का लक्ष्य समान है। दोनों ही बालक के व्यवहार में संशोधन एवं परिवर्तन लाती हैं तथा विकास के सभी स्तरों पर साथ-साथ चलती है। एक के बिना दूसरी उतनी प्रभावोत्पादक नहीं बन जाती परिपक्वता सीखने में सहायक होती है। हम कह सकते हैं कि एक विशेष आयु अथवा परिपक्वता ग्रहण करने से पहले किसी विशेष ज्ञान अथवा कौशल को अर्जित करना संभव नहीं हो पाता दूसरी ओर सीखने की प्रक्रिया मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, परिपक्वता अर्जित करने में अत्याधिक सहायक होती है तथा बालक को सभी प्रकार से पूर्ण बनाकर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करती है। इसलिए बालक को ऐसी बातें सीखाना जिनके सीखने के लिए वह परिपक्व नहीं है किसी भी अवस्था में उचित नहीं हैं। दूसरी ओर सीखने की उचित आयु निकल जाने देना भी अच्छा नहीं हैं। अतः माता-पिता और अध्यापकों द्वारा परिपक्वता और सीखने के आपसी संबन्धों को ठीक प्रकार से समझने की चेष्टा करनी चाहिए।



अधिगम (सीखना) व परिपक्वता में अंतर 
(Difference Between Learning and Maturation)


यद्यपि परिपक्वता और सीखने को सामान्य तौर पर एक ही समझा जाता है किन्तु इसमें निम्नलिखित भिन्नता पायी जाती है -

1. परिपक्वता से हमारा तात्पर्य मात्र शारीरिक अभिवृद्धि व विकास से है, जबकि सीखना बालक के व्यवहार व प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन से है।

2. परिपक्वता वातावरण से प्रमाणित होती है तथा इसमें मात्र शारीरिक एवं सामाजिक परिवर्तन होता है, जबकि अधिगम द्वारा वातावरण के साथ-साथ परिस्थितियों में भी परिवर्तन लाया जा सकता है।

3. परिपक्वता स्वाभाविक अभिवृद्धि है व इसमें अनुभव का कोई स्थान नहीं होता, जबकि अधिगम केवल अनुभव द्वारा ही सम्भव है।

4. परिपक्वता स्वाभाविक एवं प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें अभ्यास की कोई आवश्यकता नहीं होती है, जबकि अधिगम में अभ्यास की आवश्यकता होती है।

5. परिपक्वता जन्मजात प्रक्रिया है, जबकि अधिगम अर्जित प्रक्रिया है।

6. परिपक्वता द्वारा जातिगत आनुवांशिक विशेषताओं की अभिवृद्धि होती है, जबकि अधिगम द्वारा व्यक्तिगत विशेषताओं व कौशलों में प्रगति होती है।

7. परिपक्वता एक स्थिति विशेष की ओर संकेत करती है, जबकि अधिगम एक अनवरत प्रक्रिया की ओर संकेत करता है।


उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि यद्यपि परिपक्वता तथा सीखने दोनों में ही व्यवहार में परिवर्तन होता है परंतु यह दोनों एक दूसरे से भिन्न है।



अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक 
( Factors Affecting Learning ) 


संवेगात्मक संतुलन, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, मानसिक योग्यता, अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य, अध्ययन की अच्छी आदतें आदि कुछ दशाएँ अधिगम को प्रभावी बनाती हैं। इसके अलावा बहुत सारी दशाएँ अधिगम प्रक्रिया में बाधक भी होती है। अधिगम को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्न हैं -

1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य 
(Physical and Mental Health) - 

शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बालक अध्ययन में अधिक रुचि लेता है। इसके विपरीत जिस बालक में शारीरिक व मानसिक दोष पाए जाते हैं असमर्थता के कारण अधिगम प्रक्रिया में जल्दी थकान का अनुभव करने लग जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्रभावी एवं शीघ्र अधिगम के लिए स्वास्थ्य का अच्छा होना अति आवश्यक है।

2. परिपक्वता  (Maturity) - 

स्लैक्वेडर के अनुसार, परिपक्वता मूलतः आंतरिक संशोधन की प्रक्रिया है। अधिगम शारीरिक और मानसिक परिपक्वता पर भी निर्भर रहता है। शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व बालक सीखने के लिए सदैव उत्सुक एवं तत्पर रहते हैं। ऐसे बालकों का अधिगम तीव्र होता है। इसके विपरीत शारीरिक और मानसिक रूप से अपरिपक्व बालक में सीखने की क्षमता धीमी होती है। इस प्रकार के बालकों को सीखने के लिए अत्यधिक समय और शक्ति का इस्तेमाल करना पड़ता है फिर भी उपयुक्त परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। कॉलसेनिक ने बताया कि परिपक्वता एवं अधिगम एक दूसरे पर निर्भर है। अतः इनको अलग करना बहुत ही मुश्किल है। 

3. सीखने की इच्छा (Willingness of Learning)- 

सीखने की इच्छा रखना अधिगम का एक अनिवार्य घटक है। यदि बालक सीखने की प्रक्रिया में क्रियाशील रहता है तो अधिगम प्रभावी होता है। अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया के दौरान बालक की इच्छा शक्ति को बढ़ाते हुए पाठ के विकास में छात्र का सहयोग लेना चाहिए ताकि वह क्रियाशील बना रहे। अपने शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अध्यापक को छात्र में रुचि एवं जिज्ञासा को जाग्रत करते रहना चाहिए।


4. अभिप्रेरणा (Motivation) -

अधिगम में प्रेरकों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अभिप्रेरणा वह शक्ति है जो व्यक्ति को अपने उद्देश्य तक ले जाती है। अभिप्रेरणा सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाती है। प्रेरणा शक्तिशाली हो तो बालक अध्ययन में रुचि अवश्य लेते हैं। नवीन जानकारी को स्थायी तौर पर ग्रहण करने के लिए अध्यापक को शिक्षण प्रक्रिया में बालकों की प्रशंसा करके उन्हें अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। 


5. विषय - सामग्री और उसका स्वरूप 
(Subject Matter and its Nature ) - 

यदि किसी विषय की अध्ययन सामग्री सरल और रुचिकर होगी तो बालक उसे सुगमता से ग्रहण करेंगे। कठिन एवं अर्थहीन विषय - सामग्री का अधिगम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः आसानी से सीखने के लिए पाठ्यक्रम के निर्माण में सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त का पालन करना चाहिए।

6. वातावरण (Atmosphere) - 

अधिगम के लिए परिवार, समाज और पाठशाला का उचित वातावरण होना अत्यन्त आवश्यक है। परिवार और स्कूल में बालक के साथ स्नेहपूर्ण और पक्षपातरहित व्यवहार करना चाहिए ताकि उसमें अधिगम के प्रति उत्साह बना रहे। कक्षा में प्रकाश व वायु का अभाव, अत्यधिक शोर तथा अमनोवैज्ञानिक वातावरण से बालक थकान का अनुभव करता है। फलस्वरूप उसके अधिगम में अवधान पैदा हो जाता है। बालकों के प्रति सहयोगात्मक रवैया और उन्हें रुचि प्रदर्शन के उचित अवसर देने चाहिए जिससे कि अधिगम की प्रक्रिया को बल मिल सके । 

7. अधिगम का समय एवं थकान 
(Time of Learning and Fatigue) -

सीखने के समय पर भी अधिगम ग्रहणता निर्भर करती है। प्रातःकाल के समय बालक में स्फूर्ति रहती है। अतः अधिगम सरल व शीघ्र होता है। जैसे - जैसे दिन बढ़ता है वह थकान का अनुभव करने लगता है। फलस्वरूप सीखने की क्रिया मंद होने लगती है। .

8. सीखने की विधि (Method of Learning) - 

शैक्षिक प्रक्रिया में प्रयुक्त अध्ययन विधि और अधिगम में भी सीधा सम्बन्ध पाया जाता है। सीखने की विधि अनुकूल और रुचिकर होगी तो सीखना अधिक सरल होगा। अध्यापक को प्रभावी अधिगम के लिए परम्परागत विधियों की अपेक्षा मनोवैज्ञानिक विधियों का सहारा लेना चाहिए। प्रारम्भिक कक्षाओं के लिए खेल विधि और उच्चतर कक्षाओं के लिए योजना व सामूहिकं विधि अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। 


9. अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher) - 

अधिगम प्रक्रिया में अध्यापक का स्थान सर्वोपरि होता है। वह अपने अर्जित ज्ञान एवं अनुभवों से बालक को अध्ययन के लिए निरन्तर क्रियाशील रख सकता हैं। अध्यापक की योग्यता, व्यक्तित्व व आचरण आदि अधिगम को प्रभावित करते हैं। योग्य , गुणवान और प्रभावशाली अध्यापक की कक्षा में छात्र रुचि दिखाते हैं। इस प्रकार अध्यापक का शैक्षणिक स्तर जितना अच्छा होगा अधिगम उतना ही सरल होगा।



निष्कर्ष -

सीखना व्यवहार में अभ्यास या अनुभूति के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन को कहा जाता है। ऐसे परिवर्तन को सीखना कहलाने के लिए कुछ देर के लिए स्थायी होना अनिवार्य है। सभी प्रकार के व्यवहार में परिवर्तन को सीखना नहीं कहा जा सकता। क्योंकि व्यवहार में परिवर्तन थकान , दवाखाने से , बीमारी से या परिपक्वता से भी आता है। मनुष्य केवल अनुभव एवं प्रशिक्षण द्वारा ही नहीं सीखता वह अनुभव, शिक्षण, प्रशिक्षण और अध्ययन आदि अनेक विधियों से सीखता है। दूसरी बात यह हैं कि वह जो कुछ भी नया सीखता है उसे बहुत दिनों तक धारण किए रहता हैं और तीसरी बात यह है कि वह आवश्यकता पड़ने पर इस सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग करता है और अपने व्यवहार की सही दिशा देता है। प्रत्येक व्यक्ति जन्म के आरम्भ से ही सीखना प्रारम्भ करता है और जीवन पर्यन्त सीखता ही रहता है। बालक जब प्रारम्भ में सीखना शुरू करता है तो उसकी विधियाँ अनुसन्धानात्मक एवं रूक्ष होती है। धीरे धीरे बालक त्रुटियों को दूर करता है और अपने प्रयासों में एकरूपता लाना सीखता है। जैसे ही उम्र बढ़ती है। वह जटिल से जटिल कार्यो को क्रमबद्ध करना सीखता है।








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