विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

प्रस्तावना

विविध आवश्यकताओं वाले बच्चे वे बच्चे होते हैं जिनकी शिक्षा और विकास के लिए विशेष सहायता और सुविधाओं की आवश्यकता होती है। इन बच्चों में विभिन्न प्रकार की विकलांगताएं हो सकती हैं, जैसे कि शारीरिक विकलांगता, मानसिक विकलांगता, दृष्टिबाधिता, श्रवणबाधिता, और सीखने की अक्षमता।

विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है। यह बच्चों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करता है और उन्हें समाज में एक सक्रिय और उत्पादक सदस्य बनने के लिए तैयार करता है।

प्राचीन काल:

  • प्राचीन काल में, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों को अक्सर समाज से अलग-थलग रखा जाता था और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं दिया जाता था। उदाहरण के लिए, प्राचीन ग्रीस में, विकलांग बच्चों को अक्सर पहाड़ों से फेंक दिया जाता था।
  • कुछ अपवाद भी थे। प्राचीन मिस्र में, कुछ विकलांग बच्चों को शिक्षा दी जाती थी, लेकिन यह शिक्षा मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा तक सीमित थी।

मध्य युग:

  • मध्य युग में, कुछ मठों में विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गई थी। इन मठों में, बच्चों को धार्मिक शिक्षा और कुछ व्यावहारिक कौशल सिखाए जाते थे।
  • उदाहरण के लिए, 12वीं शताब्दी में, इंग्लैंड में, यॉर्क के मठ में अंधे बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था की गई थी।

18वीं और 19वीं शताब्दी:

  • 18वीं और 19वीं शताब्दी में, कुछ देशों में विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए विशेष शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए गए। इन कार्यक्रमों में मुख्य रूप से अंधे, बहरे और मूक बच्चों के लिए शिक्षा शामिल थी।
  • उदाहरण के लिए:
    • 1784 में, फ्रांस में पहला स्कूल फॉर द ब्लाइंड स्थापित किया गया था।
    • 1817 में, जर्मनी में पहला स्कूल फॉर द डेफ स्थापित किया गया था।
    • 1820 में, अमेरिका में पहला स्कूल फॉर द डम्ब स्थापित किया गया था।

20वीं शताब्दी:

  • 20वीं शताब्दी में, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई।
  • 1975 में, संयुक्त राष्ट्र ने "विशेष शिक्षा की घोषणा" को अपनाया, जिसमें सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।
  • इस घोषणा के बाद, कई देशों ने विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाए।


21वीं शताब्दी:

  • 21वीं शताब्दी में, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा को और अधिक समावेशी बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है।
  • समावेशी शिक्षा का लक्ष्य यह है कि सभी बच्चे एक ही कक्षा में शिक्षा प्राप्त करें, चाहे उनकी क्षमताएं या सीखने की शैली कैसी भी हो।
  • समावेशी शिक्षा के कई फायदे हैं, जैसे कि:
    • यह सभी बच्चों को समान अवसर प्रदान करता है।
    • यह बच्चों को सामाजिक और भावनात्मक रूप से विकसित करने में मदद करता है।
    • यह बच्चों को एक-दूसरे से सीखने में मदद करता है।


भारत में विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा:

  • भारत में, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन काम कर रहे हैं।
  • सरकार ने "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020" में भी विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा को शामिल किया है।
  • इस नीति के तहत, सरकार निम्नलिखित कार्य करेगी:
    • विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाना।
    • विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण देना।
    • विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए स्कूलों में बुनियादी ढांचे का विकास करना।


उदाहरण:

  • भारत में, "सर्व शिक्षा अभियान" (एसएसए) के तहत, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया है।
  • एसएसए के तहत, सरकार विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए विशेष शिक्षा


निष्कर्ष

विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है। यह बच्चों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करता है और उन्हें समाज में एक सक्रिय और उत्पादक सदस्य बनने के लिए तैयार करता है।

पिछले कुछ दशकों में, विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

यह महत्वपूर्ण है कि सभी देश विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों की शिक्षा को अनिवार्य बनाने के लिए कानून बनाएं और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए समान अवसर प्रदान करें।

यह भी महत्वपूर्ण है कि समाज में विविध आवश्यकताओं वाले बच्चों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और उन्हें स्वीकार किया जाए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

अधिगम की अवधारणा (Concept of Learning)

अधिगम के सिद्धांत (Theories Of learning) ( Behaviorist - Thorndike, Pavlov, Skinner)

बुद्धि की अवधारणा — अर्थ, परिभाषा, प्रकार व सिद्धांत (Concept Of Intelligence)

बन्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत (Social Learning Theory of Bandura)

माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर कमीशन: (1952-1953) SECONDARY EDUCATION COMMISSION

विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) University Education Commission

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

विशिष्ट बालक - बालिका (Exceptional Children)