वुड का घोषणा पत्र (Wood's Despatch)-1854

प्रस्तावना (Introduction) -

ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार व शासन को सुदृढ़ बनाने का था यद्यपि कम्पनी पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण था तथापि ब्रिटिश सरकार प्रत्येक 20 वर्ष बाद कम्पनी के लिए नया घोषणा पत्र जारी करती थी। जब नया घोषणा पत्र जारी करने का अवसर आया तब ब्रिटेन के राजनीतिक क्षेत्रों में यह महसूस किया जाने लगा था कि भारतीयों की शिक्षा की अवेहलना अब नही की जा सकती है। अतः ब्रिटिश संसद ने एक संसदीय समिति की नियुक्ति की। समिति ने भारतीय शिक्षा से सम्बन्धित एक शिक्षा नीति तैयार कर संसद के सम्मुख पेश किया। इस पर चर्चा हुई और उसके आधार पर भारत के लिये शिक्षा नीति निश्चित की गई। उस समय सर चार्ल्स वुड (Charls wood) कम्पनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रधान थे। उन्होने 19 जुलाई, 1854 को इस नीति की घोषणा की इसलिये उन्ही के नाम पर इसे वुड का घोषणा पत्र कहा जाता है। यह घोषणा पत्र 100 अनुच्छेदों का एक लम्बा अभिलेख है। इस घोषणा पत्र के नाम पर लिखा है कि इतिहास में एक नये उपकाल की शुरुआत हुई। यही कारण है कि इस घोषणा पत्र को भारतीय शिक्षा का 'महाधिकार पत्र' (Magna Carta) कहा गया। इसमें प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक की योजना है।

वुड के घोषणा पत्र में शिक्षा नीति -
    वुड के घोषणा पत्र में भारत की शिक्षा नीति को एक नया रुप दिया गया था। उस नई शिक्षा नीति को हम निम्निलिखित रुप में क्रमबद्ध कर सकते हैं-

शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त-
    शिक्षा के प्रशासन एवं वित्त के सम्बन्ध में इस नीति में 3 घोषणाएं की गई-

1. शिक्षा का उत्तदायित्व कम्पनी (सरकार) पर - इस शिक्षा नीति में कम्पनी शासित भारतीयों की शिक्षा की व्यवस्था करना कम्पनी (सरकार) का उत्तरदायित्व निश्चित किया गया। उसमें स्पष्ट शब्दों में लिखा गया कि, "कोई भी विषय हमारा ध्यान इतना आकर्षित नही करता जितना शिक्षा। यह हमारा एक पवित्र कर्तव्य है। "

2. जन शिक्षा विभाग की स्थापना- इस शिक्षा नीति में भारत के कम्पनी शासित प्रान्तों में 'जन शिक्षा विभाग' (Department of Public Instruction) की स्थापना घोषणा की गई। यह भी घोषणा की गई कि इस विभाग का सर्वोच्च अधिकारी जन शिक्षा निदेशक (Director of Public Instruction) होगा और इसकी सहायता के लिये उपसंचालक, निरीक्षक और लिपिकों की नियुक्ति होगी। वर्ष के अन्त में प्रत्येक प्रान्त को प्रान्त की शिक्षा प्रगति की रिपोर्ट देनी होगी।

3. सहायता अनुदान प्रणाली- इस नीति में पहली बार देशी और विदेशी सभी शिक्षा संस्थाओं को बिना धार्मिक भेदभाव के आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई और आर्थिक सहायता को विभिन्न मदों- भवन निर्माण, शिक्षकों के वेतन और छात्रवृत्तियों आदि में देने का प्रावधान किया गया।


शिक्षा का संगठन (Organization of Education) -
    शिक्षा के संगठन के विषय में इस नीति में दो घोषणाएं की गई-

1. शिक्षा का संगठन चार स्तरों में- इस नीति में भारतीय शिक्षा को चार स्तरों- प्राथमिक, मिडिल, हाईस्कूल और उच्च में संगठित करने की घोषणा की गई।

2. क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना- इस शिक्षा नीति में शिक्षा के उपर्युक्त संस्थाओं के लिए क्रमबद्ध विद्यालयों- प्राथमिक, मिडिल, हाईस्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों की स्थापना की घोषणा की गई।


शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education) -
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में पहली बार भारतीय शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट किए गए। उन उद्देश्यों को हम निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध कर सकते हैं-

1. भारतीयों का मानसिक विकास करना और उनके बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाना।
2. भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराना और उनकी भौतिक उन्नति करना।
3. भारतीयों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना और भारत में अंग्रेजी माल की माँग बन्द करना।
4. भारतीयों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना।
5. राज्य सेवा के लिए सुयोग्य कर्मचारी तैयार करना।


शिक्षा की पाठ्यचर्या (Curriculum) -
    इस घोषणापत्र (शिक्षा नीति) में पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में निम्नलिखित घोषणा की गई -

1. प्राच्य भाषा एवं साहित्य को स्थान- इसमें भारतीयों के लिये प्राच्य भाषा एवं साहित्य के महत्व को स्वीकार किया गया और उन्हें पाठ्यचर्या में उचित स्थान देने की घोषणा की गई। साथ ही यह घोषणा भी की गई कि प्राच्य भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित किया जाएगा।

2. पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को विशेष स्थान- इस शिक्षा नीति में भारतीयों की भौतिक उन्नति के लिये पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा को अति आवश्यक बताया गया और उसे पाठ्यचर्या में विशेष स्थान देने पर बल दिया गया। घोषणा पत्र में स्पष्ट रुप से लिखा गया कि "हम बलपूर्वक घोषित करते हैं कि हम भारत में जिस शिक्षा का प्रसार देखना चाहते हैं वह है - यूरोपीय ज्ञान।"

3. धर्मिक शिक्षा की सीमित छूट- इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में मिशन स्कूलों को धार्मिक शिक्षा की छूट दी गई और सरकारी स्कूलों में धार्मिक तटस्थता की नीति का पालन किया गया पर साथ ही सभी सरकारी स्कूलों के पुस्तकालयों में बाईबिल रखना अनिवार्य कर दिया गया।

शिक्षण विधि (Teaching Methods)-
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में शिक्षा के माध्यम के सम्बन्ध में निम्नलिखित नीति की घोषणा की गई-

1. प्राथमिक शिक्षा का माध्यम देशी भाषाएं और अंग्रेजी- इस घोषणा पत्र में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए देशी भाषाओं और अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम स्वीकार किया गया। इसमें स्पष्ट रूप से लिखा गया कि "हम भारत के समस्त स्कूलों को फलते-फूलते देखना चाहते हैं।"

2. उच्च शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी- घोषणा पत्र में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि "प्राच्य भाषाएं इतनी विकसित नही है कि उनके माध्यम से पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा दी जा सके। अतः उच्च शिक्षा के लिए अंग्रेजी ही शिक्षा का माध्यम होगी।"

शिक्षक (Teacher)- 
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में शिक्षकों के स्तर को उठाने पर बल दिया गया और इसके लिये शिक्षकों का वेतन बढ़ाने की बात कही गई।

शिक्षार्थी (Student)- 
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में किसी भी प्रकार के विद्यालयों में पढ़ने वाले निर्धन छात्रों के लिये छात्रवृत्ति देने का प्रावधान किया गया।


शिक्षण संस्थाएं (Teaching Institutes) -
    शिक्षण संस्थाओं के विषय में इस नीति में निम्नलिखित घोषणाएं की गई-

1. विभिन्न स्तर की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना- इस शिक्षा नीति में किसी भी स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना कम्पनी (सरकार) का उतरदायित्व निश्चित किया गया और कम्पनी से यह अपेक्षा की गई कि वह आवश्यकतानुसार विभिन्न स्तर की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करे।

2. व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना- इस शिक्षा नीति में पहली बार भारतीयों को शिक्षा देने हेतु व्यावसायिक विद्यालय खोलने की घोषणा की गई।

3. विश्वविद्यालयों की स्थापना- उस समय भारत में उच्च शिक्षा और शोध कार्य हेतु विश्वविद्यालय नही थे। अतः घोषणा की गई कि भारत में लन्दन विश्वविद्यालय के मॉडल पर कलकता और बम्बई में विश्वविद्यालय स्थापित किए जाएंगे और इसके बाद आवश्यकतानुसार मद्रास और अन्य स्थानों पर भी विश्वविद्यालय स्थपित किए जाएंगे। इन विश्वविद्यालयों में सीनेट का गठन किया जाएगा और योग्य एवं अनुभवी कुलपति एवं प्राध्यापक नियुक्त किये जाएंगे। इन विश्वविद्यालयों में प्राच्य एवं पाश्चात्य भाषा तथा साहित्यों, विधि और इन्जीनियरिंग की उच्च शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाएगी। साथ ही महाविद्यालयों को इनसे सम्बद्ध किया जाएगा। ये विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र के महाविद्यालय को सम्बद्धता प्रदान करेगें, उन पर नियन्त्रण रखेगे, उनके छात्रों की परीक्षा लेंगे और उत्तीर्ण छात्र को प्रमाणपत्र प्रदान करेगें।

जन शिक्षा (Mass Education) -
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में जन शिक्षा के प्रसार की घोषणा की गई और इस सम्बन्ध में निम्नलिखित 5 निर्णयों की घोषणा की गई-

1. निष्यन्दन सिद्धान्त को निरस्त किया जाता है। शिक्षा केवल उच्च वर्ग के लिए नहीं बल्कि सबके लिए सुलभ कराई जाएगी।
2. प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों की संख्या में वृद्धि की जाएगी।
3. निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियां दी जाएंगी।
4. जन शिक्षा के प्रसार हेतु व्यक्तिगत प्रयासों (देशी और मिशनरी प्रयासों) को प्रोत्साहन दिया जाएगा।
5. भारतीय भाषाओं का विकास किया जाएगा, यूरोपीय ज्ञान-विज्ञान का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया जाएगा और अच्छे अनुवादको को पुरस्कृत किया जाएगा।


स्त्री शिक्षा (Women's Education) -
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में स्वीकार किया गया कि भारतीयों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करने और उनकी भौतिक उन्नति करने के लिये स्त्री शिक्षा अति आवश्यक है। अतः इसके विकास हेतु निम्नलिखित घोषणाएं की गई-

1. बालिका विद्यालयों को विशेष अनुदान (सरकारी सहायता) दिया जाएगा।
2. स्त्री शिक्षा हेतु सहयोग देने हेतु व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।


मुसलमानों की शिक्षा (Education of Muslims)-
    इस घोषणापत्र (शिक्षा नीति) में यह स्वीकार किया गया कि भारत में हिन्दुओं की अपेक्षा मुसलमानों में शिक्षा
का प्रचार बहुत कम है। इसलिए उनमें शिक्षा के प्रसार के लिये निम्नलिखित घोषणाएं की गई-

1. मुसलमान बच्चों की शिक्षा के लिये विशेष स्कूल खोले जाएंगे।
2. मुसलमान बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित किया जाएगा।


व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Education)- 
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में इस बात को स्वीकार किया गया कि भारत में बेरोजगारी दूर करने, उद्योगों में कुशल कर्मकारों की पूर्ति करने और भारतीयों की आर्थिक उन्नति करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा की उचित व्यवस्था आवश्यक है। इस सम्बन्ध में दो घोषणाएं की गई-

    1. भारत में व्यावसायिक शिक्षा की उचित व्यवस्था की जाएगी।
    2. शिक्षित व्यक्तियों को उनकी शैक्षिक योग्यता और कार्य कुशलता के आधार पर सरकारी नौकरी दी जाएगी।


शिक्षक शिक्षा (Teacher Education) -
    इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में शिक्षा का स्तर उठाने के लिये शिक्षक शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया गया और इस सम्बन्ध में निम्नलिखित घोषणाएं की गई-

1. भारत में इंग्लैण्ड के शिक्षक प्रशिक्षण की तरह ही शिक्षक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
2. यह प्रशिक्षण सामान्य शिक्षकों, विधि शिक्षकों और चिकित्सा शिक्षकों के लिये अलग-अलग होगा।
3. शिक्षकों को प्रशिक्षण काल में छात्रवृत्ति देने की व्यवस्था की जाएगी।

धार्मिक शिक्षा (Religious Education) -
    धार्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में इसमें एक ओर धार्मिक तटस्थता की नीति की बात कही गई और दूसरी ओर मिशन स्कूलों को धार्मिक शिक्षा देने की छूट दी गई और सभी सरकारी स्कूलों के पुस्कालयों में बाईबिल रखना अनिवार्य किया गया।

बुड का घोषणा पत्र, शिक्षा का महाधिकार पत्र प्रमुख गुण
Wood's dispatch the Magna Carta of Indian Education main merits

वुड का घोषणा-पत्र शिक्षा का महाधिकार पत्र निम्न आधारों पर कहलाता है-

1. शिक्षा का उत्तरदायित्व सरकार पर (Responsibility of Education on Government)- भारत में
प्रथम बार यह स्वीकार किया गया है कि शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य (सरकार) का उत्तरदायित्व है। 

2. शिक्षा विभाग की स्थापना (Establishment of Education Department)- शिक्षा की व्यवस्था
करना राज्य का उत्तरदायित्व होने की स्थिति में इस उत्तरदायित्व के निर्वाह के लिये राज्य में शिक्षा विभाग होना भी आवश्यक हो गया था। वुड के घोषणा पत्र में प्रत्येक प्रान्त में जनशिक्षा विभाग की स्थापना की बात कही गई।

3. सहायता अनुदान प्रणाली का शुभारम्भ (Beginning of Grants in Aid System) - शिक्षा की सम्पूर्ण
व्यवस्था सरकार द्वारा किया जाना असम्भव ही है। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत प्रयासों द्वारा चलाई जा रही संस्थाओं कों आर्थिक सहायता देने का प्रारम्भ और वह भी नियमानुसार और कुछ शर्तें पूरी करने पर।

4. निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति देने का प्रावधान (Provision of giving scholarship to poor students)- अल्प साधन होते हुए भी निर्धन छात्रों के लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया।

5. शिक्षा का संगठन मनौवज्ञानिक स्तरों में (Organization of Education in Phycological
Education)- पहले से हमारे देश में शिक्षा केवल दो ही स्तरो में विभाजित चली आ रही थी- प्राथमिक और उच्च। इस घोषणा पत्र में छात्रों की आयु अर्थात् उनकी मनोवैज्ञानिक भिन्नता के आधार पर शिक्षा को प्राथमिक (शिशु), मिडिल (बाल), हाईस्कूल (किशोर) और उच्च (युवा) में संगठित किया गया।

6. क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना (Foundation of Grade Institution)- शिक्षा के विभिन्न स्तरों प्राथमिक, मिडिल, हाई स्कूल और उच्च के लिये अलग-अलग विद्यालयों की स्थापना की घोषणा की गई।

7. भारतीयों के नैतिक विकास पर बल (Emphasis on Moral Development of Indians)- इस घोषणा पत्र में शिक्षा के पाँच उद्देश्य निश्चित किये गये थे-

1. भारतीयों का मानसिक विकास,
II. भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराना।
III. भारतीयों का जीवन-स्तर ऊँचा उठाना।
IV. भारतीयों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना,
V. राज्य के लिये सुयोग्य कर्मचारी तैयार करना।

यह उद्देश्य ऐसा उद्देश्य था जो भारतीय संस्कृति की पहचान है। इसके विकास के कारण ही देश स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये आगे बढ़ सका।

8. पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के ज्ञान पर बल (Emphasis on Western Knowledge)- इस घोषणा पत्र में स्पष्ट किया गया- "हम बलपूर्वक घोषित करते है कि हम भारत में जिस शिक्षा का प्रसार देखना चाहते हैं वह है- यूरोपीय ज्ञान।" अब इसके पीछे उनका उद्देश्य चाहे कुछ भी रहा हो पर इसके परिणाम भारत और भारतवासियों के हित में रहे।

9. सभी प्रकार के विद्यालयों- प्राच्य और पाश्चात्य के विकास पर बल (Emphasis on the
development of all kinds of school - Oriental and Occidental)- घोषणा पत्र में स्पष्ट किया गया, "हम भारत में देशी, मिशनरी और सरकारी सभी प्रकार की शिक्षा संस्थाओं को फलते फूलते देखना चाहते है।

10. विश्वविद्यालयों की स्थापना (Foundation of Universities)- घोषणा पत्र में भारत में विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की गई। जिसके फलस्वरूप उस समय कलकता और बम्बई में विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई।

11. निस्यन्दन सिद्धान्त की समाप्ति और जन शिक्षा पर बल (Cessation of filtration theory and Emphasis on Mass Education)- मैकाले के सुझाव पर लॉर्ड विलियम बैंटिक और उसके बाद लॉर्ड ऑकलैण्ड द्वारा स्थापित भेदभावपूर्ण निस्यन्दन सिद्धान्त को निरस्त कर दिया गया और शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने पर बल दिया गया।

12. स्त्री शिक्षा पर बल (Emphasis on Women Education)- देश की उन्नति के लिये स्त्री शिक्षा की आवश्यकता अनुभव की गयी और उसके लिये बालिका विद्यालयों की संख्या बढ़ाने की घोषणा की गई।

13. मुसलमानों की शिक्षा पर बल (Emphasis on Muslim Education)- उस समय मुसलमान बच्चे अंग्रेजी शिक्षा की ओर कम आकर्षित हो रहे थे। अतः घोषणा की गई कि मुसलमानों की शिक्षा के लिये अतिरिक्त प्रबन्ध किये जायेंगे।

14. व्यावसायिक शिक्षा पर बल (Emphasis on Vocational Education)- पहली बार यह स्वीकार किया कि भारत की आर्थिक उन्नति के लिये व्यावसायिक शिक्षा आवश्यक है।

15. शिक्षक शिक्षा की व्यवस्था (Arrangement of Teacher Education)- निस्सन्देह उस समय तक इस देश में मिशनरियों द्वारा एक-दो शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय खोले जा चुके थे परन्तु उनमें दिया जाने वाला प्रशिक्षण अपने ही प्रकार का था। इस नीति में यह घोषणा की गई कि शिक्षा का स्तर उठाने के लिये इंग्लैंड की तरह के शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय खोले जाएंगे।

वुड के घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) की कमियां (Shortcoming of weakness) -
वुड के घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) की कमियों अथवा दोषों का वर्णन निम्न प्रकार है-

1. शिक्षा कम्पनी (ब्रिटिश शासन) के नियन्त्रण में (Education under the control of company)- शिक्षा की व्यवस्था करना कम्पनी का उत्तरदायित्व घोषित होने पर शिक्षा पर उनका नियन्त्रण होना स्वाभाविक था। उनके द्वारा ईमानदारी से भारतीयों का हित साधा जाना तर्कसंगत न था।

2. शिक्षा के क्षेत्र में लाल फीताशाही का प्रारम्भ (Beginning of Red-Tepism in the field of Education)- शिक्षा विभाग की स्थापना का अर्थ लाल-फीताशाही का श्रीगणेश था। उस समय इस विभाग में ऊँचे पदों पर तो अंग्रेज ही नियुक्त होते थे और कनिष्ठ पदों पर अंग्रेजभक्त। इनसे भारतीयों के हित में सामान्य व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।

3. सहायता अनुदान की कठोर शर्तें (Harsh condition of grant in Aid))- सहायता अनुदान प्रणाली का प्रारम्भ एक अच्छा कदम था, परन्तु इसको प्राप्त करने के लिए विद्यालयों को अनेक शर्तें पूरी करनी होती थीं, जो इतनी अधिक कठोर थीं कि प्राच्य विद्यालय इसका कम लाभ उठा पाए।

4. शिक्षा का उद्देश्य पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का विकास (The objective of Education, the
development of western culture and civilization)- इस नीति में शिक्षा के पाँच उद्देश्य निश्चित किए गये थे। यद्यपि उनमें यह उद्देश्य घोषित नहीं किया गया तथापि वास्तव में इन सबके पीछे उनका मुख्य उद्देश्य भारत में पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का विकास ही था।

5. पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को अधिक महत्त्व (More importance of Western knowledge)- अंग्रेजों का अपनी भाषा, अपने साहित्य और अपने ज्ञान-विज्ञान को श्रेष्ठ समझना स्वाभाविक था, पर उन्होंने यह विचार कभी नहीं किया कि भारतीयों के लिए क्या श्रेष्ठ है। इसका दुरगामी कुप्रभाव यह रहा कि भारतीयों में हीनता की भावना विकसित हुई, जिससे वे अभी तक नहीं निकल पाए हैं।

6. उच्च शिक्षा का माध्यम केवल अंग्रेजी (Only English Medium of Higher Education)- इस घोषणा पत्र (शिक्षा नीति) में प्राच्य भाषाओं और अंग्रेजी दोनों को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा थी। इसके साथ ही पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान को प्राच्य भाषाओं में अनुवाद करने के सम्बन्ध में कहा गया था परन्तु उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को ही रखा गया था। परिणामतः सामान्य वर्ग के बच्चे उच्च शिक्षा से वंचित ही रहे।

7. सरकारी स्कूलों में बाईबिल अनिवार्य (Bible Compulsory in government school)- शिक्षा नीति में शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक तथस्थता की नीति की घोषणा की गई थी पर स्कूलों के पुस्तकालयों में बाईबिल की प्रतियां अनिवार्य रुप से रखने का आदेश दिया गया था।

8. ईसाई मिशनरियों को अपने स्कूलों में धर्म शिक्षा देने की छूट (Christian missionaries at liberty in imparting religious Education in their school)- ईसाई मिशनरियों की माँग पर इस शिक्षा नीति में उन्हें धार्मिक शिक्षा देने की छूट दी गई। यद्यपि किसी भी धर्म की शिक्षा जबरन न देने का सुझाव दिया गया तथापि यह आवरण मात्र था।

9. सरकारी नौकरी हेतु अंग्रेजी जानना आवश्यक (Knowing English essential for government service)- घोषणा यह की गई थी कि यदि अभ्यार्थियों में अन्य योग्यतायें समान हो तो अंग्रेजी जानने वालो को सरकारी नौकरियों में वरीयता दी जाएगी। वास्तव में इसका आशय अंग्रेजी के ज्ञान की अनिवार्यता से था।

सारांश (Summary)-
    वुड के घोषणा पत्र में निहित शिक्षा नीति में भारतीय शिक्षा के विकास के योगदान को हम दो भागों में देख या समझ सकते हैं- तत्कालीन प्रभाव और दीर्घकालीन प्रभाव। इनका वर्णन निम्नवत है-

तत्कालीन प्रभाव (Short term effect)-
    वुड के घोषणा पत्र के तत्कालीन प्रभाव को हम निम्नलिखित क्रम में देख समझ सकते हैं-

1. 1856 तक सभी प्रान्तो में शिक्षा विभागों की स्थापना (Establishment of Education
department in all provinces by 1856)- 1865 तक कम्पनी (ब्रिटिश) शासित सभी प्रान्तों में शिक्षा विभागों की स्थापना हो गई, जन शिक्षा निदेशक और अन्य कर्मचारियों की नियुक्तियों हो गई। इन्होंनें शीघ्र ही अपना कार्य करना प्रारम्भ की दिया।

2. सभी प्रान्तों में सहायता अनुदान प्रणाली प्रारम्भ (Beginning of grant in aid system in all the province)- सभी प्रान्तों के शिक्षा विभागों ने अपने-अपने क्षेत्र की शैक्षिक स्थिति और आवश्यकतानुसार सहायता-अनुदान के नियम बनाए। जो विद्यालय उन शर्तों को पूरी करते गये उन्हें अनुदान देना शुरू कर दिया गया।

3. सभी स्तर के स्कूल और कॉलेजों की स्थापना (Establishment of school and college of all levels)- माध्यमिक और उच्च शिक्षा संस्थाओं की माँग अधिक होने के कारण कम्पनी ने उसी स्तर के स्कूल कालेज खोलने शुरू किए।

4. कलकत्ता और बम्बई में विश्वविद्यालयों की स्थापना (Foundation of university in Calcutta and Bombay)- 1857 में कलकत्ता और मुम्बई में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी। प्रारम्भ में ये विश्वविद्यालय छात्रों की परीक्षा लेने और उत्तीर्ण छात्रों के प्रमाण पत्र देने तक सीमित रहे, बाद में इनमें शिक्षण कार्य भी होने लगा।

दीर्घकालीन प्रभाव (Long Term Effects)-
    वुड के घोषणा पत्र के दीर्घकालीन प्रभाव निम्नलिखित रहे-

1. शिक्षा राज्य का उत्तरदायित्त्व (Education and Liability)- वुड के घोषणा पत्र में पहली बार शिक्षा राज्य का उत्तरदायित्व स्वीकार किया गया था। आज तक हमारे देश में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का उत्तरदायित्व माना जाता रहा है।

2. शिक्षा राज्य के नियन्त्रण में (Education under State Control)- यह सर्वविदित है कि शिक्षा का उत्तरदायित्व तो राज्य तभी निभा सकता है जब उसका नियन्त्रण उसके हाथों में हो। वुड के घोषणा पत्र में पहली बार भारतीय शिक्षा की पूरी नीति और पूरी योजना प्रस्तुत की गई थी। आज भी यही स्थिति बनी हुई है।

3. सहायता अनुदान प्रणाली की निरन्तरता (Continuity of Grant in Aid system)- पहले राज्य अथवा सरकार शिक्षा संस्थाओं को स्वेच्छा से आर्थिक सहायता देती थी। वुड के घोषणा पत्र में पहली बार निश्चित शर्तों को पूरी करने पर सभी प्रकार के विद्यालयों को आर्थिक अनुदान शुरू किया गया। यह व्यवस्था कुछ परिवर्तनों के साथ आज भी लागू है।

4. शिक्षा का संगठन विभिन्न स्तरों में (Organization of Education in various stage)- वुड के घोषणा पत्र में प्रथम बार बच्चों की आयु और मानसिक योग्यता के आधार पर शिक्षा को चार स्तरों में बाँटा गया था। वर्तमान में केवल एक स्तर पूर्व प्राथमिक स्तर और बढ़ाया गया है। माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा को
विभिन्न वर्गों में विभजित किया गया है। 

5. शिक्षा के उद्देश्य समय की माँग के अनुसार (Objectives of Education according to time) - वुड के घोषणा पत्र में पहली बार भारतीय शिक्षा के उद्देश्य आधुनिक परिप्रेक्ष्य में निश्चित किए गये थे। आज भी समयानुसार शिक्षा के उद्देश्य निश्चित करने का काम जारी है।

6. शिक्षा की पाठ्यचर्या में पाश्चात्य ज्ञान-बिज्ञान का वर्चस्व (Survival of western knowledge in the Curriculum of Education)- वुड घोषणापत्र में पहली बार स्पष्ट शब्दों में घोषणा की गई कि भारत में यूरोपीय ज्ञान का ही वर्चस्व है। आज भी हमारी शिक्षा की पाठ्यचर्या विशेषकर उच्च शिक्षा में कृषि, इन्जीनियरिंग और चिकित्सा विज्ञान में पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान का वर्चस्व चला आ रहा है। इसी वर्चस्व के कारण हमने वर्तमान युग में भौतिक उन्नति की है।

7. उच्च शिक्षा जैसे- कृषि, इन्जीनियरिंग, चिकित्सा आदि का माध्यम अंग्रेजी (Medium of higher Education English- Agriculture, Engineering, Medical etc.)- उस समय उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाना अंग्रेजों की विवशता थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के इतने वर्ष बाद भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कृषि, इन्जीनियरिंग और चिकित्साशास्त्र का माध्यम अंग्रेजी ही बना हुआ है।

8. क्रमबद्ध विद्यालयों की निरन्तरता (Continuity of graded school)- वुड घोषणापत्र में क्रमबद्ध विद्यालयों की स्थापना की घोषणा की गई थी, यह आज भी है। हमने उसके पूर्व में प्राथमिक और अन्त में अनेक वर्गों की शिक्षा के लिए अलग-अलग विद्यालय और महाविद्यालयों की स्थापना करनी शुरू कर दी है।

9. जन शिक्षा, खी शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा और अध्यापक शिक्षा (Public Education, Women Education, Vocational Education and Teacher Education)- जन शिक्षा, स्त्री शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और अध्यापक शिक्षा का प्रारम्भ वुड के घोषणापत्र में ही किया गया था। इन सबके महत्व को उस समय से आज तक बराबर स्वीकार किया जाता रहा है।





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