अधिगम का स्थानान्तरण (Transfer of Learning)
अधिगम के स्थानान्तरण की अवधारणा
(Concept Of Transfer Of Learning) -
प्रशिक्षण या अधिगम स्थानान्तरण एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय (Concept) है जिस पर प्रयोगात्मक मनोवैज्ञानिकों ने बहुत सारे शोध किये है। प्रशिक्षण या अधिगम स्थानान्तरण से तात्पर्य से पहले सीखे गए कौशल का वर्तमान कौशल को सीखने पर पड़ने वाले प्रभाव से होता है। शिक्षा का लक्ष्य एक पाठ्यक्रम या स्तर से दूसरे तक या विद्यालय वातावरण से जीवन के वातावरण तक ले जाना होता है। सीखने के या प्रशिक्षण के स्थानान्तरण से अभिप्राय किसी सीखी हुई क्रिया या विषय का अन्य परिस्थितयों में उपयोग करने से है । इसे यूं भी स्पष्ट किया जा सकता है कि अर्जित ज्ञान का अन्य विषयों तथा क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।
अधिगम स्थानान्तरण की परिभाषाएं
(Definitions of Transfer of Learning) –
स्थानान्तरण का सामान्य अर्थ है - किसी वस्तु या व्यक्ति को एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रखना परंतु मनोविज्ञान के क्षेत्र में सीखने का अर्थ इससे एकदम अलग होता है, भिन्न होता है। सीखने के संदर्भ में स्थानान्तरण का अर्थ होता है किसी एक क्षेत्र में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल का दुसरे क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल के सीखने में प्रयोग होना, इसमें किसी कौशल के प्रशिक्षण का, किसी अन्य कौशल विशेष के प्रशिक्षण में पड़ने वाला प्रभाव भी सम्मिलित होता है। क्योंकि ज्ञानार्जन और कौशल प्रशिक्षण दोनों सीखने की प्रक्रिया के अन्तर्गत ही आते हैं।
सीखने के अंतरण को विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -
बी0 जे0 अंडरवुड के अनुसार -
“वर्तमान क्रियाओं पर पूर्व अनुभव के प्रभाव को प्रशिक्षण अंतरण कहते हैं।”
“The influence of previous experience on current performance define transfer of training.”
कोलैस्निक के अनुसार –
“स्थानान्तरण, परिस्थिति विशेष में सीखे हुए ज्ञान, कौशलों, आदतों, अभिवृतियों और अन्य अनुक्रियाओं का किसी अन्य परिस्थिति में प्रयोग करना है।
“Transfer is the application or carry over of knowledge, skills, habits, attitudes and other responses from the situation in which they are initially acquired to some other situation .”
सोरेंसन के अनुसार,
“स्थानांतरण एक परिस्थिति में अर्जित, ज्ञान तथा आदतों का दूसरी परिस्थिति में अंतरण होना है।”
“Transfer refers to the transfer of knowledge training and habit acquired in one situation to another.”
क्रो एवं क्रो के अनुसार -
“सीखने के क्षेत्र में अर्जित सोचने, महसूस करने कार्य करने की आदतों, ज्ञान तथा कौशलों का सीखने के किसी दूसरे क्षेत्र में प्रयोग करना ही प्रायः प्रशिक्षण का अंतरण कहा जाता है।”
“The carryover Of habits of Thinking, feeling or working of knowledge, or skill from one learning area to another, is usually referred to as the transfer of training.”
वाल्टरबी के अनुसार -
अधिगम स्थानांतरण से तात्पर्य ज्ञान, निपुणता,आदत, रूझान या अन्य अनुक्रियाओं का उस परिस्थिति से ले जाना है जिसमें वे आरम्भिक रूप से अर्जित की गई थीं से दूसरी अन्य परिस्थिति की ओर ले जाना है।
विटेकर (1970) के अनुसार,
“अधिगम के स्थानान्तरण से तात्पर्य किसी एक कौशल या विषय वस्तु के सीखने का किसी दूसरे कौशल या विषय वस्तु के सीखने पर पड़ने वाले प्रभाव से होता है।”
इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि सीखने के स्थानान्तरण में पहले सीखा गया कौशल बाद में सीखे जाने वाले कौशल पर एक प्रभाव डालता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सीखने का अंतरण वस्तुतः किसी एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञान, कौशल तथा विचारों आदि का किसी अन्य परिस्थिति में उपयोग करना है। अतः जब किसी कार्य को करने की योग्यता, ज्ञान अथवा अनुभव किसी दूसरे कार्य को करने के ज्ञान, अनुभव तथा योग्यता को प्रभावित करते हैं। तब इसे सीखने का अंतरण कहा जाता है। अतः अधिगम अंतरण को व्यक्ति के आचरण अधिगम या निष्पादन को उसके पूर्व अनुभव पर निर्भर होने के रूप में भी माना जा सकता है। अर्थात पूर्व अनुभव जिन्हें अंतरण स्रोत कहा जा सकता है किसी सीमा तक नवीन परिस्थिति में अधिगम व निष्पादन जिसे अंतरण लक्ष्य कहा जा सकता है, को प्रभावित कर रहे हैं। यही अधिगम अंतरण की मात्रा कही जा सकती है।
अधिगम स्थानांतरण के प्रकार
(Types Of Learning Transfer)
इस प्रभाव के स्वरूप के आलोक में प्रशिक्षण स्थानान्तरण के निम्नलिखित तीन स्वरूप होते हैं -
1. धनात्मक स्थानान्तरण (Positive Transfer) -
जब पहले सीखें गए कौशल या विषय वस्तु से नए कौशल या विषय वस्तु को सीखने में सहायता मिलती है , तो इसे धनात्मक स्थानांतरण कहते हैं । जैसे किसी व्यक्ति को हिन्दी भाषा सीखने के बाद भोजपुरी भाषा को सीखने में मदद मिलती है , तो धनात्मक स्थानांतरण का उदाहरण होगा।
2. ऋणात्मक स्थानान्तरण (Negative Transfer) -
जब पहले सीखें गए कौशल या विषय वस्तु से नए कौशल या विषय वस्तु को सीखने में बाधा पहुंचती है , तो इसे ऋणात्मक स्थानांतरण कहते हैं। जैसे किसी व्यक्ति को संस्कृत भाषा सीखने के बाद अंग्रेजी भाषा को सीखने में कठिनाई या बाधा मिलती है , तो ऋणात्मक स्थानांतरण का उदाहरण होगा।
3. शून्यात्मक अन्तरण (Zero Transfer) -
जब पहले सीखें गए कौशल या विषय वस्तु से नए कौशल या विषय वस्तु को सीखने पर न तो धनात्मक और न ही ऋणात्मक होता है, तो इसे शून्य स्थानांतरण कहा जाता है।
अंतरण के कुछ विशिष्ट प्रकारों का वर्णन मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया गया हैं जिनमें निम्नांकित प्रमुख हैं –
- Lateral Transfer (पार्श्वीय स्थानांतरण)
- Vertical Transfer (अनुलम्ब अन्तरण)
- Sequential Transfer (अनुक्रिया अन्तरण)
- Horizontal Transfer (क्षैतिज स्थानांतरण)
- Bilateral Transfer (द्विपार्श्विक अन्तरण)
1. Lateral Transfer (पार्श्वीय स्थानांतरण) –
पार्श्वीय स्थानान्तरण एक ऐसा स्थानान्तरण है, जिसमें सीखे गए कौशल का स्थानांतरण एक ऐसी परिस्थिति के सीखने में होता है जो उसी स्तर का होता है। जैसे यदि किसी शिशु को यह सिखलाया जाता है कि [8-2 =6] है और घर आकर वह पहले से रखे आठ अंडों में से दो निकाल लेने पर यह समझता है कि अब उसमें मात्र 6 ही रहे होगें तो यह पार्श्वीय स्थानान्तरण का उदाहरण होगा।
2. अनुलम्बस्थानान्तरण (Vertical Transfer) -
अनुलम्ब स्थानान्तरण वैसे स्थानान्तरण को कहा जाता है। जिसमें सीखे गये कौशल का स्थानान्तरण उच्च स्तर के कौशल को सीखने में होता है। जैसे कक्षा 10 में सीखे जाने वाले गणित के ज्ञान एवं कौशल का कक्षा 11 में सीखे जाने वाले गणित के ज्ञान एवं कौशल के सीखने में सहायक होना।
3.अनुक्रिया स्थानान्तरण (Sequential Transfer)–
पाठों को इस क्रम में सीखने के बाद किसी नए विषय या नए कौशल को सीखने में पड़ने वाले प्रभावों को अनुक्रमिक सीखना कहा जाता है। अनुक्रमिक सीखना में स्थानान्तरण धनात्मक होता है। जैसे छात्र यदि जोड़, घटाव तथा गुणा सीखकर भाग देने की प्रक्रिया को सीखता है तो उसे पहले तीन तरह के कौशलों को क्रम में सीखने से भाग देने की प्रक्रिया को सीखने में इस तरह की मदद मिलेगी। इस प्रकार का स्थानान्तरण अनुक्रमिक स्थानान्तरण का उदाहरण है।
4. क्षैतिज स्थानांतरण (Horizontal Transfer) -
जब किसी एक ही स्तर की कक्षा में किसी क्षेत्र में सीखा हुआ ज्ञान अथवा कौशल उसी कक्षा के किसी दूसरे क्षेत्र में सीखे जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के सीखने में सहायक होता है। तो इसे क्षैतिज स्थानांतरण कहा जाता है। जैसे कक्षा 10 में सीखे हुए गणित के ज्ञान एवं कौशल का उसी कक्षा के विज्ञान की संख्यात्मक समस्याओं के में सहायक होना।
5. द्वि - पक्षीय स्थानान्तरण
(Bi Lateral Transfer)–
जब शरीर के किसी एक अंग द्वारा सीखा हुआ कोई कौशल शरीर के दूसरे अंग द्वारा उसी कौशल को या अन्य किसी कौशल को सीखने में सहायक होता है। तो इसे द्विपक्षीय स्थान्तरण कहते है। जैसे दाएं हाथ से लिखने के कौशल का बाएं हाथ से लिखना सीखने में सहायक होना।
Transfer Of Learning |
अधिगम स्थानान्तरण का शैक्षिक निहितार्थ
(Educational Implications of Transfer of Learning)
शिक्षा में स्थानान्तरण अधिगम का प्राण है । शिक्षक का उद्देश्य बालक को इस योग्य बनाना है कि वह जीवन की प्रत्येक स्थिति का सामना करने में सक्षम हो सके। फलतः शिक्षा में स्थानान्तरण के महत्त्व पर बल दिया गया है।
1. अर्जित ज्ञान का उपयोग -
प्राप्त ज्ञान ( अर्जित ज्ञान ) का विविध परिस्थितियों में व्यापक प्रयोग होना चाहिए। अध्यापक का इसके लिए बालकों को सीखी हुई क्रियाओं व प्राप्त ज्ञान के व्यापक उपयोग की अधिकाधिक स्थितियाँ प्रदान की जानी चाहिए।
2. स्थानान्तरण में प्रशिक्षण-
स्थानान्तरण से लाभ उठाने के लिए बालकों को इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। यह प्रशिक्षण नियमित रूप से दिया जाना चाहिए।
स्किनर के अनुसार,
"अधिगम स्थानान्तरण की शिक्षा के लिए , विचारपूर्ण तैयारी एवं पठन विषयों को विकसित करने की आवश्यकता है।”
3. व्यक्तिगत विभिन्नताएँ -
अधिगम एवं शिक्षण की सफलता से जुड़ा एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। बालकों में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को पहचानना। अतः अध्यापक को इस विभिन्नताओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण एवं शिक्षण विधियों का चयन करना चाहिए। ताकि स्थानान्तरण अधिक से अधिक हो सके।
4. मानसिक योग्यता एवं पर्याप्त अभ्यास-
यह अति आवश्यक है कि बालकों की मानसिक योग्यता को ध्यान में रखकर अध्यापन विधियाँ अपनाई जाए एवं उनकी मानसिक योग्यता के इष्टतम विकास के लिए परिस्थितियों उत्पन्न की जाए। इसके अलावा पर्याप्त अभ्यास के बगैर उपयुक्त अधिगम सम्भव नहीं होता एवं आधे - अधूरे अधिगम में स्थानान्तरण की संभावना बहुत कम होती है।
5. व्यावहारिक ज्ञान -
यदि अध्यापक बालकों को विद्यालय तथा कक्षा में जीवन की समस्याओं तथा वास्तविकता का ज्ञान प्रदान करता है तो व्यावहारिक जीवन में छात्र अपनी समस्याओं को हल करने में समर्थ होता है। अध्यापक का उत्तरदायित्व है कि वह इस प्रकार से क्रिया का अधिगम प्रस्तुत करे कि वह बालकों के लिए काल्पनिक न हो।
6. साहचर्य के नियमों का प्रयोग -
साहचर्य के नियमों एवं संवेगात्मक विकास का शिक्षण में ध्यान रखना अति आवश्यक होता है अतः इसका ध्यान रखना चाहिए।
7. समानताओं का परिचय -
शिक्षक को विषय विशेष से सम्बन्धित समस्याओं को बालकों को बता देना चाहिए। साथ ही यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि उस विषय का लाभ अन्य किन-किन विषयों में उठाया जा सकता है।
8. सामान्यीकरण के अवसर -
शिक्षा में शिक्षण विधियों इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे सामान्यीकरण के अधिक से अधिक अवसर प्राप्त हो।
9. भविष्य का ज्ञान -
बालकों को शिक्षा इस प्रकार की प्रदान की जानी चाहिए जो उसके भविष्य निर्माण में सहायक हो।
10. शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य -
स्थानान्तरण के लिए आवश्यक है कि पाठ्यचर्या का निर्माण करते समय बालकों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान रखा जाए। बालक के वातावरण तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान रखना चाहिए।
11. तथ्यों की जानकारी -
तथ्यों का ज्ञान होने पर बालकों को उन परिस्थितियों में जिनमें उन्हें अधिक अनुभव होता है, गलतियों कम से कम होती है। इसका अभिप्राय यह है कि विज्ञान के शिक्षक की शिक्षण विधि इस प्रकार की होनी चाहिए। जिससे बालकों के दैनिक जीवन में यथासम्भव अधिगम महत्वपूर्ण स्थितियों के सम्बन्ध में तथ्य एवं सिद्धान्तों की जानकारी दी जाए।
12. आदर्श एवं मूल्य-
स्कूल के संचालकों को यह भी ध्यान देना चाहिए कि छात्र स्कूल के बाहर एवं भीतर किन - किन मूल्यों तथा आदर्शों को प्राप्त करना चाहते है। तत्पश्चात् यह योजना बनानी चाहिए कि उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कौन-कौन से ज्ञान एवं कौशल अपनाए जाए।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि जहाँ कोई व्यक्ति किसी भी समस्या के आधारभूत सम्बन्धों को गहराई से देखता है या जहाँ तक उसे उनकी अन्तर्दृष्टि प्राप्त होती है, वहीं स्थानान्तरण योगदान करने वाली एक बड़ी परिस्थिति बन जाती है।
सीखने के स्थान्तरण का महत्व और शिक्षको की भूमिका
(Importance Of Transfer Of Learning And Role of The Teacher)
शिक्षा के क्षेत्र में स्थान्तरणका काफी महत्व है। उसकी बड़ी उपयोगिता है और इस तथ्य को सामने रखकर ही शिक्षा के किसी स्तर की शिक्षा के उद्देश्य निश्चित किए जाते है और इसी आधार पर उसकी पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है और साथ ही ऐसी शिक्षण अधिगम विधियों का प्रयोग किया जाता है। जिनमें पूर्वज्ञान एवं कौशल के आधार पर नए ज्ञान एवं कौशल का विकास किया जाता है। अतः शिक्षकों के लिए यह आवश्यक है कि वे सीखने के स्थानांतरण के लिए उचित वातावरण तैयार करें उसके लिए आवश्यक दशाओं का निर्माण करें।
1. इसके लिए जहाँ तक अनुकूल पाठ्यचर्या के निर्माण का प्रश्न है, यह कार्य तो शिक्षा आयोजकों का है। परन्तु शिक्षकों को इतना और करना होता है कि वे उस पाठ्यचर्या में जो सार्थक एवं उपयोगी है उससे सीखने वालों को अवगत कराएं और इस विषय सामग्री को क्रम विशेष में संयोजित करें और तब इसे सीखने वालों के सामने प्रस्तुत करें।
2. शिक्षकों को कुछ पढाते लिखाते समय शिक्षार्थियों को अपनी सामान्य बुद्धि के प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर देने चाहिए। इससे उनमें सामान्य योग्यता का विकास होगा जिसका स्थानान्तरण सरलता से किया जा सकेगा।
3. शिक्षक विद्यार्थियों में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशल के प्रयोग की अभिवृति का विकास करें।
4. शिक्षक किसी भी विषय को पढ़ाते समय ऐसी विधियों का प्रयोग करें जिनमें शिक्षार्थियों को अपने पूर्व में सीखे हुए ज्ञान एवं कौशलों का प्रयोग करना पड़े।
5. शिक्षकों को शिक्षार्थियों को अपने पूर्व में सीखे ज्ञान एवं कौशलों के प्रयोग के स्वतन्त्र अवसर प्रदान करने चाहिए ।
6 . अध्यापक को छात्रों में सोचने तथा तर्क करने की आदतों का विकास करना चाहिए।
7. अध्यापक को सामान्यीकरण विधि का प्रयोग करना चाहिए ताकि छात्र चीजों का सामान्यीकरण तथा अतंरण आसानी से कर सकें।
8.अध्यापक को बच्चों के मानसिक स्तर के अनुसार अध्यापन करना चाहिए ।
9. सम्बन्धित तथ्यों को जोड़ा जाना चाहिए चाहे वे किसी भी क्षेत्र से सम्बन्धित क्यों न हो।
10.अध्यापक को भाषाओं, सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अन्तर्सम्बन्धों के प्रत्येक क्षेत्र पर जोर देना चाहिए।
अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Influencing Transfer of Learning)
अधिगम स्थानान्तरण विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।जिनका वर्णन इस प्रकार हैं
1. सीखने की अनुभूतियों की गुणवत्ता -
स्थानान्तरण पर सीखने की क्षमताओं का प्रभाव पड़ता है। यदि किसी विषयों को छात्र अर्थपूर्ण तरीके से समझता है तो वह आसानी से उसका स्थानान्तरण विविध परिस्थितियों में कर लेगा लेकिन यदि सम्प्रत्यय के अर्थ को ठीक प्रकार से नहीं समझ पाता है तो स्पष्टतः उसका स्थानान्तरण वह नहीं कर सकेगा।
2. बोध तथा अभ्यास की गहराई -
बोध एवं अभ्यास की गहराई भी स्थानान्तरण को प्रभावित करती है। ग्लिक तथा होलयोक के अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि जब विद्यार्थी किसी विषय पर अधिक समय व्यय करके उसे सीखतें हैं तो वे इसका दूसरा परिस्थियों में आसानी से अन्तरण भी करते हैं क्योंकि यहाँ उनमें विषय की समक्ष या बोध की गहराई बहुत अधिक होती है। अभ्यास के समय या बोध की गहराई बढ़ती है फिर उसमें अर्जित ज्ञान या कौशल का स्थानान्तरण भी काफी होता है।
3. सीखने की दो परिस्थितियों के बीच समानता -
जब सीखने की दो परिस्थितियों में समानता होती है तो धनात्मक स्थानान्तरण होने की सम्भावना रहती है। जैसे- यदि छात्र, कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, हिरन को स्तनपायी श्रेणी का जानवर समझता है अतः गाय को देखने पर वह उसे स्तनपायी श्रेणी का ही जानवर कहेगा तो यह धनात्मक स्थानान्तरण का उदाहरण होगा। ऐसा इसलिए होता है कि दोनों परिस्थितियों में समानता है। अतः बिना समानता के स्थानान्तरण कठिन है।
4. अधिगम अनुभूतियों की विविधता -
स्थानान्तरण अधिकगम अनुभूतियों से भी प्रभावित होता है। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने कई प्रयोग किए और स्पष्ट किया जब बालकों को किसी विषय की विविध अधिगम अनुभूतियाँ होती हैं तो इससे यह आशा होती है कि अर्जित ज्ञान या बोध का स्थानान्तरण होगा लेकिन यदि सम्प्रत्यय में विविधता नहीं होगी तो छात्र अर्थ को समझने में असफल रहते हैं एवं अन्तरण नहीं होता है।
5. अधिगम अनुभूतियों का सन्दर्भ -
विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि सूचना किए जाने के सन्दर्भ की भूमिका शिक्षण में सामान्य रूप से एवं स्थानान्तरण में विशेष रूप से होती हैं अतः स्थानान्तरण सम्पन्न होने के लिए यह आवश्यक है कि एक सन्दर्भ में अर्जित ज्ञान अथवा कौशल को अन्य परिस्थितियों में उपयोग किया जाए।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अधिगम स्थानान्तरण विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। अच्छे शिक्षक को इन समस्त कारकों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि छात्र कक्षा में अर्जित ज्ञान अथवा कौशल का अधिक से अधिक अन्तरण विभिन्न परिस्थितियों में करके अधिक लाभान्वित हो सके।
निष्कर्ष -
किसी कार्य को करने अथवा किसी परिस्थिति में अर्जित ज्ञान का प्रयोग किसी दूसरे कार्य को करने के लिए करना अधिगम अन्तरण कहलाता है। शिक्षा प्रक्रिया में अधिगम अन्तरण को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जा सकता है। मनोवैज्ञानिकों के द्वारा प्रयोगों के आधार पर अधिगम अन्तरण के अनेक विभिन्न सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। सीखने वाले व्यक्ति की इच्छा, मानसिक योग्यता तथा सामान्यीकरण क्षमता के साथ - साथ विषयवस्तु की समानता, अध्ययन विधियों की समानता, प्रकरणों का अन्तरण मूल्य तथा प्रशिक्षण आदि का प्रभाव अन्तरण पर पड़ता है। पाठ्यक्रम निर्माण, शिक्षण विधि निर्धारण तथा कक्षा - शिक्षण में अधिगम अन्तरण के संप्रत्यय का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। शिक्षकों को सार्थक ढंग से शिक्षण कार्य करके छात्रों में पूर्व अधिगम व अनुभवों के अन्तरण को बढ़ावा देने के प्रयास करने चाहिए।
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