स्किनर का क्रिया प्रसूत अनुबंध सिद्धांत (Skinners's Operant Conditioning Theory)

प्रस्तावना — 

इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी विचारक प्रोफ़ेसर बी.एफ स्किनर ने 1938 में किया। स्किनर क्रिया प्रसूत अनुकूलन का आधार पुनर्बलन को मानते हैं। इस सिद्धांत के मूल में थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत है जिसको इस स्किनर ने पुनर्बलन सिद्धांत में परिवर्तित कर दिया। अधिगम के इस सिद्धांत का अभिप्राय सीखने के उस प्रक्रिया से है जिसमें प्राणी उस प्रतिक्रिया का चयन करना सीखता है जो पुनर्बलन को उत्पन्न करने में साधन का एक काम करती है। इस सिद्धांत के अनुसार यदि किसी अनुक्रिया के करने से सकारात्मक एवम संतोषजनक परिणाम मिलते हैं तो प्राणी व क्रिया बार-बार दोहराता है। असफलता या नकारात्मक परिणाम मिलने पर प्राणी क्रिया को पुनः दोहराने से बचता है जिससे उद्दीपन अनुक्रिया का संबंध कमजोर हो जाता है।

स्किनर ने इस सिद्धांत की खोज के लिए कबूतर एवं सफेद चूहों पर प्रयोग किए। स्किनर ने व्यवस्थित एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन के लिए एक समस्यावादी, ध्वनिविहीन लीवर वाला बॉक्स (पिंजरा) बनाया जिसे स्किनर बॉक्स के नाम से जाना जाता है। इसके लिवर को दबाने से भोजन का एक टुकड़ा गिरता है।




स्किनर ने एक भूखे चूहे को इस बॉक्स में बंद कर दिया। भूख की तड़प से चूहा इधर - उधर उछलता है । इस दौरान एक बार उछलने से चूहे के पंजे से लीवर दब जाता कुछ टुकड़े गिरते हैं। ऐसे ही कई बार उछल - कूद करने एवं लीवर के दबने से चूहे को भोजन की प्राप्ति हो जाती है इस प्रकार बार-बार भोजन मिलने से चूहा लीवर को दबाकर भोजन प्राप्त करने की कला को सीख जाता है। इसमें अनुबंध का संबंध सीखने वाले के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से होता है। भोजन चूहे के लिए प्रबलन (Reinforcement) एवं भूख उसके लिए प्रणोदित (Drive) का कार्य करती है।

इस प्रयोग से स्किनर ने निम्न निष्कर्ष निकाले -

  1. पहली बार भोजन की प्राप्ति त्रुटि एवं प्रयास सिद्धान्त का फल था।
  2. भोजन की प्राप्ति ने चूहे के लिए प्रेरणा का कार्य किया।
  3. लीवर दबाने से भोजन की प्राप्ति से अनुक्रिया एवं पुनर्बलन में अनुकूलन स्थापित हो जाता है। 
  4. बार - बार लीवर दबाने से यह क्रिया चूहे के लिए सरल हो गई।
  5. प्रत्येक अगली बार लीवर को दबाने में चूहे ने पहले की तुलना में कम समय लगाया।
  6. लीवर को कई बार दबाने से क्रिया का अभ्यास हो जाता है।

स्किनर ने अपने एक अन्य प्रयोग में भूखे कबूतर को बॉक्स में बन्द किया। बॉक्स में कबूतर शांत बैठा रहता है। कुछ समय बाद बॉक्स में प्रकाश किया गया। प्रकाश के होते ही कबूतर ने चाँच मारना प्रारम्भ कर दिया जिससे उसे भोजन की प्राप्ति हो गई। बार - बार इस क्रिया को दोहराने से कबूतर सिर घुमाकर चोंच मारना सीख जाता है। इस प्रक्रिया में भी क्रिया प्रसूत अनुबंध का विकास होता है।






स्किनर ने बताया कि प्रत्येक प्राणी में अनुक्रिया (respondent) एवं क्रिया प्रसूत (operant) के में दो प्रकार का व्यवहार पाया जाता है। अनुक्रिया का सम्बन्ध उद्दीपकों से होता है और क्रिया प्रसूत का अभिप्राय उस व्यवहार से है जो प्राणी अधिगम प्राप्त करते समय करता है। 

अनुक्रिया भी दो प्रकार की होती है -

  1. प्रकाश में आने वाली अनुक्रिया (Elicited Response) - ये अनुक्रियाएँ ज्ञात उत्प्रेरकों से उत्पन्न होती हैं।
  2. उत्सर्जन अनुक्रिया (Emitted Response) - इन अनुक्रियाओं का सम्बन्ध अज्ञात प्रेरकों से होता है।  इन उत्सर्जन अनुक्रियाओं को क्रिया प्रसूत कहा जाता है। 

स्किनर ने इस सिद्धान्त को क्रिया - प्रसूत ( operant ) अथवा साधक (Instrumental) अनुबन्धन कहा है। स्किनर के अनुसार क्रिया - प्रसूत अनूकूलन एक प्रकार की अधिगम प्रक्रिया है जिसके द्वारा सीखने को अधिक संभाव्य (probable) और निरन्तर ( frequent ) बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि अभिप्रेरणा से उत्पन्न क्रियाशीलता के फलस्वरूप ही व्यक्ति सीखता है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी प्रतिक्रिया के परिणाम को परिचालित (manipulate) करके इसके घटित होने की संभावना में परिवर्तन लाया जा सकता है।


सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की विशेषताएँ 
(Characteristics of Operant Conditioning Theory) 

स्किनर के क्रिया - प्रसूत अनुकूलन सिद्धान्त में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं -

  1. यह सिद्धान्त क्रिया के परिणाम को महत्त्व देता है।
  2. क्रिया प्रसूत अनुकूलन सिद्धान्त में पुनर्बलन एक आवश्यक तत्त्व है। 
  3. यह सिद्धान्त सीखने की क्रिया में अभ्यास पर अधिक बल देता है। 
  4. इस सिद्धान्त के अनुसार सीखने की क्रियाओं का संचालन मस्तिष्क से होता है। इसलिए इस प्रकार का अधिगम स्थायी रहता है। 
  5. यह सिद्धान्त मंद बुद्धि बालकों के अधिगम के लिए बहुत उपयुक्त है। 

सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की शिक्षा में उपादेयता
(Educational Implications of Operant Conditioning Theory) 

स्किनर ने बताया कि इस सिद्धान्त से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। एक अध्यापक को शैक्षिक प्रक्रिया में इस सिद्धान्त का प्रयोग व्यवस्थित रूप से करना चाहिए। क्रिया - प्रसूत सिद्धान के शिक्षा में महत्त्व को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है -

  1.  इस सिद्धान्त का प्रयोग अध्यापक सीखे जाने वाले व्यवहार को वांछित स्वरूप प्रदान करने में करता है। इस सिद्धान्त का प्रयोग जटिल कार्य सिखाने में किया जाता है। 
  2. इस सिद्धान्त के द्वारा छात्रों को समयानुसार प्रशंसा, पुरस्कार आदि के रूप में पुनर्बलन दिया जाए तो उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन होता है।
  3. यह सिद्धान्त मानसिक बहुत उपयोगी है। इस सिद्धान्त के माध्यम से चिंता, भय आदि का निदानात्मक शिक्षण सम्भव है। स्किनर के अनुसार वैयक्तिक भिन्नता क रोगियों के लिए आधार पर शिक्षण प्रदान करना चाहिए।
  4. यह सिद्धान्त प्रगति एवं परिणाम की जानकारी प्रदान करता है। सीखने वाले को यदि अपने परिणाम की जानकारी हो तो वह शीघ्रता से सीखता है। इससे अधिगम का सतत् मूल्यांकन किया जा सकता है।
  5. इस सिद्धान्त की मदद से अभिक्रमिक अधिगम विधि का विकास हुआ जो शिक्षण में बहुत उपयोगी है।
  6. क्रिया - प्रसूत सिद्धान्त के उपयोग से शब्द भंडार विकसित किया जाता है। इसके सहयोग शब्दों को तार्किक क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। 
  7. क्रिया - प्रसूत अनुकूलन सिद्धान्त में पुनर्बलन का बहुत महत्त्व है। इसके अनुसार स्थायी एवम शीघ्र अधिगम के लिए अति आवश्यक है। छात्रों के अवांछनीय आचरण नकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा दूर किया जा सकता है।
  8. इस सिद्धान्त के सहयोग से पाठ्यचर्या एवं पाठ्यक्रम को छोटे - छोटे भागों में बाँटकर प्रस्तुत किया जाता है। इससे अधिगम प्रक्रिया को बल मिलता है। 
  9. स्किनर ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि है तो वह क्रियाशील होकर सीखने का प्रयत्न करता है। अधिगम से बालक को संतोष प्राप्त होता है तो वह क्रियाशील होकर सीखने का प्रयत्न करता है।

सक्रिय अनुबन्धन सिद्धान्त की आलोचना 
(Criticism of Opera Conditioning Theory) 

शिक्षा में उपयोगी होने के बावजूद इस सिद्धान्त में कुछ कमियाँ हैं, जिनको निम्न प्रकार से स किया गया है-

  1. हालमैन ने सीखने की क्रिया में पुनर्बलन को आवश्यक नहीं माना। उन्होंने प्रश्न किया कि यदि पुनर्बलन से ही अधिगम शीघ्र होता है तो कुछ लोग कष्ट की परिस्थिति में कैसे सीखते हैं।
  2. यह सिद्धान्त मानव पर हर परिस्थिति में सीखने के लिए उपयुक्त नहीं है। 
  3. इस सिद्धान्त के अनुसार सीखना एक यांत्रिक प्रक्रिया है, जबकि हम सब जानते हैं कि सीखने के लिए मनुष्य में बुद्धि , विवेक एवं चिंतन का होना आवश्यक है। 
  4. यह सिद्धान्त मनुष्य की सीखने की प्रक्रिया को सही प्रकार से व्यक्त करने में असमर्थ रहा है क्योंकि इस सिद्धान्त का प्रयोग पशु एवं पक्षियों पर अधिक किया गया है। 
  5. यह सिद्धान्त पुनर्बलन पर अत्यधिक जोर देता है जबकि मनुष्य को सीखने के लिए लक्ष्य की आवश्यकता पहले होती है।
  6. क्रिया - प्रसूत अनुकूलन सिद्धान्त विशेषतः मंद बुद्धि या बुद्धिहीन प्राणियों पर लागू होता है। विवेकशील एवं चिंतनशील प्राणियों के लिए यह ज्यादा उपयुक्त नहीं है।



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