अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children)

अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children)



परिचय —


शारीरिक अशक्तता वाले बच्चों में अंग संचालन की समस्यायें पाई जाती हैं। अंग संचालन के दोषों का सम्बन्ध मांसपेशियों और शरीर के जोड़ों से है, जो अंगों अथवा हाथ पाँवों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की विषमताओं वाले विद्यार्थियों को, शिक्षण की उन गतिविधियों में, जिसमें शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है, सीखने में कठिनाई होती है। यद्यपि उनमें कक्षा के दूसरे बच्चों के समान ही अनुदेश द्वारा सीखने की मानसिक क्षमता होती है, परन्तु शारीरिक विषमता के कारण उन्हें अपने अध्ययन के समय विशेष समस्याओं का सामना करना  पड़ता है। उदाहरण के लिये यदि किसी बच्चे की उंगलियों की मांसपेशियाँ कठोर हो गई हैं, तो उसे लिखने में निश्चय ही कठिनाई होती है। कुछ बच्चों में बैठने आदि की मुद्रा को लेकर समस्याएं हो सकती हैं, जिससे वे शीघ्र ही थक जाते हैं। उन्हें सीखने में कठिनाई आती है ,और कुछ निश्चित क्रियाओं के सम्पादन में अधिक समय लेते हैं। प्रायः ऐसे बच्चों में कक्षा में समायोजन की समस्यायें भी पाई जाती हैं। अनेक बार कक्षा के अपने ही सहपाठी इन्हें नहीं स्वीकारते और कभी-कभी ये उपहास का कारण बन जाते हैं। 





अस्थि बाधित बालक का अर्थ —


अस्थि बाधित बालक से आशय ऐसे बालक से है जिनकी अस्थि, माँसपेशियाँ एवं जोड़ ठीक से कार्य नहीं करते हैं। ऐसे बालकों को सामान्यतः शारीरिक विकलांग (Physically Handicapped), अपंग (Disabled) अथवा चलन निःशक्त (Locomotor Disabled) बालक भी कहा जाता है। ऐसे बालकों को चलने-फिरने के लिए कृत्रिम हाथ-पैर अथवा बैसाखी, कैलीपर्स, विशेष जूते, ह्वील चेयर सरीखे अन्य सहायक उपकरणों की जरूरत पड़ती है। बाधारहित माहौल (Barrier Free Environment) के वगैर उन्हें शिक्षण-अधिगम में भी काफी मुश्किल होती है। कुछ बालक ज्ञानात्मक (Sensory), क्रियात्मक (Motor) अथवा अन्य शारीरिक दोषों से पीड़ित होते हैं, उन्हें कम शारीरिक विकलांग कहते हैं। 


क्रो और क्रो (Crow & Crow) ने भी इस विचार का समर्थन किया है। शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों से अभिप्राय वैसे बच्चों से हैं, जिनकी मांसपेशियों में इतनी विकृति आ जाये, जिसके कारण उसके अंगों का घूमना कठिन हो जाये। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में बाधा पेश आये। साथ ही शारीरिक कार्य क्षमताएँ सीमित हो जाएँ। यह निःशक्तता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। शारीरिक अंगों में असामान्यता या गामक क्रिया मुद्रा जिसमें गति की अवस्था हो, उनमें किसी प्रकार की कमी या उन्हें करने में किसी प्रकार की बाधा हो, तो उसे ‘अस्थि अक्षमता’ कहते हैं।


अस्थि बाधित बालकों की परिभाषाएँ 
Definition of Orthopadically Handicap Children)—

 

अस्थि बाधित उन बालकों को कहते हैं, जिनकी एक या अधिक अस्थियों में दोष आ गया हो या क्षतिग्रस्त हो गयी हो, जिससे सामान्य बालकों की मांसपेशियों तथा जोड़ों अथवा अस्थियों में किसी कारणवश दोष आ जाता है।


वैधानिक तौर पर ऐसे बालकों को अस्थि विकलांग कहा जाता है, जो गम्भीर रूप से अस्थि विकलांग हैं और यह विकलांगता उनके शैक्षिक प्रदर्शन को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।



 


  •  समाज कल्याण मंत्रालय के अनुसार,


“अपंग बालकों को अस्थि बाधित बालक तब कहते हैं, जब जन्म से बीमारी, दुर्घटना तथा जन्म से उनकी अस्थियों, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दोष वक्रता आती है और सामान्य कार्य करने तथा चलने-फिरने में असमर्थ हैं।”


  • निःशक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) में इसे चलन निःशक्तता (Locomotor Disability) के रूप में वर्णन किया गया है। उनके अनुसार, 


“चलन निःशक्तता” से हड्डियों, जोड़ों या मांसपेशियों की कोई ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निबन्धन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क घात हो।”





अस्थिबाधित बालकों की पहचान 

(Identification Of Orthopaedically Handicapped Children) —


चूँकि शारीरिक दोष प्रगट होते है अतः उनकी विषमताओं को पहचानना सरल होता है। नीचे दी गई लक्षणों की सहायता से अंग दोष वाले बच्चों की पृथक पहचान की जा सकती है —




  1. विद्यार्थियों के शारीरिक अंगों जैसे गर्दन, हाथ, उंगलियां, कमर, टांगे आदि में विकृतियां हो सकती है।


  1. ऐसे बालकों को उठने में, बैठने मे तथा चलने में कठिनाई हो सकती है।


  1. ऐसे बालक किसी वस्तु को पकड़ने में, किसी वस्तु को उठाने में तथा  पुनः  उसे उचित स्थान पर रखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।


  1. प्रायः जोड़ों में दर्द की शिकायत रहती है।


  1. लिखने में या कलम को पकड़ने में कठिनाई हो सकती है।


  1. मांसपेशियों में आपसी सामंजस्य की कमी


  1. झटका देकर चलना 


  1. अंगों में अवांछित हलचल रहती है।


  1. शरीर की पूर्णतः या आंशिक रूप से लकवाग्रस्त होना


  1. अंग पूरे न हो, किसी कारण कोई अंग अथवा हाथ-पैर के अंश काट दिए गए हों। 


  1. शारीरिक विकृति



अस्थि बाधित बच्चों की विशेषताएँ-


 

अस्थि विकलांगता की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-


  1. अस्थि बाधित बालकों के लक्षण, गुण, स्वरूप सामान्य बालकों से भिन्न होते हैं।


  1. यह उन बालकों पर लागू होता है जो सामान्य बालकों से अलग हों, स्मरणशक्ति अधिक हो।


  1. एक अस्थि बाधित बालक शारीरिक, मानसिक, भावानात्मक, सामाजिक आधार पर सामान्य बालक से बिल्कुल अलग होते हैं। सामान्य बालक की अपेक्षा विकास तीव्र गति से होता है।


  1. एक अस्थि बाधित बालक वह है जो सामान्य शिक्षा कक्ष तथा सामान्य शिक्षा कार्यक्रमों से पूर्णतया लाभान्वित नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी विकास की सामर्थ्य अधिक होती है।


  1. अस्थि बाधित बालक की अधिकतम सामर्थ्य के विकास के लिये उसे की कार्यप्रणाली तथा उसके साथ किये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।


  1.  एक अस्थि बाधित बालक शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक तथा शैक्षणिक उपलब्धियों की सभी धाराओं में सम्मिलित होता है।




अस्थि विकलांगता के प्रकार - 


अस्थि विकलांगता बालक या व्यक्ति में निम्न प्रकार से हो सकती है —


  1. पंगुता अथवा शारीरिक विकृती - 


अस्थि विकलांग बच्चों में कुछ शारीरिक अंगों की क्षति हो जाने के कारण हुई विकलांगता को शारीरिक विकृति कहा गया है। शारीरिक विकृति के अन्तर्गत शरीर के किसी भी अंग यानि हाथ पैर का आवश्यकता से कम या ज्यादा विकास हो जाना आता है जिससे कि दैनिक सामान्य कार्यो में बालक को असुविधा का सामना करना पडता है तथा जीवन को कठिनाई पूर्ण विकास होता है। पंगुता से तात्पर्य शरीर के उस अंग का पूर्ण विकास नही हो पाने से उसमें पूर्णत: गति नहीं आ पाती तथा उसकी हड्डी इतनी मजबूत नही हो पाती जितनी की शरीर की अन्य हडिडियां होती है जिससे कि वह भार उठा सके और- दूसरे अंग को सहारा दे सके अतः बालक के किसी भी अंग का आवश्यकता से अधिक कमजोर होना पंगुता कहलाता है। इस प्रकार से अंग का अन्य अंग की तरह विकास नही हो पाता यह सामान्य से कुछ विकसित हो पाता है तथा किसी भी कार्य को करने में असमर्थ होता है। इस तरह विकालांगों से ग्रस्त अंग का अन्य उपकरणो की सहायत से चलाया जाता है जिससे बालक के साथ-साथ सामंजस्य स्थापित कर अपने जीवन को सुचारु रुप से गति दे सके एवं समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित हो सके अतः हमे गत्यात्मक विकलांगो बच्चों को गति देने हेतु उनको सहयोग प्रदान कर उनका उत्साह वर्धन करना चाहिए। शासन द्वारा प्रदत्त सभी सुविधाओं का ज्ञान उनके माता-पिता को तथा उन्हे देना चाहिए।



  1. पोलियो माइलिटिस —


बचपन में बच्चों को पोलियों की खुराक समय पर ना देने के कारण उनको इस प्रकार की बीमारी से गुजरना पडता है तथा उनकी शारीरिक क्षमता पर असर पडता है। यह ऐसी बीमारी है जो वायरस संक्रमण के कारण मेरुरज्जु में होती है इससे लकवा या हाथ पैरों तथा मेरुरज्जु की मांसपेशियो की शक्ति का नष्ट होना होता है या कमजोर हो जाती है जिसके कारण बच्चे में विकलांगता आती है और ठीक से वह अपने दैनिक जीवन को नही चला पाता है क्‍योंकि शरीर का मुख्य भाग उसके स्नायुग को शिथिल कर देता है जिसके कारण उसमें चेतना का अभाव पाया जाता है और बच्चा अपनी सकारात्मक क्रियाकलाप को न करते हुए अपने जीवन को कठिनाई से पूरा करता है। माता-पिता की छोटी सी लापरवाही का शिकार बच्चा हो जाता है और उसे जीवन भर परेशान होना पडता है अत: हमे चाहिए कि नवजात शिशु का टीकाकरण अवश्य करवाये और उसका समय-समय पर पोलियो की खुराक पिलाये जिसके कारण संक्रमण से उसका बचाव हो सके और बच्चा अपना जीवन आसानी से सुगमता से चला सके और उसका भविष्य उज्जवल हो इस प्रकार से हम पोलियों से बच्चों को बचा सकते है।


  1. रोगो से ग्रसित होने के कारण  —


मनुष्य शरीर में किसी भी गंभीर बीमारी हो जाने के कारण उस अंग को निकालना होता है अतः शरीर के उस हिस्से को अलग कर दिया जाता है ताकि बाकी शरीर में संक्रमण न फैल सके ऐसी स्थिति में भी बालक विकलांगता की श्रेणी में आ जाता है और उसे कृतिम अंग का सहारा लेना होता है जिससे वह अपने दैनिक कार्य को पूर्ण कर सके और अपने जीवन को सुचारु रुप से आगे बढा सके इस हेतु हमारा कर्तव्य है कि हम उसकी समस्या को समझते हुए उसकी ठीक से देखभाल करें और उसकी समस्या का समाधान करते हुए उसे आगे बढने के लिए प्रेरित करें जिससे बालक अपने जीवन रोग ग्रसित होने पर भी आसानी से जीवन यापन सके। अगर हम किसी विकलांग बच्चे से मिलते है तो वह खुद को भावनात्मक रुप से असुरक्षित समझता है और सामाजिक गतिविधियाँ में भाग लेने से हिचकता है उन्हे डर लगता है कि पता नहीं लोग उन्हे देखकर क्‍या सोचेंगे। कही कोई उनका मजाक न उडाए या फिर यदि दिया हुआ काम उनसे नही होगा तो क्‍या होगा इस प्रकार से बच्चे का यह व्यवहार उसके स्वयं के लिए नुकसानदायक होता है क्‍यों कि वह अपने आप तक सीमित रहता है समाज की अन्य गतिविधियों में भाग नही लेता है जिसके साथ उसका पूर्णतः: विकास नही हो पाता है। इस प्रकार से बच्चा अपना दैनिक जीवन की गतिविधियों में भी समस्या का सामना करता है इसलिए हमें कोशिश करना चाहिए कि हम बच्चे को घुल मिलकर रहना सिखाये तथा उसे अकेले न रहने दे और वह आपने आपको भावनात्मक रुप से सुरक्षित महसूस करें तथा स्कूल में भी सभी बच्चों के साथ ताल मेल बिठाले इस प्रकार से हम बच्चों में डर तथ हिचकिचाने की भावना को खत्म कर सकते है तथा समाज में इन बच्चों का अपना महत्व है और यह समाज पर बोझ नही बल्कि सहायक है बतला सकते है व इनको आगे ला सकते है। 




अस्थि विकलांगता के कारण —


वर्तमान समय में अत्याधिक दौड भाग के कारण तथा मिलावटी भोजन एवं अशुद्द वातावरण तथा आधुनिक मशीनीकरण एवं प्रतिस्पर्धा तथा आपसी होड के कारण अस्थि विकलांगता बडी है या निरन्तर वृद्धि हो रही है जैसे-जैसे मनुष्य आजकल व्यस्त होता जा रहा है उसके कार्य करने का तरीका तथा प्रक्रिया में तेज गति से बदलाव आना

प्रारम्भ हुआ है छोटे बच्चे एवं किशोर बालक एवं बालिकाऐं माता-पिता का कहना नहीं मानते है और उनकी आज्ञा का पालन भी नही करते है तथा उनकी कही हुई बात को नही सुनते है जिसके कारण उन्हे परेशानी का वे सामना करना पडता है वे स्वयं भी परेशान होते है तथा दूसरों को भी परेशान करते है, इस प्रकार से विकलांगता के कारणों में वृद्धि हुई  है। मुख्य कारण के अलावा निम्न कारणो से भी विकलांगता का स्तर बढ़ा  है जैसे —


  1. अस्थि विकलांगता अनुवांशिक तथा अअनुवांशिक भी है अनुवांशिकता के कारण भी विकलांगता आती है तथा कभी-कभी अअनुवांशिकता के द्वारा भी जैसे दुर्घटनाग्रस्त होने से विकलांगता आती है। आकस्मिक दुर्घटना हो जाने के कारण पैर में या कमर में गंभीर चोट पहुँचने के कारण विकलांगता का सामना करना पडता है बालक अपना जीवन आसानी से नही चलाकर परेशानियों से गुजारने लगता है और जीवन कठिन हो जाता है।


 


  1. पैरों में कुरपता के कारण — शरीर में विटामिन एवं प्रोटीन तथा अन्य रासायनिक पदार्थों की कमी के कारण एवं किसी भी गंभीर बीमारी के कारण पैरों में कुरुपता आ जाती है जिसके कारण बालक या व्यक्ति विकलांगता से ग्रसित हो जाता है यदि हमारे पैर ही स्वस्थ नही होंगे तो हम अपना जीवन ठीक से नहीं चला सकते है। अतः पैरों पर विशेष ध्यान देना चाहिए मधुमेह की बीमारी आज के समय में सभी की परेशानी बनी हुई है इसके कारण बच्चे युवा तथा बृद्द सभी परेशान है अतः: हमे समय-समय पर मधुमेह की जॉच करवाना चाहिए एवं अपने पैरों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जिससे के हम पैरों को सुरक्षित रख सकें तथा किसी भी प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त न हो सके ।


 


  1. मांसपेशियों में पोषण की कमी के कारण — वर्तमान युग में सभी खोद्य पदार्थों में मिलावट पाई जा रही है, कोई भी पदार्थ हमे शुद्द नही मिलते है और जो पोषक तत्व हमे मिलना चाहिए उसकी कमी हमारे शरीर में बनी रहती है यदि पोषण ठीक से नहीं होगा तो शरीर स्वस्थ नही होगा अतः पैरों तथा शरीर की मांसपेशियां विकृत हो जाती है और विकलांगता संभव हो जाता है पोषण हेतु हमे ठीक से भोजन लेना चाहिए और समय पर तथा उचित भोजन लेने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का विकास होता है,भोजन को पौष्टिक तथा उचित खानपान से मांसपेशियों में उचित पोषण होता है तथा हमारे शरीर को पूर्णतः विटामिन मिलते है जिसके कारण हमारे शरीर की मांसपेशियां ठीक रहती है और विकलांगता नही आ पाता है।


 

  1. पोलियों मायालिटीस, ट्यूबरो क्लोसिस, लेप्रोसी, जोडों या हड्डियों में संक्रमण के कारण तथा मस्तिस्क में संक्रमण के कारण विकलांगता आती है पोलियो की दवाई समय से न पिलाने से पोलियो रोग से ग्रस्त होना पडता है। मायलिटीस, ट्यूबरो क्लोसिस, लेप्रोसी, से भी विकलांगता आती है तथा हमारे शरीर की सभी नसे आपस में जुडी रहती है यदि बालक के मस्तिस्क में कोई संक्रमण आता है तो बालक विकलांगता से ग्रसित हो जाता है।


  1. रीढ़ की इड्डी संबंधी रोग — इससे विकलांगता आती है क्योंकि स्नायुगति हमारा जुडा होने की वजह से बालक को विकलांगता का सामना करना पडता है। दीर्घ स्थाई गठिया के कारण वह ठीक से चल नही पाता अपने स्वयं के कार्य नहीं कर पाता है जिसके कारण विकलांगता से ग्रसित होता है। 


  1. उच्चरक्तचाप के कारण बालक या व्यक्ति लकवाग्रस्त हो जाता है और इस वजह से उसके शरीर का एक भाग शिथिल हो जाता है और वह विकलांग हो जाता है। शरीर क॑ एक हिस्से में शिथिलता आने के कारण उसको सामान्य होने की संभावना शून्य के बराबर रहती है उचित देखभाल तथा ठीक से उपचार के उपरांत भी वह अपना कार्य आसानी से नहीं कर पाता है उसे परेशानियों का सामना सदैव करना पडता है। 



  1. दुर्घटनाओ के कारण चोट लगने से — वर्तमान युग दौड भाग का युग है यातायात के साधनों के द्वारा सुविधा बडी है वही विकलांगता का प्रतिशत भी बडा है आज के इस समय में बालिग और नाबालिग बच्चे भी वाहन तेजी से चलाते है और सडक पर पैदल चलने वालों का ध्यान न रखकर वे अपना कार्य करने मे दौडते रहते है जिसके कारण दुर्घटनाएँ अधिक हो रही है तथा दुर्घटना होने के कारण बच्चे बिकलांग होते जा रहे है जिसके कारण उनका जीवन कठिनाई से गुजरता है और परेशानियों का सामना बच्चे के साथ-साथ परिवार के सभी सदस्यों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। 



  1. कुपोषण प्रोटीन, कैलोरी तथा रक्त अल्पता यानि खून की कमी कुपोषण के कारण प्रोटीन, विटामिन तथा कैलोरी पोष्टिकता की कमी होने से शारीरिक क्षमता घटती है तथा पूर्ण विकास नही हो पाता है जिसके कारण शरीर ठीक से काम नही करता है। बच्चे की सदैव बीमार होने का आस बना रहता है और वह शारीरिक कमजोरी को दूर नही कर पाता है तथा उसके शरीर में सदैव खून की कमी बनी रहती है जिसके कारण वह हमेशा परेशान रहता है और वह किसी न किसी प्रकार से विकलांगता से ग्रस्त रहता है जिसमें अस्थि विकलांगता मुख्य है।



  1. मांसपेशियाँ व हड्डियों में दोष होने के कारण बालक में अस्थि विकलांगता आती है और यह बालक ठीक से चल फिर नही पाता है इसको तीन पहिये की साइकल तथा बैसाखी का सहारा लेना पडता है तब यह अपना थोडा कार्य कर पाता है। स्नायुविक, स्नायुविरुपण के कारण बालक में विकलांगता आती है जिससे पैरो की मांसपेशियाँ कमजोर होती है और नसों में विरुपण के कारण कमजोर होती है तो वह ठीक से काम नही कर पाता है और वह विकलांगता से ग्रस्त होने से बालक का जीवन कठिन हो जाता है।



  1. शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण शरीर में विकलांगता आ जाती है। जब बच्चे का जन्म होता है तब उसको ऑक्सीजन ठीक से नहीं मिल पाती और ऑक्सीजन की कमी हो जाने के कारण उसको मानसिक रुप से कमजोरी आ जाती है और वह विक्षप्त अवस्था के कारण ठीक से काम नही कर पाता तथा विकलांगता से ग्रसित हो जाता है। ऑक्सीजन हमारी प्राणवायु है इसी के द्वारा हमारा जीवन है यदि हम ठीक से सांस नही ले पाते तो हमारे शारीरिक अंगो का संतुलन ताल मेल बिगड जाता है इसके कारण-बालक विकलांगता से ग्रसित हो जाता है विषाक्त भोजन का सेवन करने से विकलांगता आती है क्‍योंकि शरीर में साधारण पाचन की क्रिया करनी होती है यदि हम ठीक से सादा भोजन करते है तो सब कुछ ठीक रहता है यदि हमारा खाना विषैला होता है तो उसका प्रभाव हमारे शरीर पर होता है तथा हमें बहुत प्रकार की परेशानियों से गुजरना पडता है और हम विकलांगता से ग्रस्त हो जाते है।



  1. ऐसी दवाइयॉँ जिनका हमारे शरीर पर प्रतिकूल असर होता है इसके कारण बालक के शरीर में विकलांगता आती है जो दवाइयाँ हमारे अनुकूल होती है वह हमें फायदा पहुँती है परन्तु यदि दवाई का असर हमारे शरीर में प्रतिकूल होता है तो वह शरीर के किसी भी हिस्से की या पूरे शरीर की विकलांगता के लिए तैयार कर देती है तथा हमारा शरीर विकलांगता की ओर अग्रसर हो जाता है तथा विकलांगता आ जाती है।


  1. शारीरिक अंगों में असमान्य कडापन तथा लचीलापन हो जाने के कारण विकलांगता आती है क्‍योंकि शरीर के किसी भी अंग में यदि ज्यादा कडापन आ जाता है तो वह ठीक से काम नही कर पाता है और उसमें हमेशा की तरह से कार्य करने की क्षमता खत्म हो जाती है और मनुष्य उस अंग से कार्य नही कर पाता है तथा हिला डुला नही पाता उसमें चेतना अवस्था नही रहती है इसी प्रकार से यदि अंग ज्यादा लचीला हो गया है तब भी वह सहज कार्य नही कर सकता है और उससे कार्य करना संभव नहीं होता है और विकलांगता आ जाती है।



अस्थि विकलांगता के रोकथाम के उपाय —


अस्थि विकलांगता को हम निम्नलिखित उपायों के द्वारा रोक सकते है।


 


  1. दुर्घटनाओं से बचाव करके हम अस्थि विकलांगता से बचावकर सकते है आराम से या आहिस्ता से किया गया कार्य आपको दुर्घटना से बचाता है और हमारे शरीर में हानि होने से बचाता है यदि हम ध्यान से और शांति पूर्वक किसी कार्य को करते है तो हमारे किए गए कार्य के परिणाम उचित होंगे और हमें किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी। यदि हम हड़बडाहट तथा बेचने में किसी कार्य को करते है तो हमें परेशानी का सामना करना पड़ता है अतः शांति पूर्वक किया गया कार्य किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाता है तथा हमारा शारीरिक नुकसान नहीं हो पाता और हम किसी भी प्रकार की दुर्घटना से अपने आप को सुरक्षित रखते है।


  1. समान रक्त संबंधों के बीच विवाह को रोकना - समान रक्त संबंधों में विवाह होने से आने वाली संतान याने उनके द्वारा किसी भी बच्चे का जन्म होता है तो उसके विकलांग होने की संभावना अत्यधिक रहती है, तो इस कारण से समान रक्त संबंधों में विवाह नहीं किया जाता है। आज का युग आधुनिक युग है इसमें पहले ब्लडग्रुप चेक करके शादी की जाती है जिससे आने वाले बच्चें को किसी भी प्रकार की तकलीफ न उठाना पड़े और वह स्वस्थ तथा मस्त अपना जीवन यापन कर सके इस हेतु शारीरिक देखभाल के साथ-साथ ब्लड चेकअप खून की जांच अति आवश्यक है जिससे हम विकलांगता को रोक सकते है।


  1. बच्चे के जन्म के पहले गर्भवती माता की पूर्णत: देखभाल होना चाहिए जिससे बालक का शरीर पूर्णताः स्वस्थ एवं हष्ट पुष्ट रहे जिससे वह किसी प्रकार की विकलांगता से ग्रसित न हो सके इसके लिए माता को पौष्टिक भोजन उचित वातावरण तथा हमेशा स्वस्थ रहे इसके लिए उचित देखभाल मासिक रूप से टीकाकरण एवं चिकित्सकीय जांच पूर्णतः: होनी चाहिए इस प्रकार से बच्चे को विकलांगता से बचाया जा सकता है।


  1. समय-समय पर टीकाकरण बच्चों को याने नवजात शिशु को देने से लगाने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बडती है तथा उसे अस्थि विकलांग होने का खतरा नहीं रहता है। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने जन्म नवजात शिशु को समय-समय पर टीका लगवाए तथा उसका पूरा विवरण रखे जिससे उसकी आयु अनुसार टीकाकरण किया जा सके और विकलांगता से बचाया जा सके। इस प्रकार से उचित देखभाल करने से बच्चे की शारीरिक स्थिति में सुधार रहता है तथा विकलांगता का खतरा बिलकुल भी नहीं रहता  है।


  1. यदि बालक को किसी भी प्रकार की बीमारी हो तो उसे तुरन्त उपचार कर खत्म करना चाहिए क्‍योंकि यदि बीमारी पड़ती है तो वह अपने साथ-साथ शरीर के अन्य अंगो पर भी प्रभाव डालती है इस हेतु शारीरिक शक्तियों को बनाए रखने हेतु समय-समय पर बालक को चिकित्सकीय परामर्श हेतु पास के अस्पताल तथा सामुदायिक स्वास्थ केन्द्र ले जाकर उसका उपचार करवाना विटामिन चाहिए और परामर्श द्वारा उसे उचित प्रोटिन विटामिन अन्य शारीरिक वृद्धि हेतु इलाज तथा अन्य दवाईयां लेनी चाहिए जिससे बच्चा स्वस्थ तथा निरोगी रहे और उसको किसी भी प्रकार की विकलांगता नहीं आ सके।


  1. इस प्रकार से हम बच्चे को स्वस्थ तथा निरोगी रख सकते है व उसकी शारीरिक मानसिक, बौद्धिक क्षमता में वृद्धि कर सकते है जिससे बालक आज के वर्तमान समय के साथ ठीक से अपना समाज के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके तथा अपने जीवन को सुचारू रूप से चला सके तथा सभी प्रकार की प्रतियोगिताओं को पूर्ण रूप से पूराकर सफल हो सके इस हेतु बालक का स्वस्थ होना अति आवश्यक है इसलिए हम बच्चे के स्वास्थ हेतु पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।


 


  1. बालक के स्वास्थ हेतु समय-समय पर ध्यान देना चाहिए इसलिए चिकित्सक के द्वारा बच्चों के स्वास्थ की जांच करवाना चाहिए तथा चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए, उसी के अनुसार बच्चों को भोजन में पौष्टिक आहार देना चाहिए जिसमें विटामिन प्रोटीन कार्बोहाइट्रेड, वसा, लवण, खनिज तत्व पोषक तत्व होना चाहिए जिससे बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास आसानी से हो सके ।


  1. अस्थि विकलांगता से बचाव के लिए बच्चे की देखभाल हमें शैशवास्था से यानी जन्म के तुरन्त बाद से ही रखना चाहिए जिससे कि बालक के सभी अंग पूर्ण रूप से विकसित हो सके क्‍योंकि यदि बालक किसी गंभीर या सामान्य बीमारी से ग्रसित होता है तो उसका शारीरिक विकास प्रभावित होता है और वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है अतः हमें बालक के जन्म के तुरन्त पश्चात समय-समय चिकित्सकीय जांच करवा कर परामर्श लेना चाहिए एवं चिकित्सक की सलाह को याने दिए हुए निर्देशों का पालन करना चाहिए जिससे कि बालक की किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी से बचा जा सके और विकलांगता से बालक का बचाव किया जा सके। शिशु की हड्डियों की मजबूती के लिए उसके हाथ पैरों की मालिश दाई से करवाना चाहिए जिससे उसकी हडिडया मजबूत हो सके साथ-साथ हल्की कसरत भी करवाना चाहिए।


 


  1. बच्चे के जन्म के समय होने वाली विकलांगता को रोकने के लिए गर्भावस्‍था के दौरान उसकी माता का पूर्णतः ध्यान रखना चाहिए जैसे-माता के भोजन में पौष्टिक आहार, उचित देखभाल, समय-समय पर टीकाकरण, शारीरिक स्वास्थ के लिए चिकित्सालय तथा सामुदायिक केन्द्र तथा आंगनबाडी में जॉच करवाना चाहिए तथा माता के मानसिक स्वास्थ हेतु आसपास तथा घर का वातावरण स्वस्थ होना चाहिए | माता को अनुकूल वातावरण प्रदान करना चाहिए | आसपास तथा पडोस में भी अच्छा वातावरण होना चाहिए, जिस कमरे में माता रहती है उस कमरे में भी अच्छे चित्र लगाना चाहिए जैसे- महापुरूषों के देवताओं के प्राकृतिक चित्रण तथा माता के स्वयं के आदर्शों तथा बाग बगिचों के लगाना चाहिए जिससे कि माता के मन में खुशी का वातावरण हमेंशा बना रहे व हमेशा प्रसन्‍नचित रहे तथा अन्य विपरीत या गलत बातों का विचार माता के मन में न आ सके।



  1. वंशानुक्रम एवं वातारण — यदि वंशानुक्रम से अस्थि विकलांगता परिवार में है तो उसे माता को अनुकूल वातावरण तथा स्वस्थ भोजन आहार देकर वंशानुक्रमणीयता को कम किया जा सकता है।



 


 


अस्थि बाधित बालकों की शिक्षा —


शारीरिक विकलांगता के कारण ये बालक सामान्य बालकों क समान कार्य करने में पूर्ण रूप से सक्षम नहीं होते इस बात का शिक्षकों व विद्यालय प्रबंधन को विशेष ध्यान रखना चाहिए तथा इन्हे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा देने के साथ इनकी शारीरिक विकलांगता को ध्यान में रखते हुए विशेष शैक्षिक कार्यक्रम भी बनाए जाने चाहिए।

शैक्षिक कार्यक्रम बनाते समय निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए ,—


 


  1. शारीरिक अपंगता के अनुरूप शैक्षिक पाठ्यक्रम का चयन—


विकलांगता के प्रकार को देखते हुए शैक्षिक कार्यक्रमों का चयन किया जाना चाहिए जिसbबच्चे के हाथ ठीक से कार्य नहीं करते है तो उसे पैरों से बाधित बच्चे से अलग पाठ्यक्रम द्वारा सिखाया जाना चाहिए |


 


  1. सांवेगिक समायोजन एवं सुरक्षा प्रदान करना —


शारीरिक विकलांगता के कारण कभी-कभी बालक का सामाजिक एवं सांवेगिक समायोजन बिगड जाता है अतः पाठयक्रम एवं शिक्षण विधिया बनाते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए कि इनका सावेगिक समायोजन, आत्मविश्वास व आत्मनिर्भरता की भावना बनी रहे एवं विकसित होती रहे तथा हीन एवं निराशाजक भावों का उन्मूलन हो।



  1. शारीरिक दक्षता विकसित करना —


ऐसे बालक के अंदर आत्मविश्वास की भावना को इस प्रकार जागृत किया जाए जिससे कि वह अपनी शारीरिक अपंगता पर विजय प्रयत्न कर सके एवं कृत्रिम अंगो को लगाकर उनका उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे कि वह सामान्य बालक की भांति कार्य कर सके ।


  1. शैक्षिक एवं संतुलित विकास करना — 


इन बालकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण के साथ साथ सैद्धांतिक विषयों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए।


  1. चिकित्सा सुविधा प्रदान करना —


शारीरिक विकलांगता का निदान चिकित्सा द्वारा करके ही बालक को सामान्य जीवन जीने की ओर प्रेरित किया जा सकता है।



  1. अस्थि विकलांग बच्चों की शिक्षा व्यवस्था अन्य सामान्य विकलांग बच्चों के साथ की जानी चाहिए जिससे वे आसानी से आत्मनिर्भर हो सके तथा अपना अध्ययन अध्यापन सुचारू रूप से हो सके |


 


 


प्रजातंत्र की सफलता के लिए समाज की उन्‍नति के लिए मानवीयता के नाते तथा तीव्र एवं निश्चित दिशा में आगे बढ़ने के लिए तथा समाज में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है इसके लिए जन-जन शिक्षित हो तभी शिक्षा से हमारे राष्ट्र का विकास होगा इसलिए आवश्यक है कि सभी को समान शिक्षा के अवसर प्राप्त हो सभी के लिये शिक्षा इसमें समाज के सभी वर्ग शामिल है बिना किसी भेदभाव के शिक्षा अनिवार्य रूप से हो सभी को समान अवसर मिले इसके लिए


 निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना अति आवश्यक है —


  1. व्यापक मात्रा में छात्रवृत्ति की व्यवस्था की जाये जिससे विकलांग बच्चों को पूरा लाभ मिले ।


  1. शिक्षा का गुणात्मक तथा संख्यात्मक दोनों ही प्रकार से प्रचार प्रसार किया जाये।


  1. विकलांग शिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रयास किये जाये।


  1. विशेष बच्चों के लिए विद्यालयों की उनके रहवासी के समीप स्थापना की जाय, जिससे वे आसानी से विद्यालय आ सके।


  1. विशेष बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरणा दी जाये जिससे वे ज्यादा से ज्यादा अभ्यास करने के लिए प्रेरित हो। सभी बच्चों को निःशुल्क शैक्षिक सामग्री दी जाये गणवेश व उनके विद्यालय तक आने जाने की व्यवस्था की जाये।


  1. सभी बच्चों को उपस्थिति के आधार पर पारितोषिक दिया जाय जिससे वे उमंग व उत्साह के साथ विद्यालय में प्रवेश लेकर अपनी शिक्षा ठीक से पूर्ण करें |



समेकित शिक्षा की व्यवस्थानुसार —


  • अस्थि विकलांग बच्चों को इस प्रकार शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वे बुद्धिमान, भावुक रूप से मजबूत निश्चयात्मक, खुश रहना, ईमानदार, स्वशासी, संदेही, समझदार, ग्रहणशील, प्रयोगकर्ता, स्वयं संतुष्टी एवं नियंत्रक तथा समय के पाबन्द एवं कल्पनाशील बन सके | इस के लिए इन बच्चों का पाठ्यक्रम आधारित शिक्षा दी जानी चाहिए जो व्यवहारिक शिक्षा अर्थात्‌ प्रेक्लीकल पर आधारित हो तथा सैद्धान्तिक हो जिससे बच्चे अपने जीवन को सरल व उचित तरीके से पूर्ण कर सके।


  • बच्चों को इस प्रकार शिक्षित किया जाय जिससे वे सृजनात्मक बन पाये तथा उनमें कल्पनाशीलता का विकास हो और अपनी कल्पना को वे साकार रूप दे सके। बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे उनमें समायोजन की भावना का विकास हो अस्थित विकलांग बच्चे अपने आप को अलग-अलग मानकर ठीक से सामान्य बच्चों के साथ घुल मिल नहीं पाते है। अतः: उनमें समायोजन शीलता उत्पन्न हो सके इसलिए पाठ्यक्रम इस प्रकार बनाया जाय जिससे वे आसानी से पढ़कर समायोजन कर सके अन्य सहपाठियों के साथ।


  • सामाजिक दृष्टिकोण से भी इन बालकों की शिक्षा व्यवस्था का हमारा कर्तव्य है बनता है कि एक जागरूक भारतीय नागरिक होने के नाते हम विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की पढाई पर ध्यान देते हुए उनहें शिक्षा के प्रति रूचि तथा सजगता जगाये जिससे उनमें जीविकोपार्जन करने की क्षमता का विकास हो सके। ऐसी व्यवस्था बनाये जिससे इन बच्चों में सामान्य बच्चों की तरह आगे बढ़ना तथा पढना याने निरन्तर अध्ययन करने की क्षमता का विकास हो और ये बच्चे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सके और अपना कार्य सुचारू रूप से करते हुए अपने जीवन यथोचितचला सके तथा जीवन में उस उत्पन्न कर सके। निराशा की भावना इनमें नहीं आने पाये ओर हमेशा उन्‍नति के पथ पर आगे बढ़ सके।


  • ऐसी शिक्षा की व्यवस्था हमें करनी चाहिए जिससे इनमें बालकों में भिक्षावृत्ति अनैतिक कार्य अनैतिक कार्य, गलत आदतों का जन्म नहीं होने पाये और ये बच्चे अपनी दुर्बलता को कमजोरी न बनाते हुए ठीक से अध्ययन कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके।


 


  • इस प्रकार से बच्चों को शिक्षित किया जाय जिससे वे समाज को पूर्ण सहयोग देकर अपना स्थान सुनिश्चित करवा सके। समाज पर बोझ न बनकर वह अपना सहयोग देकर सहयोगी बन सके। सामान्य बालकों के साथ विशेष कक्षा की व्यवस्था कर इन्हें यदि पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थी है तो उपचारात्मक कक्षाएं लगाकर पढ़ाना चाहिए जिससे ये आसानी से अपने पढ़ाई के स्तर को ऊँचा कर सके पढ़ सके और आगे बढ़ सके।


  • विशेष बच्चों के माता-पिता बड़े भाई बहन के साथ शिक्षक तथ सहपाठियों का व्यवहार प्रेम पूर्वक होना चाहिए जिससे बच्चे में सहयोग की भावना उत्पन्न हो तथा वे अपने आप को अलग न समझ कर सबके साथ रहने का प्रयास करें। शिक्षकों को चाहिए कि बच्चे की शारीरिक अक्षमता को देखते हुए उससे वे कार्य नहीं करवाना चाहिए जिससे उनको कार्य करने में कठिनाई हो और उनमें हीन भावना आये इसलिए उनके इस प्रकार के कार्य करवाना चाहिए जिसमें उनकी शारीरिक अक्षमता बाधक न हो और वे आसानी से उस कार्य को पूर्ण कर सके और ठीक से सुचारू रूप से कार्य कर  सके इस हेतु हमें निरन्तर प्रयास करना चाहिए और बच्चों का उत्साहवर्धन कर वे आगे बढ़ाते रहना चाहिए, जिससे वे आने-वाले समय में अच्छे उपन्यासकारित कहानीकार, संगीतज्ञ तथा साहित्यिक तथा अविष्कारक बन सकते है। 


  • शिक्षा व्यवस्था ऐसी होना चाहिए जिससे इन बच्चों को व्यवसायिक दक्षता प्राप्त हो सके जैसे कताई, बुनाई, चित्रकारी, मशीन पर काम करना, सिलाई करना, लेप मशीन पर कार्य करना, पेपर कटिंग करना, कढ़ाई करना आदि। 


  • बच्चों को शिक्षा के अंतर्गत अवकाश के समय सदुपोग कर विद्यार्थी संगीत, कला, योग, ध्यान कर सके तथा अपने शरीर को अनुकूल बना सके उनमें इस प्रकार से शारीकि क्षमता उत्पन्न हो जिससे वे अपने आप को प्थक न मानकर ठीक से अपना कार्य कर सके व सभी के साथ अपना जीवन व्यापन सके।



( अस्थि बाधित बालकों की शिक्षा एवं समायोजन )


  • क्योंकि शारीरिक रूप से अक्षम बालक  साधारण बुद्धि के होते हैं अतः उन्हें शिक्षा द्वारा मानसिक विकास के लिए पूर्ण अवसर देने चाहिए।


  • शिक्षा द्वारा उनके अंदर इस प्रकार की भावना उत्पन्न करनी चाहिए जिससे वे अपनी हीनता की भावना को कम कर सके और उपयोग से उपयुक्त व्यवहार को विकसित कर सके।


  • ऐसे बालकों के लिए अलग कक्षा के कमरे हो तो अच्छा है। जैसा कि विद्यालय की इमारत में जगह हो उसी के अनुसार उचित प्रबंध करना चाहिए। अलग कमरा होने में ऐसे बालकों को शारीरिक विकास की अधिक सुविधा मिल सकती है किंतु उनके सामाजिक विकास उचित रूप से ना हो सकेगा।


  • शारीरिक रूप से अक्षम बालकों को हमें ऐसी व्यवसायिक शिक्षा देनी चाहिए जो उनकी शारीरिक न्यूनता ग्रसितता में बाधक ना हो। वह एक सिपाही या मजदूर ना हो सकता है किंतु बैठने वाली नौकरी के योग्य उसे बनाना चाहिए। जिससे वह आसानी से कर सके और सफलता प्राप्त कर सके।



  • विद्यार्थियों में शारीरिक विषमता के दोषों की क्षतिपूर्ति में अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में माता-पिता का उचित सहयोग लिया जा सकता है। यदि दोष अधिक गम्भीर हैं तो विद्यार्थी को जिला पुनर्वास केन्द्र अथवा प्रारम्भिक स्वास्थ्य केन्द्र में भेजा जाना चाहिये। 



  • विद्यार्थी के शारीरिक दोषों को ध्यान में रखते हुये, कक्षा में उसके बैठने की उचित व्यवस्था होनी चाहिये । उदाहरण के लिये जो विद्यार्थी वैशाखी या पहिया कुर्सी का सहारा लेते हैं, उनके बैठने की व्यवस्था, कक्षा में दाहिनी ओर खाली स्थान में होनी चाहिये, जिससे अन्य विद्यार्थियोंके आवागमन में बाधा न पहुँच सके। बैठने की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिये कि विद्यार्थी के पास ही दीवार के सहारे बैशाखी या पहिया कुर्सी को भी रखा जा सके। यह व्यवस्था भी इस प्रकार हो कि अन्य विद्यार्थियों का आवागमन अवरुद्ध न होने पाए। 


  • प्रायः देखा जाता है कि शारीरिक दोषों के कारण ऐसे विद्यार्थियों के लिये विद्यालय में मनोरंजन की आवश्यकताओं की अवहेलना की जाती है। अध्यापक को इस बात पर निश्चित ध्यान देना है कि ऐसे विद्यार्थी कक्षा अथवा स्कूल के शारीरिक और मनोरंजन के कार्यक्रमों में यथेष्ट भाग ले सकें। दूसरे सामान्य विद्यार्थियों को भी इस प्रकार प्रोत्साहित किया जाए कि वे उन्हें ऐसी क्रियाओं में सम्मलित होने दें। 


  • शारीरिक अंगों के संचालन में दोष वाले विद्यार्थी को सीखने के लिये अधिक अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। उदाहरण के लिये किसी विद्यार्थी की उंगलियों की मांसपेशियों में संचालन शक्ति नहीं रही है। उसे लिखने में कठिनाई होती है तो उस पर अतिरिक्त ध्यान देना होगा। किसी सहायक उपकरण की व्यवस्था से उनके कार्य सम्पादन की गुणवत्ता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार जब उनकी उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन किया जा रहा हो, तो उनका यह शारीरिक दोष भी विचारणीय होना चाहिए। यदि उन्हें लिखने में कठिनाई होती है, तो अतिरिक्त समय देना चाहिये और यदि सम्भव हो तो उनके लिये श्रवण कैसैट  का प्रयोग भी किया जा सकता है । उदाहरण के लिये इतिहास की परीक्षा में,  जिसमें वर्तनी की त्रुटियों का आकलन नहीं होता। ऐसे विद्यार्थियों के उत्तरों का, श्रवण कैसैट पर रिकार्ड करके परीक्षण किया जा सकता है। जहाँ कहीं सम्भव हो शब्द संसाधक की सुविधा भी प्रदान करनी चाहिए ।



निष्कर्ष —


इस तरह हम देखते हैं कि उपयुक्त विधियों को अपनाकर अस्थि बाधित बालकों की शिक्षा दीक्षा अच्छे ढंग से संपन्न की जा सकती है तथा उनका समुचित विकास भी किया जा सकता है जिससे वह समाज तथा देश हित में अपना योगदान करने में अधिक सक्षम हो सकते हैं।

 



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

अधिगम के सिद्धांत (Theories Of learning) ( Behaviorist - Thorndike, Pavlov, Skinner)

अधिगम की अवधारणा (Concept of Learning)

बुद्धि की अवधारणा — अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत (Concept Of Intelligence)

बन्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory of Bandura)

माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर कमीशन: (1952-1953) SECONDARY EDUCATION COMMISSION

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) University Education Commission

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

विशिष्ट बालक - बालिका (Exceptional Children)