स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा दर्शन (Education Philosophy Of Swami Vivekananda)

भारत के अतीत में अडिग आस्था रखते हुए और भारत की विरासत पर गर्व करते हुए भी, विवेकानन्द का जीवन की समस्याओं के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण था और वे भारत के अतीत तथा वर्तमान के बीच एक प्रकार के संयोजक थे।

Rooted in the past and full of pride in India's prestige, Vivekananda was yet modern in his approach to life's problems and was a kind of bridge between the past of India and his present.


- पं. जवाहरलाल नेहरू


जीवन-परिचय (Life History) -

स्वामी जी का जन्म कलकत्ता, (कोलकाता) में सन् 1863 ई. में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उन्होंने कॉलेज स्तर तक शिक्षा प्राप्त की। वे अत्यन्त प्रखर बुद्धि वाले तेजस्वी छात्र थे। उनके प्रधानाचार्य मिस्टर हैस्टी ने उनके विषय में कहा था,

"नरेन्द्रनाथ दत्त वस्तुतः प्रतिभाशाली हैं। मैंने विश्व के विभिन्न देशों की यात्रायें की हैं, किन्तु किशोरावस्था में ही, इसके समान योग्य एवं महान् क्षमताओं वाला युवक मुझे जर्मन विश्वविद्यालयों में भी नहीं मिला।"

नरेन्द्रनाथ ने एक बार दक्षिणेश्वर की यात्रा की और वहाँ उनका साक्षात्कार स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुआ। उन्होंने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से जो भी प्रश्न किए, उनके उत्तरों से नरेन्द्रनाथ को बहुत सन्तोष मिला। वे जब दूसरी बार अपने गुरु के दर्शन करने के लिए गए तो उन्हें दिव्य शक्ति का अनुभव हुआ। श्री परमहंस के दिवंगत हो जाने के पश्चात् नरेन्द्रनाथ ने उनकी शिक्षाओं का प्रसार किया और इसके लिए वे अनेक स्थानों पर गए। 31 मई, 1893 को वे एक विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लेने अमेरिका गए। वहाँ जाने से पूर्व उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द रखा। अमेरिका में विश्व धर्म-सम्मेलन में उन्होंने जो भाषण दिया उसका संसार के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। अमेरिका से वे इंग्लैण्ड गए और वहाँ से वे भारत आ गए। भारत में वे अपने जीवन के अन्त तक संगठन एवं प्रचार के कार्य में लगे रहे। उनकी मृत्यु अल्प आयु में 1902 में हो गई।



Education Philosophy Of Swami Vivekananda
(Education Philosophy Of Swami Vivekananda)


जीवन-दर्शन (Philosophy of Life) -

स्वामी विवेकानन्द का जीवन-दर्शन मानव के लिए अत्यन्त गौरवपूर्ण एवं प्रेरणादायक है। उनके जीवन-दर्शन के अंगों का विवरण निम्न रूप में दिया जा सकता है-

1. स्वामी विवेकानन्द सृष्टि का कर्ता ब्रह्म को मानते थे किन्तु वे माया और जगत् को भी सत्य मानते थे। भला सत्य से असत्य की उत्पत्ति कैसे हो सकती है?

2. उनके अनुसार, ज्ञान के दो रूप हैं-वस्तु जगत् का ज्ञान तथा आत्मा तत्त्व का ज्ञान। मनुष्य को इन दोनों प्रकार के ज्ञान को प्राप्त करना चाहिए।

3. स्वामी जी मानव-मात्र की सेवा को सबसे बड़ा धर्म मानते थे।

4. उनके अनुसार मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति, ईश्वर प्राप्ति अथवा मुक्ति है।

5. आत्मानुभूति के लिए ज्ञान योग, कर्मयोग, भक्तियोग आवश्यक है।

6. योग सभी प्रकार के ज्ञान की सर्वोत्तम विधि है।

7. ध्यान के लिए इन्द्रिय निग्रह एवं नैतिक विकास आवश्यक है।

8. वे मनुष्य के उद्यमी, निर्भय और वीर बनने पर बल देते थे। 

उन्हीं के शब्दों में, 

वीर बनो। हमेशा कहो, मैं निर्भय हूँ, सबसे कहो-डरो मत, भय मृत्यु है. भय पाप है, भय नर्क है, भय अधार्मिकता है तथा भय का जीवन में कोई स्थान नहीं है।'

Be a hero, Always say , I have no fear. Tell this to everybody , have no fear. To him fear is death, fear is sin, fear is hell, fear is unrighteousness, and fear is wrong life.


9. स्वामी जी ने मनुष्य को आगे बढ़ते रहने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहने का आह्वान किया। उन्होंने विभिन्न सिद्धान्तों के समन्वय पर भी बल दिया।




शिक्षा-दर्शन (Educational Philosophy) -


1. स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रचारित तत्कालीन अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के विरोधी थे क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य मात्रा बाबुओं की संख्या बढ़ाना था।

2. स्वामी जी भारत में ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे व्यक्ति चरित्रवान बने, साथ में आत्मनिर्भर भी बने। 

उन्हीं के शब्दों में, 

'हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है, जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होता है, मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती हैं. बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।' स्वामी जी ने प्रचलित शिक्षा को निषेधात्मक बताते हुए कहा, 'आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षायें उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो। पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जन साधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं कर सकती, जो चरित्र निर्माण नहीं कर सकती, जो समाज सेवा की भावना को विकसित नहीं कर सकती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ है?'

'You regard that man to be educated who obtains some degrees, has passed out of some examinations, is able to deliver fluent lectures. But this is not real education. It prepares a man for social service, develops his character and finally imbues him with the spirit and courage of a lion. Any other education is worse than useless.


3. स्वामी जी सैद्धान्तिक शिक्षा की तुलना में व्यावहारिक शिक्षा पर बल देते थे। उन्हीं के शब्दों में, 

'तुमको कार्य करने के सब क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा। सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है।'

'You will have to be practical in all spheres of work. The whole country has been ruined by mass of theories.





शिक्षा-दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त 
(Basic Principles of Educational Philosophy) -


स्वामी विवेकानन्द की गणना संसार के महान् शिक्षा शास्त्रियों में की जाती है। उनके शिक्षा-दर्शन सम्बन्धी आधारभूत सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

1. शिक्षा ऐसी हो जिससे व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास हो सके।

2. शिक्षा ऐसी हो जिससे चरित्र का गठन हो, मन का बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो तथा व्यक्ति आत्म-निर्भर बने।

3. बालकों के समान ही बालिकाओं को भी शिक्षा दी जानी चाहिए।

4. धार्मिक शिक्षा पुस्तकों से नहीं वरन् व्यवहार, आचरण एवं संस्कारों के माध्यम से दी जानी चाहिए। 

5. पाठ्यक्रम में लौकिक एवं आध्यात्मिक, दोनों प्रकार के विषय रखे जाने चाहिए।

6. शिक्षा गुरु-गृह में ही प्राप्त की जा सकती है।

7. शिक्षक तथा छात्र में महिमामय तथा गरिमामय सम्बन्ध होने चाहिए।

8. जन-साधारण को शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिए।

9. नारी शिक्षा का केन्द्र धर्म होना चाहिए।

10. देश की औद्योगिक प्रगति के लिए प्राविधिक शिक्षा का विस्तार किया जाना चाहिए।

11. राष्ट्रीय एवं मानवीय शिक्षा परिवार से प्रारम्भ होनी चाहिए।

12. केवल पुस्तकों का अध्ययन ही शिक्षा नहीं है।

13. ज्ञान व्यक्ति के मन में विद्यमान है। वह स्वयं ही सीखता है।

14. शिक्षक एक मित्र, दार्शनिक तथा पथ-प्रदर्शक है। उसे सहानुभूतिपूर्ण ढंग से बालक के मस्तिष्क में स्थिति ज्ञान का पथ-प्रदर्शन करना चाहिए।

15. मन, वचन तथा कर्म की शुद्धि आत्म-नियन्त्रण है।




शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education) -


स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, शिक्षा का अर्थ मनुष्य में निहित शक्तियों का पूर्ण विकास है, न कि मात्र सूचनाओं का संग्रह। उनके अनुसार, 'यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाओं से होता, तो पुस्तकालय संसार के सर्वश्रेष्ठ संत होते तथा विश्वकोष ऋषि बन जाते।'

उनके ही अनुसार, 

शिक्षा उस सन्निहित पूर्णता का प्रकाश है जो मनुष्य में पहले से ही विद्यमान है।

Education is the manifestation of the perfection, already present in man.




शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education) -


स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-


1. पूर्णत्व को प्राप्त करना (Reaching Perfection)- 

स्वामी जी के अनुसार, ज्ञान बाहर से नहीं आता बल्कि वह तो मनुष्य के भीतर ही होता है। इस अन्तर्निहित ज्ञान अथवा पूर्णता की अभिव्यक्ति करना शिक्षा है। लौकिक तथा आध्यात्मिक सभी प्रकार का ज्ञान मनुष्य के मन में पहले से ही विद्यमान रहता है। उस पर पड़े आवरण को हटा देना ही शिक्षा है। अतः शिक्षा को मनुष्य के अन्तर्निहित ज्ञान अथवा पूर्णत्व की अभिव्यक्ति करनी चाहिए।


2. शारीरिक विकास (Physical Development)- 

स्वामी जी लौकिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता समझते थे। उनका कहना था कि हमें ऐसे बलिष्ठ लोगों की आवश्यकता है जिनकी पेशियाँ लोहे के समान दृढ़ हों और स्नायु फौलाद की तरह कठोर। उनके विचारानुसार शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य मनुष्य का शारीरिक विकास करना है।


3. मानसिक एवं बौद्धिक विकास 
(Mental and Intellectual Development)- 

विवेकानन्द के अनुसार, भारत के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण उसका बौद्धिक पिछड़ापन है। इस कमी को दूर करने के लिए इस बात की आवश्यकता है कि शिक्षा द्वारा बालकों का मानसिक तथा बौद्धिक विकास किया जाए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके।


4. चरित्र-निर्माण (Character-Formation)- 

मानसिक एवं शारीरिक विकास के साथ उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण भी बताया। इसके लिए उन्होंने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने का सुझाव दिया। ऐसा करने से व्यक्ति मन, वचन और कर्म से पवित्र बनता है, उसमें प्रबल बौद्धिक एवं आध्यात्मिक शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं जिसके द्वारा उसके चरित्र-गठन में सहायता मिलती है।


5. धार्मिक विकास (Religious Development)- 

विवेकानन्द चाहते थे कि प्रत्येक व्यक्ति उस सत्य अथवा धर्म को मालूम कर सके जो उसके अन्दर छिपा हुआ है। इसके लिए उन्होंने मन तथा हृदय के प्रशिक्षण पर बल दिया और बताया कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसके द्वारा बालक में आज्ञा-पालन, समाज सेवा एवं महात्माओं के अनुकरणीय आदर्शों को अपनाने की क्षमता का विकास हो सके। शिक्षा ऐसी हो जो प्रत्येक मनुष्य को पूजा-पाठ करने के लिए प्रेरित करे जिससे वह अपने जीवन को पवित्र बना सके। अतः सभ्य एवं सनातन तत्त्वों को जनता के सामने रखना, उन्हें समझाना, उनका विकास करना शिक्षा का उद्देश्य है।


6. राष्ट्रीयता का विकास (Development of Nationalism)- 

स्वामी जी ने शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बालकों में देश-प्रेम की भावना का विकास करना बताया। उनका विचार है कि, 'जो शिक्षा देश-भक्ति की प्रेरणा नहीं देती वह राष्ट्रीय शिक्षा नहीं कही जा सकती।'


7. समाज-सेवा और विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास 
(Development of the Feeling of Social Service and International Brotherhood)- 

विवेकानन्द सभी मनुष्यों में एक आत्मा (ब्रह्म) के दर्शन करते थे और मनुष्य के शरीर को उसका मन्दिर मानते थे। अतः भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों दृष्टियों से मनुष्य को समाज-सेवा का पाठ पढ़ाना चाहिए, ऐसा वह चाहते थे। वह मानते थे कि शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य मनुष्य में समाज-सेवा की भावना के साथ ही विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास करना भी है।


8. व्यावसायिक विकास (Occupational Development) -

भारत एक निर्धन देश है तथा यहाँ की अधिकांश जनता मुश्किल से ही अपनी मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाती है। स्वामी जी ने इस तथ्य एवं सत्य को हृदयंगम किया तथा यह अनुभव किया कि कोरे अध्यात्म से ही जीवन नहीं चल सकता। जीवन चलाने के लिए कर्म अत्यधिक अनिवार्य है। इसके लिए उन्होंने शिक्षा के द्वारा मनुष्य को उत्पादन एवं उद्योग कार्य तथा अन्य व्यवसायों में प्रशिक्षित करने पर बल दिया।


9. विभिन्नता में एकता की खोज 
(Searching Unity in Diversity)- 

स्वामी जी के अनुसार, शिक्षा द्वारा विभिन्नता में एकता की खोज की जानी चाहिए। आपका कहना था कि सांसारिक जगत् तथा आध्यात्मिक जगत् एक ही है और विभिन्नता की अनुभूति दोष अथवा माया है। अतः शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसके द्वारा बालक विभिन्नता में एकता का अनुभव करने लगे।


10. आत्म-विश्वास तथा श्रद्धा एवं आत्म-त्याग की भावना का विकास 
(Development of the Feeling of Self- confidence, Faith and a Spirit of Re-Enunciation) -

स्वामी जी ने जीवन पर्यन्त इस बात पर बल दिया कि अपने ऊपर विश्वास रखना, श्रद्धा तथा आत्म-त्याग की भावना को विकसित करना शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। 

आपने लिखा है.

 'उठो जागो और उस समय तक बढ़ते रहो जब तक कि चरम उद्देश्य की प्राप्ति न हो जाए।'

'Arise, awake and stop not till the goal is achieved.'






पाठ्यक्रम (Curriculum) -

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, 'हमें अपने ज्ञान के विभिन्न अंगों के साथ अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य विज्ञान का अध्ययन करने की आवश्यकता है। हमें प्राविधिक शिक्षा और उन सब विषयों का ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता है, जिनसे हमारे देश के उद्योगों का विकास हो और मनुष्य नौकरियाँ खोजने के बजाय अपने स्वयं के लिए पर्याप्त धन का अर्जन कर सकें और दुर्दिन के लिए कुछ बचा भी सकें।


स्वामी जी के शैक्षिक विचार के अनुसार पाठ्यक्रम निर्माण के निम्नलिखित सिद्धान्त होने चाहिए- 

1. पाठ्यक्रम ऐसा हो जिससे शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का विकास हो।

2. पाठ्यक्रम ऐसा हो जो किसी रोजगार की शिक्षा दे।

3. विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया जाना चाहिए।

4. पाठ्यक्रम में विज्ञान की शिक्षा को सम्मिलित किया जाए। 

5. पाठ्यक्रम में क्रियात्मक कार्यों को स्थान दिया जाए।


उपयुक्त सिद्धान्तों के आधार पर स्वामी विवेकानन्द ने बालकों को इतिहास, भूगोल, विज्ञान एवं साहित्य पढ़ाने का सुझाव दिया। इसके साथ ही धर्म एवं सत्य की शिक्षा का भी अत्यधिक महत्त्व बताया। उन्होंने पाठ्यक्रम में क्रियात्मक कायों जैसे-कृषि, रोजगार, धन्धों आदि की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया ताकि व्यक्ति आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर इन सके। शिक्षा के पाठ्यक्रम में स्वामी जी ने इन सब के अतिरिक्त आंग्ल भाषा और पाश्चात्य विज्ञान के अध्ययन के अतिरिक्त मातृभाषा एवं संस्कृत की शिक्षा को प्रमुख स्थान दिया।

संक्षेप में स्वामी जी ने उन सभी विषयों के अध्ययन पर बल दिया जो मनुष्य की सांसारिक समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक हैं। लौकिक विषय हैं-भाषा, विज्ञान, मनोविज्ञान, गृह-विज्ञान, प्राविधिक विषय, कृषि, व्यावसायिक विषय, इतिहास, भूगोल, कला, गणित, राजनीति, अर्थशास्त्र, खेल-कूद, व्यायाम, समाज-सेवा तथा राष्ट्र-सेवा। आध्यात्मिक विषय हैं-दर्शन, पुराण, धर्म, उपदेश, भजन, कीर्तन, श्रवण तथा साधु संगति।




शिक्षण-विधि (Method of Teaching) -


प्रो. लक्ष्मीनारायण गुप्त के शब्दों में,

'शिक्षा की विधि में स्वामी विवेकानन्द का अपना एक विशिष्ट स्थान है। उनकी शिक्षा-विधि एकमात्र आध्यात्मिक कही जा सकती है, जिसका आधार धर्म है। इस विचार से उन्होंने धर्म की विशेष पद्धति को अपनाकर शिक्षा देने के लिए कहा।' 


इस पद्धति की विशेषतायें इस प्रकार हैं-

1. चित्तवृत्तियों के निरोध के लिए योग-विधि का प्रयोग।

2. शिक्षक के गुणों व आदर्शों के अनुकरण हेतु अनुकरण-विधि का प्रयोग।

3.मन को एकाग्र करने हेतु केन्द्रीयकरण विधि (Method of Concentration) का प्रयोग।

 4. ज्ञान अर्जित करने हेतु विचार-विमर्श, व्याख्यान, उपदेश एवं तर्क-विधि का प्रयोग।

5. छात्रों को सुझाव देने हेतु व्यक्तिगत निर्देशन एवं परामर्श-विधि का प्रयोग।

6. प्रयोग प्रदर्शन द्वारा तथ्यों का ज्ञान देने अथवा स्वयं प्रयोग करके तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्रयोग विधि का प्रयोग।




अनुशासन (Discipline) -


स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, अनुशासन का अर्थ है अपने व्यवहार में आत्मा द्वारा निर्दिष्ट होना। अनुशासन के सम्बन्ध में उनके विचार प्रकृतिवाद से मिलते-जुलते हैं। उनका कहना था कि बालक को स्वानुशासन सीखना चाहिए। उन्हें किसी प्रकार का शारीरिक दण्ड नहीं देना चाहिए तथा उन पर अनुचित दबाव भी नहीं डालना चाहिए बल्कि उन्हें सीखने के लिए पर्याप्त स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए। उन्हें स्व-अनुशासन की शिक्षा दी जानी चाहिए तथा सहानुभूतिपूर्वक सीखने के लिए उत्साहित करना चाहिए।



शिक्षक का स्थान (Place of Teacher) -


1. स्वामी जी चाहते थे कि बालकों को लौकिक तथा आध्यात्मिक (पारलौकिक) दोनों जीवनों के लिए तैयार करने हेतु दोनों प्रकार का ज्ञान होना चाहिए।

2. शिक्षक संयमी, आत्मज्ञानी, परिश्रमी एवं उच्च चरित्र वाला हो जिससे बालक उसका अनुकरण कर आदर्श मानव बन सकें।

3 . शिक्षक वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर बालकों को शिक्षा प्रदान करे। 

4. शिक्षक को बालक से निकट, घनिष्ठ और व्यक्तिगत सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए।

5. शिक्षक को बालक को संसार के प्रति उचित दृष्टिकोण का निर्माण करने में सहायता देनी चाहिए।

6. शिक्षक को बालक की ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित होने वाली सब बाधाओं को दूर करना चाहिए।

7. शिक्षक द्वारा बालक को इस प्रकार के सभी अवसर प्रदान किए जाने चाहिए, जिनसे वह अपने हाथों, पैरों, कानों, आँखों आदि का प्रयोग करके अपनी बुद्धि का विकास कर सके। 

8. शिक्षक को कभी यह नहीं समझना चाहिए कि वह बालक को शिक्षा दे रहा है, क्योंकि इससे शिक्षा का उद्देश्य नष्ट हो जाता है।


स्वामी जी के शब्दों में, 

'वास्तव में, किसी को किसी के द्वारा कभी शिक्षा नहीं दी गई है। हममें से प्रत्येक को अपने-आपकों शिक्षा देनी पड़ती है। बाह्य शिक्षक केवल ऐसे सुझाव देता है जिससे आत्मा कार्य करने और समझने के लिए चैतन्य हो जाती है।'



शिक्षार्थी (Student) -


स्वामी जी के अनुसार, गुरु-शिष्य का सम्बन्ध केवल सांसारिक ही नहीं होना चाहिए वरन् उन्हें एक-दूसरे के दिव्य स्वरूप को भी देखना चाहिए।

विवेकानन्द के अनुसार, ज्ञान चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक, उसको प्राप्त करने के लिए शिक्षार्थियों द्वारा ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य के पालन द्वारा ही वह अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखता है, उसमें सीखने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है और वह गुरु में श्रद्धा के भाव रखते हुए सत्य को जानने का प्रयत्न करता है। तभी वह ज्ञान प्राप्त कर सकता है।



विद्यालय (School) -


विवेकानन्द गुरु-गृह प्रणाली के पक्षधर थे। वे यह अनुभव करते थे कि आधुनिक परिस्थितियों में विद्यालय प्रकृति को गोद में, शहर के कोलाहल से दूर नहीं बसाए जा सकते। अतः आपने केवल इस बात पर बल दिया कि विद्यालय का पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए और वहाँ अध्ययन-अध्यापन, खेल-कूद, व्यायाम के अतिरिक्त भजन-कीर्तन एवं ध्यान की क्रियायें भी सम्पन्न कराई जायें।




स्त्री-शिक्षा (Women's Education) -


स्वामी जी स्त्रियों की दीन-हीन दशा से अत्यन्त क्षुब्ध थे। वे चाहते थे कि उन्हें समाज में श्रेष्ठ एवं परम आदरणीय स्थान प्राप्त हो। वे स्त्रियों की शिक्षा के पक्षपाती थे तथा देश के विकास के लिए उनके उत्थान पर बल देते थे। उन्हीं के शब्दों में, 'पहले अपनी स्त्रियों को शिक्षित करो, तब वे आपको बतायेंगी कि उनके लिए कौन-से सुधार आवश्यक हैं? उनके मामलों में बोलने वाले तुम कौन हो?'




जन-शिक्षा (Education of Masses) -


स्वामी जी जन-शिक्षा पर अत्यधिक बल देते थे। देश के पुनरुत्थान के लिए जन-साधारण को शिक्षा को अनिवार्य बताते हुए उन्होंने लिखा, 'मेरे विचार से जन-साधारण की अवहेलना करना महान् राष्ट्रीय पाप और हमारे पतन का कारण हैं। जब तक भारत की सामान्य जनता को एक बार फिर अच्छी शिक्षा, अच्छा भोजन और अच्छी सुरक्षा नहीं प्रदान की जाएगी, तब तक अच्छी-से-अच्छी राजनीति भी व्यर्थ होगी। वे हमारी शिक्षा के लिए धन देने हैं. वे हमारे मन्दिरों का निर्माण करते हैं, पर इनके बदले में उन्हें मिलता क्या है मात्र ठोकरें। वे हमारे दासों के समान हैं। यदि हम भारत का पुनरुत्थान करना चाहते हैं, तो हमें उनको शिक्षित करना होगा।'

उन्होंने कहा कि जन-साधारण की शिक्षा उनकी निजी भाषा में होनी चाहिए। उनका विचार है कि यदि गरीब बालक शिक्षा लेने नहीं आ सकता तो शिक्षा को उसके पास पहुँचना चाहिए। स्वामी जी सुझाव देते हैं कि यदि संन्यासियों में में कुछ को धर्म सम्बन्धी विषयों की शिक्षा देने के लिए संगठित कर लिया जाए तो बड़ी सरलता से घर-घर घूमकर अध्यापन तथा धार्मिक शिक्षा-दोनों काम कर सकते हैं। कल्पना कीजिए कि दो संन्यासी कैमरा, ग्लोब और कुछ मानचित्रों का साथ संध्या के समय किसी गाँव में पहुँचें। इन साधनों के द्वारा वे जनता को भूगोल, ज्योतिष आदि की शिक्षा देते हैं। इसी प्रकार कथा-कहानियों के द्वारा दूसरे देशों के सम्बन्ध में अपरिचित जनता को वे इतनी बातें बताते हैं. जितनी वे पुस्तक द्वारा अपने जीवन भर में भी नहीं सीख सकते हैं। क्या इन वैज्ञानिक साधनों द्वारा आज की जनता के अज्ञानमय अन्धकार को शीघ्र दूर करने का यह एक उपयुक्त सुझाव नहीं है? क्या संन्यासी स्वयं इस लोक सेवा द्वारा अपनी आत्मा की ज्योति को अधिक प्रदीप्त नहीं कर सकते हैं?




शिक्षा-दर्शन का मूल्यांकन
(Estimate of Educational Philosophy) -


स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन में वस्तुतः हमें समन्वयवाद के दर्शन होते हैं। वे चिन्तन और क्रिया में विरोध नहीं मानते। दूसरे शब्दों में उन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति के समन्वय पर बल दिया। 


पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, 


'भारत के अतीत में अडिग आस्था रखते हुए और भारत की विरासत पर गर्व करते हुए भी विवेकानन्द का जीवन की समस्याओं के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण था और वे भारत के अतीत तथा वर्तमान के बीच एक प्रकार के संयोजक थे।'

'Rooted in the past and full of pride in India's prestige, Vivekananda was yet modern in his approach to life's problems and was a kind of bridge between the past of India and her present.





विश्वविद्यालयी प्रश्न (University Questions)


1. शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा-दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।

Evaluate Swami Vivekananda's philosophy of education, bringing out his views on the meaning and aims of education, curriculum and method of teaching.


2. स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा-दर्शन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

Express your views on Educational Philosophy of Swami Vivekananda.


3. स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए और यह स्पष्ट कीजिए कि उनके ये विचार दर्शन पर किस सीमा तक आधारित हैं। 

Discuss the educational views of Swami Vivekananda. Also clarify, how far are his views based on philosophy?



लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)


1. स्वामी विवेकानन्द के जीवन-दर्शन के सम्बन्ध में कोई दो तथ्य लिखिए। 

2. स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा-दर्शन के कोई तीन आधारभूत सिद्धान्त लिखिए।

3. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, शिक्षा का क्या अर्थ है?

4. स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, शिक्षा के कोई तीन उद्देश्य बताइए।

5. स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधि की विशेषतायें बताइए।

6. स्वामी विवेकानन्द जी के स्त्री-शिक्षा के सम्बन्ध में क्या विचार थे?

7. स्वामी विवेकानन्द के जन-शिक्षा के सम्बन्ध में विचारों का उल्लेख कीजिए।

8. पं. नेहरू ने स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व का मूल्यांकन किन शब्दों में किया है?



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