अपंगता, अक्षमता और विकलांगता में अंतर (Difference Between Impairment, Disability And Handicap)
अपंगता, अक्षमता और विकलांगता;
अपंगता, अक्षमता और विकलांगता, ये तीनों शब्द अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं, जिससे इनके अर्थ और प्रभाव में भ्रम पैदा होता है। इन शब्दों के बीच के सूक्ष्म अंतर को समझना समावेशी समाज के निर्माण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल व्यक्तियों की आवश्यकताओं और अधिकारों को समझने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह सामाजिक दृष्टिकोण और नीतियों को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस लेख में, हम इन तीनों शब्दों के अर्थ, परिभाषाएं, उदाहरण, ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ, विभिन्न मॉडलों, और इनके बीच के अंतरों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि एक स्पष्ट और व्यापक समझ विकसित हो सके।
1. अपंगता (Impairment): शरीर की संरचना में बदलाव
अपंगता एक शारीरिक या मानसिक संरचना या कार्य में कोई कमी, क्षति, या असामान्य स्थिति है। यह किसी अंग, इंद्रिय, या तंत्रिका तंत्र में हो सकती है। अपंगता एक चिकित्सा स्थिति है और इसे डॉक्टर द्वारा निदान किया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अपंगता स्वयं विकलांगता नहीं है, बल्कि यह विकलांगता का कारण बन सकती है। अपंगता को बायोमेडिकल मॉडल के तहत देखा जाता है, जो व्यक्ति के शरीर पर केंद्रित होता है।
- उदाहरण: पोलियो के कारण एक पैर का काम न करना, किसी दुर्घटना में हाथ का खो जाना, जन्म से अंधा होना, सुनने में कठिनाई, मानसिक मंदता, सेरेब्रल पाल्सी, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी, आदि।
2. अक्षमता (Disability): कार्य करने में कठिनाई
अक्षमता एक अपंगता के कारण होने वाली कार्यात्मक सीमाओं को संदर्भित करती है। यह किसी विशेष कार्य को करने में कठिनाई या असमर्थता है। अक्षमता व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक, संवेदी, या अन्य क्षमताओं को प्रभावित कर सकती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अक्षमता हमेशा अपंगता के कारण नहीं होती है; यह किसी बीमारी, चोट, या आनुवंशिक स्थिति के कारण भी हो सकती है। अक्षमता को बायोसाइकोसोशल मॉडल के तहत देखा जाता है, जो व्यक्ति और उसके वातावरण के बीच की बातचीत पर केंद्रित होता है।
- उदाहरण: पोलियो के कारण एक पैर का काम न करने से चलने में कठिनाई, हाथ खोने के कारण लिखने या अन्य कार्य करने में कठिनाई, अंधेपन के कारण पढ़ने या देखने में कठिनाई, मानसिक मंदता के कारण सीखने या समझने में कठिनाई, सेरेब्रल पाल्सी के कारण चलने, बोलने, या खाने में कठिनाई, आदि।
3. विकलांगता (Handicap): सामाजिक नुकसान
विकलांगता एक सामाजिक नुकसान है जो किसी व्यक्ति को उसकी अपंगता या अक्षमता के कारण होता है। यह सामाजिक, आर्थिक, या सांस्कृतिक बाधाओं के कारण हो सकता है। विकलांगता व्यक्ति की भूमिका निभाने, गतिविधियों में भाग लेने, और समाज में समान अवसर प्राप्त करने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विकलांगता व्यक्ति की अपनी समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की समस्या है। विकलांगता को सामाजिक मॉडल के तहत देखा जाता है, जो समाज में मौजूद बाधाओं पर केंद्रित होता है।
- उदाहरण: एक व्यक्ति जो व्हीलचेयर का उपयोग करता है, वह अपंग है (क्योंकि उसके पैर काम नहीं करते), अक्षम है (क्योंकि उसे चलने में कठिनाई होती है), और विकलांग है (क्योंकि कई इमारतों में रैंप नहीं हैं, जिससे उसे प्रवेश करने में कठिनाई होती है)। एक अंधा व्यक्ति अपंग है (क्योंकि उसकी दृष्टि नहीं है), अक्षम है (क्योंकि वह देख नहीं सकता), और विकलांग हो सकता है (अगर समाज उसे ब्रेल सामग्री, सहायक तकनीक, या सुलभ वातावरण प्रदान नहीं करता है तो वह शिक्षा या रोजगार प्राप्त करने में सक्षम नहीं होगा)।
अंतर: और गहराई से
विशेषता | अपंगता (Impairment) | अक्षमता (Disability) | विकलांगता (Handicap) |
---|---|---|---|
परिभाषा | शारीरिक या मानसिक संरचना या कार्य में कमी या क्षति | अपंगता के कारण होने वाली कार्यात्मक सीमाएं | सामाजिक नुकसान जो अपंगता या अक्षमता के कारण होता है |
प्रकृति | चिकित्सा/जैविक | कार्यात्मक | सामाजिक/पर्यावरणीय |
फोकस | शरीर/अंग की कमी | कार्य करने की क्षमता में कमी | समाज में भागीदारी में कमी |
कारण | बीमारी, चोट, आनुवंशिक स्थिति, आदि | अपंगता के कारण | सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक बाधाएं |
मॉडल | बायोमेडिकल | बायोसाइकोसोशल | सामाजिक |
समाधान | चिकित्सा उपचार, पुनर्वास | कौशल विकास, सहायक उपकरण | सामाजिक परिवर्तन, बाधाओं को दूर करना |
ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ:
विकलांगता को समझने के लिए इसके ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ को जानना जरूरी है। पहले, विकलांगता को एक व्यक्तिगत समस्या या "ईश्वर का श्राप" माना जाता था। विकलांग व्यक्तियों को समाज से अलग-थलग रखा जाता था और उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता था। धीरे-धीरे, विकलांगता के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव आया है। अब, विकलांगता को एक सामाजिक मुद्दा माना जाता है, और विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और समावेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
विभिन्न मॉडल:
- चिकित्सा मॉडल: यह मॉडल विकलांगता को व्यक्ति की समस्या मानता है और उसका ध्यान व्यक्ति के "इलाज" या "पुनर्वास" पर होता है। यह मॉडल व्यक्ति को "रोगी" या "पीड़ित" के रूप में देखता है।
- सामाजिक मॉडल: यह मॉडल विकलांगता को व्यक्ति की समस्या नहीं, बल्कि समाज की समस्या मानता है। यह मॉडल उन सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक बाधाओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो विकलांग व्यक्तियों को समाज में समान रूप से भाग लेने से रोकते हैं। यह मॉडल व्यक्ति को "नागरिक" और "अधिकार धारक" के रूप में देखता है।
- बायोसाइकोसोशल मॉडल: यह मॉडल विकलांगता को जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारकों के संयोजन के रूप में देखता है। यह मॉडल व्यक्ति और उसके वातावरण के बीच की बातचीत पर केंद्रित होता है।
समावेशी समाज का निर्माण:
समावेशी समाज वह है जो सभी व्यक्तियों को, उनकी विभिन्नताओं के बावजूद, समान अवसर और अधिकार प्रदान करता है। समावेशी समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि हम अपंगता, अक्षमता, और विकलांगता के बीच के अंतर को समझें और सामाजिक मॉडल को अपनाएं। हमें उन बाधाओं को दूर करना होगा जो विकलांग व्यक्तियों को समाज में भाग लेने से रोकती हैं। हमें इमारतों, परिवहन, सूचना, और संचार को सभी के लिए सुलभ बनाना होगा। हमें विकलांग व्यक्तियों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलना होगा और उन्हें सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करना होगा। हमें यह भी समझना होगा कि समावेश केवल भौतिक पहुंच तक सीमित नहीं है; इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक समावेशन भी शामिल है।
समावेशी समाज की नींव: कुछ और पहलू
समावेशी समाज की स्थापना के लिए केवल भौतिक और नीतिगत बदलाव ही पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए हमें कुछ और मूलभूत पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा:
- मानवीय गरिमा और सम्मान: समावेशी समाज हर व्यक्ति की मानवीय गरिमा और सम्मान को मान्यता देता है। यह मानता है कि हर व्यक्ति, चाहे उसकी क्षमता कुछ भी हो, समाज में समान रूप से महत्वपूर्ण है और उसे सम्मान के साथ जीने का अधिकार है।
- समान अवसर: समावेशी समाज हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करता है, ताकि वह अपनी पूरी क्षमता का विकास कर सके और समाज में अपना योगदान दे सके। इसका अर्थ है शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और अन्य सामाजिक सेवाओं तक समान पहुंच।
- सशक्तिकरण और स्वायत्तता: समावेशी समाज व्यक्तियों को सशक्त बनाता है और उन्हें अपने जीवन पर नियंत्रण रखने में मदद करता है। इसका अर्थ है उन्हें अपनी बात कहने, अपने निर्णय लेने, और अपने अधिकारों का प्रयोग करने का अवसर देना।
- विविधता का उत्सव: समावेशी समाज विविधता का जश्न मनाता है और उसे अपनी ताकत मानता है। यह मानता है कि विभिन्न पृष्ठभूमि, क्षमता, और अनुभवों वाले लोग समाज को समृद्ध बनाते हैं।
- सहयोग और साझेदारी: समावेशी समाज के निर्माण के लिए सभी हितधारकों के बीच सहयोग और साझेदारी आवश्यक है। सरकार, नागरिक समाज, निजी क्षेत्र, समुदाय, परिवार, और व्यक्तियों सभी को मिलकर काम करना होगा।
समावेशी समाज: कुछ और उदाहरण
- एक समावेशी स्कूल वह है जो सभी बच्चों को, उनकी विभिन्नताओं के बावजूद, एक साथ सीखने और विकसित होने का अवसर प्रदान करता है। इसमें न केवल विकलांग बच्चे बल्कि हर प्रकार की भिन्नता वाले बच्चे शामिल होते हैं - चाहे वे सीखने में धीमे हों, प्रतिभाशाली हों, या किसी अन्य प्रकार की चुनौती का सामना कर रहे हों।
- एक समावेशी कार्यस्थल वह है जो विकलांग व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करता है और उन्हें उनकी क्षमताओं के अनुसार काम करने में सक्षम बनाता है। यह केवल नौकरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कार्यस्थल का वातावरण, सुविधाएं, और सहकर्मियों का व्यवहार भी शामिल है।
- एक समावेशी समुदाय वह है जो सभी व्यक्तियों को, उनकी विभिन्नताओं के बावजूद, स्वीकार करता है और उनका सम्मान करता है। यह एक ऐसा समुदाय है जहाँ हर कोई सुरक्षित महसूस करता है, अपनी बात कह सकता है, और समाज में सक्रिय रूप से भाग ले सकता है।
समावेशी समाज: वैश्विक परिप्रेक्ष्य
समावेशी समाज की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर मान्यता दी गई है। संयुक्त राष्ट्र (UN) और यूनेस्को (UNESCO) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए हैं। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो समावेशी समाज के अधिकार को मान्यता देता है। कई देशों ने समावेशी समाज को अपने संविधान और कानूनों में शामिल किया है। हालांकि, अभी भी कई देशों में समावेशी समाज के निर्माण में चुनौतियां हैं।
समावेशी समाज: भारत में स्थिति
भारत सरकार ने भी समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 एक महत्वपूर्ण कानून है जो विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है और उनके समावेशन को बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी समावेशी शिक्षा पर जोर देती है। हालांकि, भारत में भी समावेशी समाज के निर्माण में कई चुनौतियां हैं, जिनमें गरीबी, सामाजिक भेदभाव, और जागरूकता की कमी शामिल हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्रों में और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
समावेशी समाज: भविष्य की दिशा
समावेशी समाज का भविष्य उज्जवल है। वैश्विक स्तर पर समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। प्रौद्योगिकी के विकास ने समावेशी समाज को और अधिक सुलभ और प्रभावी बना दिया है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां हैं जिनका समाधान करना आवश्यक है। हमें समावेशी समाज को सफल बनाने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करना होगा। हमें सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा, भौतिक और गैर-भौतिक पहुंच को सुनिश्चित करना होगा, शिक्षा और रोजगार के समान अवसर प्रदान करने होंगे, और प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग करना होगा। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि समावेशी समाज के निर्माण में विकलांग व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी हो।
निष्कर्ष:
अपंगता, अक्षमता, और विकलांगता, ये तीनों शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनके अर्थ और प्रभाव में अंतर होता है। अपंगता एक चिकित्सा स्थिति है, अक्षमता एक कार्यात्मक सीमा है, और विकलांगता एक सामाजिक नुकसान है। विकलांगता व्यक्ति की अपनी समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की समस्या है। समावेशी समाज के निर्माण के लिए हमें इन शब्दों के अर्थ को समझना होगा और सामाजिक मॉडल को अपनाना होगा। हमें उन बाधाओं को दूर करना होगा जो विकलांग व्यक्तियों को समाज में भाग लेने से रोकती हैं। हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जो सभी के लिए समान और न्यायपूर्ण हो। यह समझना महत्वपूर्ण है कि विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने और उन्हें समाज में पूर्ण भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इन शब्दों की सही समझ और उनका उचित उपयोग आवश्यक है। एक समावेशी समाज वह है जो विविधता का जश्न मनाता है और सभी को अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में सक्षम बनाता है। यह एक सतत प्रक्रिया है जिसके लिए निरंतर प्रयास, जागरूकता, और सभी की भागीदारी की आवश्यकता है।
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