भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर आयोग) India Education Commission (Hunter Commission)-1882
प्रस्तावना (Introduction)-
सन् 1857 में मद्रास, मुम्बई और कलकत्ता में विश्वद्यिालयों का शिलान्यास किया गया किन्तु उसी वर्ष 1857 की क्रान्ति के विस्फोट ने भारतीय शिक्षा की प्रगति का मार्ग कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया। परिस्थितियों में सुधार लाने हेतु सन् 1858 ई. में ब्रिटिश पार्लियामेन्ट ने कम्पनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारत के शासन की बागडोर स्वयं ब्रिटिश सरकार (महारानी विक्टोरिया) ने अपने हाथों में सम्भाल ली तथापि कम्पनी के कर्मचारियों में परिवर्तन नहीं हुआ। इसके बाद जब ब्रिटिश सरकार ने भारत का शासन अपने हाथों में सम्भाला तो बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के स्थान पर भारत मन्त्री की नियुक्त की गई तथा स्टैनले पहला भारत मन्त्री नियुक्त हुआ। उसने तत्कालीन परिस्थितियों का अध्ययन करके 1859 ई0 में पुनः एक आज्ञा पत्र जारी किया। उन्होने प्राथमिक शिक्षा के अलावा वुड की सभी विषयों में की गई सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। इसके बाद 1861 में ब्रिटेन सरकार ने भारतीय वैधानिक अधिनियम (Indian Legislative Act) पास किया। उसके अनुसार भारत के प्रत्येक प्रान्त में विधान परिषदों (Legislative Council) का गठन किया जिनमें भारतीयों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया।
भारत में ब्रिटिश शासन को सुदृढ करने के बाद सरकार का ध्यान भारतीय शिक्षा पर गया। इधर भारत में भारतीय और उधर इग्लैंड में ईसाई मिशनरी भारतीय शिक्षा में परिवर्तन की माँग कर रहे थे। इस हेतु ईसाई मिशनरियों ने इंग्लैंड में 'जनरल काउन्सिल ऑफ एजुकेशन इन इंडिया' संस्था का गठन भी किया गया था। उसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार पर भारत की शिक्षा नीति में परिवर्तन करने के लिए बराबर दबाब डाल रहे थे क्योंकि वुड डिस्पैच में घोषित शिक्षा नीति-1854 के तहत भारतीय शिक्षा में ईसाई मिशनरियों का प्रभुत्व समाप्त हो गया था। 1880 में लॉर्ड रिपन (Lord Rippon) भारत के नए गवर्नर जनरल और वायसराय नियुक्त हुए। अनुकूल अवसर पाकर जनरल काउन्सिल ऑफ एजुकेशन इन इंडिया' के एक प्रतिनिधि मंडल ने लॉर्ड रिपन से भेंट की और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया तथा भारतीय शिक्षा नीति में परिवर्तन करने का निवेदन किया। लॉर्ड रिपन ने उन्हें भारतीय शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया। अतः लॉर्ड रिपन ने 3 जनवरी, 1882 को भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग में 20 सदस्य रखे गए थे, जिनमें छः सदस्य भारतीय थे। गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी सभा के सुयोग्य सदस्य सर विलियम हंटर (Sir William Hunter) इस आयोग के अध्यक्ष थे। इसलिए इस आयोग को हंटर आयोग (Hunter Commission) भी कहा जाता है।
अध्यक्ष- सर विलियम हन्टर
सदस्यों के नाम-
- 1. सैयद महमूद हाजी गुलाम
- 2. भूदेव मुखर्जी
- 3 आनन्द मोहन बोस
- 4 के. टी. भल्ला
- 5. परिगानन्द मुदालियर
- 6. महाराज जितेन्द्र टैगोर
मैसूर के शिक्षा संचालक बी.एल. राइस को इस आयोग का मन्त्री नियुक्त किया गया था।
आयोग के उद्देश्य (Objectives of the Commission)-
लॉर्ड रिपन यद्यपि शिक्षा की जाँच के प्रस्ताव से सहमत थे पर उसमें कोई आमूलचूल परिवर्तन नही चाहते थे।
उन्होने आते ही स्पष्ट कह दिया था कि 1854 ई0 के आज्ञापत्र ने भारतीय शिक्षा नीति को काफी प्रभावशाली
सुनिश्चित कर दिया है और मैं भी उसी के अनुसार चलना चाहता हूँ। अतः भारतीय शिक्षा आयोग के कार्य का क्षेत्र
अधिक व्यापक नही रहा। केवल प्रारम्भिक शिक्षा की जाँच विशेष रूप से करने का उससे कहा गया। 1880 ई0 में इंग्लैंड में अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अधिनियम (Elementary Education Act) पास हो चुका था। अतः भारत में भी ब्रिटिश सरकार का उसकी ओर ध्यान गया।
आयोग के प्रस्ताव (Resolution) में उसके उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार किया गया है। "आयोग का कर्तव्य होगा विशेष रूप से इस बात की जाँच करना कि 1854 के घोषणा पत्र के सिद्धान्तों को किस प्रकार क्रियान्वित किया गया है और ऐसे उपायों का सुझाव देना जो उस घोषणा पत्र में निर्धारित रीति को कार्यान्वित करने के लिए आयोग के मतानुसार वांछनीय प्रतीत होते हैं।"
आयोग का कार्यक्षेत्र
(Terms of Reference of Commission)-
आयोग को निम्नलिखित विषयों की जाँच करने के निर्देश दिए गए थे-
i. प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति क्या है और उसके विकास के लिए क्या उपाय अपनाये जाने चाहिए?
ii. क्या सरकार ने उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा के प्रति अधिक ध्यान देकर प्राथमिक शिक्षा की अवेहलना की है?
iii. वुड डिस्पैच द्वारा घोषित शिक्षा नीति 1854 का पालन किस सीमा तक हुआ है और उस नीति में क्या परिवर्तन आवश्यक है?
iv भारत की शिक्षा व्यवस्था में राजकीय विद्यालयों की क्या भूमिका है? इस सम्बन्ध में सरकार की क्या नीति होनी चाहिए?
v. भारत की शिक्षा व्यवस्था में मिशनरी विद्यालयों की क्या भूमिका है?
vi. भारत में शिक्षा के प्रसार में व्यक्तिगत प्रयासों की क्या भूमिका है? इस सम्बन्ध में सरकार की क्या नीति होनी चाहिए?
आयोग का प्रतिवेदन (Report of Commission)-
आयोग की सिफारिश और सुझाव
(Recommendation and Suggestion of the Commission) -
आयोग ने सामान्यतः वुड डिस्पैच द्वारा घोषित शिक्षा नीति 1854 का समर्थन किया। उसने यह अनुभव किया कि इस नीति का क्रियान्वयन निष्ठा के साथ नहीं किया गया था। साथ ही उसने इस नीति में परिवर्तन हेतु कुछ सुझाव भी दिए। इनमें से मुख्य सुझाव निम्न थे-
1. सरकार प्राथमिक शिक्षा का उत्तरदायित्व स्थानीय निकायों (नगर पालिका और जिला परिषदों) पर छोड़ दे और माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा का उत्तरदायित्व व्यक्तिगत संस्थाओं और संगठनों पर छोड़ दे।
2. सरकार सहायता अनुदान के नियमों को अधिक उदार बनाकर, शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन दे।
3. सहायता अनुदान के नियमों को सरल एवं उदार बनाया जाए।
4. सहायता अनुदान के नियमों को प्रान्तीय आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाए।
2. सरकार सहायता अनुदान के नियमों को अधिक उदार बनाकर, शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों को प्रोत्साहन दे।
3. सहायता अनुदान के नियमों को सरल एवं उदार बनाया जाए।
4. सहायता अनुदान के नियमों को प्रान्तीय आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाए।
प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव
(Suggestion for Primary Education)-
1. प्राथमिक शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त
(Administration and Finance of Primary Education)-
निकायों की शिक्षा हेतु वित्त व्यवस्था के सम्बन्ध में सुझाव दिया कि ये अलग से प्राथमिक शिक्षा का निर्माण करेंगी और इस कोष को केवल प्राथमिक शिक्षा पर व्यय करेंगी। प्रान्तीय सरकारें उन्हें कुल व्यय का 1/2 अथवा 1/3 भाग अनुदान के रूप में देंगी।
2. प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Primary Education)-
i. जन शिक्षा का प्रसार।
ii. व्यावहारिक जीवन की शिक्षा।
3. प्राथमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
(Curriculum of Primary Education)-
4. प्राथमिक शिक्षा का माध्यम
(Medium of Primary Education)-
5. शिक्षकों का प्रशिक्षण (Teacher's Training)-
प्राथमिक शिक्षा में सुधार हेतु प्राथमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति पर बल दिया और प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालयों (नार्मल विद्यालयों) की संख्या बढ़ाने पर बल दिया।
आयोग की समिति में प्रत्येक विद्यालय निरीक्षक के क्षेत्र में कम से कम एक शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय अवश्य होना चाहिए।
6. प्राथमिक देशी पाठशालाओं को प्रोत्साहन
(Encouragement to Primary Indigenous School)-
हंटर आयोग ने देशी पाठशालाओं के महत्व को खूब अच्छी तरह समझा था। इनमें देश के करोड़ों बालक, बालिकाएं पंडित और मौलवियों द्वारा शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। इस सम्बन्ध में आयोग ने लिखा कि, "ये अत्यधिक संघर्ष होने पर भी जीवित हैं। इस प्रकार इन्होने सिद्ध कर दिया है कि इनमें शक्ति एवं लोकप्रियता दोनों है। यदि देशी विद्यालयों को मान्यता और सहायता दे दी जाए तो यह आशा की जा सकती है कि वे अपनी शिक्षण विधि में सुधार कर लेंगे और राष्ट्रीय शिक्षा की राज प्रणाली में लाभप्रद स्थान ग्रहण करेंगे।"
7. सुझाव (Suggestions)-
1. समस्त देशी पाठशालाओं को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाए तथा इनके संचालन का उत्तरदायित्व नगर पालिकाओं तथा जिला बोर्ड को सौपा जाए।
II. इनमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों पर कोई प्रतिबन्ध न लगाया जाए।
III. इनमें अध्ययन करने वाले निर्धन विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जाए।
IV. इनके पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाए। पाठ्यक्रम में लाभपूर्ण विषयों का समावेश करने
के लिए सरकार द्वारा विशेष आर्थिक सहायता दी जाए।
V. इन पाठशालाओं के शिक्षकों के प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की जाए।
माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाब
(Suggestion for Secondary Education)-
आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिए-
1. माध्यमिक शिक्षा का प्रशासन एवं वित्त (Administration and Finance of Secondary Education)- आयोग ने सुझाव दिया कि माध्यमिक शिक्षा का भार कुशल एवं धनी व्यक्तियों को सौप दिया जाए। पर जिन क्षेत्रों में व्यक्तिगत प्रयासों से माध्यमिक स्कूल न खोले जा सकें उनमें सरकार स्वयं माध्यमिक स्कूल खोले। पर ऐसा स्कूल किसी भी जिले में एक से अधिक न खोला जाए। साथ ही यह भी सुझाव दिया कि व्यक्तिगत प्रयासों से चलाए जा रहे माध्यमिक विद्यालयों को सहायता अनुदान देने में उदारता बरती जाए और किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए।
2. माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Secondary Education)- आयोग ने माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में दो उद्देश्य बताए-
i. सामान्य जीवन की तैयारी
ii. उच्च शिक्षा में प्रवेश की तैयारी
3. उच्च शिक्षा के उद्देश्य
(Objectives of Higher Education)-
आयोग की सम्मति में उच्च शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए-
i. शिक्षार्थियों को उच्च ज्ञान की प्राप्ति कराना।
ii. शिक्षार्थियों को नैतिक उत्थान, प्रकृति धर्म और मानव धर्म का ज्ञान कराना।
iii. शिक्षार्थियों को नागरिकों के कर्तव्यों का ज्ञान कराना।
iv. विशेषज्ञों का निर्माण।
4. उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Higher Education)- आयोग ने उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम को व्यापक बनाने का सुझाव दिया जिससे छात्र अपनी रूचि के विषयों का चुनाव कर सकें। दूसरा सुझाव नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करने का दिया और इसके लिए विशेष प्रकार की पुस्तकें तैयार करने का सुझाव दिया। जिनमें प्रकृति धर्म और मानव धर्म के सिद्धान्तों का प्रतिपादन हो।
5. उच्च शिक्षा का माध्यम (Medium of Higher Education)- उच्च शिक्षा के माध्यम के विषय में आयोग ने कोई सुझाव नहीं दिया। इसका अर्थ यही माना गया कि उसने उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाए रखना उचित समझा।
6. प्राध्यापकों की नियुक्ति (Appointment of Lecturer)- आयोग ने सुझाव दिया कि महाविद्यालयों में प्राध्यापकों की नियुक्ति करते समय यूरोपीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त भारतीयों को प्राथमिकता दी जाए।
सहायता अनुदान प्रणाली (Grant in Aid System) -
- मद्रास में वेतन अनुदान प्रणाली (Salary Grant System)
- बंबई में परीक्षाफल वेतन प्रणाली (Payment by Result System)
- मध्यप्रान्त, पश्चिमोत्तर प्रान्त और पंजाब में नियत कालीन प्रणाली (Fixed Period system)
शिक्षा आयोग ने इन तीनों प्रणालियों के गुण-दोषों की विवेचना कर निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए-
i. परीक्षाफल वेतन प्रणाली को उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा के लिए प्रयोग न किया जाए बल्कि प्राथमिक शिक्षा के लिए प्रयोग किया जाए। अन्य प्रणालियों का अनुकरण करने की प्रान्तों को स्वतन्त्रता दी जाए।
ii. सहायता अनुदान सम्बन्धित नियमों में संशोधन करते समय गैर सरकारी विद्यालयों के प्रबन्धकों की राय ली जाए।
iii. प्रान्त के सभी विद्यालयों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सहायता अनुदान सम्बन्धित नियमों में संशोधन किए जाएं।
iv. सहायता अनुदान के नियमों का हिन्दी में अनुवाद कराया जाए और इन्हें गैर सरकारी विद्यालयों के पास सूचनार्थ भेज दिया जाए।
v. सहायता अनुदान के नियमों को समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाए जिससे कि सभी लोगों को जानकारी प्राप्त हो सके।
vi. सहायता अनुदान देने में किसी प्रकार का पक्षपात न किया जाए।
vii. पिछड़े क्षेत्रों वाले विद्यालयों या कम आय के साधनों वाले विद्यालयों को अधिक सहायता प्रदान की जाए।
viii. भवन निर्माण, फर्नीचर, पुस्तकालय, वाचनालय, प्रयोगशाला, शिक्षण सामग्री आदि के लिए विद्यालयों के सहायता अनुदान के नियमों को समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाए।
ix. सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की आन्तरिक व्यवस्था में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाए।
x. विद्यालयों को विशेष आर्थिक सहायता देकर विशेष प्रकार के विषयों के शिक्षण की व्यवस्था की जाए।
xi. प्रान्त द्वारा दिए गए पुरस्कार और छात्रवृत्तियां सभी शिक्षण संस्थाओं को समान रूप से दिए जाएं।
xii. सहायता अनुदान प्राप्त विद्यालयों के प्रबन्धों को परामर्श देने के लिए विशेष प्रकार के शिक्षा अधिकारी नियुक्त किये जाने चाहिए।
स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव
(Suggestion About Women Education)-
आयोग ने तत्कालीन स्त्री शिक्षा की दयनीय दशा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए निम्नलिखित सुझाव दिए-
i. स्थानीय संस्थाओं और प्रान्तीय सरकारों के पास जो भी सार्वजनिक कोष हो उसमें से बालक-बालिकाओं के विद्यालयों को समान अनुपात में धन मिलना चाहिए।
ii. बालिका विद्यालयों को अनुदान देने के नियम सरल बनाए जाएं। उन्हें उदारता पूर्वक अनुदान दिया जाए।
iii. बालिकाओं की शिक्षा निःशुल्क हो।
iv. निर्धन छात्राओं को छात्रवृत्तियां प्रदान की जाएं।
v. बालिकाओं के लिए छात्रावासों का प्रबन्ध होना चाहिए।
vi. बालिका विद्यालयों में यथा सम्भव महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति होनी चाहिए। इसके लिए अलग से महिला
शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय खोले जाएं।
vii. बालिका विद्यालयों का प्रबन्ध स्थानीय संस्थाओं को हस्तान्तरित कर देना चाहिए
viii. उस समय देश में पर्दा प्रथा बहुत जोर पकड़े हुए थी प्रायः पर्दा करने वाली स्त्रियां अपने घरों से बाहर नहीं निकलती थी। ऐसी स्त्रियों की शिक्षा के लिए आयोग का विचार है कि ऐसी अध्यापिकाएं नियुक्त की जाएं जो उनके घरों में जाकर अध्यापन कार्य करें।
ix. महिलाओं के पाठ्यक्रम में प्रायोगिक विषयों को प्रधानता दी जानी चाहिए।
iii. बालिकाओं की शिक्षा निःशुल्क हो।
iv. निर्धन छात्राओं को छात्रवृत्तियां प्रदान की जाएं।
v. बालिकाओं के लिए छात्रावासों का प्रबन्ध होना चाहिए।
vi. बालिका विद्यालयों में यथा सम्भव महिला शिक्षिकाओं की नियुक्ति होनी चाहिए। इसके लिए अलग से महिला
शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय खोले जाएं।
vii. बालिका विद्यालयों का प्रबन्ध स्थानीय संस्थाओं को हस्तान्तरित कर देना चाहिए
viii. उस समय देश में पर्दा प्रथा बहुत जोर पकड़े हुए थी प्रायः पर्दा करने वाली स्त्रियां अपने घरों से बाहर नहीं निकलती थी। ऐसी स्त्रियों की शिक्षा के लिए आयोग का विचार है कि ऐसी अध्यापिकाएं नियुक्त की जाएं जो उनके घरों में जाकर अध्यापन कार्य करें।
ix. महिलाओं के पाठ्यक्रम में प्रायोगिक विषयों को प्रधानता दी जानी चाहिए।
मुसलमानों की शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव
(Suggestion about the Education of Muslim)-
i. मुस्लिम शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए स्थानीय संस्थाओं और प्रान्तों के कोषों से सहायता ली जाए।
ii. मुसलमान बच्चों के लिए पृथक विद्यालय खोले जाएं।
iii. मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के विद्यालयों में हिन्दुस्तानी के साथ फारसी को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए।
iv. मुसलमान बच्चों को विशेष छात्रवृत्तियां दी जाएं।
v. मुस्लिम प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में लौकिक विषयों को स्थान दिया जाए।
vi. मुसलमानों को आर्थिक सहायता देकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
vii. मुस्लिम शिक्षा के लिए निश्चित रकम खर्च की जाए।
viii. मुस्लिम शिक्षकों के प्रशिक्षण की विशेष रूप से व्यवस्था की जाए।
ix. शिक्षा की वार्षिक रिपोर्ट में मुसलमान बच्चों की शिक्षा की प्रगति को अलग से दर्शाया जाए, जिससे तत्काल
तदनुकूल कदम उठाया जा सके।
x. शिक्षित मुसलमानों एवं अन्य जातियों के पढे-लिखे व्यक्तियों को राजकीय पदों को प्रदान करने में मुसलमानों के
उचित अनुपात का ध्यान रखा जाए।
उचित अनुपात का ध्यान रखा जाए।
अनुसूचित और पिछड़ी जातियों की शिक्षा सम्बन्ध में सुझाव
(Suggestion for schedule Cast and Backward Cast Education)-
i. अनुसूचित जाति और पिछड़ी जातियों के बालकों के लिए राजकीय विद्यालयों में प्रवेश की कोई रूकावट न हो और इस बात पर पूर्ण ध्यान दिया जाए कि उनके साथ समानता का व्यवहार हो।
ii. सरकारी नगर महापालिकाओं तथा स्थानीय संस्थाओं द्वारा संचालित सभी विद्यालयों के द्वार अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जातियों के लिए खोल दिए जाएं।
iii. जाति और वर्ग भेद की समस्या को समाप्त करने के लिए शिक्षकों एवं छात्रों को आगे बढ़ना चाहिए।
iv. इन जातियों के लिए सरकार द्वारा नए विद्यालय खोले जाने चाहिए।
v. निःशुल्क शिक्षा एवं छात्रवृत्ति की सुविधा प्रदान की जाए।
आदिवासियों और पहाड़ी जातियों की शिक्षा
(Education and Aboriginal and Hill Tribes)-
हंटर आयोग ने आदिवासियों एवं पिछड़ी जातियों की शिक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए-
i. सरकार आदिवासियों एवं पर्वतीय जातियों की शिक्षा के लिए विद्यालयों की स्थापना करे।
ii. उन क्षेत्रों में शिक्षा की व्यवस्था करने वाले को प्रोत्साहित किया जाए।
iii. उन क्षेत्रों के विद्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा दी जाए।
iv. इन क्षेत्रों में सभी स्तरों की शिक्षा निःशुल्क हो।
v. इन क्षेत्रों में छात्रों को विशेष छात्रवृत्तियां दी जाएं।
vi. इन जातियों के शिक्षकों को प्रोत्साहित एवं प्रशिक्षित किया जाए।
धार्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाब
(Suggestion about Religious Education)-
हंटर आयोग ने धार्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिए-
i. सरकारी विद्यालयों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा न दी जाए।
ii. धार्मिक शिक्षा देने वाले विद्यालयों को अनुदान देते समय उनकी शैक्षिक उपलब्धियों को दृष्टिगत रखा जाए।
iii. गैर सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
ii. धार्मिक शिक्षा देने वाले विद्यालयों को अनुदान देते समय उनकी शैक्षिक उपलब्धियों को दृष्टिगत रखा जाए।
iii. गैर सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
भारतीय शिक्षा में ईसाई मिशनरियों की भूमिका के सम्बन्ध में सुझाव
(Suggestion about the Role of Christian Missionaries in Indian Education)-
ईसाई मिशनरी भारतीय शिक्षा पर नियन्त्रण चाहती थीं। इस सम्बन्ध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिया -
i. रिपन ने कहा भारतीयों की शिक्षा का भार ईसाई मिशनरियों पर कदापि न छोड़ा जाए।
ii. ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे विद्यालयों और भारतीयों द्वारा चलाये जा रहे विद्यालयों में कोई भेदभाव न बरता जाए।
iii. इन सभी विद्यालयों के लिए सहायता अनुदान की शर्ते एक समान हों।
iv. भारत में शिक्षा का प्रसार तभी सम्भव है जब भारतवासी इस कार्य के लिए आगे आएं। अतः शिक्षा को प्रोत्साहन करना हो तो इसकी जिम्मेदारी भारतीयों को दिया जाए।
सारांश (Summary)-
वुड डिस्पैच में घोषित शिक्षा नीति, 1854 के तहत भारतीय शिक्षा में ईसाई मिशनरियों का प्रभुत्व समाप्त हो गया था। 1880 में लॉर्ड रिपन (Lord Rippon) भारत के नए गवर्नर जनरल और वायसराय नियुक्त हुए। अनुकूल अवसर पाकर 'जनरल काउन्सिल ऑफ एजुकेशन इन इंडिया' के एक प्रतिनिधि मंडल ने लॉर्ड रिपन से भेंट की उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराया और भारतीय शिक्षा नीति में परिवर्तन करने का निवेदन किया। लॉर्ड रिपन ने उन्हें भारतीय शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आश्वासन दिया। सहायता अनुदान के नियमों को सरल एवं उदार बनाया गया तथा प्रान्तीय आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया गया। सहायता अनुदान के नियमों को अलग-अलग मदों के लिए अलग-अलग बनाया जाए। सहायता अनुदान के सभी नियमों से शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी व्यक्तियों, विशेषकर प्रधानाचार्यों को अवगत कराया जाए तथा इन नियमों का प्रकाशन कराया जाए किसी विद्यालय के किसी भी पद हेतु प्राप्त सहायता अनुदान प्रार्थना पत्र पर निर्णय लेने से पूर्व विद्यालय का निरीक्षण किया जाए। विद्यालयों को सहायता अनुदान स्वीकृत करने में किसी प्रकार का भेदभाव न बरता जाए। विद्यालयों को सहायता अनुदान की धनराशि समय से पहुंचाई जाए।
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