निरीक्षण या अवलोकन विधि (Observation Method)

अवधारणा -

यह विधि भूगोल अध्यापन के सभी स्तरों पर उपयोगी है। किंतु प्राथमिक कक्षाओं में विशेष रूप से उपयोगी है। इन कक्षाओं का बालक प्रारंभिक अवस्था में अपने घरेलू, ग्रामीण तथा नागरिक वातावरण के संपर्क में आता है। वह उनका स्वयं निरीक्षण कर अपने तथा वातावरण के संबंधों का अनुभव कर उनके विषय में सोचता है और उनसे अधिक संपर्क स्थापित कर अपने अनुभव बढ़ाता है। भौगोलिक तथ्यों का संग्रह निरीक्षण द्वारा सरलता से किया जा सकता है।

प्रत्यक्ष दर्शन, ज्ञान तथा अनुभव से बालक का ज्ञान निरंतर बढ़ता जाएगा और इसके आधार पर वह अन्य स्थानों की समान परिस्थितियों की कल्पना कर सकेगा। शिक्षक को चाहिए कि वह सावधानीपूर्वक बालक का उचित मार्ग-निर्देशन करें, जिससे बालक के मस्तिष्क में मिथ्या धारणाएं ना बनने पाएं। निरीक्षण क्रिया मे आकर्षण और मनोरंजन होना चाहिए। बड़े होने पर बालक का निरीक्षण अधिक स्वच्छ, बुद्धिगम्य और तर्क युक्त होकर अंत मे कार्य कारण के संबंधों को स्थापित करने की ओर उन्मुख होता है।



यह ज्ञानार्जन का वह सुबोध तथा प्रभावशाली साधन है, जिसके द्वारा बालक स्वयं क्रियाशील रहकर किसी वस्तु या तथ्यों का पता लगाता है। जो ज्ञान छात्र निरीक्षण या अवलोकन द्वारा प्राप्त करता है। वह स्थाई होता है तथा उसके संपूर्ण ज्ञान का एक भाग बन जाता है इसमें शिक्षक स्वयं न बताकर छात्रों को निरीक्षण करने के लिए प्रेरित करता है और छात्र पर्यावलोकन तथा निरीक्षण करके स्वयं ज्ञानार्जन करते हैं। शिक्षक इस विधि का प्रयोग प्रायः शिक्षा के सभी स्तरों पर कर सकता है। परंतु इसका प्रयोग प्रारंभिक और माध्यमिक कक्षाओं में अधिक लाभदायक सिद्ध होगा क्योंकि इस स्तर पर छात्रों को सामाजिक, प्राकृतिक दशाओं का ज्ञान कम होता है। इस विधि के प्रयोग से छात्र इनका निरीक्षण तथा पर्यावलोकन करके वस्तुनिष्ठ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे छात्रों को पुस्तक तथा व्याख्यान के आधार पर दिए हुए सिद्धांत कम समझ में आते हैं तथा अस्थाई रहते हैं।


निरीक्षण विधि की विशेषताएं -

इस विधि की निम्नलिखित विशेषताएं हैं -

  1. इसमें छात्रों में अवलोकन, निर्णय, चिंतन तथा स्वतंत्र अभीव्यंजना शक्ति का विकास होता है।
  2. इस विधि के द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान अधिक समय तक स्थाई होता है।
  3. इस विधि के प्रयोग से विद्यार्थियों में विषय के प्रति रुचि एवं जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
  4. अवलोकन विधि का प्रयोग छात्रों को बाह्य जगत के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायक होता है।
  5. इस विधि के प्रयोग से छात्रों के ज्ञान भंडार में स्थाई वृद्धि होती है।
  6. यह विधि स्थूल वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करने में सबसे उत्तम है।

निरीक्षण विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है इसके प्रयोग से विद्यार्थी की ज्ञानेंद्रियां का विकास होता है।


निरीक्षण विधि की प्रविधियां 
(Techniques of observation method) -

1. स्थानीय परिदर्शन (Local Visits) -

छोटी कक्षाओं में इस विधि का प्रयोग गृह प्रदेश के भूगोल (home region geography) से शुरू किया जाता है।


2. क्षेत्रीय पर्यटन (Field Trips) -

इस विधि का प्रयोग विभिन्न प्रकार के मिट्टी, विभिन्न प्रकार के फसले, यातायात के साधन आदि को पढ़ाने के लिए किया जाता है। क्षेत्रीय पर्यटन के माध्यम से क्षेत्र विशेष का अवलोकन करके उनके विषय में प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।


3. शैक्षिक पर्यटन (Educational Trips) -

इस विधि का प्रयोग से विभिन्न स्थल कृतियों, पृथ्वी की बाह्य शक्तियों, ज्वार भाटा, वन, मिट्टी, खनिज, उद्योग धंधे, विभिन्न प्रकार की फसलें, विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों आदि को पढ़ाने के लिए किया जा सकता है।

निरीक्षण पद्धति की सफलता के लिए आवश्यक है कि अध्यापक बालकों को जिस स्थान पर ले जाए उसे वह पूर्व में ही देख लें तथा उसके बारे में योजना बना ले।


निरीक्षण विधि के लाभ 
(Merits of observation method) -

  1. इस विधि द्वारा ज्ञान स्थाई होता है।
  2. क्रियाशीलता के सिद्धांत का पालन करती है।
  3. निरीक्षण विधि द्वारा बालक वास्तविक स्थिति में ज्ञान प्राप्त करता है।
  4. निरीक्षण विधि द्वारा छात्रों में सीखने की जिज्ञासा एवं उत्सुकता बनी रहती है।
  5. छात्रों मे कल्पना शक्ति एवं तुलनात्मक शक्ति का विकास होता है।


निरीक्षण विधि से हानि 
(Demerits of observation method) -

  1. इस विधि द्वारा सीखने में समय अधिक लगता है।
  2. यह विधि अत्यंत खर्चीली है।
  3. इस विधि के प्रयोगों से अव्यवस्था एवं अनुशासनहीनता उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
  4. अभिभावक की स्वीकृति मांगना आवश्यक होता है और कई अभिभावक इसके लिए राजी नहीं होते हैं।

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