श्रवण बाधित बालक या श्रवण संबंधित दोष से ग्रसित बालक (Children With Hearing Impairments)

श्रवण बाधित बालक 

या

श्रवण संबंधित दोष से ग्रसित बालक

(Children With Hearing Impairments)




 प्रस्तावना –


हम जानते हैं की मनुष्य अपनी इन्द्रियों के माध्यम से ही अपने वातावरण से जुड़ता है। पाँच प्रमुख इन्द्रियों में श्रवण एक महत्वपूर्ण इन्द्रिय है। क्योंकि न की यह सिर्फ वातावरण में मौजूद ध्वनियों को सुनने में सहायता करती है बल्कि वाणी एवं भाषा के विकास के लिए पूर्वपेक्षित भी है। श्रवण एक दूरस्थ इन्द्रिय के रूप में हमें खतरों से बचाती है बोलने की क्षमता प्रदान करने के साथ ही मनोरंजन हेतु स्वाभाविक इन्द्रिय की तरह भी कार्य करती है। श्रवण प्रक्रिया के बाधित होने से मनुष्य का सामान्य जीवन तथा उसका अन्य क्रियाकलाप के समस्त पहलु प्रभावित होते है। प्रस्तुत इकाई में विस्तार से श्रवण बाधिता का अर्थ, वर्गीकरण तथा विशेषताओं सम्बन्धित जानकारियाँ प्रस्तुत हैं। 


इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप श्रवण बाधिता से परिचय के साथ उसके प्रकार तथा विशेषताओं से भी परिचय प्राप्त कर सकेंगे। 



श्रवण बधिरता का अर्थ एवं परिभाषाएं -


श्रवण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ध्वनि की जागरूकता, भिन्नता, पहचान तथा समझने का बोध होता है। श्रवणबाधिता का सरल एवं सामान्य शब्दों मे अर्थ है कि सुनने की क्षमता मे कमी। यह क्षति व्यक्ति को दूसरों की बात और वातावरण की अन्य ध्वनियों को सुननें में समस्या उत्पन्न करती है। अतरू हम कह सकते हैं की किसी व्यक्ति द्वारा पूरी तरह से आवाज सुननें में अक्षम होना श्रवण विकलांगता कहलाता है। भाषा के विकास के लिए 'सुनना' एक जरूरी प्रक्रिया है। एक छोटा बच्चा आस पास के लोगों के संवाद को सुनकर ही अपनी भाषा का विकास करता है। श्रवण विकलॉगता एक छिपी हुई विकलाँगता है। क्योकिं कोई भी व्यक्ति जो श्रवण विकलाँगता से ग्रसित है वह किसी भी प्रकार के शारीरिक लक्षण प्रकट नहीं करता है जिससे यह प्रतीत हो कि वह इस विकलाँगता से ग्रसित है। इस विकलाँगता को पहचाननें के लिए सूक्ष्म निरीक्षण की आवश्यकता होती है। श्रवण विकलांगता व्यक्ति के स्वतंत्र रूप से सोचने तथा सीखने पर गहरा प्रभाव डालती है। श्रवण हमें खतरों से भी सावधान करता है। जन्म से लेकर जीवन पर्यन्त श्रवण प्रक्रिया हमे वातावरण पर नियंत्रण करने में सहायता करती है। ध्वनि तथा कान सुनने की प्रक्रिया के लिए सबसे महत्वपूर्ण है । ध्वनि की सूक्ष्मता को मापने की इकाई को डेसिबल (डी0 बी0) (db) कहते है। 



श्रवण बाधिता की कुछ परिभाषाएं निम्नवत हैं - 



निःशक्त जन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण तथा पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 के अनुसार —


"अगर किसी व्यक्ति को सामान्य वार्तालाप के दौरान व्यवहार की गयी आवृत्तियों में अपने बेहतर कान से 60 डी0 बी0 या उससे तेज आवाज को सुनने में कठिनाई होना श्रवणबाधिता कहलाता है।" 



राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन 1991 के अनुसार —


"श्रवणबाधित उसे कहा जाता है जो सामान्य रूप से सामान्य ध्वनि को सुनने में अक्षम है।”

  • श्रवण बाधिता के अर्न्तगत सामान्य से कम सुनने तथा बिल्कुल भी सुन न सकने वाले दोनों आते है।



स्च्वार्तज़ तथा एलनए, 1996 (Schwartz and Allen, 1996) इसे इस प्रकार परिभाषित किया है —


“बधिरता से तात्पर्य है कि श्रवण क्षमता की इतनी गम्भीरता से क्षति कि श्रवण यंत्रो या दूसरे संवर्धक उपकरणों के साथ भी व्यक्ति बोली जाने वाली भाषा की श्रवण प्रक्रिया नहीं कर सकता।”


“Deafness refers to a hearing loss so severe that the individual cannot process spoken language even with hearing aids or other amplification devices.”


  • ऊँचा सुनने वाले या आंशिक बहरेपन से तात्पर्य है कि श्रवण क्षति पूरी तरह बधिरता से कम है फिर भी इसका उनके सामाजिक, संज्ञानात्मक तथा भाषा विकास पर निश्चित ही नकारात्मक प्रभाव है। 


  • "Hard of hearing refers to a lesser loss but one that nevertheless has a definite negative effect on social, cognitive and language development.”


IDEA ने श्रवणबाधिता के अंतर्गत बहरापन तथा ऊचा सुनना दो सम्प्रत्य को परिभाषित किया है इसके अनुसार —


“ऊंचा सुनना का अर्थ हैं सुनने की क्षमता में कमी चाहे स्थायी हो या अस्थाई। यह एक बच्चे के शैक्षिक प्रदर्शन को प्रतिकूलता से प्रभावित करती है।”

“बहरेपन से तात्पर्य हैं की बच्चे में श्रवण क्षति इतनी गंभीर है कि भाषाई सूचनाओं की प्रक्रिया श्रवण के माध्यम से प्रवर्धन के बिना या उसके साथ भी करने में सक्षम नहीं है।”


“An impairment in hearing, whether permanent or fluctuating, that adversely affect a child's education performance.”

“deafness is a hearing impairment that is so severe that the child is impaired in processing linguistic information through hearing with or without amplification”



W.H.O के अनुसार सुनने में कठिनाई का तात्पर्य हैं —



'सुनने में दिक्कत' उन लोगों को संदर्भित करता है जिन्हें सुनने की क्षमता कम से लेकर गंभीर तक होती है। वे आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा के माध्यम से संवाद करते हैं और श्रवण यंत्रों, कैप्शनिंग और सहायक सुनने के उपकरण से लाभ उठा सकते हैं,  अधिक श्रवण हानि वाले लोगो को  कर्णावत प्रत्यारोपण से लाभ हो सकता है।


‘Hard of hearing’ refers to people with hearing loss ranging from mild to severe. They usually communicate through spoken language and can benefit from hearing aids, captioning and assistive listening devices. People with more significant hearing losses may benefit from cochlear implants.


  • “बहरे लोगों में अधिकतर श्रवण क्षति गंभीर होती हैं जिसके कारण सुनने की क्षमता बहुत कम या नहीं होती हैं, वे प्राय संवाद के लिए सांकेतिक भाषा का प्रयोग करते हैं।”




हैलाहन और काफमैन के अनुसार,


“वह बालक जिसके जीवन के प्रारम्भिक दो या तीन वर्षो में श्रवण हानि होती है और जिसके फलस्वरूप वह स्वाभाविक रूप से भाषा का ज्ञान अर्जित नहीं कर पाता वह बहरा की श्रेणी में आता हैं।”


“The child who suffers a hearing loss in the first two or three years in life and as a consequence does not acquire language naturally is considered as deaf.”




  • A child who loss all ability to detect sound after having learn language is called Hard Of Hearing. If his speech remain understandable.




श्रवण बाधिता का वर्गीकरण —


बधिरता का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया जाता है -


1.  समय के आधार पर —


  1. जन्मजात श्रवण दोष –

जन्म के समय किसी भी कारण से होने वाला श्रवण दोष जन्मजात श्रवण दोष कहलाता है। यह प्रसव के दौरान भी हो सकता है।


  1. वंशानुगत श्रवण दोष –

जब श्रवण दोष गुणसूत्रों की अनियमितता के कारण होता है तो वह एक वंश से दूसरे वंश तक प्रभावित करता है। इसे वंशानुगत श्रवण दोष कहते है।


  1. उपार्जित श्रवण दोष –

जन्म के बाद किसी प्रकार की चोट, संक्रमण अथवा गंभीर बीमारी के कारण होने वाला दोष उपार्जित श्रवण दोष कहलाता है।


  1. भाषा विकास पूर्व श्रवण दोष –

जब किसी बच्चे में वाणी एवं भाषा विकास की आयु से पूर्व श्रवण समस्या उत्पन्न होती है तो उसे भाषा विकास पूर्व श्रवण दोष कहते है। पश्च भाषा विकास श्रवण दोष-वाणी एवं भाषा विकास के समयय के उपरान्त होने वाला श्रवण दोष पश्च भाषा विकास श्रवण दोष कहलाता है।



2.  कान के प्रभावित होने के आधार पर —


  1. चालकीय श्रवण दोष या प्रवाहमान श्रवण दोष —

चालकीय श्रवण दोष का प्रभाव बाह्य कर्ण तथा मध्य कर्ण में होता है। ठीक तरह से आवाज आंतरिक कर्ण में नहीं पहुँच पाती। सभी सुनी हुई आवाजें दबकर रह जाती हैं। इस प्रकार के व्यक्ति वातावरण की आवाज का ध्यान रखे बिना बहुत धीरे बोलते है।


  1. संवेदनिक श्रवण दोष –

संवेदनिक श्रवण दोष, आंतरिक कर्ण में कोई बीमारी होने या खराब होने के कारण होता है। यह दोष कुछ बीमारियाँ जैसे- खसरा, गलगन्ड, दिमागी बुखार तथा क्षय रोग के कारण भी होता है।


  1. मिश्रित श्रवण दोष –

मिश्रित श्रवण दोष चालकीय श्रवण दोष तथा संवेदनिक श्रवण दोष का मिश्रण है। इस दोष का प्रमुख कारण है लंबे समय तक कान में बीमारी का होना जिसे क्रोनिक सपरेटिव ओटाइटिस मीडिया के नाम से जाना जाता है। इसके कारण कान से लगातार पानी का गिरना, खून आना तथा पस का बहाव होता है।


  1. केन्द्रीय श्रवण दोष –

यह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में क्षति के कारण होता है।


 

3.  प्रकृति के आधार पर –


  1. सम्बर्धित श्रवण दोष –

इस प्रकार का दोष किसी संक्रमण, वंशानुगत कमी या उम्र के आधार पर होता है। चालकीय, संवेदनिक तथा मिश्रित श्रवण दोष प्रकृति में सम्बद्धित हो सकता है।


  1. आकस्मिक श्रवण दोष –

जब किसी व्यक्ति की श्रवण तंत्रिका चोट के कारण क्षतिग्रस्त हो जाती है तो इसे आकस्मिक श्रवण दोष कहते है। आकस्मिक श्रवण दोष, संवेदनिक श्रवण दोष का ही एक रूप है।



4.  डिग्री गम्भीरता के आधार पर —


  1. क्लार्क के अनुसार —


10  –  25 डीबी0  –  सामान्य


26  –  40 डी0बी0  –  अति अल्प


41  –  55 डी0बी0  –  अल्प


56  –  70 डी0बी0  –  अल्पत


71  –  90 डीबी0  –  गंभीर


91  –  डी0बी0 या अधिक  –  अति गंभीर



  1. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार –


 0  –  25 डीबी0  –  सामान्य


26  –  40 डी0बी0  –  अति अल्प


41  –  55 डी0बी0  –  अल्प


56  –  70 डी0बी0  –  अल्पत


71  –  90 डीबी0  –  गंभीर


91  –  डी0बी0 या अधिक  –  अति गंभीर



  1. गुडमैन्स के वर्गीकरण के अनुसारः-



10 DBHL  –  15 DBHL  –  सामान्य


16 DBHL  –  25 DBHL  –  निम्नतम


26 DBHL  –  40 DBHL  –  अति अल्प


41 DBHL  –  55 DBHL  –  अल्प


56 DBHL  –  70 DBHL  –  अल्पतम


71 DBHL  –  90 DBHL  –  गंभीर


91 DBHL  –  या अधिक  –  अति गंभीर



  1. बी0एस0ए0 एवं बैटार्ड (988) जोसेफ में उद्धृत के अनुसार-


0  –  9 डी0बी0  –  सामान्य


20  –  40 डी0बी0  –  अति अल्प


41  –  70 डीबी0  –  अल्प


71  -  95 डीबी0  –  गंभीर


95  –  डी0बी0 या अधिक  –  अति गंभीर


 



श्रवणबाधित बच्चों की विशेषताएं —


  1. स्मृति –


भाषा विकास में समस्या उत्पन्न होती है साथ ही चीजों को याद रखने में दिक्कत होती है। ऐसे बच्चों को प्लान बनाकर निर्देश दिया जाता है साथ ही चित्रों के माध्यम से याद कराया जाता है। ऐसे बच्चों को सांकेतिक भाषा के माध्यम से या लिखकर मार्गदर्शित करना चाहिए।





  1. बार्तालाप में समस्या –


शिक्षकों की बात समझने या उनसे वार्तालाप में तथा सहपाठियों से वार्तालाप में समस्या उत्पन्न होती है। इसके लिए ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा वार्तालाप हो। इन बच्चो को अधिक से अधिक सूचनाये तथा जानकारियाँ दृष्टि के माध्यम से देनी चाहिए तथा लिखित जानकारी देनी चाहिए। सहपाठियों को ज्यादा से ज्यादा सहयोग देने के लिए प्रेरित करना चाहिए शिक्षकों के ज्यादा से ज्यादा ऐसे माध्यमों का प्रयोग करना चाहिए जिससे श्रवण बाधित बोलने के लिए प्रेरित हो सके।




  1. भाषा विकास – 


भाषा एवं वाणी विकास की योग्यता श्रवणबाधित बच्चों में सबसे अधिक प्रभावित होती है। सघन एवं विस्तृत प्रशिक्षण की अनुपलब्धता की स्थिति में इनका भाषा विकास नहीं किया जा सकता। भाषा का विकास इस बात पर निर्भर करता है कि किस उम्र में श्रवण बाधिता आयी। वो बच्चें जो जन्म से ही पूरी तरह से श्रवण क्षति ग्रस्त होते है उनमें भाषा का विकास न के बराबर होता है। प्रभावशाली और विचारों को व्यक्त करने वाली भाषा में समस्या उत्पन्न होती है। शब्दकोष और भाषा संबंधी नियमों से देर से परिचित होते है। अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने में समस्या उत्पन्न होती है। ऐसे में इस प्रकार के माहौल को बनाना चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा भाषा को सीखने का मौका मिले, शब्दकोष में बढोतरी हो तथा विचारों को व्यक्त कर सके।







  1. शैक्षिक कमी –


श्रवणबाधिता से ग्रसित बच्चें का विकास देर से होता है। वे पढ़ने, लिखने तथा गणितीय कौशल से देर से परिचित होते है। गणितीय जोड़, घटाव में परेशानी होती है। समस्या प्रधान सवालों को हल करने में दिक्कत होती है। स्वयं से अपने विचार व्यक्त करने में या लिखने मे परेशानी होती है। याद करने के विभिन्‍न तरीकों को अपनाना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा दृश्य सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समस्या प्रधान सवालों को हल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, इसके लिए बढ़िया रणनीति बनानी चाहिए। लिखने के लिए ज्यादा प्रेरित करना चाहिए। बच्चों को स्वतंत्र रूप से पढने के लिए जोर देना चाहिए।बच्चों को समूह में लिखने और पढने के लिए प्रेरित करें। अध्यापक को भी ज्यादा से ज्यादा वार्तालाप करना चाहिए।




  1. सामाजिक व्यवहारों का आदान प्रदान –


कक्षा में बच्चों के साथ जुड़ने में मेल मिलाप में समस्या आती है। सहपाठी भी उन्हें अपने जैसा न पाकर उनसे जुड़ नहीं पाते। श्रवणबाधित व्यक्ति अपने मनोभावों को भी सही प्रकार से दर्शा नहीं पाता। इस प्रकार के बच्चों को सामाजिक व्यवहार के लिए प्रेरित करना चाहिए। समूह में कार्य करने के लिए जोर देना चाहिए। साथ ही सहपाठियों को भी इन बच्चों को सहयोग देने तथा ज्यादा से ज्यादा वार्तालाप करने के लिए प्रेरित करना चाहिए स्वयं पर नियंत्रण रखने तथा स्वयं को व्यवस्थित रखने के तरीकों से परिचित कराना चाहिए।







  1. बौद्धिक योग्यता –


सामान्यतः यह माना जाता है कि इनकी बौद्धिक क्षमता सामान्य से कम होती है परन्तु ऐसा नहीं है। इनकी बौद्धिक क्षमता भी सामान्य बच्चों जैसे ही बौद्धिक परीक्षणों में प्राप्ताकों में लगभग समान वितरण का प्रर्दशन करते है। यह जरूर है कि श्रवणबाधित बच्चों की उपलब्धि मौखिक बौद्धिक परीक्षणों की अपेक्षा अमौखिक बौद्धिक परीक्षणों में बेहतर प्रदर्शन करते है क्योंकि इसमें उनकी उपलब्धि भाषा से प्रभावित नहीं होती है।






श्रवणबाधिता की पहचान



श्रवण बाधिता की पहचान का महत्व -


  1. श्रवणबाधिता की शीघ्र पहचान होने से सही व्यवस्था की शुरूआत करने में आसानी होती है जिससे विकलांगता किस स्तर की है उसकी जानकारी होती है साथ ही उस विकलांगता को दूर करने या कम करने के उपाय खोजने में आसानी होती है। 


  1. शीघ्र पहचान तथा शीघ्र हस्तक्षेप से भाषा के विकास के क्रान्तिक काल 0-3 वर्ष का सही उपयोग किया जा सकता है।


  1. श्रवणबाधिता की शीघ्र पहचान होने से भाषा विकास में होने वाली कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। भाषा विकास में आने वाली बाधाओं को ज्ञात कर उन बाधाओं को दूर करना, साथ ही विभिनन तरीकों को अपनाना जिससे भाषा विकास तेज हो सके तथा बोलने की, वर्तालाप करने की दक्षता विकसित हो सके।


  1. यदि श्रवणबाधिता की शीघ्र पहचान हो जाती है जो ये वर्तालाप विकास या भाषा विकास में सहयोगी होती है जिससे व्यक्ति का सामाजिक, भावात्मक, शैक्षिक तथा व्यक्तिगत विकास तेजी से होता है।


  1. हमारे देश में हर साल 2 हजार बच्चे श्रवणबाधित पैदा होते हैं। श्रवणबाधिता की शीघ्र पहचान होने से श्रवणबाधिता के प्रभाव को कम करने में सहायता मिलेगी साथ ही इस विकलांगता पर हर साल खर्च होने वाले वित्तीय बोझ में भी कमी आयेगी।


श्रवणबाधिता की पहचान सामान्यतः माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों के द्वारा ही हो जाती है। श्रवणबाधिता की पहचान निम्न प्रकार से कर सकते हैं —



  1. कान की बाह्य आकृति के आधार पर - 


बाह्य कान का जन्म से बना न होना। इसको 'एट्रीशिया” भी कहते हैं। बच्चे की कान की बनावट दोषपूर्ण होना। बच्चे के कान का बहने के आधार पर श्रवण बाधिता की पहचान किया जा सकता हैं।


  1. व्यक्ति के व्यवहार के आधार पर -


  • कान के पीछे हाथ लगाकर सुनने का प्रयास करना।

  • बहुत जोर से बोलना।

  • बात सुनते हुए आंखों पर समय से अधिक निर्भर होना।

  • बात करते समय वक्ता के चेहरे पर अधिक ध्यान देना।

  • बात करते समय समझने में दिक्कत महसूस होना।

  • इशारों का अधिक प्रयोग करना।

  • बोली अस्पष्ट होना।

  • बच्चे कम या बिल्कुल ही न बोल पाना।

  • नाम पुकारने जाने पर उस ओर न मुड़न।

  • वर्तालाप कजे में शर्म महसूस करना।

  •  पीछे से आवाज देने पर मुड़कर न देखना।

  • टेलीवीजन या रेडियो की आवाज तेज करके सुनना।

  • वर्तालाप के दौरान कही गई बात को दोहराने का अनुरोध करना।






श्रवण बाधित बच्चो की देख रेख एवं प्रशिक्षण


कानों की देख-रेख के उपाय तथा श्रवण बाधिता की रोकथाम-


  1. कानों को धल, पानी, मैल से बचाना चाहिये तथा साफ रखना चाहिए।


  1. कानों को नुकीली वस्तुओं जैसे- माचिस की तीली, बालों की पिन, पेंसिल आदि से खोदना नहीं चाहिये। कानों के क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


  1. कान पर मारना नहीं चाहिये। इससे कान सम्बंधित दिक्कत बढ़ सकती है


  1. बच्चों के ऊपर निगरानी रखनी चाहिये जिससे कि वो छोटी वस्तुएं जैसे - मिट्टी, बीज इत्यादि को कान में न डाल दें। इससे कान के पर्दे खराब होने की सम्भावना बढ़ जाती है।


  1. कान को हमेशा सूखा रखना चाहिये इसमें तेल इत्यादि को नहीं डालना चाहिये। इससे कानों में दर्द होने या सूजन आने की सम्भावना रहती है। 


  1. गंदे पानी में कभी तैराकी नहीं करनी चाहिये। इससे गंदा पानी कानों में चला जाता है। जिससे संक्रमण होने की संभावना रहती है। तैरते वक्त हमेशा कानों में रूई लगा लेनी चाहिये।


  1. सड़क पर बैठने वाले व्यक्तियों से कभी कान साफ नहीं करवाना चाहिये। वे हमेशा गंदे औजारों का प्रयोग करते हैं जिससे संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही कार्नो को भी क्षति पहुंचती है।


  1. हमेशा रूई से कानों की सफाई करनी चाहिये।



श्रवणबाधिता की रोकथाम -


  1. निकट रिस्तेदारी में शादी नहीं करनी चाहिये।


  1. टीकारकरण समय-समय पर करवाना चाहिये। यदि कोई महिला रूबैला जैसी बीमारियों से ग्रसित है तो पूरा चेकअप भी करवाना चाहिये। कुपोषण से ग्रहिसत महिलाओं व बच्चों में इसकी संभावना अधिक बढ़ जाती है।


  1. गर्भवती महिला को अपने स्वास्थ्य का खास ख्याल रखना चाहिये।


  1. गर्भवती महिलाओं को ऐसे व्यक्तियों के संपक्र से दूर रहना चाहिये जिन्हें संक्रमित बीमारी हो।


  1.  इस बात का खास ख्याल रखना चाहिये कि बच्चा पैदा होते वक्त डॉक्टर पूरी तरह प्रशिक्षित हो।


  1. बच्चे का टीकाकरण समय-समय पर हो।


  1. बिना धुले तकिये के कवर, तौलिया, या दूसरे व्यक्ति के द्वारा प्रयुक्त तकिया, जिसका कान पहले से संक्रमित हो, को प्रयोग नहीं करना चाहिये।


  1. बहुत ज्यादा शोर-गुल वाले माहौल में नहीं रहना चाहिये।


 


W.H.O  में तीन तरह की रोकथाम के उपाय बतायें हैं —


  1. प्राथमिक रोकथाम —


इस प्रकार की विकलांगता को जड़ से पूरी तरह से खत्म करने के लिए टीकाकरण समय पर करवाना चाहिये। इसके लिए काउंसलिंग बेहद जरूरी है।



  1. द्वितीयक रोकथाम —


यदि प्राथमिक स्तर पर रोकथाम नहीं हो पाती है तो इस विकलांगता को आगे बढ़ने से रोकने के लिए -

  • श्रवण सहायक यंत्रों का प्रयोग करना चाहिये।

  • कानों के बहने की बीमारी (ओटाइटिस मीडिया) का सही तरीके से इलाज करवाना चाहिये।


  1. तृतीयक रोकथाम —


यदि प्राथमिक और द्वितीयक स्तर पर रोकथाम नहीं हो पाती है तो व्यक्तियों की विकलांगता किस स्तर की है इसकी जांच करने के पश्चात -

  • पुनर्वास के माध्यम से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना।

  • व्यावसाहियक प्रशिक्षण के माध्यम से व्यक्ति की विकलांगता को दूर करने का प्रयास करना।






श्रवण संबंधी दोष से ग्रसित बालकों की शिक्षा एवं समायोजन

(Adjustment And Education Of Children With Hearing Impairments)



स्कूल में करीब 5% ऐसे छात्र सामान्यतः होते हैं जो श्रवण-संबंधी दोष से ग्रसित होते हैं। श्रवण-संबंधी दोष दो प्रकार के होते हैं - पूर्ण बहरापन (complete deafness) तथा आंशिक बहरापन (partial deafness)। पूर्ण बहरापन से ग्रसित बालक भाषा प्रवर्धक (speech amplifier) के प्रयोग के बाद भी कुछ नहीं सुनते तथा दूसरों की भाषा नहीं समझ पाते हैं। आंशिक बहरापन में छात्र प्रवर्धक का प्रयोग करके दूसरों की बोली को समझ लेते हैं या यदि इनसे उच्च स्वर में बोला जाए तो वे उसे सुनकर समझ लेते हैं। बालकों में श्रवण-संबंधी दोष जन्मजात (congenital) भी हो सकता है या जन्म के बाद आकस्मिक कारणों से भी उत्पन्न हो सकता है। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर यह बताया है कि श्रवण-संबंधी दोष के कई कारणों में आनुवांशिकता (heredity), मातृत्व रूबेला (maternal rubella), प्राक्परिपक्व जन्म (premature birth), मेनिन्जाइटिस (meningitis) आदि प्रधान हैं। दोनों तरह के बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के बारे में मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने कुछ अलग-अलग सुझाव दिए हैं जो निम्नांकित है —


1. पूर्णरूपेण बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन —


शिक्षा के दृष्टिकोण से पूर्ण बहरे बालक की समस्या अधिक गंभीर बताई जाती है क्योंकि ऐसे छात्र तो कुछ सुनते नहीं हैं जिनके परिणामस्वरूप उन्हें बोलकर कुछ सिखाना शिक्षकों के लिए एक टेढ़ी खीर साबित होता है। फिर भी, मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने कुछ ऐसे सुझावों का वर्णन किया है जिनसे ऐसे बालकों को शिक्षा देने में काफी सहायता मिल पाती है —


  1. पूर्ण बहरे बालकों को शिक्षा देने में क्रियात्मक कार्य (motor work) को अधिक महत्त्व देना चाहिए। चूँकि ऐसे बालक लाख उपाय के बावजूद कुछ सुन नहीं सकते, अतः उनमें क्रियात्मक कार्यों के माध्यम से कुछ निपुणता लाई जा सकती है। जैसे ऐसे बालकों को लकड़ी का सामान बनाना सिखाया जा सकता, मिट्टी के बर्त्तन बनाना सिखाया जा सकता है,  कपड़ा सीना सिखाया जा सकता है आदि-आदि।


  1. शिक्षकों को चाहिए कि ऐसे बालकों को शिक्षा देने में शब्दों का प्रयोग कम से कम करें तथा प्रदर्शन (demonstration) का उपयोग अधिक से अधिक करें। अधिकतर एकांशों (items) को जिन्हें उन्हें पढ़ाना है, प्रदर्शन विधि से ही सिखावें। ऐस बालकों की शिक्षा में अशाब्दिक संचार (nonverbal communications) की प्रधानता होनी चाहिए। यथासंभव चिह्न भाषा (sign language) का प्रयोग अधिक किया जाना चाहिए।


  1. पूर्णरूपेण बहरे बालकों के लिए अलग से आवासीय स्कूल की स्थापना की जानी चाहिए। ऐसे सबसे प्रथम स्कूल की स्थापना 18 वीं शताब्दी में यूरोप में की गई थी। आजकल अधिकतर देशो में इस ढंग के स्कूल की स्थापना कर दी गई है। ऐसे स्कूलों में इन बालकों के लिए विभिन्न तरह के विशेष कार्यक्रम छोटे-छोटे कक्षा बनाकर चलाए जाते हैं, जहाँ उन्हें भिन्न-भिन्न तरह के निर्देश (instructions) के माध्यम से शिक्षा दी जाती है। 



2. आंशिक रूप से बहरे बालकों की शिक्षा एवं समायोजन—


ऐसे बालक, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, विशेष यंत्रों की सहायता से कुछ सुन सकते हैं। अतः, इनकी शिक्षा-दीक्षा की समस्या शिक्षकों के लिए उतनी गंभीर नहीं होती जितनी कि पूर्णरूपेण बहरे बालक की शिक्षा-दीक्षा की समस्या होती है। ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए मूल रूप से निम्नांकित सुझाव दिए गए हैं —


  1. श्रवण - साधन का प्रयोग (Use Of Hearing Aids)

ऐसे बालकों को शिक्षा सामान्य बालकों के साथ एक ही कक्षा में दी जा सकती है बशर्ते उन्हें उपयुक्त आधुनिक श्रवण-साधन जैसे इयरफोन (ear phone) आदि का प्रयोग करने दिया जाता है। बर्क जिन्हें कक्षा में सामान्य बालकों के साथ इयरफोन लगाकर शिक्षा दी गई थी, की शैक्षिक उपलब्धि (educational achievement) का स्तर सामान्य छात्रों की उपलब्धि के स्तर के बराबर था।



  1. आंशिक रूप से बहरे बालकों को स्कूल में दाखिला कराने के पहले कुछ विशिष्ट सेवा जिसमें ध्वनि प्रवर्धन (Amplification) एवं माता-पिता का प्रशिक्षण आदि सम्मिलित है, प्रदान करना जरूरी है।



  1. कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए सम्पूर्ण संचार उपागम (total communication approach) के प्रावधान पर बल डाला है। इस उपागम में बालकों में भाषा विकास एवं दूसरे की बोली को सुनकर अपने विचार की अभिव्यक्ति (expression) पर बल डालने के खयाल से शिक्षक कक्षा में व्याख्यान के दौरान बहुत सारे हस्तसंचार प्रविधियाँ (manual communication techniques) जिनमें चिह्न भाषा (sign language), सांकेतिक भाषण (cued speech), आंगुलिक हिज्जे (finger spelling) आदि प्रमुख है, का प्रयोग करते हैं। 



  1. डेण्टन (Denton,1972) तथा कारनेट (Cornett,1974) ने अपने-अपने अध्ययनों में सम्पूर्ण संचार उपागम को ऐसे बालकों की शिक्षा में काफी उपयोगी बताया है।



  1. ऐसे बालकों के लिए शिक्षाकक्ष (classroom) में कुछ विशिष्ट प्रावधान होना चाहिए। जैसे कक्षा ऐसी हो जिसमें बाहर से आवाज अधिक नहीं आती हो, छात्रों को बैठने का प्रबन्ध ऐसा हो कि उससे शिक्षकों के व्याख्यान को आसानी से सुना जा सकता है एवं हस्त-संचार (manual communication) का एक अच्छा व्याख्याता (interpreter) मौजूद हो।



  1. सामाजिक पुनर्बलन (Social reinforcement) आंशिक रूप से बहरे बालकों की शिक्षा प्रायः चूँकि सामान्य बालकों के साथ दी जाती है, अतः इस बात की संभावना बनी रहती है कि ऐसे बालकों का मजाक उड़ाया जाए या उनके द्वारा सामाजिक तिरस्कार (social rejection) किया जाए। अतः, शिक्षकों को चाहिए कि वे स्वयं ऐसे बालकों को शिक्षा ग्रहण करने में सामाजिक प्रोत्साहन दें तथा कक्षा के अन्य छात्रों को ऐसा ही सामाजिक प्रोत्साहन देने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे ऐसे बालकों में आत्मविश्वास (self-confidence) तथा आत्म सम्मान (Self Respect)बढ़ेगा और वह अधिक से अधिक सीखने के लिए एवं शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित होंगे। 



श्रवण बाधित बच्चों की शिक्षा हेतु अन्य विकल्प —


श्रवणबाधित बच्चों की शिक्षा हेतु अनेक विकल्प वर्तमान में मौजूद हैं। सभी प्रकार के विकल्पों की अपनी विशेषताएं व कमजोरियां भी हैं। मौजूदा विकल्पों में सर्वोत्तम चयन विकलांगता की प्रकृति एवं गंभीरता पर निर्भर करती है। अतिअल्प एवं अल्पतम्‌ रूप से बाधित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ सामान्य विद्यालयों में सरलता से शिक्षा प्रदान किया जा सकता है तथा गम्भीर बच्चों को प्रारम्भिक प्रशिक्षण विशेष विद्यालयों में आसानी से दिया जा सकता है। मंगल (2009) के अनुसार सामान्यताः मौजूद शैक्षिक स्थापन के निम्नलिखित विकल्प हैं —


 

  1. विद्यालयों की नियमित कक्षाएं —


इस व्यवस्था के अन्तर्गत श्रवणबाधित विद्यार्थी का स्थापन नियमित विद्यालय के नियमित कक्षाओं में सामान्य क्षमता वाले विद्यार्थियों के साथ होता है। श्रवणबाधित बच्चों की समस्याओं का निदान तथा विशेष अवश्यकताओं की पूर्ति, नियमित सामान्य शिक्षकों के द्वारा एवं कभी-कभी श्रवणबाधिता क्षेत्र के विशेषज्ञ एवं व्यावसायिकों के संपर्क द्वारा किया जाता है। 



  1. नियमित कक्षाओं के साथ संसाधन कक्ष की सुविधाएं —


इस व्यवस्था के अन्तर्गत यद्यपि बच्चों का स्थापन सामान्य कक्षा के सामान्य विद्यार्थियों के साथ होता है परन्तु बच्चे श्रवणबाधिता के कारण उत्पन्न विशेष आवश्यकताओं एवं समस्याओं की पूर्ति हेतु अपने विद्यालयी समय का कुछ हिस्सा वो संसाधित कक्ष में व्यतीत करता है।


  1. नियमित विद्यालयों के अन्दर विशेष कक्षाएं — 


इसके अन्तर्गत श्रवणबाधित विद्यार्थियों को उनके सामान्य सहपाठियों से अलग, नियमित विद्यालय के परिसर के भीतर उनके उम्र, योग्यता तथा रूचि के हिसाब से सामूहित करके विशेष कक्षाओं के आयोजन के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।


  1. विशेषत: श्रवणबाधित विद्यार्थियों हेतु दिवसीय विद्यालय —


ये वो विद्यालय हैं जो दिन के समय श्रवणबाधित विद्यार्थियों के देख-रेख एवं शिक्षा का प्रबन्ध करतीं हैं। इस व्यवस्था का लाभ यह है कि श्रवणबाधित विद्यार्थी अपने परिवार के साथ रहकर दिन के समय विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करता हैं।


  1. आवासीय विद्यालय —


यहां श्रवणबाधित बच्चे (खासकर बाधिरता के साथ अन्य विकलांगता वाले बच्चे) विद्यालय परिसर में ही अन्य श्रवणबाधित बच्चों के साथ शैक्षिक प्रगति एवं सामंजस्य हेतु आवश्यक शिक्षा एवं प्रशिक्षण इन बच्चों को प्रदान की जाती है। वे इन विद्यालयों में बाधिर या श्रवणबाधित समुदाय के रूप में प्रगति करते हैं। इन विद्यालयों में श्रवणबाधित विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रावधान एवं संसाधन उपलब्ध होते हैं।






श्रवण बाधित बच्चों के शिक्षण के दौरान अध्यापक को ध्यान में रखने योग्य कुछ तथ्य —


  • इन बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें।


  • इन बच्चों की भाषा व सम्प्रेषण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है। इन दोनों कौशलों का विकास इनके शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में एक है। अतः अध्यापक को इनके शिक्षा के प्रारम्भिक वर्षों में भाषा के विकास करने एवं सम्प्रेषण कौशल को बढ़ाने हेतु उचित अवसर का सृजन करना चाहिए


  • भाषा एवं सम्प्रेषण के साथ ही वाचन एवं लेखन के विकास का भी प्रयास किया जाना चाहिए। जिससे कि वे शिक्षा का समुचित लाभ उठा सकें।


  • वाक्‌ प्रशिक्षण एवं अवशिष्ट श्रवण क्षमता के उपयोग के सम्यक्‌ प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिये।


  • श्रवणबाधित बच्चों में प्राकृतिक भाषा का विकास किया जाना चाहिए।


  • कक्षा में इन बच्चों को आगे की सीट पर बैठने की व्यवस्था की जानी चाहिए जहां से शिक्षक का चेहरा ठीक से दिखाई दे।


  • शत. शिक्षण-प्रशिक्षण के दौरान शिक्षक द्वारा बच्चे की श्रवण यन्त्र की जांच कर लेनी चाहिए।


  • वातावरण को शान्त एवं शोरगुल से मुक्त रखने का प्रयास करना चाहिए।


  • बच्चे को दरवाजा या खिड़की के पास नहीं बैठाना चाहिए।


  • श्रवणबाधित बच्चों को पढ़ाते समय अतिरिक्त हाव-भाव का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।


  • इन बच्चों को सामान्य बच्चों जैसे ही स्वीकार करें तथा अक्षमता वाला न मानकर भिन्‍न रूपेण योग्य मानकर शिक्षित-प्रशिक्षित करना चाहिए। 




सारांश —


  • श्रवणबाधिता बच्चों के लिए सही समय पर प्रशिक्षण प्रारम्भ हो सके इसके लिए उनका शीघ्र पहचान होना आवश्यक हैं। जिससे विकलांगता के स्तर की जानकारी हो सके, शीघ्र पहचान तथा शीघ्र हस्तक्षेप से भाषा के विकास के क्रान्तिक काल का सही उपयोग किया जा सकता है तथा भाषा विकास में होने वाली कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। जिससे व्यक्ति का सामाजिक, भावात्मक, शैक्षिक तथा व्यक्तिगत विकास तेजी से होता है। श्रवणबाधिता की पहचान सामान्यतः माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों के द्वारा ही हो जाती है। श्रवणबाधिता की पहचान कान की बाह्य आकृति के आधार पर तथा व्यक्ति के व्यवहार के आधार पर की जा सकती हैं।


  • श्रवण बाधित बच्चो का स्थापन विकलांगता की प्रकृति एवं गंभीरता पर निर्भर करती है। अतिअल्प एवं अल्पतम्‌ रूप से बाधित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ सामान्य विद्यालयों में सरलता से शिक्षा प्रदान किया जा सकता है तथा गम्भीर बच्चों को प्रारम्भिक प्रशिक्षण विशेष विद्यालयों में आसानी से दिया जा सकता है। मौजूद शैक्षिक स्थापन के सामान्य विद्यालयों की नियमित कक्षाएं (पूणतः समावेषन) नियमित कक्षाओं के साथ संसाधन कक्ष की सुविधाएं (आंषिक समावेषन) नियमित विद्यालयों के अन्दर विशेष कक्षाएं (विद्यालय के अन्दर अलगाव) विशेषतः श्रवणबाधित विद्यार्थियों हेतु दिवसीय विद्यालय आवासीय विद्यालय विकल्प हैं।


  • सही जानकारी तथा थोड़ी सावधानी से अधिकतर बच्चों में श्रवण अक्षमता की रोकथाम की जा सकती है श्रवण बाधिता के लिए प्राथमिक,  द्वितीयक, तृतीयक रोकथाम को अपनाया जा सकता हैं। पैरेन्ट इन्फैक्ट प्रोग्राम, होम ट्रेनिंग प्रोग्राम, करेस्पॉब्डेन्स प्रोग्राम, ग्रुप पैरेन्ट मीटिंग ,परामर्श एव निर्देशन प्राथमिक रोक थाम के उपाय हैं।


 

  • श्रवणबाधित बच्चे को अपनी बची हुई श्रवण क्षमता का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने का प्रशिक्षण देना उनके शिक्षण. प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।



निष्कर्ष —


श्रवण संबंधी दोष से ग्रसित बालक भी शिक्षा मनोवैज्ञानिकों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने में सफल रहे। इन लोगों ने आंशिक रूप से बहरे तथा पूर्णरूपेण बहरे छात्रों की शिक्षा के लिए अलग-अलग सुझाव दिए जो बाद में उनके शिक्षा एवं समायोजन  में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुए।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

अधिगम की अवधारणा (Concept of Learning)

अधिगम के सिद्धांत (Theories Of learning) ( Behaviorist - Thorndike, Pavlov, Skinner)

बुद्धि की अवधारणा — अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत (Concept Of Intelligence)

बन्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory of Bandura)

शिक्षा के माध्यम (Agencies Of Education)

गैग्ने का सीखने का पदानुक्रम (Gagne's Hierarchy Of Learning) (Basic Condition Of Learning)

मैसलों का मानवतावादी अधिगम सिद्धांत (Humanistic Learning Theory Of Maslow)

माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर कमीशन: (1952-1953) SECONDARY EDUCATION COMMISSION