थार्नडाइक का प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत (Thorndike's Trial & Error Theory)
प्रस्तावना -
थार्नडाइक (Thorndike) को प्रयोगात्मक पशु मनोविज्ञान (Experimental Psychology) के क्षेत्र में एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक माना गया है। उन्होंने सीखने के एक सिद्धान्त का प्रतिपादन (1898)में अपने पीएच0 डी0 शोध प्रबन्धन (Ph.D. thesis) जिसका नाम 'एनिमल इन्टेलिजेन्स' (Animal Intelligence) था, में किया। टॉलमैन (Tolman, 1938) ने थार्नडाइक के इस सिद्धान्त पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उनका यह सिद्धान्त इतना पूर्ण तथा वैज्ञानिक था कि उस समय के अन्य सभी मनोवैज्ञानिकों ने थॉर्नडाइक को अपना प्रारम्भ बिन्दु (Starting Point) माना था।
थॉर्नडाइक ने सीखना की व्याख्या करते हुए कहा है कि जब कोई उद्दीपक (Stimulus) व्यक्ति के सामने दिया जाता है तो उसके प्रति वह अनुक्रिया (Response) करता है। अनुक्रिया सही होने से उसका संबंध (Connection) उसी विशेष उद्दीपक (Stimulus) के साथ हो जाता है। इस संबंध को सीखना (Learning) कहा जाता है तथा इस तरह की विचारधारा को संबंधवाद (Connectionism) की संज्ञा दी गयी है। थार्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत को प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत तथा सबन्धवाद के नाम से जाना जाता है।
इस सिद्धांत को निम्नलिखित नामों से भी जाना जाता है -
- साहचर्य सिद्धांत (Association Theory)
- प्रयत्न और भूल का सिद्धांत (Trial And Error Theory)
- अणु वादी सिद्धांत (Molecular Theory)
- संबंध वाद का सिद्धांत (Connectionist Theory)
- सीखने का संबंध सिद्धांत (Bond theory Of Learning)
- उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत (Stimulus Response Theory) (S-R)
थार्नडाइक ने उपर्युक्त तथ्य की पुष्टि अनेक प्रयोग करके किया है। उनके प्रयोग बिल्ली, कुत्ता, मछली तथा बन्दर पर अधिकतर किये गये हैं। इन सभी प्रयोगों में बिल्ली पर किया गया प्रयोग काफी मशहूर है।
इस प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को एक पहेली बॉक्स में बन्द कर के रखा गया। इस बॉक्स के अन्दर एक चिटकिनी (knob) लगी थी, जिसको दबाकर गिरा देने से दरवाजा खुल जाता था। दरवाजे के बाहर भोजन रख दिया गया था। चूँकि बिल्ली भूखी थी, अत : उसने दरवाजा खोलकर भोजन खाने की पूरी कोशिश करना प्रारंभ कर दी। प्रारंभ के प्रयासों (trials) में जब बिल्ली को बॉक्स के अन्दर में रखा गया, तो बहुत सारे अनियमित व्यवहार जैसे उछलना, कूदना, नोचना, खसोटना आदि होते पाये गए। इसी उछल - कूद में अचानक उसका पंजा चिटकिनी पर पड़ गया जिसके दबने से दरवाजा खुल गया और बिल्ली ने बाहर निकलकर भोजन कर लिया। बाद के प्रयासों (trials) में बिल्ली द्वारा किये जाने वाले अनियमित व्यवहार अपने आप कम होते गये तथा बिल्ली सही अनुक्रिया (यानी सिटकिनी दबाकर दरवाजा खोलने अनुक्रिया को बॉक्स में रखने के तुरन्त बाद करते पायी गयी।)
उपरोक्त विवेचन के आधार पर थार्नडाइक के संबंधबाद अधिगम सिद्धांत (Connectionism Learning Theory) के प्रमुख सैद्धांतिक बिंदुओं को निम्नवत प्रस्तुत किया जा सकता है -
1. अधिगम में प्रयास व त्रुटि समाहित रहती है।
(Learning involves trial and error)
2. अधिगम संबंधों या बंधनों के बनने का परिणाम है।
(Learning is the result of the formation of connections)
3. अधिगम सूझ युक्त ना होकर उत्तरोत्तर होती है।
(Learning is not insightful but is incremental)
4. अधिगम संज्ञान पर आधारित न होकर प्रत्यक्ष होती है।
(Learning is not meditated by idea but is direct)
थॉर्नडाइक ने सीखने के सिद्धान्त में तीन महत्वपूर्ण नियमों का वर्णन किया है जो निम्नांकित है -
- अभ्यास का नियम (Law of exercise)
- तत्परता का नियम (Law of readiness)
- प्रभाव का नियम (Law of effect)
इन सभी का वर्णन निम्नांकित है -
1. अभ्यास का नियम (Law of Exercise) -
यह नियम इस तथ्य पर आधारित है कि अभ्यास से व्यक्ति में पूर्णता आती है (Practice makes man perfect)। हिलगार्ड तथा बॉअर (Hilgard & Bower,1975) ने इस नियम को परिभाषित करते हुए कहा है, अभ्यास नियम यह बतलाता है कि अभ्यास करने से (उद्दीपक तथा अनुक्रिया का) संबंध मजबूत होता है (उपयोग नियम) तथा अभ्यास रोक देने से संबंध कमजोर पड़ जाता है या विस्मरण हो जाता है (अनुपयोग नियम) इस व्याख्या से बिलकुल ही यह स्पष्ट है कि जब हम किसी पाठ या विषय को बार - बार दुहराते है तो उसे सीख जाते हैं। इसे थॉर्नडाइक ने उपयोग का नियम (law of use) कहा है। दूसरी तरफ जब हम किसी पाठ या विषय को दोहराना बन्द कर देते हैं तो उसे भूल जाते हैं। इसे इन्होंने अनुपयोग का नियम (law of disuse) कहा है ।
2. तत्परता का नियम ( Law of Readiness) -
इस नियम को थॉर्नडाइक ने एक गौण नियम माना है और कहा है कि इस नियम द्वारा हमें सिर्फ यह पता चलता है कि सीखने वाले व्यक्ति किन - किन परिस्थितियों में संतुष्ट होते हैं या उसमें खीझ उत्पन्न होती है। उन्होंने इस तरह की निम्नांकित तीन परिस्थितियों का वर्णन किया है -
- जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर रहता है और उसे वह कार्य करने दिया जाता है, तो इससे उसमें संतोष होता है।
- जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर रहता है परन्तु उसे वह कार्य नहीं करने दिया जाता है, तो इससे उसमें खीझ (Annoyance ) होती है।
- जब व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए तत्पर नहीं रहता है परन्तु उसे वह कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है, तो इससे भी व्यक्ति में खीझ (Annoyance) होती है। ऊपर के वर्णन से यह स्पष्ट है कि संतोष या खीझ होना व्यक्ति के तत्परता (readiness) की अवस्था पर निर्भर करता है।
3. प्रभाव नियम (Law of Effect) -
थार्नडाइक के सिद्धान्त का यह सबसे महत्वपूर्ण नियम है। इसकी महत्ता को ध्यान में रखते हुए कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इसके सिद्धान्त को प्रभाव नियम सिद्धान्त (Law of Effect Theory) भी कहा है। इस नियम के अनुसार व्यक्ति किसी अनुक्रिया या कार्य को उसके प्रभाव के आधार पर सीखता है। किसी कार्य या अनुक्रिया का प्रभाव व्यक्ति में या तो संतोषजनक (Satisfying) होता है या खीझ उत्पन्न करने वाला (Annoying) होता है। प्रभाव संतोषजनक होने पर व्यक्ति उस अनुक्रिया को इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि प्रभाव नियम के अनुसार व्यक्ति किसी अनुक्रिया को इसलिए सीख लेता है क्योंकि व्यक्ति में उस अनुक्रिया को करने के बाद संतोषजनक प्रभाव (Satisfying Effect) होता है। सीख लेता है तथा खीझ उत्पन्न करने वाला होने पर व्यक्ति उसी अनुक्रिया को दोहराना नहीं चाहता है। फलतः उसे वह भूल जाता है। इन प्रमुख नियमों के अलावा भी थॉर्नडाइक ने सहायक नियमों (Subordinate Laws) का भी प्रतिपादन किया परन्तु ये सभी नियम बहुत महत्वपूर्ण नहीं हो पाये क्योंकि वे स्पष्ट रूप से प्रमुख नियमों से ही संबंधित थे।
संक्षेप में , इन सहायक नियमों का वर्णन इस प्रकार है -
1. बहुक्रिया (Multiple Response) -
इस नियम के अनुसार किसी भी सीखने की परिस्थिति में प्राणी अनेक अनुक्रिया (Response) करता है जिसमें से प्राणी उन अनुक्रिया को सीख लेता है जिससे उसे सफलता मिलती है।
2. तत्परता या मनोवृत्ति (Set or Attitude) -
तत्परता या मनोवृत्ति से इस बात का निर्धारण होता है कि प्राणी किस अनुक्रिया को करेगा , किस अनुक्रिया को करने से कम संतुष्टि तथा किस अनुक्रिया को करने से अधिक संतुष्टि आदि मिलेगी।
3. सादृश्य अनुक्रिया (Response by similarity or analogy)-
इस नियम के अनुसार प्राणी किसी नयी परिस्थिति में वैसी ही अनुक्रिया को करता है जो उसके गत अनुभव या पहले सीखी गयी अनुक्रिया के सदृश होता है ।
4.साहचर्यात्मक स्थानान्तरण (Associative shifting)-
इन नियम के अनुसार कोई अनुक्रिया जिसके करने की क्षमता व्यक्ति में है , एक नये उद्दीपक ( stimulus ) से भी उत्पन्न हो सकती है। यदि एक ही अनुक्रिया को लगातार एक ही परिस्थिति में कुछ परिवर्तन के बीच उत्पन्न किया जाता है तो अन्त में वही अनुक्रिया एक बिलकुल ही नये उद्दीपक से भी उत्पन्न हो जाती है।
शैक्षिक निहितार्थ -
1. अध्यापक को इस बात को समझने का प्रयत्न करना चाहिये कि उसके विधार्थी को कौन कौन सी बाते याद रखनी चाहिये। जिन बातो को याद रखना है उनसे सम्बन्धित उद्विपन और अनुक्रियाओ के सहयोग को पुनरावृति, अभ्यास कार्य और प्रशंसा तथा पुरस्कारआदि की सहायता से लेते हुये अधिक दृण बनाने का प्रयत्न करना चाहियें। दूसरी ओर जिन बातो को भुलाना है उनको कष्ट प्रद परिणामो द्वारा कमजोर बनाने का प्रयत्न किया जाना चाहिये।
2. सीखने से पहले बच्चे को सीखने के लिये तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है जिस बात को बच्चा सीखना चाहता है उसमे उसकी पर्याप्त रूचि तथा अभिरूचि का होना आवश्यक है। अतः बच्चे को सीखने के लिये सही प्रकार से अभिप्रेरित किया जाना चाहिये।
3. अध्यापक को अपने विधार्थीयो को पूर्व ज्ञान और अनुभवो का समुचित उपयोग करना चाहिये। एक परिस्थिति में सीखे गये ज्ञान को दूसरी समान परिस्थितियों मे पूरी तरह उपयोग में लाने का प्रयत्न करना चाहियें।
4. बच्चे को स्वयं कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। उसके द्वारा हर सम्भव प्रयत्न करते हुये तथा अपनी त्रुटियो को सुधारते हुये समस्या का सही समाधान ढूढने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त की विशेषताएँ
(Characteristics Of Trial And Error Theory) -
इस सिद्धान्त के गुणों को निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में अध्ययन किया जा सकता है -
1. यह सिद्धान्त शैक्षिक प्रक्रिया में अभिप्रेरणा को अधिक महत्त्व देता है।
2. सीखने के स्थायीकरण के लिए यह सिद्धान्त ज्ञानात्मक, गत्यात्मक और भावात्मक अंगों के इस्तेमाल पर बल देता है।
3. थॉर्नडाइक के अनुसार, अधिगम उदीपक और अनुक्रिया के मध्य एक सम्बन्ध है जिसकी स्थापना मस्तिष्क में होती है।
इस सिद्धांत के अनुसार बार-बार प्रयत्न करने से अधिगम में स्थाईकरण आता है।
4. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत के आधार पर तीन नए अधिगम सिद्धांत तत्परता का नियम प्रभाव का नियम अभ्यास का नियम प्रतिपादित किए।
प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त की शिक्षा में उपादेयता
(Educational Implications of Trial and Error Theory) -
इस सिद्धान्त के अनुसार ही बालक साइकिल चलाना, टाई की गाँठ बाँधना, विभिन्न खेल खेलना आदि कार्य सीखते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त का बहुत अधिक महत्त्व है।
क्रो एवं को ने बताया कि यह सिद्धान्त विज्ञान व गणित जैसे कठिन तथा चिंतनशील विषयों के लिए बहुत ही लाभप्रद हैं।
शिक्षा में इस सिद्धान्त का उपयोग निम्न है -
- यह सिद्धान्त निरन्तर परिश्रम व प्रयास करने पर बल देता है।
- इस सिद्धान्त की सहायता से कार्य की धारणाएँ सरल और स्पष्ट हो जाती है।
- यह विधि अभ्यास पर अधिक बल देती है जिससे व्यक्ति किसी कार्य में निपुणता प्राप्त कर सकता है।
- इस सिद्धान्त के फलस्वरूप बालक में धैर्य एवं आशावादी जैसे गुणों का विकास होता है।
- यह सिद्धान्त करके सीखने पर बल देता है। इसमें विषय वस्तु को छोटे - छोटे भागों में विभाजित किया जाता है।
- उद्दीपक- अनुकिया सिद्धान्त छात्रों को नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए तत्पर रखता है।
- यह सिद्धान्त पिछड़े एवं मंद बुद्धिं बालकों के लिए बहुत उपयोगी है।
- इस सिद्धान्त से अनुभवों का लाभ उठाने की क्षमता का विकास होता है।
- इस सिद्धान्त से बालक में आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता की भावना का विकास होता है।
प्रयत्न और भूल के सिद्धान्त की आलोचना
(Criticism of Trial and Error Theory) -
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त के दोष निम्नलिखित हैं -
1. यह सिद्धान्त मनुष्यों की अपेक्षा पशुओं के सीखने की क्रिया को अधिक स्पष्ट करता है।
2. इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने के उद्देश्य तक पहुँचने में काफी समय लग जाता है।
3. यह सिद्धान्त सीखने की विधि बताता है परन्तु सीखता क्यों है इस पर प्रकाश नहीं डालता।
4. उददीपक - अनुक्रिया सिद्धान्त व्यर्थ के प्रयत्नों पर अधिक बल देता है।
5. यह सिद्धान्त मानव विवेक एवं चिंतन की अवहेलना करते हुए रटने की क्रिया पर बल देता है।
6. इस सिद्धान्त से सीखने में यांत्रिकता आ जाती है जो अधिगम के स्थायीकरण के लिए सहायक नहीं है।
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