राष्ट्रीय शिक्षा आयोग या कोठारी कमीशन (1964-1966) NATIONAL EDUCATION COMMISSION (KOTHARI COMMISSION)

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग,  (कोठारी कमीशन) 1964-1966
[NATIONAL EDUCATION COMMISSION,  (KOTHARI COMMISSION)] (1964-66)


प्रस्तावना -

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने अपने देश की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुसार उच्च शिक्षा के पुनर्गठन के लिए सर्वप्रथम 1948 ई. में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन किया, तत्पश्चात् 1952 में माध्यमिक शिक्षा के पुनर्गठन हेतु माध्यमिक शिक्षा आयोग गठित किया। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (राधाकृष्णन आयोग) ने विश्वविद्यालयी शिक्षा के प्रशासन, संगठन व स्तर को ऊँचा उठाने सम्बन्धी अपने ठोस सुझाव दिये, जिनमें से कुछ सुझावों के क्रियान्वयन द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कुछ सुधार भी हुआ, परन्तु वांछित उद्देश्य प्राप्त न हो सके। 1952 में गठित मुदालियर शिक्षा आयोग ने भी तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के दोषों को उजागर करते हुए उसके पुनर्गठन हेतु अनेक ठोस सुझाव दिये, परन्तु इन सबसे भी वांछित आकांक्षाओं की पूर्ति नहीं हो सकी, 

अतः ऐसे आयोग के गठन की आवश्यकता अनुभूत की गई जो विविध स्तरों पर शिक्षा के समस्त पहलुओं से सम्बन्धित हो और शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन करके देश की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा सम्बन्धी नीतियों, शिक्षा के राष्ट्रीय प्रतिमान एवं शिक्षा के प्रत्येक क्षेत्र में विकास की सम्भावनाओं पर महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सुझाव एवं संस्तुतियों प्रस्तुत करें। अतः भारत सरकार ने शिक्षा के पुनर्गठन पर सम्पूर्ण रूप से सोचने समझने व देश भर के लिए समान शिक्षा नीति को निश्चित करने के उद्देश्य से 14 जुलाई, 1964 को डॉ. डी.एस. कोठारी, जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission) के तत्कालीन अध्यक्ष थे, की अध्यक्षता में 17 सदस्यीय राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (National Education Commmission) का गठन किया, ताकि दी गई अनुशंसाओं (Recommendation) का अनुसरण करके मनुष्य के वैयक्तिक व सामाजिक विकास की दिशा सुनिश्चित की जा सके। इसके व्यापक उददेश्य स्वरूप और महत्व के आधार पर इसे शिक्षा आयोग 1964-66 तथा राष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964-66 के नाम से जाना जाता है। इस आयोग को इसके अध्यक्ष के नाम पर कोठारी आयोग भी कहा जाता है। आयोग में कुल 14 सदस्य थे जिनमें 5 विदेशी शिक्षा विशेषज्ञ भी सम्मिलित थे।

आयोग का उद्घाटन समारोह 2 अक्टूबर, सन् 1964 में दिल्ली में विज्ञान भवन में सम्पन्न हुआ इस शुभ अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा० राधाकृष्णन (Dr. Radhakrishnan) ने अपने संदेश में कहा- 

"मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि कमीशन शिक्षा (National Education Commission) के समस्त पहलुओ यथा-प्राथमिक, माध्यमिक, विश्वविद्यालय एवं प्राविधिक की जाँच करे और ऐसे सुझाव दे जिनसे हमारी शिक्षा व्यवस्था को अपने समस्त स्तरों पर उन्नति में सहायता मिले।"

    "It is my earnest desire that the commission will survey all aspects of education-Primary, Secondary, University and Technical make Recommendation which held to improve our educational system at all its levels."

-President S. Radhakrishnan


भारतीय शिक्षा आयोग के उद्देश्य एवं कार्यक्षेत्र 
(Objectives and Work Criteria of Indian Education Commission) -

आयोग के कार्यक्षेत्र के विषय में सरकार ने स्पष्ट किया कि आयोग शिक्षा के सभी स्तरों- प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च शिक्षा तथा तकनीकी शिक्षा का अध्ययन करके उनके विकास की सम्भावनाओं पर अपने सुझाव दें। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आयोग को पूरे देश की तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कर उसमें सुधार हेतु सुझाव देने थे।

आयोग का कार्यक्षेत्र एवं उद्देश्य इस प्रकार थे-


(i) तत्कालीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का अध्ययन कर उसके प्रति व्याप्त असन्तोष के कारणों का पता लगाकर उसमें सुधार के लिए सुझाव देना।

(ii) सम्पूर्ण देश के लिए समान शिक्षा प्रणाली के सम्बन्ध में सुझाव देना। यह शिक्षा प्रणाली भारतीय शिक्षा की वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करें तथा भविष्य के निर्माण में भी सहायक हो।

(iii) शिक्षा की व्यवस्था और प्रशासन सम्बन्धी नीति सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना।

(iv) प्रत्येक स्तर की शिक्षा के प्रसार एवं उसमें गुणात्मक सुधार के सम्बन्ध में सरकार को सुझाव देना।


आयोग का प्रतिवेदन 
(Report of the Commission) -

आयोग ने इस बड़े कार्य को सम्पन्न करने के लिए दो विधियों का अनुसरण किया- पहली निरीक्षण एवं साक्षात्कार और दूसरी प्रश्नावली। निरीक्षण एवं साक्षात्कार के लिए आयोग ने कार्यकारी दल (Working Groups) बनाए जिन्होने अपना-अपना कार्य शुरू किया। इन दलो ने देश के विभिन्न प्रान्तों का दौरा किया, उनके अनेक विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों को देखा और उनके छात्रों, शिक्षकों और प्रशासकों से साक्षात्कार किया। इसी के साथ-साथ उन्होंने अनेक शिक्षाविदों से भेंट की और उनसे विचार-विमर्श किया और मुख्य तथ्यो को लेखबद्ध किया। दूसरी विधि जिसका आयोग ने अनुसरण किया वह भी प्रश्नावली। आयोग ने शिक्षा की विभिन्न समस्याओं से सम्बन्धित एक लम्बी प्रश्नावली (Questionnaire) तैयार की और उसे शिक्षा से जुड़े विभिन्न वर्ग के लगभग 5000 व्यक्तियों के पास भेजा, इनमें से 2400 व्यक्तियों ने इसे भरकर लौटाया। आयोग ने इस प्रश्नावली का सांख्यिकीय विवरण तैयार किया। इसके बाद आयोग ने इन दोनों विधियों से प्राप्त सुझावों पर विचार-विमर्श किया और अन्त में 29 जून, 1966 को अपना प्रतिवेदन शिक्षा एवं राष्ट्रीय प्रगति' (Education and National Development) शीर्षक (Title) से भारत सरकार को प्रेषित किया।

    यह प्रतिवेदन 692 पृष्ठों का एक वृहत् दस्तावेज है जो तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम खण्ड में 6 अध्याय है जिनमे सभी स्तरों की शिक्षा व्यवस्था के पुनर्निर्माण का सामान्य विवेचन किया गया है; राष्ट्रीय लक्ष्य एवं शिक्षा का स्वरूप, संरचनात्मक पुनर्संगठन, शिक्षकों की समृद्धि, विद्यालयों में प्रवेश सम्बन्धी नीति और शिक्षा के अवसरों की समानता की चर्चा की गई है। द्वितीय खण्ड में 11 अध्याय हैं जिनमें शिक्षा के विभिन्न स्तरों का अलग-अलग विवेचन किया गया है, विद्यालयी शिक्षा, उच्च शिक्षा, कृषि शिक्षा, व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा और प्रौढ शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का विवेचन किया गया है। तृतीय खण्ड में केवल 2 अध्याय है जिनमें शिक्षा आयोजन एवं प्रशासन (National Institute of Educational Planning and Administration) और अर्थव्यवस्था के स्वरूप (Nature of economy) पर चर्चा की गई है। अन्त में सभी अध्यायों में वर्णित समस्याओं और उनके समाधानो को सक्षेप में प्रस्तुत किया गया है।


राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के मुख्य सुझाव 
(Main Suggestion of National Education Commission) -

राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (National Education Commission) ने तत्कालीन भारतीय शिक्षा का समग्ररूप से अध्ययन किया और उसके सम्बन्ध में अपने सुझाव दिए। आयोग की मूलधारणा है कि शिक्षा राष्ट्र के विकास का मूल आधार है। उन्होने अपने प्रतिवेदन का शुभारम्भ ही इस वाक्य से किया है- 'देश का भविष्य उसकी कक्षाओं में निर्मित हो रहा है।' आयोग के प्रतिवेदन के सम्बन्ध में दूसरा मुख्य तथ्य यह है कि इसमें शिक्षा की कुछ समस्याओं का विवेचन समग्र रूप से किया गया है, जैसे शिक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्य, शिक्षा की संरचना, शिक्षकों की स्थिति, शैक्षिक अवसरों की समानता (Equality of Educational Opportinities) कृषि शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, स्त्री शिक्षा और प्रौढ शिक्षा और कुछ समस्याओं का विवेचन विशेष की शिक्षा के सन्दर्भ में किया गया है, जैसे-विद्यालयी शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों आदि और उच्च शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियाँ आदि।


शिक्षा के प्रशासन, वित्त एवं नियोजन सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Administration, Finance and Planning of Education) -


हमारे देश में शिक्षा के तत्कालीन प्रशासनिक ढाँचे की नींव अंग्रेजों ने रखी थी। स्वतन्त्र भारत में उसमें परिवर्तन किया जाना आवश्यक था। अंग्रेज सरकार हमारी शिक्षा पर बहुत कम व्यय करती थी, इसे भी बढ़ाना आवश्यक था। नियोजन के अभाव में तो कोई उद्देश्य अथवा लक्ष्य प्राप्त किया ही नहीं जा सकता। आयोग ने इन तीनों के सम्बन्ध में रचनात्मक सुझाव दिए । (Administration, Finance, Planning)


(1) शिक्षा के प्रशासन सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Administration of Education)-


(i) शिक्षा को राष्ट्रीय महत्व का विषय माना जाए और उसकी राष्ट्रीय नीति घोषित की जाए। इसके लिए यदि आवश्यक हो तो केन्द्र सरकार (National Education Act) बनाए और प्रान्तीय सरकारें State Education Act बनाएँ।

(ii) केन्द्रीय शिक्षा मन्त्रालय में शिक्षा सलाहकार (Educational Adviser) और शिक्षा सचिव (Education Secretary) के पदों पर सरकारी, गैरसरकारी, भारतीय शिक्षा सेवा (Indian Education Service) और विश्वविद्यालयों में से योग्यतम व्यक्तियों का चयन किया जाए।

(iii) केद्रीय शिक्षा मन्त्रालय के सांख्यिकीय विभाग (Statistical Department) को सुदृढ किया जाए।

(iv) भारतीय शिक्षा सेवा (Indian Education Service) में उन व्यक्तियो का चयन किया जाए जिन्हें शिक्षण कार्य का अनुभव हो।

(v) केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) को और अधिक अधिकार दिए जाएँ। 

(vi) राष्ट्रीय शिक्षा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) को अखिल भारतीय स्तर (All India Level) पर विद्यालयी शिक्षा का भार सौपा जाए।

(vii) शिक्षा प्रशासकों और शिक्षकों के बीच स्थानान्तरण की व्यवस्था की जाए।


(2) शिक्षा के वित्त सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Finance of Education) -


आयोग ने स्पष्ट किया कि 1965-66 की अपेक्षा 1985-86 में छात्रों की संख्या कम से कम दो गुनी हो जाएगी और प्रति छान्त्र व्यय 12 रू0 के स्थान पर 54रू0 हो जाएगा, इसलिए शिक्षा बजट में प्रति वर्ष वृद्धि करनी आवश्यक है। इस सम्बन्ध में उसने निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) केन्द्र सरकार अपने बजट में शिक्षा के लिए कम से कम 6 प्रतिशत का प्रावधान करें।

(ii) राज्य सरकारें भी अपने बजटों में शिक्षा के लिए और अधिक धनराशि आवंटित करें।

(iii) राज्यों में स्थानीय संस्थाओं (ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओ) को उनके क्षेत्र की प्राथमिक शिक्षा संस्थाओं का वित्तीय भार सौंपा जाए।

(iv) व्यक्तिगत स्रोतों से अधिक से अधिक धन प्राप्त किया जाए।

(v) शिक्षा हेतु आय के स्रोत बढ़ाने के उपायों की खोज की जाए, इस क्षेत्र में अनुसन्धान किए जाएँ।


(3) शिक्षा के नियोजन सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Planning of Education) -


आयोग ने इसमे सुधार हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) शैक्षिक नियोजन केन्द्रीय और प्रान्तीय स्तर पर अलग-अलग किया जाए।

(ii) विद्यालयी शिक्षा का नियोजन स्थानीय निकाय (Local body) और राज्य सरकारे मिलकर करें और उच्च शिक्षा का नियोजन प्रान्तीय और केन्द्रीय सरकारें मिलकर करें।

(iii) शैक्षिक नियोजन वर्तमान और भविष्य की माँगों के आधार पर किया जाए, राष्ट्रीय, प्रान्तीय और उसके बाद स्थानीय आधार पर प्राथमिकताओं का वर्गीकरण किया जाए और उनके आधार पर सभी कार्यक्रम नियोजित किए जाएँ।

(iv) शैक्षिक नियोजन इस प्रकार किया जाए कि 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जा सके, माध्यमिक शिक्षा 70 प्रतिशत बच्चों के लिए पूर्ण शिक्षा हो सके और शेष 30 प्रतिशत मेधावी छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा में प्रवेश ले सके।

(v) शैक्षिक नियोजन करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कुल शिक्षा बजट राशि का (67%) सामान्य शिक्षा पर व्यय हो और (33%) उच्च शिक्षा पर व्यय हो।

(vi) शैक्षिक नियोजन में अपव्यय (Wastage) एवं अवरोधन को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किया जाए।

(vii) शैक्षिक नियोजन में शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ उसमें गुणात्मक सुधार (Positive improvement) के लिए व्यवस्था की जाए।


शिक्षा की संरचना सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Structure of Education) -

आयोग ने पूरे देश के लिए निम्नाकित शिक्षा संरचना  का प्रस्ताव रखा-

(i) पूर्व प्राथमिक शिक्षा - 1 से 3 वर्ष अवधि की।

(ii) निम्न प्राथमिक शिक्षा - 4 से 5 वर्ष अवधि की। कक्षा 1 में प्रवेश की न्यूनतम आयु 6 वर्ष।

(iii) उच्च प्राथमिक शिक्षा - 3 या 4 वर्ष अवधि की।


(iv)

  • (a) माध्यमिक शिक्षा (सामान्य वर्ग) 2 वर्ष अवधि की।
  • (b) माध्यमिक शिक्षा (व्यावसायिक वर्ग) 2 या 3 वर्ष अवधि की।


(v)

  • (a) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (सामान्य वर्ग)- 2 या 3 वर्ष अवधि की।
  • (b) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (व्यावसायिक वर्ग)- 2 या 3 वर्ष अवधि की।


(vi)

  • (a) स्नातक शिक्षा (कला, विज्ञान, वाणिज्य) 3 वर्ष अवधि की।
  • (b) स्नातक शिक्षा (इंजीनियरिंग एवं मेडिकल) 4 वर्ष अवधि की।


(vii) परास्नातक शिक्षा (सभी विभाग)- 2 या 3 वर्ष अवधि की।

(viii) अनुसन्धान कार्य- 2 या 3 वर्ष अवधि का।


विशेष शिक्षा की संरचना सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions on the Structure of Education) -


(i) सामान्य शिक्षा (प्राथमिक एवं माध्यमिक) की कुल अवधि 10 वर्ष होनी चाहिए।

(ii) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की अवधि सामान्य वर्ग की 2 वर्ष और व्यावसायिक वर्ग की 2 से 3 वर्ष होनी चाहिए।

(iii) विद्यालय संकुलों (School Complexes) का यथाशीघ्र निर्माण किया जाए। एक संकुल में एक माध्यमिक स्कूल और उसके निकटवर्ती सभी प्राथमिक स्कूल हों।

(iv) प्रथम सार्वजनिक परीक्षा 10 वर्ष की सामान्य शिक्षा समाप्त करने पर होनी चाहिए।


शिक्षा के लक्ष्य, उद्देश्य अथवा कार्य सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Aims, Objectives or Functions of Education) -


आयोग ने शिक्षा को राष्ट्र के विकास का मूल आधार माना है। उसने राष्ट्र के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के 5 लक्ष्य उद्देश्य, अथवा कार्य निश्चित किए और इन्हें पचमुखी कार्यक्रम (Five Face Programme) की सज्ञा दी।


(1) शिक्षा व उत्पादन 
(Education and Production)-


आयोग ने शिक्षा द्वारा उत्पादन में वृद्धि के लिए निम्न सुझाव दिए-


(i) विज्ञान की शिक्षा को प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा में अनिवार्य किया जाए।

(ii) कार्यानुभव (Work Experience) को सम्पूर्ण शिक्षा का विशिष्ट अंग बनाया जाना चाहिए।

(iii) माध्यमिक शिक्षा में अधिक से अधिक व्यवसायी विषय सम्मिलित किए जाए।

(iv) उच्च शिक्षा में तकनीकी तथा कृषि शिक्षा पर बल दिया जाए।

(v) उच्च शिक्षा में विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में अनुसंधान करने को प्रोत्साहित किया जाए।


 (2) सामाजिकता तथा राष्ट्रीय एकता 
(Socialisation and National Unity) -


आयोग ने शिक्षा द्वारा इस उद्देश्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) शिक्षा के सभी स्तरों पर सामाजिक एवं राष्ट्र सेवा (Social and National Service) को अनिवार्य बना दिया जाए।

(ii) "सामान्य विद्यालय पद्धति" (Common School System) की स्थापना की जाये जिसमें शिक्षा सबके लिए समान रूप से सुलभ हो और अच्छी शिक्षा आर्थिक आधार पर नही, योग्यता के आधार पर सुलभ हो।

(iii) सामाजिक एवं राष्ट्र सेवा के कार्यक्रमों का आयोजन अध्ययन के साथ ही किया जाए।

(iv) विद्यालयों में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए जिनसे बच्चों में सामाजिकता तथा राष्ट्रीय एकता का विकास हो।

(v) मातृभाषा को शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।

(vi) सामाजिक एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास स्कूलों के महत्वपूर्ण उद्देश्य माने जाए।

(vii) पाठ्यक्रमो में सविधान (National consciousness), लोकतन्त्र (Democracy), नागरिकता (Citizenship) के सिद्धान्तों को भी महत्व दिया जाए।


(3) शिक्षा व लोकतन्त्र 
(Education and Democracy)-


आयोग ने शिक्षा द्वारा लोकतन्त्र को मजबूत बनाने के लिए निम्न सुझाव दिए-


(1) प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य एवं निःशुल्क की जाए।

(ii) बिना किसी भेदभाव के सभी बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान किए जाए।

(iii) माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा का विकास किया जाए। इन स्तरों पर बालको को नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाए।

(iv) बच्चों में लोकतन्त्रीय मूल्यों (Democratic Value) का विकास करने के लिए समय-समय पर विद्यालयों में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।

(v) छात्रों में सहिष्णुता (Tolerance), समाजसेवा (Public interest), जनहित, नैतिक मूल्यों, आत्मानुशासन (Self Discipline) के गुणों का विकास किया जाए।


(4) शिक्षा द्वारा आधुनिकीकरण 
(Modernisation by Education)-


आधुनिकीकरण का अर्थ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा देश का विकास करना।

इसके सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) शिक्षा में विज्ञान पर आधारित तकनीकी का प्रयोग किया जाए।

(ii) शिक्षा में आधुनिकीकरण को महत्वपूर्ण साधन बनाया जाए।

(iii) आधुनिकीकरण की प्रगति एवं प्रसार की गतियों में समन्वय स्थापित किया जाए।

(iv) शिक्षा द्वारा छात्रो मे स्वतन्त्र विचार, निर्णय एव स्वतन्त्र अध्ययन की आदतों का विकास किया जाए।

(v) शैक्षिक स्तर का उन्नयन किया जाए।


(5) सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्य 
(Social, Moral and Spiritual Values)-


(i) सभी शिक्षण संस्थाओं में सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

(ii) प्राथमिक स्कूलों में ऐसी शिक्षा की व्यवस्था रोचक कहानियों के माध्यम से दी जाए।

(iii) माध्यमिक स्तर पर शिक्षक एवं छात्र आपस में विचार-विमर्श करके सही मूल्यों का चयन करे।

(iv) छात्रों में सामाजिक, नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने का दायित्व शिक्षकों का होना चाहिए।

(v) उच्च स्तर पर मूल्यों का सुदृढीकरण (Values Reinforcement) किया जाए।



विद्यालयी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding School Education)


(1) विद्यालयी शिक्षा के प्रशासन एवं निरीक्षण सम्बन्धी सुझाव
(Suggestions Regarding Administration and Observation of School Education) -


आयोग ने विद्यालयी शिक्षा के प्रशासन एवं विद्यालयों के निरीक्षण के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) केन्द्र में राष्ट्रीय विद्यालयी शिक्षा बोर्ड' (National Board of School Education) और 'भारतीय शिक्षा सेवा' (Indian Education Service) का गठन किया जाए।

(ii) प्रत्येक राज्य में राज्य विद्यालयी शिक्षा बोर्ड' (State Board of School Education) और 'राज्य शिक्षा सेवा' (State Education Service) का गठन किया जाए।

(iii) देश में अनेक प्रकार के विद्यालय है- सरकारी, गैरसरकारी, स्थानीय निकायों द्वारा संचालित (Run by Local Bodies), सहायता प्राप्त (Aided), गैर सहायता प्राप्त (Non Aided) आदि। इनकी प्रबन्ध समितियों भिन्न-भिन्न प्रकार की है। आगामी 20 वर्षों में अर्थात् 85-86 तक इन सबको समाप्त कर सामान्य विद्यालय प्रबन्ध पद्धति (General school management system) का विकास किया जाए और इनकी प्रबन्ध समितियों में शिक्षा विभाग के व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व हो। जो विद्यालय प्रबन्ध समितियाँ विद्यालयों का उचित प्रबन्ध न कर सकें उन्हें भंग कर दिया जाए।

(iv) विद्यालयों के नियमित निरीक्षण की व्यवस्था की जाए। निरीक्षण मण्डलों में जिला विद्यालय निरीक्षक (District Inspector of School) और उनके साथ योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों को रखा जाए।

(v) प्रशासन से निरीक्षण कार्य को अलग रखा जाए जिले के विद्यालयों का प्रशासन कार्य जिला विद्यालय बोर्ड के हाथों में हो और निरीक्षण का कार्य जिला शिक्षा अधिकारी (District Education Officer) के हाथो में हो, किन्तु दोनो में सहयोग होना चाहिए।


(2) पाठ्यचर्या सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Curriculum)-


पाठ्यचर्या सम्बन्धी सुझाव के सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) पाठ्यचर्या का निर्माण सिद्धान्तों के आधार पर किया जाए।

(ii) प्राथमिक स्तर पर पूरे देश में समान पाठ्यचर्या की व्यवस्था होनी चाहिए।

(iii) माध्यमिक स्तर पर पूरे देश में आधारभूत पाठ्यचर्या (Core Curriculum) होनी चाहिए।

(iv) माध्यमिक शिक्षा हेतु एक आधारभूत पाठ्यचर्या (Basic or Core Curriculum) के साथ व्यावसायिक पाठ्यचर्या (Vocational Curriculum) स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर होना चाहिए।


(3) विद्यालयी शिक्षा की शिक्षण विधियों सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Teaching Methods of School Education) -


आयोग ने विद्यालयी शिक्षा की शिक्षण विधियों के सम्बन्ध में सुझाव।


(i) शिक्षण विधियाँ लचीली, गतिशील, क्रिया प्रधान एवं रोचक होनी चाहिए।

(ii) शिक्षकों को नवीन शिक्षण विधियों के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया जाए, इसके लिए कार्यशालाओं और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाए।

(iii) शिक्षकों को उचित निर्देशन सामग्री उपलब्ध कराई जाए।

(iv) विद्यालयों को शिक्षण सम्बन्धी सहायक सामग्री उपलब्ध कराई जाए।

(v) शिक्षकों को शिक्षण सहायक सामग्री निर्माण करने का प्रशिक्षण दिया जाए और वे इनका निर्माण विद्यालयों की कार्यशालाओं में करें।

 (vi) आकाशवाणी के सहयोग से पाठों का प्रसारण किया जाए।

(vii) शिक्षार्थियों के लिए पाठो का प्रसारण विद्यालय समय में किया जाए, शिक्षको के लिए विद्यालयी समय से पहले अथवा बाद में किया जाए।


(4) विद्यालयी शिक्षा की पाठ्य पुस्तकों सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Text Books of School Education) -


(i) पाठ्य पुस्तकें तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक योजना बनाई जाए।

(ii) पाठ्य पुस्तकों का निर्माण राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा निर्धारित सिद्धान्तो के आधार पर किया जाए।

(iii) राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्य पुस्तको के लेखन के लिए प्रतिभावान व्यक्तियो को पारिश्रमिक देकर प्रोत्साहित किया जाए।

(iv) पाठ्य पुस्तकों का निर्माण, उनका परीक्षण और मूल्याकन राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व होना चाहिए।

(v) शिक्षा मन्त्रालय पाठ्य पुस्तकों, विशेषकर विज्ञान एवं तकनीकी की पाठ्य पुस्तकों के निर्माण हेतु एक स्वायत्त संस्था का गठन करें।

(vi) प्रत्येक राज्य में पाठ्य पुस्तक समितियों का निर्माण किया जाए।


(5) विद्यालयी शिक्षा में निर्देशन एवं परामर्श सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Guidance and Counselling of School Education) -


आयोग की दृष्टि में शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श का उद्देश्य छात्र-छात्राओं की शैक्षिक समस्याओं का समाधान करना होता है। ये समस्याएँ अनेक प्रकार की हो सकती हैं- विद्यालय में मन न लगना, कोई विषय समझ में न आना, विद्यालयी समाज में समायोजन न कर पाना आदि। जहाँ तक विषयों के चयन की बात है यह समस्या तो उच्चतर माध्यमिक स्तर के छात्रों में होती है। शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श द्वारा इन समस्याओं का समाधान किया जाता है। इस सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) छात्र-छात्राओं के लिए निर्देशन एवं परामर्श की व्यवस्था प्राथमिक स्तर से ही किया जाए।

(ii) माध्यमिक स्तर पर छात्रों को उनकी रूचि एवं योग्यता के आधार पर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श दिया जाए।

(iii) माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक निर्देशन के द्वारा पिछड़े एवं प्रतिभावान छात्रों की पहचान हो जानी चाहिए।

(iv) प्रत्येक जिले में कम से कम एक विद्यालय में शैक्षिक निर्देशन एवं परामर्श की विशेष व्यवस्था की जाए।

 (v) 10 विद्यालयों पर एक निर्देशन एवं परामर्श अधिकारी की नियुक्ति की जाए।

(vi) मार्गदर्शन कार्यकर्ताओं (Guidance Worker) के प्रशिक्षण की व्यवस्था राजकीय मार्गदर्शन ब्यूरो (Government Guidance Bureau) और प्रशिक्षण महाविद्यालयों में की जाए।

(vii) माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों को अन्तर्सेवा कार्यक्रम (Inservice Programme) के अन्तर्गत निर्देशन एवं परामर्श के विषय मे सामान्य जानकारी दी जाए।


(6) विद्यालयी शिक्षा में मूल्यांकन सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Evaluation)- 

आयोग की दृष्टि में शिक्षा के किसी भी स्तर पर मूल्यांकन की प्रक्रिया एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिए, किसी भी कक्षा के छात्रों का मूल्यांकन पूरे वर्ष चलना चाहिए और आन्तरिक मूल्यांकन को विशेष महत्व देना चाहिए। विद्यालयी शिक्षा में मूल्यांकन सम्बन्धी निम्नलिखित सुझाव दिए-

(i) कक्षा 1 से 4 तक के छात्रों का मूल्यांकन केवल आन्तरिक हो, उन्हें योग्यता के आधार पर कक्षोन्नति दी जाए।

(ii) प्राथमिक स्तर के अन्त में जिले स्तर (District Level) पर बाह्य परीक्षा (External Examination) होनी चाहिए। इसकी व्यवस्था जिला शिक्षा अधिकारी (District Ecducation Officer) करे। वहीं उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाणपत्र दे।

(iii) कक्षा 10 के अन्त में पूरे प्रदेश में सार्वजनिक परीक्षा होनी चाहिए। इसकी व्यवस्था माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Secondary Education Board) करे। वही उत्तीर्ण छात्रों को प्रमाणपत्र दे।

(iv) लिखित परीक्षा को वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय और व्यावहारिक (Practical) बनाने के लिए प्रयास किय जाएँ। इसके लिए निबन्धात्मक, लघुउत्तरीय और वस्तुनिष्ठ, तीनों प्रकार के प्रश्न पूछे जाएँ।

(v) छात्र-छात्राओं की जिन उपलब्धियों का मापन एवं मूल्यांकन लिखित परीक्षाओं द्वारा सम्भव न हो, उनका मापन मौखिक एवं प्रायोगिक परीक्षाओं द्वारा किया जाए। इन्हें भी वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय और व्यावहारिक बनाया जाए।

(vi) आन्तरिक मूल्यांकन में संचयी अभिलेख (Cumulative Record) को महत्व दिया जाए। (vii) बोर्ड की परीक्षा में श्रेणी के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का प्रयोग किया जाए।


 (7) शिक्षा के प्रसार सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Expansion of Education)-


आयोग ने शिक्षा के प्रसार के सम्बन्ध में निम्नलिखित सुझाव दिए-


(i) प्रत्येक राज्य के "राज्य शिक्षा संस्थान' में पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए राज्य स्तर पर शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए।

(ii) अधिकाधिक प्राथमिक स्कूलों में पूर्व प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

(iii) पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना के लिए व्यक्तिगत सस्थाओं को अनुदान दिया जाए।

(iv) पूर्व-प्राथमिक विद्यालयों में विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं को स्थान दिया जाना चाहिए।

(v) देश के सभी बालकों के लिए 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा की उत्तम व्यवस्था की जाए।

(vi) सन् 1985-86 तक 6 से 14 आयु वर्ग के बालको की अनिवार्य एव निःशुल्क शिक्षा (Compulsory and Fee Education) के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाए।

(vii) जो बालक प्राथमिक शिक्षा से आगे न पढना चाहते हो उन्हें इसी स्तर पर हस्त कौशल (Handicraft) में निपुण कर दिया जाए।

(viii) 1 किमी0 की दूरी पर प्राथमिक स्कूल तथा 3 किमी0 की दूरी के अन्दर उच्च प्राथमिक स्कूल सभी बालकों के लिए उपलब्ध हों।

(ix) पिछड़े तथा विकलांग बच्चों के लिए विशिष्ट स्कूल खोले जाए।

(x) जल्द से जल्द आवश्यकतानुसार माध्यमिक विद्यालय खोले जाए।

(xi) माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के लिए योजना बनाई जाए।

(xii) माध्यमिक स्तर पर होने वाले अपव्यय (Wastage) व अवरोधन (Interrupt) को रोका जाए।

(xiii) माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों की संख्या, अध्यापकों की उपलब्धता के आधार पर निश्चित की जाए।

(xiv) माध्यमिक शिक्षा सभी बालकों के लिए समान रूप से उपलब्ध कराई जाए।

(xv) बालिकाओं के लिए अलग से माध्यमिक स्कूल खोले जाए। उनकी शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क की जाए तथा उनके लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था भी की जाए।

(xvi) आगामी 20 वर्षों में बालिकाओं की शिक्षा का विस्तार करने के लिए ठोस कदम उठाए जाए।


(8) शैक्षिक अवसरों की समानता 
(Equality of Educational Opportunities)-


शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों में समानता स्थापित करना है। इसके सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए-

(1) प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क की जाए।

(ii) छात्रों को पाठ्य-पुस्तकें निःशुल्क दी जाए।

(iii) पुस्तकालय में पर्याप्त पुस्तकें हो ताकि छात्र उनका प्रयोग कर सकें।

(iv) योग्य छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी सामग्री खरीदने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए।

(v) कोई भी गरीब छात्र शिक्षा से वचित न हो, इसके लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।

(vi) माध्यमिक स्तर पर 15% योग्य छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जाए।

(vii) राष्ट्रीय छात्रवृत्तियो की योजना का विस्तार (Expansion) एवं विकेन्द्रीकरण (Decentralization) किया जाना चाहिए।

(viii) व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को भी छात्रवृत्तियों प्रदान की जाए।



विश्वविद्यालयी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
[Suggestions Regarding University Education] 


(1) विश्वविद्यालयी शिक्षा के लक्ष्य
 (Aims of University Education)-

विश्वविद्यालयी शिक्षा के लक्ष्य निम्नलिखित है-


(i) नवीन ज्ञान की खोज करना।

(ii) सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करना।

(iii) पुराने ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ना।

(iv) सामाजिक न्याय एवं समानता को प्रोत्साहन देना।

(v) उचित नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों का निर्माण करना।

(vi) राष्ट्रीय चेतना का विकास करना।

(vii) देश में कला, विज्ञान, कृषि, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा एवं अन्य व्यवसायों के लिए कुशल प्रशिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करना।

(b) प्रतिभाशाली युवकों की खोज करना और उनकी प्रतिभाओं के विकास में सहायता करना।


 (2) विश्वविद्यालयी शिक्षा के प्रशासन सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Administration of University Education) -


आयोग ने विश्वविद्यालयी शिक्षा के प्रशासन को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए अग्ग्रलिखित सुझाव दिए-


(i) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का पुनर्गठन किया जाए। इसके कुल सदस्यों के 1/3 सदस्य विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधि होने चाहिए।

(ii) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को और अधिक सशक्त बनाया जाए। UGC को उच्च शिक्षा संस्थाओं को अनुदान देने के साथ-साथ उनके निरीक्षण का अधिकार भी दिया जाए और साथ ही उच्च शिक्षा का स्तर बनाए रखने का उत्तरदायित्व सौंपा जाए।

(iii) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को विश्वविद्यालयों को उदारतापूर्वक अनुदान देना चाहिए, विशेषकर उच्च अध्ययन केन्द्रों (Centers of Advances Studies) की स्थापना हेतु ।

(iv) कृषि, इंजीनियरिंग और चिकित्सा की उच्च शिक्षा की देख-रेख के लिए केन्द्र में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की भाँति अलग-अलग संस्थाएँ स्थापित की जाएँ।

(v) सभी विश्वविद्यालयों को 'अन्तर्विश्वविद्यालय परिषद' (Inter University Council) का सदस्य बनाया जाए।

(vi) सभी विश्वविद्यालयों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान की जाए जिससे वे अपने शिक्षण और अनुसंधान कार्य में सुधार कर सकें।

(vii) विश्वविद्यालयों के प्रशासन तन्त्र का पुनर्गठन किया जाए। इनकी कोटों में सदस्यों की संख्या 100 से कम की जाए। सदस्यों में 50% सदस्य विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि और 50% बाह्य सदस्य रखे जाएँ। इस कोर्ट को नियम बनाने का अधिकार दिया जाए।

(viii) विश्वविद्यालयों की कार्यकारिणी परिषद (Executive Council) में 15 से 20 सदस्य होने चाहिए और विश्वविद्यालय का कुलपति इसका अध्यक्ष होना चाहिए। कार्यकारिणी परिषद को नियमानुसार क्रियान्वयन का अधिकार एवं उत्तरदायित्व होना चाहिए।

(ix) विश्वविद्यालयों की शैक्षिक परिषदों (Education Council) में छात्रों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। इन परिषदों को पाठ्यक्रम निर्माण और शैक्षिक विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।

(x) विश्वविद्यालयो के कुलपतियो के चुनाव में स्वतन्त्रता होनी चाहिए। इस पद के लिए ऐसे व्यक्तियों का चुनाव करना चाहिए जो शिक्षाशास्त्री हो और जिन्हें प्रशासन का अनुभव हो। यह पद पूर्णकालिक और वैतनिक (Salaried वेतनभोगी) होना चाहिए। कुलपति का कार्यकाल 5 वर्ष होना चाहिए और उसकी सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष होनी चाहिए।

(xi) विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम निर्माण, शिक्षकों की नियुक्ति, छात्रों के चयन और अनुसंधान कार्य के क्षेत्र में स्वायत्तता होनी चाहिए।

(xii) विश्वविद्यालयों के विभागाध्यक्षों को अपने-अपने विभागों की व्यवस्था करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।


(3) विश्वविद्यालयों की स्थापना 
(Establishment of Universities)-


विश्वविद्यालयो की स्थापना सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित है-


(1) नए विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्वीकृति के बाद ही स्थापित किए जाए।

(ii) जिन स्थानों पर कोई विश्वविद्यालय न हो, पहले उन्हीं स्थानों पर विश्वविद्यालय स्थापित किए जाए।

(iii) नए विश्वविद्यालयों का सबसे पहला कार्य शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाना होगा।

(iv) कई परास्नातक महाविद्यालयों को संगठित करके उसे नए विश्वविद्यालय का रूप प्रदान किया जा सकता है।


वरिष्ठ विश्वविद्यालय (Senior University)-


वरिष्ठ विश्वविद्यालय सम्बन्धी सुझाव निम्न है-


(i) इन विश्वविद्यालयों का भार "विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) वहन करे।

(ii) इन विश्वविद्यालयों में अति प्रतिभाशाली छात्रों को ही प्रवेश दिया जाए।

(iii) इन विश्वविद्यालयों में छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।

(iv) कुछ विश्वविद्यालयों में परास्नातक शिक्षा तथा अनुसन्धान कार्य पर विशेष बल दिया जाए।

(v) शिक्षको की नियुक्ति राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर की जाए।

(vi) शिक्षको के लिए शोध कार्य की व्यवस्था की जाए।

(vii) इन विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हेतु शिक्षकों का निर्माण किया जाए।


(4) पाठ्यचर्या (Curriculum)-


पाठ्यचर्या सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित है-


(i) स्नातक स्तर का पाठ्यचर्या 3 वर्ष की हो, तथा इस स्तर पर सामान्य और ऑनर्स दोनों प्रकार की पाठ्यचर्या की व्यवस्था हो।

(ii) नए-नए विषयो का समावेश किया जाए, जिससे छात्र अपनी रूचि के अनुसार विषयो का चयन कर सके।

(iii) परास्नातक स्तर पर एक विषय का ही गहनता से अध्ययन कराया जाए।

(iv) भारतीय भाषाओं, विदेशी भाषाओं, शास्त्रीय भाषाओं की शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जाए।


(5) शिक्षा का माध्यम (Medium of Education)-


शिक्षा के माध्यम सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित है-


(i) स्नातक स्तर पर शिक्षा का माध्यम क्षेत्रीय भाषाएँ और परास्नातक स्तर पर शिक्षा का माध्यम अग्रेजी हो।

(ii) संस्थाओं में कार्यरत प्राध्यापकों को दो भाषाओं का ज्ञान हो।

(iii) भारतीय भाषाओं के विकास के लिए उच्च अध्ययन केन्द्रों की व्यवस्था की जाए।

(iv) विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में अंग्रेजी का अध्ययन करने के लिए छात्रों को विशेष सुविधाएं दी जाए।



(6) मूल्यांकन (Evaluation)-


मूल्यांकन सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित है-

(i) "केन्द्रीय परीक्षा सुधार समिति" (Central Examination Reforms Committee) बनाई जाए जो परीक्षा प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव देकर नियम बनाए और इन नियमो से विश्वविद्यालयों को अवगत कराए।

(ii)बाह्य परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर आन्तरिक परीक्षा तथा क्रमिक मूल्यांकन (Sequential Evaluation) की व्यवस्था की जाए। 

(iii) विश्वविद्यालयों में सेमिनारों, वर्कशॉपों तथा सम्मेलनों के द्वारा शिक्षकों को मूल्यांकन की नई विधियों से अवगत कराया जाए।

(iv) एक परीक्षक को पूरे वर्ष में 500 से ज्यादा उत्तर पुस्तिकाएँ मूल्यांकन के लिए न दी जाए।

(v) उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन करने के लिए कोई भी पारिश्रमिक शिक्षकों को न दिया जाए।


(7) शिक्षण में सुधार (Improvements in Teaching)-


शिक्षण में सुधार सम्बन्धी सुझाव निम्नलिखित है-


(i) छात्रों में रटने की प्रवृत्ति को समाप्त कर समझने की प्रवृत्ति का विकास किया जाए।

(ii) उत्तम प्रकार के पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाए।

(iii) व्याख्यान के बाद उसे आत्मसात् करने के लिए समय दिया जाए।

 (iv) स्वाध्याय, विचार-विमर्श तथा समस्या समाधान विधि को महत्व दिया जाए।

(v) बीच सत्र में किसी भी शिक्षक को संस्था छोड़कर जाने की अनुमति न दी जाए।

(vi) एक साथ सात दिन से ज्यादा शिक्षकों को अवकाश न दिया जाए।

(vii) शिक्षण विधियों में सुधार हेतु "विश्वविद्यालय अनुदान आयोग" (UGC) द्वारा एक समिति का गठन किया जाए।


(8) कृषि शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Agriculture Education) -


भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसी महत्व को ध्यान में रखकर आयोग ने कृषि शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिए-


(i) प्रत्येक राज्य में कम से कम एक कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया जाए।

(ii) इन विश्वविद्यालयों में कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान की उत्तम व्यवस्था की जाए।

(iii) छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।

(iv) कृषि शिक्षा के अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की जाए।

(v) कृषि विश्वविद्यालयों में प्रायोगिक कार्यों पर अधिक बल दिया जाए।

(vi) नवीन कृषि महाविद्यालयो की स्थापना के स्थान पर पुराने महाविद्यालयो में सुधार किया जाए।

(vii) प्रत्येक कृषि महाविद्यालय के पास 200 एकड (acre) भूमि का फार्म होना चाहिए।

(viii) प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालय के पास 1,000 एकड़ भूमि का फार्म होना चाहिए।



(9) व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Commercial and Technical Education) -


आयोग ने व्यावसायिक व तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित सुझाव दिए-


(1) उद्योगों की मांग के अनुसार तकनीकी संस्थाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।

(ii) नए प्राविधिक महाविद्यालय की स्थापना औद्योगिक क्षेत्रों में की जाए।

(iii) जो प्राविधिक महाविद्यालय ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे है उनमें कृषि से सम्बन्धित उद्योगो की शिक्षा व्यवस्था की जाए।

(iv) प्राविधिक महाविद्यालयों में होने वाले अपव्यय (wastage) को रोकने के लिए प्रयास किए जाए।

(v)जो तकनीकी महाविद्यालय उच्च स्तर की शिक्षा प्रदान नहीं कर रहे हैं, उनमें या तो सुधार किया जाए या उन्हें तुरन्त बन्द कर दिया जाए

 (vi) इन्जीनियरिंग की शिक्षा के पाठ्यक्रमों को वर्तमान आवश्यकताओं के आधार पर निर्मित किया जाए।

(vii) पाठ्यक्रमों में विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार संशोधन किया जाए।

(viii) छान्त्रों को अन्तिम वर्ष में व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

(ix) तकनीकी संस्थानों में उच्च अध्ययन केन्द्रों की स्थापना की जाए।


(10) विज्ञान शिक्षा एवं अनुसन्धान सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Science Education and Research) -


देश के आर्थिक विकास तथा आधुनिकीकरण के लिए विज्ञान की शिक्षा आवश्यक है और इस क्षेत्र में अनुसंधान करने की भी आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-


(i) राष्ट्रीय विज्ञान सरथान (National Institute of Science) का पुनर्गठन कराया जाए। यह विज्ञान शिक्षा के विस्तार के लिए उत्तरदायी है।

(ii) हमारे देश में वैज्ञानिक शोधों पर केवल 0.03% व्यय किया जाता है इसे बढ़ाया जाए।

(iii) विज्ञान शिक्षा के स्नातक, परास्नातक तथा विशेष पाठ्यक्रमों में सुधार कर उन्हें प्रगतिशील (Progressive) बनाया जाए।

(iv) विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान की उचित व्यवस्था की जाए। इन अनुसंधान कार्यों (Research work) को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर (International Level) का बनाया जाए।

(v) 'उच्च अध्ययन केन्द्रो" (Higher learning center's) की स्थापना की जाए इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आर्थिक सहायता (Economic help) प्रदान करें।

(vi) विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में शोध कार्य तथा विज्ञान की शिक्षा के लिए उत्तम प्रकार की प्रयोगशालाओं की व्यवस्था की जाए।

(vii) विज्ञान की शिक्षा के लिए योग्य (Qualified) व अनुभवी (Experienced) शिक्षकों की नियुक्ति की जाए।

(viii) विज्ञान की शिक्षा लेने वाले छात्र/छात्राओं के मूल्यांकन में प्रयोगिक कार्य को सैद्धान्तिक परीक्षा से ज्यादा महत्व दिया जाए।

(ix) जो छात्र/छात्राएँ शोध कार्य कर रहे है उन्हें शोध के लिए आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाए।

(x) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात वैज्ञानिकों (Eminent Scientist) को व्याख्यान हेतु भारत में बुलाया जाए। जिनमें से कुछ को 1 से 3 वर्ष के लिए विजिटिंग प्रोफेसर नियुक्त किया जाए।


 (11) शिक्षक स्तर और शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Teacher Status and Teacher Education) -


आयोग ने स्पष्ट किया कि शिक्षा के क्षेत्र में सबसे अधिक एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका शिक्षको की होती है। उसने शिक्षण व्यवसाय की ओर योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए शिक्षकों के सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने पर बल दिया और शिक्षकों के शिक्षण कौशल को उन्नत करने के लिए शिक्षक शिक्षा में सुधार हेतु सुझाव दिया।


शिक्षक स्तर सम्बन्धी सुझाव -


शिक्षकों के स्तर (Teacher status) को ऊँचा उठाने सम्बन्धी सुझावों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है- वेतनमान सम्बन्धी (Pay scale related), नियुक्ति (Appointment) एवं पदोन्नति सम्बन्धी (Promotion related) और सेवाशर्ती सम्बन्धी (Service condition) |


1. वेतन मान सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions regarding pay scale related) -


(i) सरकारी और सहायता प्राप्त गैरसरकारी, सभी शिक्षण संस्थाओं के शिक्षकों के वेतनमान समान हों।

(ii) सभी सरकारी एवं सहायता प्राप्त गैरसरकारी शिक्षकों को सरकारी कर्मचारियों के समान मंहगाई भत्ता (Defames allowance) दिया जाए।

(iii) प्रति 5 वर्ष बाद शिक्षको के वेतनमान पुनर्निरीक्षित (Revise) हों।


2. नियुक्ति एवं पदोन्नति सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Appointment and Promotion) -


(i) किसी भी स्तर के शिक्षको की न्यूनतम योग्यता (Minimum qualification) बढ़ाई जाए और उनके चयन की विधियों (Selection Method) में सुधार (improve) किया जाए।

(ii) शिक्षकों के पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति की जाए। इस हेतु अति योग्य व्यक्तियों को अग्रिम वेतन वृद्धि और अतिरिक्त प्रतिभा के व्यक्तियों (Person with extra talent) को उच्च वेतनमान भी दिए जा सकते है।

(iii) सभी स्तरों पर महिला शिक्षकों की नियुक्ति को प्रोत्साहन दिया जाए।

(iv) पदोन्नति का आधार वरीयता (Seniority) के स्थान पर योग्यता (Ability) एवं कुशलता (efficiency) होना चाहिए।


 3. सेवाशर्तों सम्बन्धी सुझाव -


(i) सभी सरकारी और सहायता प्राप्त गैरसरकारी शिक्षकों की सेवाशर्ते समान होनी चाहिए।

(ii) सभी सरकारी एवं सहायता प्राप्त गैरसरकारी शिक्षकों के लिए, 'त्रिमुखी लाभ योजना' (जी०पी०एफ० (General provident fund) बीमा और पेंशन) लागू होनी चाहिए।

(iii) ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने वाले शिक्षकों को आवास सुविधा दी जाए और शिक्षिकाओं को आवास सुविधा के साथ-साथ विशेष भत्ता भी दिया जाए।

(iv) बड़े नगरो में कार्य करने वाले शिक्षको को मकान किराया भत्ता (House rent allowance) दिया जाए।

(v) विश्वविद्यालय के 50 प्रतिशत और उनसे सम्बद्ध महाविद्यालयों के 25 प्रतिशत शिक्षकों को आवास सुविधा दी जाए। 

(vi) सभी शिक्षकों को 5 वर्ष में एक बार देश भ्रमण हेतु किराया भत्ता LTC (Leave Travel Concession) दिया जाए।

(vii) शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष की जाए। स्वस्थ एवं कर्मठ व्यक्तियों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।

(viii) शिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य के घण्टे निश्चित करते समय उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य विद्यालयी कार्यों को ध्यान में रखा जाए।

(ix) व्यक्तिगत ट्यूशन पर नियन्त्रण किया जाए।

(x) शिक्षको को अपनी व्यावसायिक योग्यता बढ़ाने के अवसर प्रदान किए जाएँ।

(xi) शिक्षा मन्त्रालय द्वारा शिक्षको को दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कारों में वृद्धि की जाए।


(12) शिक्षक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestions Regarding Teacher Education) -


(i) प्रत्येक राज्य में 'राज्य शिक्षक शिक्षा बोर्ड (State Board of Teacher Educatin) की स्थापना की जाए जो सभी स्तर के शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं उनके कार्यक्रमों के लिए उत्तरदायी हो।

(ii) सभी राज्यों में व्यापक कालेजों (Comprehensive Colleges) की स्थापना की जाए और इनमे सभी स्तर के शिक्षको के प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।

(iii) सभी शिक्षण प्रशिक्षण सस्थाओ को शिक्षक प्रशिक्षण कॉलिज' (Teacher Training College) कहाँ जाए।

(iv) जिसमें शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम चलाये जाये और साथ ही शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में अनुसन्धान कार्य चलाए जाएँ।

 (v) कुछ चुने हुए विश्वविद्यालयों में 'शिक्षा स्कूल' (School of Education) स्थापित किए जाएँ जिनमें शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम (Teacher Education Programme) चलाए जाएँ और साथ ही शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में अनुसन्धान (Research) कार्य चलाए जाएँ।

(vi) शिक्षण अभ्यास (Practice Teaching) के लिए मान्यता प्राप्त (Recognized) स्कूल ही चुने जाएँ और चुने हुए स्कूलों को राज्य द्वारा सहकारी स्कूल' (Co-operative School) की मान्यता दी जाए और इन्हें साज-सज्जा हेतु विशेष सहायता अनुदान दिया जाए।

(vii) किसी भी स्तर के शिक्षकों के लिए हर पाँच वर्ष बाद अन्तर्सेवा प्रशिक्षण (In Service Training) की व्यवस्था की जाए।

(viii) अन्तर्सेवा प्रशिक्षण (In Service Training) की व्यवस्था शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं के साथ-साथ विश्वविद्यालयों में भी की जाए

(ix) जहाँ सम्भव हो वहाँ ग्रीष्मकालीन संस्थाओं में भी शिक्षको के अन्तर्सेवा प्रशिक्षण (In Service Training) की व्यवस्था की जाए।


स्त्री शिक्षा सम्बन्धी सुझाव 
(Suggestion Regarding Women Education) -


आयोग ने स्त्री शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारे मानव संसाधनों के पूर्ण विकास, परिवारों की उन्नति एवं बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए स्त्रियों की शिक्षा का महत्व पुरुषो से अधिक है"।


स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए-


बालिकाओं के लिए 20 वर्षों के अन्दर इतने प्राथमिक विद्यालय खोले जाए कि सभी बालिकाओं को प्राथमिक शिक्षा सुलभ हो सके। निम्न माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं और बालको की सख्या का अनुपात 13 और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 12 हो जाए।

2. बालिकाओं के लिए अलग विद्यालयों एवं छात्रावासों की व्यवस्था की जाए।

3. उच्च शिक्षा में बालिकाओं के लिए विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाए।

4. गृह-विज्ञान एवं सामाजिक कार्य (Social Work) का विस्तार किया जाए।

5. एक या दो विश्वविद्यालयों में स्त्री शिक्षा से सम्बन्धित अनुसंधान यूनिटों (Research Units) की स्थापना की जाए।

6. स्त्रियों को कला, विज्ञान, मानवशास्त्र (Anthropology), तकनीकी आदि विषयों के अध्ययन के चुनाव की सुविधा प्रदान की जाए।

7. स्त्रियों के लिए अलग से स्नातकोत्तर महाविद्यालयों की व्यवस्था की जाए।

8. बालिकाओं को सगीत एवं कलाओ की शिक्षा देने के लिए उत्तम व्यवस्था की जानी चाहिए।

9. छात्राओं को विज्ञान अथवा गणित का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।


प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
(Suggestion Regarding Adult Education) -


1. केन्द्र में राष्ट्रीय प्रौढ शिक्षा बोर्ड (National Board of Adult Education) का गठन किया जाए। इसका कार्य प्रौढ शिक्षा सम्बन्धी नीति और योजनाओं का निर्माण करना, केन्द्र व प्रान्तीय सरकारों को प्रौढ शिक्षा सम्बन्धी परामर्श देना, प्रौढ शिक्षा हेतु उपयुक्त साहित्य एवं सामग्री का निर्माण करना, प्रौढ़ शिक्षा की प्रगति का लेखा-जोखा रखना और साथ ही विभिन्न संस्थाओं के प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना होना चाहिए।

2. केन्द्र की भाँति प्रत्येक प्रान्त में राज्य प्रौढ़ शिक्षा बोर्ड' (State Board of Adult Education) की स्थापना की जाए जो राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा बोर्ड (National Board of Adult Education) द्वारा निश्चित कार्यक्रमों के सम्पादन के लिए उत्तरदायी हो। जिले और ग्राम स्तरों पर 'प्रौढ़ शिक्षा समितियों का गठन किया जाए जो अपने-अपने क्षेत्र में 

3. प्रौढ शिक्षा कार्यक्रमों के सम्पादन के लिए उत्तरदायी हो।

4. प्रौढ शिक्षा की व्यवस्था के लिए पर्याप्त बजट रखा जाए।

5. प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं (Voluntary Organization) को प्रोत्साहन दिया जाए, उन्हे आर्थिक सहायता दी जाए और प्रौढ शिक्षा साहित्य एवं सामग्री उपलब्ध कराई जाए।

6. 15 से 30 आयु वर्ग के निरक्षर प्रौढ़ो की शिक्षा के लिए प्राथमिक विद्यालयो को सामुदायिक केन्द्र (Community Centre) बनाया जाए और यहाँ विद्यालयी समय से पहले अथवा बाद में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाए।

7. प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों में शिक्षक-शिक्षार्थियों, शिक्षित युवक-युवतियों और समाजसेवी संस्थाओं का सहयोग लिया जाए।

8. ग्रामीण निरक्षर महिलाओं को साक्षर बनाने के लिए ग्राम सेविकाओं का सहयोग लिया जाए।

9 प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के बाद अनुसरण कार्यक्रम (Follow-up Programme) चलाए जाएँ।

10. पुस्तकालयों एवं वाचनालयों की व्यवस्था की जाए और साथ ही साथ सचल पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाए।

11 विद्यालयों के पुस्तकालयों एवं वाचनालय नवसाक्षर प्रौढ़ों के लिए उपलब्ध कराए जाएँ।

12 कामगर प्रौढ़ों के लिए अल्पकालीन पाठ्यक्रम चलाए जाएँ।


*********





राष्ट्रीय शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग)
उद्देश्य, सिफारिशें और प्रभाव


उद्देश्य:

* भारत में शिक्षा प्रणाली की समीक्षा करना

* शिक्षा के सभी पहलुओं का अध्ययन करना

* भविष्य के लिए एक व्यापक योजना तैयार करना



सिफारिशें:

* 10+2+3 शिक्षा प्रणाली

* त्रिभाषा फॉर्मूला

* व्यावसायिक शिक्षा पर अधिक ध्यान

* शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार

* शिक्षा प्रणाली में विकेंद्रीकरण

* शिक्षा के लिए अधिक धन आवंटन



प्रभाव:

* भारत में शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाए

* शिक्षा का स्तर उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

* शिक्षा को अधिक सुलभ और समान बनाने में योगदान दिया

* आज भी भारत की शिक्षा नीति को प्रभावित करता है



अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:


* आयोग की अध्यक्षता डॉ. दौलत सिंह कोठारी ने की थी।

* आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1966 में प्रस्तुत की थी।

* आयोग की सिफारिशों को 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल किया गया था।


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