प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children)
प्रतिभाशाली बालक
(Gifted Children)
जिन बालकों की बुद्धि या मानसिक क्षमता सामान्य बालकों से अधिक होती है, उन्हें प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। किसी भी राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति काफी हद तक उस राष्ट्र अथवा समाज के प्रतिभाशाली बालकों के ऊपर ही निर्भर करती है। प्रतिभाशाली बालकों में विकास की संभावनायें अधिक होती हैं। उच्च मानसिक योग्यता वाले बालकों को इंगित करने के लिए अनेक शब्दों जैसे - प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children), श्रेष्ठ बालक (Superior Children),निपुण बालक (Talented Children), तीव्र सीखने वाले (Rapid Learners), होशियार छात्र (Brilliant Students) तथा तीव्र छात्र (Bright Students) आदि का भी प्रयोग किया जाता है। ये सभी शब्द लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में योग्यता, उपलब्धि, क्षमता आदि में सामान्य बालकों से सार्थक रूप से अधिक योग्यता वाले बालकों के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं।
सामान्य तौर पर प्रतिभाशाली बालकों को उच्च बुद्धि (Higher Intelligence) के आधार पर परिभाषित किया जाता है। प्रतिभा को सामान्य बौद्धिक योग्यता अथवा विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, संगीत, नेतृत्व आदि में विशिष्ट योग्यता के आधार पर भी परिभाषित किया जा सकता है। बौद्धिक दृष्टि (Intellectual Viewpoint) से प्रतिभाशाली बालकों से तात्पर्य उच्च बुद्धिलब्धि (High I.Q) वाले बालकों से होता है। अतः विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विशिष्ट बालकों की बुद्धि लब्धि के लिए भिन्न-भिन्न सीमायें बतायी हैं। जैसे टरमैन ने 140 से अधिक बुद्धि लब्धि (I.Q.) वाले बालकों को प्रतिभाशाली कहा है, जबकि डनलप ने 132 से अधिक बुद्धि लब्धि (IQ) वाले कारकों को प्रतिभाशाली माना है।
सामान्य तौर पर 130 से अधिक बुद्धि लब्धि वाले बालक-बालिकाओं को प्रतिभाशाली बालक माना जा सकता है। कुछ विद्वान विभिन्न क्षेत्रों में उनके द्वारा किये जाने वाले असाधारण प्रदर्शन (Unusual Performance) को प्रतिभा की कसौटी मानते हैं। उनके अनुसार संगीत, कला, अभिनय, लेखन, नृत्य, गायन आदि क्षेत्रों में असाधारण योग्यता वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक माना जा सकता है।
प्रतिभाशाली बच्चे की परिभाषा -
कई संस्थाओं, शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों ने प्रतिभाशाली बच्चे को परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं-
अमेरिका में स्थित प्रतिभाशाली बच्चों के लिए राष्ट्रीय संघ (NAGC) के अनुसार -
“प्रतिभाशाली व्यक्ति एक या एक से अधिक डोमेन में विशिष्ट स्तर पर परिक्षमता या सक्षमता को प्रदर्शित करते हैं। डोमेन में प्रतीक प्रणाली आधारित गतिविधि के किसी भी संरचित क्षेत्र (उदाहरण के लिए, गणित, संगीत, भाषा) या ज्ञानेन्द्रिय गामक कौशल (जैसे, चित्रकला, नृत्य, खेल) शामिल हैं।”
"Gifted individuals are those who demonstrate outstanding levels of aptitude or competence in one or more domains. Domains include any structured area of activity with its own symbol system ( e.g. , mathematics , music , language ) and / or set of sensorimotor skills ( e.g., Painting, Dance, Sports)”
रेंज़ुल्ली (1978) के अनुसार -
“प्रतिभाशाली होना तीन निम्नांकित आधारभूत विशेषताओं के समूह के मध्य परस्पर अनुक्रिया से सम्बंधित है।”
1. औसत से अधिक सामान्य क्षमता
(Above Average General Abilities)
2. उच्च स्तरीय कार्य प्रतिबद्धता
(High Levels Of Task Commitment)
3. उच्च स्तरीय रचनात्मकता
(High Levels Of Creativity)
यूएस ऑफिस फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड इम्प्रूवमेंट (OERI) (1993) -
प्रतिभाशाली का संबंध असामान्य प्रतिभा (Outstanding Talent) से है तथा यह सभी आर्थिक वर्गों, और मानव प्रयास के सभी क्षेत्रों में तथा सभी सांस्कृतिक समूहों के बच्चों और युवाओं में पाया जा सकता है।
“Giftedness'' is about outstanding talents which "may be present in children and youth from all cultural groups, across all economic strata, and in all areas of human endeavor.”
टरमन और ओडन के अनुसार,
“प्रतिभाशाली बालक सामाजिक समायोजन, शारीरिक गठन, व्यक्तित्व के लक्षणों, शैक्षिक एवं बौद्धिक उपलब्धि एवं रुचियों की बहुरूपता में औसत बालको से श्रेष्ठ होते हैं।”
"Gifted children rate far above the average in physique, social adjustment, personality traits, achievement, play information and versatility of interests."
कॉलसनिक के अनुसार,
वह प्रत्येक बालक जो अपनी आयु - स्तर के बालकों से किसी न किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्वपूर्ण नई देन हो, प्रतिभाशाली बालक कहलाता है।
"Each child, who is superior in any ability in comparison to their intelligence level and which may make him outstanding contributor to the welfare and quality of living in our society, are called gifted children.”
सिम्पसन एवं लूकिंग के अनुसार,
“कठिन बौद्धिक कार्यों का निष्पादन करने वाले, उच्च कोटि की केन्द्रीय स्नायु संस्थान वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक कहा है।”
लकिटों के अनुसार,
“उच्च बौद्धिक क्षमता एवं उच्च स्तरीय विचार एवं चिंतन प्रदर्शन करने वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक माना है।”
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषतायें
(Characteristics of the Gifted Children) -
प्रतिभाशाली बालकों को पहचानने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि पहले उनकी विशेषताओं को जाना जाये। प्रतिभाशाली बालकों की कुछ सामान्य विशेषतायें निम्नवत् हैं-
- इनमें पढ़ने लिखने के प्रति अधिक रुचि होती है।
- इनका शब्द भण्डार अधिक व्यापक होता है।
- ये कठिन विषयों में अधिक रुचि लेते हैं।
- इनकी ज्ञानेन्द्रियों का विकास अधिक तीव्र गति से होता है।
- इनमें संज्ञानात्मक क्रियाओं की योग्यता अधिक तीव्र होती है।
- इनका सामान्य ज्ञान अधिक अच्छा होता है।
- ये अमूर्त विषयों में अधिक रुचि लेते हैं।
- ये समस्याओं का समाधान शीघ्र कर लेते हैं।
- इनमें बौद्धिक नेतृत्व के गुण होते हैं।
- ये विद्यालयी परीक्षाओं में अधिक अंक पाते हैं।
- इनके बुद्धि परीक्षणों पर अंक अधिक होते हैं।
- इनके क्रियाकलापों में विविधतायें पायी जाती हैं।
- ये अपना विद्यालयी कार्य तथा गृहकार्य शीघ्रता से कर लेते हैं।
- इनमें अन्तर्दृष्टि या सूझ (Insight) अधिक होती है।
- ऐसे बालक दूसरे के भाव एवं अधिकार के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- किसी भी विचार विमर्श में ऐसे बालक मौलिक एवं उत्तेजना पूर्ण योगदान करते हैं।
- ऐसे बालक सीखने के लिए तथा अन्वेषण करने के लिए प्रेरित रहते हैं।
- ऐसे बालक अपने विचारों एवं भाव की अभिव्यक्ति अच्छे ढंग से करते हैं।
- ऐसे बालक अपनी जिंदगी की खुशी या दूसरे व्यक्तियों की खुशी को बढ़ाने में भरपूर योगदान करते हैं।
- ऐसे बालक को किसी विषय या पाठ को सीखने में कम त्रुटियों एवं अभ्यास की जरूरत होती है।
- ऐसे बालक प्रायः किसी विचार गोष्ठी में अपना प्रभुत्व दिखाते हैं।
- पुनरावृति से ऐसे बालक जल्दी उब जाते हैं।
- ऐसे बालकों में नियम सिद्धांत आदि के खिलाफ आवाज बुलंद करने की प्रवृत्ति अधिक होती है।
- प्रतिभाशाली बालक प्राय सहनशील धैर्यवान अधिक स्वस्थ एवं अनुशासन प्रिय होते हैं।
- ऐसे बालकों के दैनिक कार्यों में विभिन्नता पाई जाती है और सामान अध्ययन में अधिक रूचि देखी जाती है।
- प्रतिभाशाली बालक सदैव एकाग्र चित्त रहते हैं इन बालकों में और अवधान की शक्ति (Attention) एवं मनन करने की शक्ति अधिक पाई जाती है।
- ऐसे बालक स्व प्रेरित होते हैं और नवीन कार्य को सदैव एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं ऐसे बालकों को किसी प्रकार के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती है।
- ऐसे बालक स्वप्रेरित होते हैं और नवीन कार्य को सदैव एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हैं। ऐसे बालकों को किसी प्रकार के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
- प्रतिभाशाली बालकों में अवैध रूप से चिंतन करने की क्षमता पाई जाती है ऐसे बालक अधिक कल्पनाशील होते हैं और विभिन्न समस्याओं का समाधान आसानी से खोज लेते हैं।
- इन बालकों के व्यवहार और आचरण में दया, परोपकारी, उदारता एवं ईमानदारी जैसे मानवीय गुणों का समावेश होता है।
प्रतिभाशाली बालकों की उपरोक्त वर्णित विशेषतायें उनकी सामूहिक विशेषताओं को इंगित करती हैं तथा यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक प्रतिभाशाली बालक में ये सभी विशेषतायें विद्यमान हों।
प्रतिभाशाली बालकों की पहचान
(Identification of the Gifted Children) -
प्रतिभाशाली बालकों के लिये किये जाने वाले शैक्षिक प्रावधानों की चर्चा करने से पूर्व यह आवश्यक है कि उन्हें पहचानने की विधियों का वर्णन किया जाये। प्रतिभाशाली बालकों को पहचानने के उपरान्त ही उनके लिए विशिष्ट शैक्षिक देखभाल करना संभव हो सकता है। प्रतिभाशाली बालकों को पहचानने के लिए विधिवत अवलोकन (Systematic Observation ) तथा प्रमापीकृत परीक्षणों (Standardized Tests) का प्रयोग किया जा सकता है। कुछ योग्यताओं की पहचान परीक्षणों के द्वारा की जा सकती है तथा कुछ योग्यताओं को जानने के लिए अवलोकन विधि का ही उपयोग करना होता है, जबकि कुछ योग्यताओं को जानने के लिए इन दोनों का संयुक्त रूप से प्रयोग किया जाता है। प्रतिभाशाली बालकों की पहचान के लिए प्रयोग में लायी जाने वाली इन दोनों विधियों के अन्तर्गत आने वाले कुछ प्रमुख उपकरण निम्नवत् हैं -
1. विधिवत अवलोकन
(Systematic Observation)
(i) अध्यापक निर्णय (Judgement of Teachers)
(ii) सहपाठी निर्णय (Judgement of Classmates)
2. प्रमापीकृत परीक्षण (Standardized Tests)
(i) समूहगत बुद्धि परीक्षण
(Group Tests of Intelligence)
(ii) व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
(Individual Tests of Intelligence)
(iii) सम्प्राप्ति परीक्षण (Tests of Achievement)
(iv) विशिष्ट योग्यता परीक्षण
(Tests of Special Abilities)
(v) रुचि सूची
(Interest Inventories)
(vi) व्यक्तित्व परीक्षण
(Personality Tests)
इनमें से किसी एक अथवा अनेक उपयुक्त उपकरणों का प्रयोग करके अध्यापकगण अपनी कक्षा अथवा विद्यालय के प्रतिभाशाली बालकों की पहचान कर सकते हैं।
पहचान के संकेतक -
कुछ बच्चे कम उम्र में ही उच्च क्षमता के लक्षण प्रदर्शित करते हैं। किसी एक व्यक्ति के स्तर की क्षमता स्थायी नहीं होती है, समय के साथ इनका विकास भी संभव है। किसी विशेष स्तर/स्टेज पर एक बच्चे द्वारा प्रदर्शित उच्च क्षमता दूसरे बच्चे द्वारा अलग स्तर/स्टेज पर प्रदर्शित हो सकती है। शिक्षक तथा माता-पिता द्वारा किया गया अवलोकन और अनौपचारिक आकलन विशेष रूप से बहुत छोटे बच्चों के मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उच्च क्षमता सम्बन्धी विशेषता किसी भी उम्र में प्रदर्शित हो सकती है। कुछ सुविधाएँ और अभिवृति विकास के चरण में पहचान के लिए महत्वपूर्ण हो सकतीं हैं। निम्नांकित सूची विद्यालय में प्रदर्शित किये जाने वाले संकेत (छात्रों की जरूरतों के कुछ उदाहरण) को बताती हैं, जिससे प्रतिभावान बच्चे की पहचान में सहायता मिल सकती है। यह समझाना जरुरी है कि ये संकेत मात्र है, निश्चित साधन नहीं हैं।
प्रतिभाशाली बच्चों के पहचान के तरीके -
प्रतिभाशाली बच्चों को पहचानने के लिए विधिवत अवलोकन तथा मानकीकृत परीक्षणों का प्रयोग किया जा सकता है। कुछ प्रमुख तरीके निम्नांकित हैं, जिससे हम प्रतिभाशाली बच्चों के योग्यताओं की पहचान कर सकते है -
- शिक्षक / कर्मचारियों द्वारा नाम निर्देशन / शिक्षक निर्णय
- सहकर्मी नामांकन / सहपाठी निर्णय
- उपलब्धि परीक्षण / पाठ्यक्रम की क्षमता
- जाँच सूची
- बच्चों के काम का आकलन
- पैतृक जानकारी
- बच्चों का युवा / लोगों के साथ चर्चाएँ
- विधिवत अवलोकन बुद्धि परीक्ष
- विशिष्ट योग्यता परीक्षण
- व्यक्तित्व परीक्षण
- रूचि परिक्षण
प्रतिभाशाली बच्चों के पहचान में ध्यान देने वाली बातें -
1. बच्चों में प्रतिभा की पहचान करने के क्रम में शिक्षकों या पेशेवरों को किसी एक कारक के बजाय प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों पर विचार करना चाहिए।
2. व्यक्तिगत आकलन और पर्यवेक्षण सामान्यतः उस समय विशेष में बच्चे की स्थिति को बताती हैं जबकि प्रतिभाशाली बच्चे की पहचान करने के लिए लम्बे समय में तथ्यों को संग्रह करने की आवश्यकता होती है।
3. यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिभाशाली बच्चे अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन जब हम चाहें तब कर ही दें।
4. प्रतिभाशाली बच्चों में भी विकलांगता हो सकती है। इसलिए प्रतिभा को शारीरिक या मानसिक क्षमता से अलग कर के देखा जाना चाहिए।
5. शिक्षकों तथा पेशेवर कर्मी में निहित सांस्कृतिक और अन्य पूर्वाग्रह बच्चों में प्रतिभा की पहचान करने की क्रिया में बाधक हो सकते हैं। कुछ संस्कृतियों में बच्चों को उनकी क्षमता को प्रदर्शित करने से हतोत्साहित किया जा सकता है।
6. प्रतिभाशाली बच्चों की पहचान मुश्किल हो जाती है जहाँ उनके द्वारा प्रदर्शित लक्षण सूक्ष्म या गौण होते हैं। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि सभी युवा प्रतिभाशाली बच्चे पठन क्रिया या गणित में अच्छे हों ।
7. युवा प्रतिभाशाली बच्चों को उनके प्रतिभाशाली क्षमता प्रदर्शित करने का अवसर या समर्थन की कमी भी पहचान में बाधक हो सकती है।
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा तथा उनका समायोजन
(Education & Adjustment Of Gifted Children)
प्रतिभाशाली बालक राष्ट्र की अमूल्य निधि होते हैं। अतः इनकी योग्यता का विकास करने के लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। ऐसे बालकों का बाल्यावस्था में ही चयन कर, बुद्धि एवं निष्पत्ति परीक्षणों के द्वारा उनको अपनी प्रतिभा निखारने का पूरा अवसर देना चाहिए। कई बार उचित समायोजन के अभाव व ध्यान न देने के कारण ऐसे बालक अपनी शक्ति का नकारात्मक रूप से इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं तथा भविष्य में समाज के लिए खतरा बन जाते हैं।
प्लेटो ने अपनी पुस्तक 'रिपब्लिक' में प्रतिभाशाली बालकों को विज्ञान एवं दर्शन की शिक्षा देने की वकालत की है। हॉब्सन ने बताया कि प्रतिभाशाली बालकों को किण्डरगार्टन कक्षाओं में सामान्य बालकों की अपेक्षा कम आयु में ही प्रवेश दे देना चाहिए।
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षण व्यवस्था निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है -
1. विशिष्ट कक्षाएं (Special Classes) -
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा के लिए ‘विशिष्ट कक्षा-विशिष्ट पाठ्यक्रम अभिगमन’ एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधा है। इसके अंतर्गत प्रतिभाशाली बालकों को अधिक व्यापक तथा विस्तृत पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। जिससे उनकी विशिष्ट योग्यताओं का अधिक से अधिक विकास संभव हो सके।
2. कक्षोन्नति करना (Class Promotion) -
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे बालकों की एक वर्ष में दो बार कक्षोन्नति करनी चाहिए। इससे बालक में उत्साह बढ़ता है और समय की भी बचत होती है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार,
“ऐसे बालकों को समान्यतया विभिन्न कक्षाओं का अध्ययन करना चाहिए।”
3. व्यक्तिगत शिक्षण (Individual Education) -
प्रतिभाशाली बालक उच्च मानसिक क्षमता के कारण स्वयं ही अलग - अलग विषयों का अध्ययन करना प्रारम्भ कर देता है। अध्यापक को ऐसे बालकों की प्रखरता को समझते हुए उन्हें व्यक्तिगत रूप से अलग तथा कठिन कार्य भी देना चाहिए। ऐसे बालकों को पठन एवं लेखन के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए ताकि वे भविष्य में अधिक प्रगति कर सकें।
4. सर्वांगीण विकास पर जोर देना
(Emphasis On Over - All Development) -
प्रतिभाशाली बालकों के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास होना आवश्यक है। उनकी प्रतिभा को निश्चित एवं उचित दिशा देने के लिए उन्हें निरंतर निर्देशित करते रहना चाहिए। ऐसे बालकों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, एवं नैतिक विकास के लिए सामान्य बालकों की अपेक्षा अधिक ध्यान देना चाहिए।
5. पाठ्यक्रम में समृद्धि -
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण तरीका यह है कि इनके लिए सामान्य पाठ्यक्रम की तुलना में थोड़ा कठिन एवं जटिल पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाय, जिससे ये बालक अपनी प्रतिभा के अनुरूप अधिगम कर आत्म सन्तुष्टि प्राप्त कर सकें।
6. संपुष्ट कार्यक्रम -
ऐसे बालकों को पुस्तकालय, भ्रमण आदि की सुविधा देकर उन्हें व्यापक और विस्तृत अनुभव कराया जाना चाहिए।
7. तीव्र उन्नति -
प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा देने की एक विधि यह भी है कि उन्हें शीघ्र ही अतिरिक्त उन्नति देकर अगली कक्षा में भेज दिया जाना चाहिए। उच्चतर वर्ग का पाठ्यक्रम कठिन होने से उसे ये बालक अपनी क्षमता के अनुरूप पायेंगे और अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सीखने की गति में तीव्रता बनाये रख पायेंगे।
8. व्यक्तिगत ध्यान -
ऐसे बालकों की क्षमता का अधिकतम उपयोग किया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि इन पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देकर निर्देशन व परामर्श प्रदान करते रहना चाहिए।
9. प्रोत्साहन -
इन बालकों की सीखने की गति तीव्र बनी रहे इसके लिए यह आवश्यक है कि इनको प्रोत्साहित करते रहना चाहिए । उचित अभिप्रेरणा के अभाव में ये अपनी क्षमता का उपयोग गलत दिषा में कर सकते हैं ।
10. प्रभावकारी शिक्षक -
प्रतिभाशाली बालकों को यदि योग्य शिक्षक नहीं मिल पाते तो ये अपनी प्रतिभा के अनुरूप शिक्षा न प्राप्त कर कुंठित हो जाते हैं और अनुशासन की भी समस्या पैदा कर हैं। इन्हें शिक्षण करने वाले शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह बौद्धिक रूप से सजग हो, विभिन्न प्रकार की अभिरूचि रखने वाला व अनुपयोगी (Unusual) और विविध (Diverse) प्रकार के प्रश्नों का भी उत्तर देने की क्षमता रखता हो। प्रतिभाशाली बालकों के अध्यापकों को शिक्षा मनोविज्ञान का भी ज्ञान होना चाहिए।
11. विशिष्ट कक्षा-
ऐसे बालक सामान्य कक्षाओं में अपनी सीखने की तीव्रता नहीं बनाये रख पाते और समायोजन में भी समस्या का अनुभव करते हैं। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए अलग से विशिष्ट कक्षा चलाने का सुझाव दिया है। चूँकि ऐसी कक्षा में सिर्फ प्रतिभाशाली बालक ही होते हैं, शिक्षकों के लिए एक समान ढंग से शिक्षण करना सुलभ हो जाता है। समान योग्यता वाले बालकों के साथ देने के कारण इन बालकों का कक्षा में समायोजन भी पूर्ण रूप से हो जाता है। ऐसी कक्षाओं में इनमें न तो श्रेष्ठता का भाव आता है और न ही हीनता का। बल्कि स्वस्थ प्रतियोगिता के माध्यम से ये बालक सीखने में तीव्रता बनाये रखते हैं।
12. विशिष्ट विद्यालय -
कुछ शिक्षा शास्त्री और मनोवैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि प्रतिभाशाली बालकों की प्रतिभा के साथ न्याय हो पाये इसके लिए आवश्यक है कि इनके लिए अलग से विशिष्ट विद्यालय खोले जाने चाहिए। ऐसे विद्यालयों का विशेष लाभ यह होता है कि छात्रों में एकरूपता होगी और अध्यापक के लिए शिक्षण करना आसान होगा। ऐसे विद्यालयों में एक ऐसा शैक्षिक वातावरण बन पायेगा जिसमें कक्षा के अन्दर तथा बाहर भी बालकों को अन्तः क्रिया करने में कठिनाई नहीं होगी और उनमें समायोजन से सम्बन्धित कोई समस्या भी नहीं खड़ी होगी। कई राज्य सरकारों द्वारा भी इस तरह के विद्यालय समय-समय पर खोले गये। सैनिक स्कूल भी इसी श्रेणी में आते हैं। प्रतिभाशाली बालकों की विशिष्ट आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने भी गति निर्धारण विद्यालय स्थापित किये हैं। नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालयों की स्थापना की गयी। जिसमें योग्यता के आधार पर मेधावी छात्रों का चयन कर उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली निःषुल्क शिक्षा प्रदान की जाती हैं। कई प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल भी योग्यता के आधार पर अपने यहाँ बालकों का प्रवेश लेते हैं और उन्हें गुणवत्तापूर्ण की शिक्षा प्रदान करते हैं। निःसन्देह प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा पर विषेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जिससे उनका सर्वांगीण विकास कर राष्ट्र की प्रगति में उनका योगदान प्राप्त किया जा सके।
13. अवसरों की समानता -
प्रतिभाशाली बालकों को सामान बालकों के साथ ही कक्षा में बिठाना चाहिए अन्यथा में अहम का विकास हो जाएगा। इससे पिछड़े बालकों को भी सीखने में मदद मिलेगी। ऐसे बालकों को सीखने तथा अपनी प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए।
14. सामाजिक शिक्षा -
प्रतिभाशाली बालकों के लिए सामाजिक शिक्षा की नितांत आवश्यकता है। कई बार देखा गया है कि ऐसे बालक पढ़ाई में अत्यधिक व्यस्तता के कारण कक्षा एवं समाज में अलग-थलग पड़ जाते हैं। ऐसे में उनमें अहम व असहयोग की भावना पनपने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। उनमे बुरी आदतों को रोकने के लिए सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए और सहगामी क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
15. विशेष अध्ययन की सुविधाएं प्रदान करना -
प्रतिभाशाली बालकों को विभिन्न परिस्थितियों में अनुकूलन के योग्य बनाना चाहिए। इन बालकों में अध्ययन के प्रति अत्यधिक रूचि होती है। ऐसे में अध्यापक को उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए बेहतर पुस्तकालय एवं प्रयोगशाला की व्यवस्था करनी चाहिए। प्रतिभाशाली बालकों में रूचियों का बाहुल्य होता है ऐसे में उनकी मान्यताओं को पर्याप्त स्वतंत्रता देते हुए उनको विभिन्न क्रियाओं में सक्रिय रखना चाहिए।
निष्कर्ष -
प्रतिभाशाली बच्चों की विशिष्ट आवश्यकता को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने गतिनिर्धारक स्कूल (Pace Settings School) स्थापित किए हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में प्रावधान किया गया है कि, देश के प्रत्येक जिले में एक नवोदय विद्यालय खोला जाएगा। जिसमें योग्यता के आधार पर छात्रों का चयन करके उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली निःशुल्क आवासीय शिक्षा प्रदान की जाएगी। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मेधावी छात्रों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रकार की योग्यता छात्रवृत्तियाँ (Merit Scholarships) भी प्रदान की जाती हैं।
निःसन्देह देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करने तथा उसे आगे बढ़ाने के लिए मेधावी छात्रों की जरूरत है एवं इसके लिए उन की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जिससे उच्च कोटि के वैज्ञानिक चिंतक तथा आविष्कर्ता मिल सकें। इसके लिए मेधावी बालकों की शिक्षा पर प्रारम्भ से ही विशेष ध्यान देना समाज तथा राष्ट्र दोनों का एक पुनीत कर्तव्य है।
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