शारीरिक दृष्टि से अक्षम या विकलांग बालक (Physically Handicapped Or Disabled Children)

शारीरिक दृष्टि से  अक्षम या विकलांग बालक 

(Physically Handicapped Or Disabled Children)


ऐसे व्यक्ति जिनमें ऐसा शारीरिक दोष होता है जो किसी भी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग देने से रोकता है या उसे सीमित रखता है ऐसे व्यक्ति को हम साजिक रूप से अक्षम या विकलांग व्यक्ति कह सकते हैं।


दूसरे शब्दों में, विकलांग बालक शब्द से तात्पर्य किसी स्थायी शारीरिक दोष से युक्त बालकों से है। स्थायी शारीरिक दोष के कारण बालक सामान्य बालकों की सामान्य क्रियाओं में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं। अपंग, अन्धे, बहरे तथा वाणी दोष से युक्त बालक विकलांग बालकों की श्रेणी में आते हैं। विकलांग बालकों में शारीरिक दोष अवश्य होता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वे मानसिक दृष्टि से भी अयोग्य हों। विकलांग बालकों की मानसिक योग्यता प्रायः साधारण अथवा तीव्र होती है परन्तु शारीरिक दोष के कारण उनमें हीन भावना आ जाती है। इसलिए ऐसे बालकों की शिक्षा की उचित व्यवस्था की अत्यन्त आवश्यकता होती है। 



विकलांग बालकों की शिक्षा व्यवस्था में निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए -


  1. ऐसे बालकों के लिए उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप जरूरी सुविधाओं वाले विद्यालय खोले जाने चाहिए। 


  1. चिकित्सकों से परामर्श लेकर इन बालकों के लिए आवश्यक चिकित्सा देखभाल व सुविधा, उपकरणों तथा अन्य साधनों को उपलब्ध कराना चाहिए।


  1. विकलांग बालकों की हीन भावना को दूर करने के लिए माता-पिता तथा शिक्षकों को सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। 


  1. शिक्षा संस्थानों में अपंग बालकों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने एवं बैठने के लिए  उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।


  1. अपंग बालकों को उनकी विशिष्ट परिस्थिति के अनुरूप आवश्यकतानुसार उचित व्यवसायिक शिक्षा देनी चाहिए। 


  1. दृष्टिदोश से पीड़ित तथा अंधे बच्चों को ब्रेल प्रणाली (Braille Method) के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। 


  1. तुतलाने , हकलाने अथवा किसी अन्य उपचार योग्य कमियों वाले बालकों का मनोवैज्ञानिक उपचार कराना चाहिए। 



विकलांग की समस्याएँ —


ग्रसितता चाहे थोड़ी हो या अधिक, किन्तु ग्रसित व्यक्ति को अपने समायोजन में अनेकानेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसका कारण उसकी शारीरिक कुरूपता या बेढंगापन होता है। ग्रसित साधारणतः इच्छित क्रियाओं में भाग लेने के योग्य नहीं होता है, अतः उसे सन्तोषजनक दूसरी रुचियों की आवश्यकता होती है। उसकी अयोग्यता उसकी संवेगात्मक समस्याओं के रूप में विकसित होती है। जैसे - क्रोध और हतोत्साहन। अतएव उसके समायोजन के लिए इन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। ग्रसित के अन्तर में यह भावना भी जाग्रत हो जाती है कि दूसरे उसके बारे में शारीरिक दोष के कारण बहुत ही हीन विचार रखते हैं। इसी प्रकार से विचार निरन्तर उसके मस्तिष्क में उठा करते हैं और इन्हीं के परिणामस्वरूप उसके अन्दर आत्मदैन्य की भावना उत्पन्न हो जाती है। 


कभी-कभी हीनता का कारण अवांधित घर और वातावरण की दशाएँ होती हैं या उनको न दी गई या देर से दी गई औषधि भी कारण हो सकती है। ऐसे बालकों की यदि वातावरण सम्बन्धी दशाओं में सुधार कर दिया जाय, तो उनके समायोजन की समस्या हल हो सकती है। शारीरिक ग्रसित आवश्यक रूप से मानसिक दोषयुक्त नहीं होते। अधिकतर उदाहरणों में शारीरिक ग्रसित साधारण या उच्च बुद्धि रखते हैं। इस प्रकार इनकी शारीरिक ग्रसितता को दूर करने या उसे पूरा करने के लिए हमे अपनी मानसिक शक्तियों, बुद्धि इत्यादि को पूरा-पूरा विकास करने में सहायता प्रदान चाहिए।


विकलांग बालक और शिक्षा —


केवल उनके शारीरिक दोषों को निकाल कर शारीरिक ग्रसित व्यक्ति साधारण बालक के समान होते हैं। अतः ऐसे बालकों को उन सब शैक्षिक क्रियाओं की सुविधा देनी चाहिए जो एक साधारण बालक को दी जाती है। किन्तु हमें उनके शारीरिक दोषों को भी सदैव ध्यान में रखना चाहिए। 


केवल उन व्यक्तियों को छोड़कर जो इस प्रकार के गम्भीर दोष रखते हैं, जो उनके काम में बाधा डाल सकते हैं, बाकी सबको उचित व्यावसायिक शिक्षा का आयोजन होना चाहिए। जो बालक गम्भीर दोषयुक्त हैं, उनके लिए हमें इस प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए जो वह शारीरिक दोष के होते हुए भी ग्रहण कर सकें। व्यावसायिक समायोजन उनके अन्दर आत्म-सम्मान  की भावना उत्पन्न कर देगा और वह अपने जीवन को महत्त्वपूर्ण बनाने के योग्य हो जायेंगे। इसके लिए उन्हें उस क्षेत्र में विकसित होने का अवसर दिया जाय जिसके लिए वे मानसिक और शारीरिक दृष्टिकोण से उपयुक्त हैं।  


शिक्षा के द्वारा शारीरिक ग्रसितों के सामाजिक समायोजन को भी देखना चाहिए। ग्रसित को हमेशा दोष के प्रति यथार्थ भावना उत्पन्न करने की प्रेरणा देनी चाहिए। साथ ही किसी कार्य को करने की योग्यता पर भी उसे बल देना चाहिए। ग्रसित को प्रयोगात्मक रूप में कार्य करने का अवसर देना चाहिए जिन्हें वह अपनी पूर्ण शक्ति की सीमानुसार करे। जिससे उसका ध्यान शारीरिक ग्रसितता से हो जाय। उसको इस प्रकार प्रेरणा देनी चाहिए कि वह यह समझे कि वह अपने समूह का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। 


शारीरिक दृष्टि से  अक्षम या विकलांग बालक  के प्रकार—


इस प्रकार बालको या व्यक्तियों को हम निम्न रूप में विभक्त कर सकते हैं -


  1. अपंग (Handicap)

  2. संपूर्ण और अर्ध अंधे (Visually Impaired)

  3. पूर्ण बधिर और अपूर्ण बधिर (Hearing Impaired)

  4. हकलाने या दोष युक्त वाणी  वाले (Stammer)

  5. निर्बल  या कोमल (Weak Or Soft)


पाठ्यक्रम की आवश्यकता अनुसार, हम निम्न प्रकार के शारीरिक दृष्टि से अक्षम बालकों के बारे में विस्तार से जानेंगे -




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