मंद बुद्धि बालक (Mentally Retarded Children)

मंद बुद्धि बालक

(Mentally Retarded Children)


मंद बुद्धि बालकों से तात्पर्य उन बालकों से होता है जिनकी मानसिक योग्यता सामान्य बालकों से कम होती है। मंद बुद्धि अथवा मानसिक मंदता (Mental Retardation) को प्रायः बुद्धि परीक्षणों पर बालकों के द्वारा किये गये कार्यों (Performance) के आधार पर परिभाषित किया जाता है। वे बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 80 या 85 से कम होती है, प्रायः मंद बुद्धि बालक कहलाते हैं। मंदबुद्धि अथवा मानसिक मंदता का संबंध व्यक्ति के मस्तिष्क के अपूर्ण विकास से है। ऐसे बालकों के समायोजन का स्तर सामान्य बालकों की अपेक्षा निम्न स्तर का होता है। मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि साधारण बालकों की तुलना में कम होती है और उनमें सोचने समझने व विचार करने की क्षमता भी निम्न स्तर की होती है। मानसिक मंदता, अल्प बुद्धि धीमी गति से सीखने वाले, विकल बुद्धि एवं पिछड़े बालक भी मंद बुद्धि के पर्यायवाची शब्दों के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।



मंद बुद्धि बालकों के लिए अल्प बुद्धिमत्ता (Feeble Mindedness), मानसिक दौर्बल्यता (Mental Deficiency), मानसिक निम्न सामान्यता (Mental Subnormality) जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाता है। मंदबुद्धि बालकों को उनकी बुद्धिलब्धि तथा मानसिक योग्यता के आधार पर कई उपविभागों में बांटा जा सकता है। प्रायः 70 से 85 बुद्धि लब्धि वाले बालकों को Moron, Educable Mentally Retarded या Mild Mental Subnormal कहा जाता है। 50 से 70 बुद्धि लब्धि वाले बालकों को Imbecile तथा Ttainable या Moderate Mental Subnormal कहा जाता है। 25 से 50 बुद्धि लब्धि वाले बालकों को Idoit या Custodial या Severe Mental Subnormal कहा जाता है तथा शून्य से 25 बुद्धि लब्धि वाले बालकों को Profound Mental Subnormal कहा जाता है।


मंदबुद्धि बालकों से संबंधित परिभाषाएं -


अनेक विद्वानों तथा संस्थाओं  ने मंदबुद्धि बालकों को अपने शब्दों में परिभाषित  किया है, कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -


मानसिक मन्दता पर अमेरिकन एसोशएिशन के अनुसार-


“मानसिक पिछड़ेपन से तात्पर्य सार्थक रूप में औसत से कम सामान्य बौद्धिक कार्यपरकता से है जो अनुकूलन व्यवहार में कमी के साथ-साथ विद्यमान होती है तथा विकासात्मक अवस्था में परिलक्षित होती है।” 


“Mental retardation refers to significantly sub-average general intellectual functioning existing concurrently with deficit in adaptive behaviour and manifested during the developmental period.”



पेज के अनुसार,


“मंद-बुद्धिता बालक की बाल्यावस्था में पायी जाने वाली अव-सामान्य मानसिक विकास की दशा है, जो सीमित मानसिक योग्यता एवं सामाजिक असमर्थता को व्यक्त करती है।” 


"Mentally retarded child is a condition or subnormal mental development present at birth or early childhood and characterised mainly by limited intelligence and social inadequacy.”




 एस . डी . पोर्टियस के अनुसार,


"मंद-बुद्धि बालक वह है जिसका सीमित मात्रा में ही मानसिक विकास हो पाता है। ऐसे बालक अपना स्वंय का कार्य और दूसरों की सहायता करने में असमर्थ होते हैं। 


क्रो एवं क्रो के अनुसार, 


"70 से कम बुद्धि-लब्धि वाले बालकों को मंद-बुद्धि बालक कहते हैं।”



ई. ए. डॉल के अनुसार, 


"मंद-बुद्धि या मानसिक दुर्बलता सामाजिक अयोग्यता की वह अवस्था है जो परिपक्वता पर प्राप्त होती है। प्रशिक्षण और उपचार भी मंद-बुद्धि में वृद्धि लाने में असक्षम हैं।



कुप्पूस्वामी की अनुसार , 


"शैक्षिक पिछड़ापन अनेक कारणों का परिणाम है। अधिगम में मन्दता उत्पन्न करने के लिए अनेक कारक एक साथ मिल जाते है।"


"Educational backwardness is the result of multiple causation. Many factors combine together to cause slowness in learning.”



उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि मानसिक मन्दता वास्तव में एक ऐसा शब्द है जो सामान्य मानसिक क्षमता की दृष्टि से कमजोर अनेक स्तरों के बालकों को इंगित करता है।





मंदबुद्धि बालकों की विशेषताएं

(Characteristics Of Mentally Retarded Children)


मंदबुद्धि बालकों को पहचानने के लिए उनकी विशेषताओं को जानना अत्यंत आवश्यक है। मंदबुद्धि बालकों की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं -


  1. शारीरिक लक्षण (Physical Features) -


मानसिक रूप से मंद बालकों का शारीरिक कद सामान्य बालकों से भिन्न होता है। इनका कद प्रायः कमजोर, दुबला, पतला, नाटा आदि होता है। इनके चेहरे, कान, आंख, नाक, सिर के बाल, हाथ की अंगुलियों आदि में कई तरह की अनियमितताएं देखने को मिलती हैं।


  1. बौद्धिक क्षमता (Intellectual Capacity) -


ऐसे बालकों की बौद्धिक क्षमता सामान्य बालकों से कम होती है, इनकी बुद्धि लब्धि प्रायः 70 से नीचे होती है।


  1. सामाजिक समायोजनशीलता की क्षमता में कमी

(Reduction in the capacity of social adaptability) -


ऐसे बालकों में समाज तथा परिवार के लोगों के साथ समायोजन करने की क्षमता नहीं होती है। फलस्वरुप, उनका समाजीकरण ठीक ढंग से नहीं हो पाता और उनमें समाजिक सूझ-बुझ एवं नैतिकता आदि का ज्ञान नहीं होता है।


  1. संवेगात्मक स्थिति (Emotional Condition) -


ऐसे बालकों में सामान्य संवेग की कमी होती है। ऐसे बालक किसी विशेष संवेग के लिए उपयुक्त परिस्थिति (Appropriate Situation) में भी संबंधित संवेग नहीं दिखा पाते अतः ऐसे बालकों का संवेगात्मक विकास अनुपयुक्त होता है।


  1. भाषा विकास (Language Development) -


ऐसे बालकों की शिक्षा-दीक्षा तो नहीं के बराबर ही हो पाती है। अतः,  शिक्षा की तरफ से भाषा विकास में कोई योगदान नहीं होता। इतना ही नहीं ऐसे बालकों की बुद्धि चूँकि कम होती है अतः बहुत कोशिश के बावजूद इनमें भाषा विकास बहुत कम की हो पाता है।


इन प्रमुख विशेषताओं के अलावा ऐसे बालकों की कुछ और विशेषताएं होती हैं जो निम्नलिखित है- 


1. ऐसे बालक नई बातों को सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। 


2. ऐसे बालक ऐसी सीखी गयी बातों को नवीन परिस्थितियों में प्रयुक्त करने में प्रायः कठिनाई का अनुभव करते हैं। 


3. ऐसे बालक अन्य व्यक्तियों या परिजनों की जरा भी चिन्ता किये बिना केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की चिन्ता करते हैं।


4. ऐसे बालकों में धैर्य (Patients), कल्पना (Imagination), चिन्तन (Thinking) तथा आत्मविश्वास आदि योग्यताओं की कमी होती है।


5. ऐसे बालकों की बुद्धि लब्धि (Intelligence QutionInt-I.Q.) का मान प्रायः 80-85 से कम होती है। 


6.  ऐसे बालकों में नवीन बातों को सीखने की गति सामान्य बालकों से मंद होती है। 


7. ऐसे बालक जटिल परिस्थितियों (Complex Situations) में समाधान को खोजने के कार्य में प्रायः असफल रहते हैं। 


8. ऐसे बालक प्रायः कार्य व कारण के परस्पर सम्बन्ध में अजीबोगरीब धारणायें बना लेते हैं। 


9. ऐसे बालकों का वैयक्तिक, पारिवारिक, विद्यालयी, सामाजिक व संवेगात्मक समायोजन प्रायः सन्तोषजनक नहीं होता है। 


10. ऐसे बालक एक ही प्रकार के विभिन्न अवसरों पर एक जैसी परिस्थितियों में भिन्न - भिन्न प्रकार के व्यवहार करते हैं।


11. ऐसे बालकों में उचित-अनुचित के अंतर का ज्ञान नहीं होता।


12. ऐसे बालक अत्यधिक सुझावशील (Suggestible) होते हैं। दूसरे लोग जो कुछ भी कहते हैं, उसे आँख मूँदकर सच समझकर उसी के अनुसार कार्य कर बैठते हैं। इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि इनका अपना कोई दिमाग ही नहीं है। 


13. ऐसे बालकों में आत्मविश्वास (Self-Confidence) तथा आत्मनिर्भरता (Self-Dependency) की कमी रहती है।


14. ऐसे बालकों में अपनी पूर्व अनुभूतियों (Past Experiences) से फायदा उठाने या उनसे कुछ सीख लेने की क्षमता नहीं होती।


15. ऐसे बालकों की अभिरुचियाँ (Interests) सीमित होती हैं। 


16. ऐसे बालकों की लघु-अवधि स्मृति (Short-Term Memory) तथा दीर्घ-अवधि स्मृति (Long-Term Memory) सीमित होती हैं।


17. ऐसे बालक दूसरों के साथ घुल मिलकर नहीं रह सकते हैं तथा उन्हें दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है।


18. मंदबुद्धि बालक सामाजिक रुप से असमर्थ होते हैं। ऐसे बालक स्वयं की सहायता करने में भी अक्षम होते हैं।


19. प्रायः मंदबुद्धि का उपचार संभव नहीं है।


20. मंदबुद्धि की उत्पत्ति अनुवांशिक तथा शारीरिक कारणों से होती है।







मंद-बुद्धि बालकों के प्रकार 

(Types of Mentally Retarded Children)


सभी बालकों का बौद्धिक स्तर एक समान नहीं होता है। मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि-लब्धिता के मूल्याकन से प्राप्त अंकों के आधार पर उनकों चार भागों में विभक्त किया गया है-


1. मंद सीखने वाला (Slow Learner) - 


मंद गति से सीखने वाले बालकों की बुद्धि का विस्तार 75 से 90 के मध्य होता है।  ऐसे बालकों की मानसिक क्षमता साधारण बालकों से कुछ ही निम्न स्तर की होती है। मंद गति से सीखने वाले बालकों को शिक्षित किया जा सकने वाला पिछड़े बालक माना जाता है।



2. मूर्ख या अल्पबुद्धि बालक (Moron) - 


ऐसे बालकों की बौद्धिक क्षमता का स्तर 50 से 60 के बीच होता है। इन बालकों का स्तर 8 से 10 वर्ष तक के आयु स्तर के बालकों के समान होता है। अल्पबुद्धि बालकों को मूर्ख भी कहा जाता है और इनको शिक्षित करने के लिए विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं। ऐसे बालकों में मौलिकता का अभाव पाया जाता है। अल्पबुद्धि बालक जीवन निर्वाह योग्य कार्य सीख सकते हैं।


3. मूढ़ बुद्धि बालक (Imbecile) -


मूढ़ बुद्धि बालकों की बुद्धि - लब्धि का स्तर 25 से 50 के मध्य होता है। ऐसे बालकों का मानसिक स्तर 5 से 7 वर्ष की आयु के समान होता है। इस प्रकार के बालक बौने प्रकार के होते हैं और इनके यौनांगों का विकास भी पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है। थायरॉयड ग्रन्थि की अनियमित क्रियाशीलता के कारण इस प्रकार की मानसिक दुर्बलता होती है। मूढ़ बुद्धि बालकों को शिक्षित करना काफी कठिन कार्य होता है। उन्हें केवल अक्षर ज्ञान ही कराया जा सकता है। ऐसे बालकों को जीवन निर्वाह के लिए शारीरिक रूप से प्रशिक्षित किया जा सकता है। 


4. जड़ बुद्धि बालक (Mentally Incapable Child) -


इस प्रकार के बालक मानसिक रूप से सर्वाधिक दुर्बल होते हैं। पेनरोज ने इस प्रकार की मानसिक दुर्बलता वाले बालकों को मंगोलिज्म (Mangolism) का नाम दिया। इनका बुद्धिलब्धि (IQ) का विस्तार 25 से कम ही होता है। ऐसे बालक परिवार और समाज पर बोझ के समान होते हैं। एण्डोक्राइन ग्रन्थि के असंतुलन तथा पिट्यूटरी ग्रन्थि के अनियमित ढंग से कार्य करने के कारण इनका मानसिक विकास दो वर्ष के बालक की उम्र के समान होता है। जड़ बुद्धि बालक अपनी देखभाल स्वयं नहीं कर पाते हैं। ऐसे बालकों को भोजन कराने एवं कपड़े पहनाने के लिए भी दूसरे व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे बालक शारीरिक रूप से बीमार होते हैं और शीघ्र ही मर जाते हैं। इन बालकों को प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता है।



इस तरह हम देखते हैं कि मानसिक मंदता के चार प्रकार हैं। इन प्रकारों में प्रथम दो प्रकार की श्रेणियों में आने वाले बालकों में शिक्षा मनोवैज्ञानिकों की रूचि है, क्योंकि अंतिम दो प्रकार के बालक प्रशिक्षण एवं शिक्षा के योग्य होते ही नहीं हैं।






मंद बुद्धि बालकों की पहचान 

(Indentication of the Mentally Retarded Children)


मंद बुद्धि बालकों को पहचानने के उपरान्त ही उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शैक्षिक देखभाल करना संभव हो सकता है। मंदबुद्धि बालकों की पहचान करने के लिए भी विधिवत अवलोकन (Systematic Observation) तथा प्रमापीकृत परीक्षणों (Standardized Tests) का प्रयोग किया जा सकता है। व्यक्तिगत व सामूहिक बुद्धि परीक्षणों, सम्प्राप्ति परीक्षणों तथा व्यक्तिगत परीक्षणों के द्वारा मंदबुद्धि बालकों को पहचाना जा सकता है। अध्यापकों, सहपाठियों, परिवारजनों तथा इष्ट मित्रों के द्वारा बालकों के सम्बन्ध में की गयी अवलोकनात्मक टिप्पणियों से भी मंदबुद्धि बालकों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं। प्रमापीकृत परीक्षणों का प्रयोग प्रायः तब ही किया जाता है जब कतिपय बालकों की बुद्धि के सामान्य होने के सम्बन्ध में संदेह होता है। यह संदेह निश्चय ही बालक के द्वारा घर, परिवार, पड़ोस, विद्यालय या खेलकूद में किये जाने वाले व्यवहार के अवलोकन से ही परिलक्षित होता है। किसी भी बालक के मंदबुद्धि होने पर उस पर प्रमापीकृत परीक्षणों को प्रशासित करके उसकी बुद्धि लब्धि का निश्चय करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।




मंद बुद्धिता के कारण 

(Causes of Mental Retardedness)


मंदबुद्धिता निम्न कारणों से हो सकती है -


1. वंशानुक्रम ( Heredity ) - 


माता-पिता की बौद्धिक क्षमता का प्रभाव उनकी संतानों पर भी पड़ता है। गोडार्ड ने कालीकाक परिवार पर अध्ययन कर बताया कि जिन माता-पिता का बौद्धिक स्तर निम्न होता है उनके बच्चों का बुद्धिलब्धि (IQ) स्तर भी कम होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मानसिक मंदता आनुवंशिक होती है और इसका हस्तांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता रहता है। 


2. शारीरिक एवं मानसिक आघात 

(Physical and Mental Trauma) - 


जन्म के समय, प्रसव के दौरान आघात लगने से भी बालक मंद बुद्धि हो जाते हैं। कच्ची उम्र में सिर पर चोट लगने से कई बार मानसिक विकास रुक जाता है। इस प्रकार मानसिक आघात भी बालक की मंदबुद्धिता का एक कारक होता है। समय से पूर्व जन्में बालकों में भी बुद्धिहीन होने की सम्भावना अधिक रहती है।


3. शारीरिक दोष (Physical Defects) -


शारीरिक रूप से विकलांग बालक समाज में आपको हीनता की दृष्टि से देखते हैं। शारीरिक बीमारी, व्यक्ति को मानसिक रूप से बीमार कर देती है। गर्भकालीन अवस्था में छूत की कई बीमारियों व्यक्ति के मस्तिष्क पर अपना प्रभाव डालती हैं जिसके कारण वो मंद बुद्धि का शिकार हो जाता है।


4. निर्धनता (Poverty) -


निर्धनता वर्तमान समय का सबसे बड़ा अभिशाप है। आर्थिक स्तर ठीक न होने के कारण बालकों का सामाजिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। उचित भोजन एवं चिकित्सा के अभाव में व्यक्ति का मानसिक विकास समुचित रूप से नहीं हो पाता है। 


5. ग्रन्थियों का विकार

(Deformation of Glands) - 


व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक विकास उनकी ग्रन्थियों पर निर्भर करता है। कई बार बालकों की ग्रन्थियों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता है जिस कारण वे सही ढंग से कार्य नहीं कर पाती है। पिट्यूटरी ग्रन्थि एवं थॉयरायड ग्रन्थि से पर्याप्त मात्रा में हारमोन न बनने पर क्रमश बौनापन (Magnetism Cretinism) जैसी मानसिक दुर्बलता उत्पन्न हो जाती है। परिणामस्वरुप मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाता है जिस कारण उसमें मानसिक हीनता आ जाती है।


6. घर का वातावरण (Home Environment) -


माता-पिता की अज्ञानता, उनके आपसी मतभेद, दैनिक लड़ाई-झगड़े जैसे पारिवारिक मुद्दे भी बालक की मानसिक मंदता को प्रभावित करते हैं। बालकों की उचित देखभाल न होने और प्रेम एवं सहानुभूति का अभाव होने के कारण उनकी बौद्धिक क्षमता का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता है जिसके कारण वे मंद बुद्धि के हो जाते हैं।


7. प्रेरणा की कमी (Lack of Motivation) -


प्रेरणा एवं प्रोत्साहन के अभाव में बालक नवीन वातावरण में आसानी से अनुकूलन स्थापित नहीं कर पाता है। इससे बालकों का बौद्धिक विकास रुक जाता है और वे हीनता की भावना के शिकार हो जाते हैं। 



8. शैक्षिक वातावरण

(Educational Environment) - 


शिक्षकों का अनुचित एवं पक्षपातपूर्ण व्यवहार, स्कूल में सुविधाओं का अभाव, नीरस एवं अमनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों का प्रयोग जैसे कारकों के कारण भी बालकों का मानसिक विकास प्रभावित होता है। उचित शैक्षिक वातावरण न होने के कारण बालकों की बौद्धिक क्षमता का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है।


9. मादक पदार्थों का सेवन (Intake of Drugs) -


कम उम्र में नशीली दवाइयों और मादक पदार्थों के सेवन से बालकों का मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। इन औषधियों से बौद्धिक क्षमता को क्षति पहुँचती है तथा बालक मंद बुद्धि का हो जाता है।




मंद-बुद्धि बालकों की शिक्षा तथा उनका समायोजन

(Education & Adjustment Of Mentally Retarded Children) 



मंद बुद्धि बालकों को किस प्रकार से शिक्षा प्रदान की जाये, इस प्रश्न पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है। यद्यपि भारतवर्ष में मंदबुद्धि बालकों के प्रशिक्षण तथा शिक्षा व्यवस्था के लिए विशिष्ट शैक्षिक कार्यक्रमों का अभाव- सा दृष्टिगोचर होता है, परन्तु विकसित राष्ट्रों में मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए अनेक सार्थक तथा प्रभावी प्रयास किये जा रहे हैं। 


निम्नलिखित उपायों को दृष्टिगत रखकर मंद बुद्धि बालकों के लिए विशेष उपाय अपनाकर उनको शिक्षित किया जा सकता है– 


1. शिक्षा का उद्देश्य (Aims of Education) - 


मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा व प्रशिक्षण का उद्देश्य उनके दैनिक जीवन में आने वाली व्यक्तिगत सामाजिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए उन्हें तैयार करना है। दूसरे शब्दों में शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य की उन्नति, स्वस्थ आदतों का निर्माण, दिनचर्या का स्वतः निर्वहन, सुरक्षा की भावना, प्राथमिक चिकित्सा तथा मनोरंजन की शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से उनकी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। 


2. स्वयं देखभाल का प्रशिक्षण

(Training for Self-Care) - 


मंद बुद्धि बालक अपनी देखभाल स्वयं कर सकें, इसके लिए उन्हें शिक्षित व प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है। कपड़े पहनने, भोजन करने, सफाई करने, अपनी वस्तुओं की रक्षा करने, अपना मनोरंजन करने आदि का प्रशिक्षण ऐसे बालकों को दिया जाना चाहिए जिससे वे अपने दैनिक कार्यों को स्वयं कर सके।


3. सामाजिक प्रशिक्षण (Social Training) - 


मंद बुद्धि बालकों को उचित ढंग से सामाजिक व्यवहार करने के लिए भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सामूहिक कार्यों, खेलों, सार्वजनिक कार्यक्रमों तथा सामाजिक शिष्टाचार का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ मंद बुद्धि बालकों को विभिन्न सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। 


4. आर्थिक प्रशिक्षण (Economic Training) - 


मंद बुद्धि बालकों को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने के लिए ऐसे प्रशिक्षण की आवश्यकता है कि वे अपने जीवनयापन के लिए आवयक न्यूनतम धन अर्जित करने में समर्थ हो सके। छोटे-छोटे घरेलू कार्यों, हस्तशिल्पों आदि का प्रशिक्षण देकर ऐसे बालकों को स्वावलम्बी बनाया जा सकता है। 


5. विशिष्ट कक्षायें (Special Classes) - 


मंद बुद्धि बालक अपनी मानसिक सीमाओं के कारण सामान्य कक्षाओं का पूर्ण लाभ नहीं उठा पाते हैं। अतः उनके लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों के द्वारा संचालित विशिष्ट कक्षाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए। 



इन प्रयासों के अलावा ऐसे बालकों कि शिक्षा एवं समायोजन के लिए निम्नलिखित विधियां भी अपनाई जा सकती है -


1. मंद बुद्धि बालकों की बुद्धिलब्धि का पता लगाकर उन्हें उचित शिक्षा देनी चाहिए।


2. मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए विशिष्ट कक्षाओं का संचालन किया जाना चाहिए। 


3. ऐसे बालकों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए ताकि वे सीखने में रुचि ले सकें। 


4. अध्यापक को ऐसे बालकों के अभिभावकों से मिलकर उनकी समस्या का समाधान खोजना चाहिए तथा उनके शिक्षण में आने वाली कठिनाईयों की पहचान कर यथा सम्भव उपचार करना चाहिए। 


5. मंद बुद्धि बालकों को निरन्तर परामर्श एवं निर्देशन की आवश्यकता होती है। अतः उनकी आवश्यकताओं का पता लगाने हेतु पूर्ण अध्ययन करना चाहिए।


6. मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए अध्यापकों का अनुभवी, योग्य एवं प्रशिक्षित होना आवश्यक है।


7. ऐसे बालकों को स्वयं की देखभाल करने का प्रशिक्षण देना चाहिए। मंद बुद्धि बालकों के सामाजिक समायोजन एवं संतुलित संवेगात्मक विकास हेतु उचित शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए।


8. मंद बुद्धि बालकों की व्यक्तिगत रूप से देखभाल करते हुए व्यक्तिगत शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसे बालकों की कक्षा का आकार सीमित होना चाहिए।


9. ऐसे बालकों में रचनात्मक कौशलों का विकास करते हुए उन्हें सामाजिक चेतना की ओर प्रेरित करना चाहिए।


10. मंद बुद्धि बालकों में स्वस्थ आदतों का निर्माण करना चाहिए तथा उनकी शिक्षा को वास्तविक जीवन से जोड़ना चाहिए।


11. मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा में जीविकोपार्जन से सम्बन्धित क्रियाकलापों को सम्मिलित किया जाना चाहिए।




निष्कर्ष -


हमारे देश में मन्दबुद्धि बालकों के लिए केंन्द्र तथा राज्य सरकार की आर्थिक सहायता से एवं अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से विशेष प्रकार की व्यवस्थाओं से युक्त आवासीय तथा दिवसीय शिक्षा संस्थायें खोली गयी हैं। इनमें मन्द बुद्धि बालकों की विशिष्ट आवश्यकताओं तथा परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते उनके प्रशिक्षण का ध्यान दिया जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि मानसिक रूप संबंधित बालकों को शिक्षा देने तथा उनकी समायोजनशीलता को बढ़ाने के निम्नलिखित उपाय अपनाकर उनका विकास किया जा सकता है।




मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता

(Mental Retardation And Mental illnesses) -


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