सृजनात्मकता की अवधारणा (Concept Of Creativity)


 

प्रस्तावना ( Introduction ) -


यह सर्वविदित है कि राष्ट्र एवं समाज के विकास में वैज्ञानिकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, इसी प्रकार समाज एवं राष्ट्र निर्माण में सृजनशील व्यक्ति भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। व्यक्ति के विभिन्न गुणों में से सृजनात्मकता उसका मौलिक गुण होता है। प्रत्येक व्यक्ति में यह गुण कुछ न कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है। वैसे तो विश्व के सभी प्राणियों में सृजनात्मकता होती ही है फिर भी मानव के जीवन को सुखी बनाने के लिए नये आविष्कार करने तथा समस्याओं का समाधान खोजने के कार्य में रचनात्मकता (सृजनात्मकता) बालक के अन्दर वह योग्यता है जो उसे नवीन वस्तुओं का निर्माण करने, समस्याओं का हल ढूँढ़ने, नवीन परिस्थितियों में समायोजन करने, जीवन में आपसी समझ, सोच और व्यवहार करने के लायक बनाती है। किसी भी शिक्षण संस्थान (विद्यालय ) में ऐसे बालक भी होते हैं जो प्रकृति से पूर्णतया सृजनात्मक होते हैं। ऐसे बालकों को उनकी योग्यता के अनुसार शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करना प्रत्येक देश, समाज व सम्पूर्ण राष्ट्र का कर्तव्य है क्योंकि ऐसे बालक इस राष्ट्र की धरोहर होते हैं। समाज के तथा राष्ट्र के विकास में इनके अभूतपूर्व योगदान के कारण ही देश (राष्ट्र) को इन पर गर्व होता है।


सृजनात्मकता का अर्थ व परिभाषाएँ 
(Meaning and Definitions of Creativity) -

भिंन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों के द्वारा सृजनशीलता (Creativity ) को भिन्न - भिन्न ढंग से परिभाषित किया गया है। मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत सृजनशीलता की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत हैं-

डीहान तथा हेबिंगहर्स्ट के अनुसार- 

"सृजनशीलता वह विशेषता है जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पादन की ओर प्रवृत्त करती है। यह नवीन वस्तु सम्पूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है अथवा उस व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती हैं जिसने उसे प्रस्तुत किया है।”

"Creativity is the quality which leads to the production of something new and desirable . The new product may be new to society or new to the individual who creates it.”





 ड्रेवहल के शब्दों में- 

“सृजनशीलता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी नवीन रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।" 

"Creativity is the human ability by which he presents any noble work or ideas."



मनोवैज्ञानिक क्रो एवं क्रो के अनुसार- 

“सृजनशीलता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।" 

"Creativity is a mental process to express the original outcomes.”



कोल और ब्रूस के शब्दों में -

“सृजनशीलता मौलिक उत्पाद के रूप में मानव मस्तिष्क को समझने, व्यक्त करने तथा सराहना करने की योग्यता व क्रिया है।”

"Creativity is an ability and activity of man's mind to grasp, express and appreciate in the form of an original product.”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से स्पष्ट है कि सृजनशीलता का सम्बन्ध प्रमुख रूप से मौलिकता या नवीनता से है। किसी समस्या पर नये ढंग से सोचने तथा समाधान खोजने के परिलक्षित होती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सृजनशीलता वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का विद्वतापूर्ण समाधान खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने, विचार करने तथा कार्य करने में समर्थ बनाती है। अतः प्रचलित ढंग से हटकर किसी नये ढंग से चिन्तन - मनन करने तथा कार्य करने की योग्यता ही सृजनशीलता कही जा सकती है।



सृजनशीलता के तत्व 
(Elements of Creativity) -

सृजनशीलता की परिभाषाओं के अवलोकन तथा विश्लेषण से ज्ञात होता है कि सृजनशीलता को संवेदनशीलता, जिज्ञासा, कल्पना, मौलिकता, खोजपरकता, लचीलापन, प्रवाह, विस्तृतता, नवीनता आदि के संदर्भ में समझा जा सकता है। सृजनशीलता के कुछ समानार्थी यह विभिन्न संप्रत्यय वैज्ञानिक अनुसंधानों, कलाकृतियों, संगीत, रचना, लेखन व काव्य कला, चित्रकला, भवन निर्माण आदि सृजनशील कार्यों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। वस्तुतः सृजनशीलता के चार प्रमुख तत्व होते हैं जिन्हें निम्नवत् ढंग से व्यक्त किया जा सकता है -


1. प्रवाह (Fluency) - 

प्रवाह से तात्पर्य किसी दी गयी समस्या पर अधिकाधिक विचारों या प्रत्युत्तरों या अनुक्रियाओं को प्रस्तुत करने से है। प्रवाह को पुनः चार भागों- वैचारिक प्रवाह (Ideational Fluency), अभिव्यक्ति प्रवाह (Expressional Fluency), साहचर्य प्रवाह (Associative Fluency) तथा शब्द प्रवाह  (Word fluency) में बाँटा जा सकता है। वैचारिक प्रवाह में विचारों के स्वतंत्र प्रस्फुटन को प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे किसी कहानी के अनेकानेक शीर्षक बताना, किसी वस्तु के अनेकानेक उपयोग बताना, किसी वस्तु को सुधारने के अनेकानेक तरीके बताना आदि आदि। अभिव्यक्ति प्रवाह में मानवीय अभिव्यक्तियों के स्वतंत्र प्रस्फुटन को प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे दिये गये चार शब्दों से वाक्य बनाना , दिये गये अपूर्ण वाक्य को पूरा करना आदि। साहचर्य प्रवाह से तात्पर्य दिये गये शब्दों या वस्तुओं में परस्पर साहचर्य स्थापित करने से है। जैसे किसी दिये गये शब्द के अधिकाधिक पर्यायवाची या विलोम शब्द लिखना आदि। शब्द प्रवाह का सम्बन्ध शब्दों से होता है। जैसे दिये गये प्रत्ययों तथा उपसर्गों (Prefix and Suffix) से शब्दों को बनाना आदि। किसी व्यक्ति के द्वारा किसी सृजनशील परीक्षण के किसी पद (Item) पर प्रवाह को प्रायः उस पद पर दिये गये प्रत्युत्तरों की संख्या से व्यक्त किया जाता है। परीक्षण पर व्यक्ति के कुल प्रवाह प्राप्तांक को ज्ञात करने के लिए सभी पदों के प्रवाह अंकों का योग कर लिया जाता है।


2. विविधता (Flexibility) -

विविधता से अभिप्राय किसी समस्या पर दिये प्रत्युत्तरों या विकल्पों में विविधता के होने से है। इससे ज्ञात होता है कि व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किये गये विकल्प या प्रत्युत्तर एक दूसरे से कितने भिन्न - भिन्न प्रकार के हैं। विविधता की तीन विमाएँ- आकृति स्वतः स्फूर्त विविधता (Figural Spontaneous Flexibility), आकृति अनुकूलन विविधता (Figural Adaptive Flexibility) तथा स्वतः स्फूर्त विविधता (Semantic Spontaneous Flexibility) हो सकती है। आकृति स्वतः स्फूर्त विविधता से तात्पर्य किसी वस्तु या आकृति में सुधार या परिमार्जन करने के उपायों की विविधता से होता है। आकृति अनुकूलन विविधता से अभिप्राय किसी वस्तु या आकृति के रूप में परिवर्तित करने की विधियों की विविधता से होता है। शाब्दिक स्वतः स्फूर्त विविधता के अन्तर्गत वस्तुओं या शब्दों के प्रयोग में विविधता को देखा जाता है। सृजनशीलता के परीक्षणों के किसी पद (Item) पर विविधता को प्रायः उस पद पर व्यक्ति के द्वारा दिये गये प्रत्युत्तरों के प्रकार (Types of Responses) की संख्या से व्यक्त किया जाता है। परीक्षण पर किसी व्यक्ति के कुल विविधता प्राप्तांक को ज्ञात करने के लिए उसके द्वारा विभिन्न पदों पर प्राप्त विविधता अंकों को जोड़ लिया जाता है। 


3. मौलिकता (Originality) - 

मौलिकता से अभिप्राय व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत किये गये विकल्पों या उत्तरों का असामान्य (Uncommon ) अथवा अन्य व्यक्तियों के उत्तरों से भिन्न होने से है। इसमें देखा जाता है कि व्यक्ति द्वारा दिये गये विकल्प या प्रत्युत्तर सामान्य या प्रचलित (Popular) विकल्पों या प्रत्युत्तरों से कितने भिन्न हैं। दूसरे शब्दों में मौलिकता मुख्य रूप से नवीनता (Newness) से सम्बन्धित होती है। व्यक्ति के अन्यों से भिन्न विकल्पों को मौलिक विकल्प कहा जा सकता है। वस्तुओं के नये उपयोग बताना, कहानी, कविता या लेख के शीर्षक लिखना, परिवर्तनों के दूरगामी परिणाम बताना, नवीन प्रतीक खोजना आदि मौलिकता के कुछ उदाहरण हैं।


5. विस्तारण (Elaboration) -

विस्तारण से तात्पर्य दिये गये विचारों या भावों की विस्तृत व्याख्या या व्यापक पूर्ति या गहन प्रस्तुतिकरण से होता है। विस्तारण को दो भागों में- शाब्दिक विस्तारण (Semantic Elaboration) तथा आकृति विस्तारण (Figural Elaboration) में बाँटा जा सकता है। शाब्दिक विस्तारण में किसी दी गयी संक्षिप्त घटना, क्रिया, कार्य, परिस्थिति आदि को विस्तृत करके प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है जबकि आकृति विस्तारण में किसी दी गयी रेखा या अपूर्ण चित्र में कुछ जोड़कर उससे एक पूर्ण एवं सार्थक चित्र बनाना होता है।


सृजनात्मक बालकों के गुण या विशेषताएँ 
(Qualities Of Creative Children) -

जैसा कि पहले भी इंगित किया जा चुका है कि सृजनात्मक बालक किसी भी समाज व राष्ट्र की अमूल्य विरासत होते हैं। अतः शिक्षा की दृष्टि से ऐसे बालकों की पहचान करना अत्यन्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। सृजनात्मक बालकों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्न हैं - 

1. सृजनात्मक ( सृजनशील ) बालक स्वभाव से अत्यन्त साहसी होते हैं। ऐसे बालक साहसिक कार्यों को करने हेतु सदैव तत्पर रहते हैं तथा उनके अन्दर स्व - निर्णय लेने की अटूट क्षमता होती है। 

2. ऐसे बालकों में रहस्यपूर्ण, अज्ञात तथा अन्जान विषयों या समस्याओं के प्रति आकर्षण और निर्भयता होती है। ऐसे बालकों को हम जिज्ञासु कहते हैं क्योंकि ऐसे बालक स्वभाव से ही खोजी प्रवृत्ति के होते हैं क्योंकि उनकी जिज्ञासा कभी शांत या समाप्त नहीं होती है।

3. आत्म - निर्भरता तथा आत्म - विश्वास भी ऐसे बालकों का एक मुख्य गुण होता है। इन्हें अपने चिंतन एवं कार्य पर आत्म-विश्वास होता है। इसीलिए यह बालक प्रत्येक कार्य को पूरे आत्म विश्वास के साथ करते हैं। 

4. ऐसे बालकों मे सौन्दर्यानुभूति, सौन्दर्यग्राह्यता एवं सौन्दर्यपरख करने की अभूतपूर्व क्षमता निहित होती है। वे प्रत्येक सुन्दर वस्तु को देखकर, आकर्षित होकर उसकी सराहना अवश्य करते हैं।

5. ऐसे बालकों के विचार तथा अभिव्यक्ति में प्रवाहात्मकता होती है। ये स्पष्ट विचारधारा वाले बालक होते हैं तथा सदैव अपने ही विचारों में लीन रहते हैं। 

 6. ऐसे बालक अपने प्रत्येक कार्य के प्रति गम्भीर होते हैं तथा अपने किसी भी कार्य को अपना समझकर उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से करते हैं।

7. उनमें विपरीत परिस्थितियों में सामंजस्य करने तथा साहस भरे कार्यों के लिए चुनौती स्वीकार करने की अद्भुत क्षमता होती है।

8. ये संवेदनशील प्रवृत्ति के बालक होते हैं क्योंकि इनके स्वभाव में संवेगात्मकता होती है । 

9. ये मन में उत्पन्न किसी भी विचार का दमन नहीं करते हैं तथा अन्य लोगों के विचारों को भी ग्रहण करते हैं । 

10. इनके द्वारा पूछे ये प्रश्न बड़े तर्कपूर्ण तथा विवेकयुक्त होते हैं। 

11. इन बालकों की आदतें साधारण बालकों से हटकर विचित्र प्रकार की होती हैं । 


उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त सृजनात्मक बालकों में अन्य बहुत सारी विशेषताएँ होती हैं कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -

1. अव्यवस्था को स्वीकारना 
    (Accepts Disorder) 

2. जोखिम उठाना 
     (Adventurous) 

3. दृढ भावात्मकता
     (Strong Affection) 

4.अन्यों के प्रति जागरूकता
   (Awareness of Others) 

5. अव्यवस्था की ओर आकर्षण 
    (Attracted to Disorder) 

6. कठिन कार्य को करना 
     (Attempts Difficult Job)

7. रचनात्मक आलोचना 
     (Constructive Criticism)

8. तीव्र व अन्तर्विवेकशील परम्परायें 
     (Deep and Conscientious Conventions ) 

9. परार्थोन्मुख 
    (Altruistic) 

10. सदैव परेशान रहना 
      (Always Beffled by Something) 

11. रहस्यात्मक खोजों के प्रति आकर्षित होना 
       (Attracted to Mysterious Discoveries) 

12. झेंपू और लज्जालू 
      (Bashful Outwardly) 

13. साहसिक 
     (Courageous) 

14. सौजन्य की परम्पराओं को स्पष्ट करना 
      (Defines Conventions of Courtesy) 

15. स्वास्थ्य की परम्पराओं को स्पष्ट करना 
      (Defines Conventions of Health) 

16 . श्रेष्ठ बनने की इच्छा
       (Desire of Excel) 

17. दृढ़ निश्चय 
       (Determination) 

18. विभेदीकृत मूल्य अधिक्रम 
       (Differentiated Value Hierarchy)

19. असन्तुष्ट
    (Discontented) 

20. व्यवस्था को बिगाड़ने वाले 
      (Disturbs Organization)

21. प्रबल या हावी
       (Dominant) 

22. संवेगात्मक
      (Emotional) 

23. संवेगात्मक रूप से संवेदनशील 
       (Emotionally Sensitive) 

24. उत्साही
     (Energetic)



बुद्धि और सृजनात्मकता के बीच अंतर
(Difference Between Creativity  & Intelligence)

  • रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता के बीच मुख्य अंतर यह है कि रचनात्मकता नए विचारों और अवधारणाओं को बनाने और उन्हें लागू करने या उत्पन्न करने की क्षमता है जबकि बुद्धिमत्ता ज्ञान प्राप्त करने और उसका उपयोग करने की क्षमता है। रचनात्मकता किसी की बुद्धि का एक हिस्सा है। इसलिए, किसी की बुद्धि के ये दोनों पहलू निकट हैं।
  • रचनात्मकता का तात्पर्य सक्रिय कल्पनाओं और प्रतिभा से है। बुद्धिमत्ता उनकी क्षमताओं को संदर्भित करती है। रचनात्मकता आमतौर पर नवाचारों, विशेषज्ञता, विचारों और अवधारणाओं आदि के साथ प्रयोग की जाती है। खुफिया सोच, तर्क और ज्ञान आदि के एक पहलू के साथ प्रयोग किया जाता है। हालांकि, रचनात्मकता का अर्थ कुछ बनाना या कुछ समझना है। बुद्धिमत्ता का अर्थ है किसी चीज के बारे में ज्ञान प्राप्त करना और उसका उपयोग करना।
  • रचनात्मकता किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए अपनी बुद्धि को लागू करना है। किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए ज्ञान और जानकारी को समझना बुद्धिमत्ता है। यह संभव है कि रचनात्मकता शब्द की उत्पत्ति खो गई हो, या यह भी लगता है कि यह शब्द नई भाषाई उन्नत अंग्रेजी भाषा से है। शब्द इंटेलिजेंस लैटिन शब्द "इंटेलिजेयर या इंटेलिजेंटिया" से लिया गया है।
  • रचनात्मकता को मापने के लिए कोई परीक्षण या विधि नहीं है। हालाँकि, बुद्धि को IQ परीक्षण द्वारा मापा जाता है। आईक्यू टेस्ट हमें मात्रात्मक रूप या डिजिटल रूप में परिणाम देता है। यह भी कहा जाता है कि रचनात्मकता सीधे भगवान से है। बुद्धि ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार है। रचनात्मकता के बिना बुद्धिमत्ता कभी प्रगति नहीं करती, लेकिन एक व्यक्ति रचनात्मकता के साथ इस प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया में विद्यमान रह सकता है।
  • रचनात्मकता ही एक है; इसके कोई भिन्न प्रकार नहीं है। इंटेलिजेंस को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है, जैसे, बिजनेस इंटेलिजेंस, म्यूजिक इंटेलिजेंस, सेल्स इंटेलिजेंस, डिफेंस इंटेलिजेंस, इंटरपर्सनल इंटेलिजेंस आदि।
  • रचनात्मकता चीजों को एक नए तरीके से देखने, नए विचारों और अवधारणाओं को विकसित करने और नवीन रचनाएँ बनाने की क्षमता है, जबकि बुद्धिमत्ता ज्ञान प्राप्त करने और उसके अनुसार इसका उपयोग करने की क्षमता है। इसलिए रचनात्मकता के लिए अलग सोच की जरूरत होती है।
  • रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताएँ हैं। रचनात्मकता या रचनात्मक सोच किसी की बुद्धि का हिस्सा है। फिर भी, यदि किसी को रचनात्मकता और बुद्धि के बीच अंतर की पहचान करने के लिए अलगाव की एक अच्छी रेखा खींचनी है, तो मुख्य अंतर जो रेखांकित किया जा सकता है, वह यह है कि रचनात्मकता किसी चीज़ को नए तरीके से देखने की क्षमता है और इस तरह उसमें से कुछ नया बनाने की क्षमता है। बुद्धि ज्ञान प्राप्त करने और उसके अनुसार उसका उपयोग करने की क्षमता है।


   सृजनात्मकता को उन्नत बनाने में शिक्षक की भूमिका

(Role Of Teacher in Nurturing Creativity)


 कुछ मनोवैज्ञानिकों, जैसे गालाघर (Gallagher,1969), जैक्सन एवं मेसिक (Jackson & Messick,1967) ने शिक्षकों पर अध्ययन कर यह दिखा दिया है कि वे किन विधियों से छात्रों में सर्जनात्मकता (creativity) उत्पन्न कर सकते हैं। कुछ ऐसी ही विधियाँ जिनपर शिक्षकों ने अधिक बल डाला है और जिसके कारण शिक्षक की भूमिका (role) अधिक बढ़ जाती है, कुछ प्रमुख विधियां निम्नलिखित हैं -

1. एक ठोस पाठ्यक्रम (curriculum) बनाकर उसे एक निश्चित समय सीमा के भीतर पूरा करने का शिक्षक को भरसक प्रयत्न करना चाहिए। प्रायः देखा गया है कि किसी ढंग से शिक्षक पाठ्यक्रम तो तैयार कर लेते हैं , परन्तु उसे समय - सीमा के भीतर समाप्त करने पर अधिक बल नहीं डालते। इससे छात्रों में लापरवाही बढ़ती है और सर्जनात्मकता का विकास दुर्बल हो जाता है।

2. उन मूल क्षेत्रों का शिक्षण पहले किया जाना चाहिए जिनमें शिक्षकों को कठिनाई अधिक होती है ; क्योंकि इस क्षेत्र के विषय में मौलिकता अधिक होती है श। शिक्षक को इस तथ्य से पूर्णरूपेण अवगत होना चाहिए कि उनकी अज्ञानता या ज्ञान की कमी छात्रों की मौलिकता की वृद्धि में सबसे बड़ा निरोधक (inhibitor) होता है। 

3. शिक्षक द्वारा छात्रों को एक ही विषय पर कई तरह की पाठ्यपुस्तक (textbooks) को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। शिक्षकों को कक्षा में सिर्फ तथ्य (facts) का अध्यापन करना चाहिए न कि मात्र दर्शनात्मक विचारों (Philosophical Ideas) का । 

4. शिक्षक को चाहिए कि वे योग्य अधिकारी ( Competent Authority ) की देख - रेख में छात्रों के वैयक्तिक कार्यभार (individual assignment) पर अधिक बल डालें। इससे छात्रों में मौलिकता (originality) अधिक बढ़ती है। 

5. अध्यापक को बालकों में सभी कार्यों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के पूर्व प्रयास करने चाहिए अर्थात अध्यापक को यह बताना चाहिए कि सभी कार्य समान है कोई भी कार्य अपने आप में छोटा या बड़ा, कम या ज्यादा नहीं होता है।

6. अध्यापकों को छात्रों के समक्ष समस्यात्मक प्रश्न तथा परिस्थितियों को प्रस्तुत करके उनकी प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित करना चाहिए छात्रों के द्वारा दिए जाने वाले मौलिक सुविधाओं का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

7. अध्यापकों के द्वारा कक्षा तथा विद्यालय में ऐसा वातावरण उपस्थित किया जाना चाहिए जो छात्रों की क्रियाशीलता के साथ-साथ इनके उत्पादक चिंतन विविधता मौलिक तथा नम्यता को प्रोत्साहित करने वाला हो।

8. अध्यापकों को अपने छात्र में सृजनशील कार्यों से संबंधित नवीनतम सूचनाओं को संतुलित करने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए छात्रों को ऐसी सूचनाएं को संकलित करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी उपलब्ध करानी चाहिए

9. अध्यापकों के द्वारा बालकों को उनके नवीन विचारों नवीन क्रियाओं एवं नवीन पदार्थों के लिए उन्हें प्रशंसित किया जाना चाहिए जिससे कि बालक अधिक अच्छा कार्य करने के लिए प्रोत्साहित हो सके।

10. अध्यापकों को सृजनात्मक छात्रों को महत्वपूर्ण शैक्षिक भ्रमण यात्राओं पर ले जाना चाहिए यह महत्वपूर्ण शैक्षिक भ्रमण वैज्ञानिक औद्योगिक एवं अनुसंधान से संबंधित होने चाहिए।


उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि शिक्षक का महत्त्व सर्जनात्मकता (creativity) में काफी है। इनके प्रयास से बालकों में सर्जनात्मकता पर्याप्त मात्रा में बढ़ सकती है।



निष्कर्ष -

आधुनिक युग में सृजनशीलता को एक महत्वपूर्ण योग्यता स्वीकार किया जाता है। संसार के प्रत्येक प्राणी में कुछ न कुछ सृजनशीलता होती है। किसी में कम तथा किसी में अधिक, किसी में एक क्षेत्र मे, किसी में अन्य क्षेत्रों में सृजनशीलता होती है। सामान्य से अलग हटकर सोचना, कहना अथवा करना ही सृजनशीलता है। सृजनशीलता के चार मुख्य घटक-प्रवाह, विविधता, मौलिकता तथा विस्तारण है। 

यद्यपि सृजनशीलता के मापन के लिए विश्वसनीय तथा वैध परीक्षणों का निर्धारण करने में पूर्ण सफलता अभी तक नहीं मिल सकी है फिर भी अनेक मनोवैज्ञानिकों ने सृजनशीलता को मापने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गिलफोर्ड व मेरीफील्ड तथा टोरेन्स के सृजनशीलता परीक्षण काफी प्रसिद्ध हुए हैं तथा उनका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। भारतवर्ष में प्रो० बी० के० पासी तथा प्रो० वाकर मेंहदी के परीक्षणों को पर्याप्त सफलता मिली है।









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