पं० मदन मोहन मालवीय (PT. MADAN MOHAN MALVIYA)
भारतीय चिंतक पं० मदन मोहन मालवीय
INDIAN THINKERS PT. MADAN MOHAN MALVIYA
(1861-1946 )
पं० मदन मोहन मालवीय जी के जीवन और कार्य
जीवन और कार्य — पं० मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद के अहियापुर मुहल्ला (इसे अब मालवीय नगर कहते हैं।) में 25 दिसम्बर, 1861 ई ० में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० ब्रजनाथ व्यास और माता का नाम श्रीमती मूना देवी था। इनका परिवार साधारण था, पिता कथा वार्ता से जीवन निर्वाह करते थे। वे बड़े धर्मनिष्ठ, कट्टर एवं मृदुभाषी थे। इनकी माता बड़े सरल, उदार एवं कोमल हृदय वाली थी, जिससे सारे मुहल्ले में वे लोकप्रिय थीं। यह छाप पं० मदन मोहन मालवीय पर भी पड़ी। घर पर ही इनको नागरी और संस्कृत को शिक्षा शुरू में मिली। बुद्धि के तेज होने से इन्होंने बहुत से श्लोक कंठस्थ का लिये। बाद में पं० हरदेवजी की धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला और फिर पं० देवकीनन्दजी द्वारा व्यवस्थापित विद्या धर्म प्रवर्द्धनी सभा की पाठशाला में इन्हें संस्कृत और धर्म की शिक्षा मिली। संस्कृत पढ़ते हुए पं० मदन मोहन को अंग्रेजी पढ़ने का शौक हुआ। आर्थिक कठिनाई होते हुए भी पिता ने इनको अंग्रेजी पढ़ाना स्वीकार किया। इनके पिता ने इलाहाबाद जिला स्कूल जी आजकल के घंटाघर के सामने म्युनिसपेलिटी दफ्तर के भवन में था, इनका नाम लिखा दिया। रूखा - सूखा खाकर यह विद्यालय पहुँचते परन्तु शीघ्र ही अंग्रेजी के उच्चारण, हिज्जे, लिखावट और बोलने में इनको सफलता मिल गयी।
हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद मदन मोहन ने कॉलेज की शिक्षा के लिए इच्छा प्रकट की। आर्थिक असमर्थता होते हुए भी पं० बजनाथ ने इन्हें म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में भर्ती करा दिया। कॉलेज में यह अभिनय, वाद - विवाद आदि सांस्कृतिक और सहपाठ्यक्रमीय क्रियाओं में पूर्ण दक्षता के साथ भी भाग लेते थे। म्योर कॉलेज में संस्कृत के अध्यापक पं० आदित्य राम भट्टाचार्य के प्रभाव से मदन और भी आगे बढ़े। उनके प्रभाव से इन्होंने 1880 ई० में 'हिन्दू समाज' स्थापित किया। सन् 1881 ई ० में इनका विवाह मिर्जापुर के पं० नन्दराम की कन्या कुन्दन देवी से हो गया। अब पं० मदन मोहन समाज के काम में लग गये। सन् 1884 ई ० में हिन्दू धर्म और समाज को संगठित करने के लिए 'हिन्दू समाज' इलाहाबाद में स्थापित किया और बड़े - बड़े लोगों को उत्सव के अवसर पर बुलाया। इसी समय इन्होंने 'लिटरेरी इन्स्टीट्यूट' साहित्यिक विषयों पर चर्चा करने के लिए स्थापित किया। सन् 1881 ई० में एम० ए० और 1884 ई० में बी० ए० पास किया। आगे संस्कृत में एफ० ए० करने की इच्छा हुई और अध्ययन भी शुरू किया लेकिन वह पूरा न हो सका।
सन् 1884 के लगभग घर की आर्थिक दशा ठीक न रही क्योंकि परिवार बहुत बड़ा हो गया था और पिता वृद्ध हो चले थे। अतः माता - पिता की सहायता के लिए इन्होंने गृहस्थी का भार अपने ऊपर ले लिया। बी० ए० पास करने के बाद मदन मोहन को गर्वनमेण्ट हाईस्कूल में अध्यापक का कार्य मिल गया। अध्यापक होने पर इन्होंने अपने को मदन मोहन मालवीय कहा और बाद में इनके परिवार वालों तथा अन्य श्री गौण ब्राह्मणों ने 'मालवीय' उपाधि रख ली।
देश सेवा की भावना तथा राजा कालाकांकर के सम्पर्क से 1887 ई० में इन्होंने अध्यापन कार्य छोड़कर उनके पत्र 'हिन्दुस्तान' का सम्पादन आरम्भ किया। सन् 1889 ई ० में कुछ मित्रों के सहयोग से 'भारती भवन' पुस्तकालय स्थापित किया। परन्तु मन उसमें भी न लगा और 1891 ई० में वकालत पास करके हाईकोर्ट इलाहाबाद में एडवोकेट हो गये। 1901 ई० में आप इलाहाबाद म्युनिसिपल बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी चुने गये और इस पद पर 1904 ई० तक रहे। 1901 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों को रहने की कठिनाई को हल करने के लिए 'मैकडानेल हिन्दू बोर्डिंग हाउस' स्थापित किया। आज इसका नाम 'मदन मोहन मालवीय यूनिवर्सिटी कॉलेज' हो गया है। राजनैतिक क्षेत्र में अब आप भी आ गये थे और इसलिए 1902 ई ० में प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के सदस्य इलाहाबाद क्षेत्र से चुने गये। सन् 1907 ई ० में आप ने इलाहाबाद से 'अभ्युदय पत्र' निकालना शुरू किया जिसमें आप अपने विचार प्रकट करते रहे। 1909 ई० में विजय दशमी के दिन आपने 'लीडर' अखबार की नींव डाली।
समाज की दशा सुधारने के लिए उन्होंने शिक्षा तथा शिक्षा संस्था के लिए प्रयत्न किया। सन् 1898 ई ० में श्रीमती एनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित सेण्ट्रल हिन्दू कॉलेज ने मालवीयजी का ध्यान इस ओर क्रियाशील बना दिया था और फलस्वरूप उन्होंने भी 4 फरवरी, 1916 ई० को 'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' की नींव डाली जो आज विश्व के विद्यालयों में एक महान स्थान रखता है। यह कार्य उस समय के वायसराय लार्ड हार्डिज द्वारा हुआ था। अब तो पूर्णतया महामना मालवीय इसके विकास में लग गये और सारे भारतवर्ष के लोगों से रुपया इकट्ठा किया। अब लगातार वह हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के उद्धार में लगे। सन् 1918 ई ० में उन्होंने रॉलेट ऐक्ट का विरोध किया।
1929 ई ० में 'गोलमेज परिषद्' की लॉर्ड इरविन ने घोषणा की थी जिससे की भारत का झगड़ा जावे। इसका श्रेय मालवीयजी को है। सन् 1930 ई ० में राज्य विरोधी जुलूस में पकड़े गये और जेल भी गये। 29 अगस्त सन् 1931 को 'गोलमेज परिषद् में भाग लेने के लिए ब्रिटिश सरकार के द्वारा इंग्लैण्ड बुलाये गये। 14 जनवरी, 1932 ई० को इंग्लैण्ड से वापस आये। 1932 ई ० में कांग्रेस के कार्यों में फिर तेजी आयी और आप भी उसमें लगे। 1933 ई ० में इन्होंने हिन्दू - मुस्लिम एकता के लिए भी जोरदार अपील की। 1934 ई ० में बिहार में बहुत भयंकर भूकम्प आया जिसमें सेवा एवं सहायता कार्य में मालवीयजी ने काम शुरू किया।
मालवीय जी 1919 से 1939 ईस्वी तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप कुलपति बने रहे। इसके साथ इधर-उधर देश में अन्य कार्य करते रहे। सन 1939 ईस्वी में वह विश्वविद्यालय के रेक्टर हो गए और आमरण उस पद पर रहे। सन 1946 ईस्वी में 12 नवंबर को संध्या समय महामना मदन मोहन मालवीय जी का महाप्रयाण काशी में हुआ था।
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