माँग-आधारित परीक्षा या ऑन डिमांड परीक्षा (On Demand Exam)
माँग-आधारित परीक्षा (On Demand Exam) -
‘माँग-आधारित परीक्षा’ या ‘ऑन डिमांड परीक्षा‘ उस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार जब एक विद्यार्थी को आवश्यकता या सुविधा हो तो उसके अनुसार उसकी माँग होने पर ही उसकी परीक्षा ली जाए। परीक्षा या आंकलन के इस वैकल्पिक स्वरूप को शुरू करने की जरूरत परंपरागत परीक्षा प्रणाली में आवश्यक लचीलापन लाने की जरूरत के कारण हो महसूस की गई। यह तो एक खुला तथ्य है कि पूर्ण वर्ष में एक निश्चित तिथि पर एक बार या दो बार परीक्षा लेने की परंपरागत प्रणाली अधिगमकर्ता के आंकलन में खुलापन और लचीलापन के मापदंड को प्राप्त नहीं कर सकती है। ऑन-डिमांड परीक्षा की अवधारणा विद्यार्थियों को जरूरी लचीलापन, खुलापन और स्वतंत्रता देने के विचार के कारण ही अस्तित्व में आई, जिससे विद्यार्थियों का अपनी अधिगम गति के अनुसार मूल्यांकन या आंकलन किया जा सके।
ऑन-डिमांड परीक्षा प्रणाली की विशेषताएँ —
ऑन-डिमांड परीक्षा प्रणाली की विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-
परीक्षा की यह अभिनव योजना शिक्षार्थी-अनुकूल है।
अधिक लचीली तथा परीक्षा के पारंपरिक नियत समय सीमा से मुक्त।
छमाही सत्र के समापन पर होने वाली परीक्षा के लिए प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं।
परीक्षा के दिन ही प्रश्न पत्रों के विभिन्न सेट बनाए जाते हैं।
कदाचार (malpractices) अथवा अनुचित साधनों का प्रयोग किए जाने को कम से कम संभावना।
भविष्य में सत्र के अंत में होने वाली परीक्षाओं के बोझ को कम करती है।
यह विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा परीक्षा की संपूर्ण व्यवस्था के कार्यभार को कम करती है।
ऑन-डिमांड परीक्षा प्रणाली के लाभ —
ऑन-डिमांड परीक्षा प्रणाली के लाभ निम्नानुसार हैं-
यह विद्यार्थियों को, जब भी वे तैयार हों तो परीक्षा देने की अनुमति प्रदान करती है। यह तैयारी संस्था या विभाग पर नहीं बल्कि विद्यार्थियों पर निर्भर करती है।
यह विद्यार्थियों को अपनी परीक्षा की तिथि का चयन करने की अनुमति देती है।
यह परीक्षा में फेल होने के भय को कम करती है।
यह सत्र के अंत में होने वाली परंपरागत परीक्षा से सामान्यत: उत्पन्न भग्नाशा या हताशा, आत्मगौरव की समाप्ति, सहपाठियों की भर्त्सना और निराशा आदि को दूर करती है।
इसमें विद्यार्थी अपने अधिगम निष्पत्ति के स्तर और डिग्री के बारे में स्वयं निर्णय लेता है। निष्पत्ति स्तर असंतोषजनक होने पर उसमें सुधार करने के लिए वह जितनी बार चाहे परीक्षा में बैठ सकता है, जब तक कि उसे संतुष्टि प्राप्त न हो जाए।
यह व्यवस्था परीक्षा में होने वाली दूषित प्रवृत्तियों पर भी अंकुश लगाती है क्योंकि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक वैयक्तिक विद्यार्थी के लिए अलग-अलग परीक्षा उपकरण का प्रयोग किया जाता है। प्रश्न पत्र विद्यार्थी के कठिनाई स्तर के अनुसार अलग-अलग होते हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें