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अपशब्दों का समाजशास्त्र: गालियाँ, शक्ति और संवेदना का संघर्ष

कभी आपने ध्यान दिया है कि गाली देने वाला व्यक्ति सिर्फ शब्द नहीं बोल रहा होता, वो अपने भीतर का एक भावनात्मक विस्फोट, सामाजिक असंतुलन, या आत्म-अभिव्यक्ति की छटपटाहट व्यक्त कर रहा होता है। गालियाँ सिर्फ अपशब्द नहीं हैं, वे हमारे समाज, हमारी परवरिश, और हमारी सामूहिक मानसिकता का आईना हैं। ये बताती हैं कि हम क्या सोचते हैं, किससे डरते हैं, और किस पर हावी होना चाहते हैं।

लेखन

ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी परिदृश्य में यह आंकड़ा अधिक नजर आता है। यदि पुरुषों और महिलाओं में तुलना की जाए तो द लैंसेट और ICMR के आंकड़ों से हमें ज्ञात होता है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष अकेलेपन के अवसाद से अधिक ग्रसित पाए गए हैं।

जब रंगों ने विचारों को छुआ

कहते हैं, रंग सिर्फ दिखाई नहीं देते  महसूस होते हैं। कभी ये आंखों को छूते हैं, कभी भाव में उतर जाते हैं और जब कोई समाज अपने विचारों को कोई रंग दे देता है, तो वो रंग केवल रंग नहीं रहता

वंदे मातरम के 150 वर्ष: एक गीत, एक माँ, और दो भारतों की कहानी

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कभी किसी गीत ने सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि अपनी भावना से एक देश की आत्मा को छू लिया। “वंदे मातरम्” ऐसा ही गीत था और शायद आज, जब इस गीत को 150 वर्ष हो गए हैं, यह सवाल पहले से ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि हम किस *“भारत माता”* की संतान बनना चाहते हैं?

आस्था की ज़रूरत है, पर आँखें खुली रखकर

हम इंसान न तो धरती के सबसे ताक़तवर जीव हैं, न सबसे तेज़, न सबसे बलवान। लेकिन हम सबसे अधिक प्रबुद्ध हैं। यह बुद्धिमत्ता हमें इसलिए मिली क्योंकि हमने सवाल करना सीखा, सोचने और समझने की आदत विकसित की। प्रकृति के रहस्यों को जानने की इस जिज्ञासा ने ही हमें बाकी जीवों से अलग किया। इंसान ने पेड़ से उतरकर औज़ार बनाए, आग जलाई, भाषा विकसित की और फिर धीरे-धीरे सभ्यता का निर्माण किया। यही वह यात्रा थी जिसने हमें “होमो सेपियन्स” बनाया, सोचने और समझने वाला जीव।

The art of Observation

Quantum Mechanics हमें एक अद्भुत सच बताती है, कि *Observation itself changes Reality.* लेकिन हम अक्सर इसे गलत समझ लेते हैं। हम सोचते हैं कि सिर्फ़ देखना ही Observe करना है पर ऐसा नहीं है।

सरदार वल्लभभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 – 15 दिसंबर 1950)

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आज़ादी के बाद जब एक ओर कुछ कट्टरपंथी विचारधाराएँ धर्म और मज़हब के नाम पर देश को बाँटने की साज़िश रच रही थीं, जब एक ऐसा राष्ट्र, पाकिस्तान, बनाया गया जो विविधता को नहीं, बल्कि एकरूपता की संकीर्ण सोच को पूजता था। तब दूसरी ओर खड़े थे भारत के लौह पुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल। वे उस विचार के प्रतीक थे, जो कहता था - “भारत किसी एक मज़हब का नहीं, बल्कि उन सबका है जो इसकी मिट्टी से प्रेम करते हैं।”

लोक आस्था का महापर्व — छठ

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हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि आते ही भारत के कई हिस्सों— बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक एक साथ सूर्य को नमन करते हैं।

भय बिनु होइ न प्रीति — सत्ता और जनता के संबंध की अनकही सच्चाई

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विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति। गोस्वामी तुलसीदास जी की यह चौपाई केवल धार्मिक संदर्भ नहीं है, बल्कि सत्ता, समाज और नागरिकता के शाश्वत संबंध की गहरी व्याख्या है। जब समझाने और विनम्र निवेदन से भी कोई अन्याय या जड़ता नहीं टूटती, तब श्री राम कहते हैं, बिना भय के न प्रेम टिकता है, न मर्यादा।

Engineers — वो हाथ, जो दुनिया को बेहतर बनाते हैं।

Engineers — Beyond structures, they remain the silent architects of tomorrow, shaping not only technology but the very future of humanity.

राष्ट्रवाद या कारोबार? सरकार के दोहरे रवैये का सच

पहलगाम में हुए आतंकी हमले को पाँच महीने भी नहीं हुए हैं। यह हमला जम्मू-कश्मीर के इतिहास में निहत्थे नागरिकों पर हुआ सबसे क्रूर हमला था, जहाँ हिंदुओं को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया और गवाहों को जानबूझकर बख्श दिया गया ताकि देश को धर्म के आधार पर और गहरे विभाजित किया जा सके। न्यूज़ चैनलों के एंकरों और राजनीतिक नेताओं ने इस आतंकी योजना को और बढ़ावा दिया। हमले के एक हफ्ते के भीतर ही पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने बयान दिया कि हिंदुओं को निशाना बनाओ।

पूंजीवाद और समाजवाद

 कैपिटलिस्ट विचारधारा का मूल आधार यह है कि व्यक्ति को अधिक से अधिक धन अर्जित करने का अवसर मिलना चाहिए। इसके विपरीत सोशलिस्ट दृष्टिकोण यह मानता है कि संपत्ति का न्यायसंगत वितरण समाज की प्राथमिक आवश्यकता है। एक पक्ष केवल उत्पादन और कमाई पर केंद्रित रहता है, जबकि दूसरा पक्ष केवल वितरण और समानता पर। परिणामस्वरूप दोनों विचारधाराओं के बीच निरंतर संघर्ष दिखाई देता है।

चेतना और आत्मा : धर्म और विज्ञान का अनसुलझा रहस्य

‎एक औरत ऑपरेशन टेबल पर लेटी है। उसकी आंखों पर पट्टी बंधी है और कानों में ऐसी ‎मशीन लगी है जिससे उसे सिर्फ क्लिक-क्लिक ‎की तेज आवाज सुनाई दे। मतलब वो कुछ देख ‎नहीं सकती। कुछ सुन नहीं सकती। उसका दिल ‎नहीं धड़क रहा। मशीनें शांत हैं। ईसीजी की ‎लाइन एकदम सीधी हो गई है और डॉक्टर्स की ‎भाषा में वह क्लीनिकली डेड है। लेकिन ‎अचानक उसे होश आ जाता है। वो डॉक्टरों को ‎इस अनुभव के बारे में बताती है कि उसने उस ‎खास किस्म की आरी के बारे में भी उन्हें ‎बता दिया जिससे डॉक्टर उसकी खोपड़ी को काट ‎रहे थे। उसने कहा कि वह तो एक इलेक्ट्रिक ‎टूथब्रश जैसी दिखती थी। बात बिल्कुल सही ‎थी उसकी। अब सवाल यह है कि जब दिमाग बंद ‎था, आंखें बंद थी, कान उसके बंद थे तो ‎उसने ये सब देखा कैसे? ‎ ‎

सवाल समाज से: कहाँ गई हमारी संवेदना?

आधुनिक हिंदी साहित्य में एक कवि हुए, ‎ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना शायद अपने नाम सुना होगा।  बड़े प्रसिद्ध कवि थे, तो उनकी एक कविता है, ‎ ‎गोली खाकर ‎एक के मुँह से निकला— ‎‘राम’। ‎ ‎पर दूसरे के मुँह से निकला— ‎‘माओ’। ‎ ‎लेकिन तीसरे के मुँह से निकला— ‎‘आलू’। ‎ ‎पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है ‎कि पहले दो के पेट भरे हुए थे। ‎

गणपति उत्सव: उत्सव या उपदेश

गणपति महा उत्सव का आगमन हो चुका है। हमारे शहरों और गाँवों में एक बार फिर वही भव्य दृश्य देखने को मिलेंगे: विशालकाय मूर्तियाँ, रंग-बिरंगे पंडाल, कान फाड़ देने वाले डीजे, और लोगों का हुजूम। इन सब के बीच, हम नाचेंगे, गाएँगे, तस्वीरें लेंगे और अच्छे कपड़े पहनकर "गुड वाइब्स" का अनुभव करेंगे। खूब प्रसाद और कर्मकांड होंगे, और अंत में, गणेश जी की प्रतिमा को जुलूस के साथ ले जाकर नदी या नाले में विसर्जित कर दिया जाएगा। कभी-कभी भोजपुरी गानों के शोर में।

आधुनिकता या आदिमता

कुछ ही दिन पहले ही की बात है, मैंने संत *प्रेमानंद महाराज जी* का एक वक्तव्य सुना। वे समाज को हमेशा दार्शनिक दृष्टि से गहरी शिक्षाएँ देते हैं। अपने प्रवचन में उन्होंने आज के युवाओं की जीवनशैली खासकर live-in relationship और multiple relations पर टिप्पणी की। उनका कहना था कि यदि स्त्री और पुरुष अपने संबंधों को केवल शारीरिक आकर्षण और अस्थायी सुख तक सीमित रखेंगे, तो वे कभी भी अच्छे पति-पत्नी, जिम्मेदार जीवनसाथी और स्वस्थ परिवार का निर्माण नहीं कर सकते।

प्रत्येक विषय एक जीवन-दर्शन

कभी-कभी हम अपने बचपन की कक्षाओं को याद करते हैं। ब्लैकबोर्ड पर लिखे गए सूत्र, शिक्षक की समझाइश, किताबों की पंक्तियाँ, सब कुछ जैसे केवल परीक्षा पास करने और अंक लाने तक सीमित था। लेकिन कितनी बार हमने सोचा कि इन किताबों में सिर्फ़ परीक्षा पास करने का नहीं, बल्कि जीवन जीने का भी राज़ छुपा है? धीरे-धीरे हमारे भीतर यह धारणा बन गई कि शिक्षा का मक़सद बस इतना है कि हमें एक डिग्री मिले और फिर एक अच्छी नौकरी।

भारत

 *भारत...* 

रक्षाबंधन: बंधन से परे — धर्म, वचन और स्नेह की कहानी

श्रावण मास की पूर्णिमा का चाँद जैसे ही आकाश में मुस्कुराता है, भारत के आंगन में एक विशेष भाव जगता है—रक्षाबंधन का। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वचन, विश्वास और स्नेह का बंधन है, जिसकी जड़ें पौराणिक कथाओं, शास्त्रीय मंत्रों और हजारों वर्षों की सांस्कृतिक स्मृतियों में गहराई से धँसी हैं।

भारतीय सरकारी नौकरी परीक्षा प्रबंधन

 *आधिकारिक (पर)पत्र* *भारतीय सरकारी नौकरी परीक्षा प्रबंधन* *भारत सरकार* *प्रेस विज्ञप्ति* विषय: देशभर में पारदर्शिता, नयापन और उम्मीदवारों की सहन-शक्ति की निरंतर जाँच हेतु “विश्वगुरु भर्ती मिशन ” के अंतर्गत नई प्रक्रियाओं का क्रियान्वयन।

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