लोक आस्था का महापर्व — छठ

हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि आते ही भारत के कई हिस्सों— बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक एक साथ सूर्य को नमन करते हैं।


यह है छठ।




पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसकी शुरुआत सीता माता ने की थी और सबसे पहले यह बिहार के मुंगेर में मनाया गया था।


छठी मैया (उषा — संध्या की देवी), जो सूर्य की बहन मानी जाती हैं, नवजात शिशुओं का भाग्य लिखती हैं। हर स्त्री अपने बच्चों की मंगलकामना, अपने परिवार की खुशहाली और जीवन के उजाले के लिए इस कठिन व्रत को रखती है। ब्रह्म वैवरता पुराण और काशी खंड में इसका उल्लेख मिलता है।


यह पर्व केवल उत्सव नहीं है; यह प्रकृति और जीवन के तीन मूल तत्वों— पानी, मिट्टी और रोशनी के प्रति हमारी गहरी श्रद्धा है।


छठ पूजा के देवता हैं सूर्य और उनकी बहन उषा। यह पूजा हमें यह सिखाती है कि जीवन और ऊर्जा का स्रोत— सूर्य और प्रकृति के प्रति कृतज्ञ रहना ही सच्ची भक्ति है। यह पर्व हमारे कृषि समाज से जुड़ा है, जब हम खेतों की उपज के लिए सूर्य को धन्यवाद देते हैं, तो केवल फसल नहीं, बल्कि जीवन और सृष्टि की निरंतर धारा को सम्मान देते हैं।


पटना का कंगन घाट, गया का सन घाट और वाराणसी का अदालत घाट। इन स्थलों पर हर साल लाखों लोग इकट्ठा होते हैं। यमुना के किनारे दिल्ली के घाट भी इस दिन जगमग उठते हैं। इस एक दिन में शहर और गांव की सीमाएं मिट जाती हैं, केवल एक आवाज गूंजती है।


“छठी मैया की जय।”


यह पूजा चार दिन तक चलती है।


पहला दिन: नहाए खाए।


भक्त पवित्र स्नान कर सात्विक भोजन बनाते हैं, मिट्टी और पानी के बर्तन में, यह हमें याद दिलाता है कि शुद्धता और सादगी में ही जीवन का असली सौंदर्य है।


दूसरा दिन: खरना।


पूरे दिन का निर्जल उपवास, जो शाम को सूर्य को प्रसाद अर्पित करके तोड़ा जाता है। खीर, रोटी और गुड़ साधारण वस्तुएं, पर इनके माध्यम से हम अपने अस्तित्व का सम्मान करते हैं।


तीसरा दिन: संध्या अर्घ।


यह पर्व का शिखर है। धुंधली शाम में जब सूर्यास्त होता है, हजारों दीये जलते हैं और भक्त कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को जल अर्पित करते हैं। यह दृश्य बताता है कि अस्त होते हुए सूर्य में भी सुंदरता और सम्मान है। हर अंत में नया जीवन छिपा होता है।


चौथा दिन: उषा अर्घ।


सुबह का पहला सूर्य नमन करते हुए भक्त अपना 36 घंटे का व्रत तोड़ते हैं। पहली किरण का पानी पर पड़ना श्रद्धा, तपस्या और प्रसन्नता का अद्भुत संगम बनाता है। यह क्षण हमें जीवन के चक्र, प्रकृति के नियम और हर चीज के भीतर छिपी दिव्यता की याद दिलाता है।



यह पर्व केवल उगते सूरज का नहीं, अस्त होते हुए सूरज का भी सम्मान करता है। लोकगीत और छठ के गीत मां और सूर्य के बीच के पवित्र और दिव्य संबंध की अनुभूति कराते हैं।


आज छठ केवल बिहार की पहचान नहीं, बल्कि पूरे भारत के अस्तित्व का प्रतीक बन गया है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के प्रति सजग रहना भी भक्ति है, और कठिनाइयों में नियम और पवित्रता निभाना ही सच्ची तपस्या है।


बिहार की संस्कृति केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अमूल्य विरासत है। संस्कृति मंत्रालय छठ को यूनेस्को की इंटैन्जिबल कल्चरल हेरिटेज लिस्ट में शामिल कराने का प्रयास कर रहा है, ताकि पूरी दुनिया इसकी दिव्यता और भावना को महसूस कर सके।


छठ केवल पूजा नहीं है, यह हर घर की आस्था, हर मां की प्रार्थना और देशवासियों की ऊर्जा है। यह हमें याद दिलाता है कि  सूर्य, पानी, मिट्टी सभी जीवनदायिनी शक्तियां हमारी श्रद्धा, आदर और कृतज्ञता की प्रतीक्षा करती हैं। प्रकृति की सेवा, उसका सम्मान और उसकी कृतज्ञता ही असली भक्ति है।


छठ हमें सिखाता है— जीवन का हर क्षण, हर किरण, हर नदी, हर धरती, सब कुछ दिव्य है। हमारी श्रद्धा, हमारी तपस्या और हमारा आभार इसे और भी समृद्ध बनाता है।


एक तरफ जहां, हमने अपने पर्वों और त्योहारों के वास्तविक महत्व को खो दिया है और भोगवादी पक्ष अपना लिया है। दिवाली, दशहरा, होली, दुर्गा पूजा और अन्य पर्वों को अब हम केवल भोग और दिखावे के रूप में मनाते हैं, उनके असली अर्थ प्रकृति, श्रद्धा और आध्यात्मिकता को भूलकर। कई बार ऐसा करते हुए हम अनजाने में प्रकृति को ही क्षति पहुंचाते हैं और यही हम धर्म समझ बैठते हैं।


ऐसे में छठ महापर्व हमें यह अहसास कराता है कि प्रकृति की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। यही इस पर्व का दार्शनिक संदेश है। सूर्य, पानी और धरती की पूजा केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि जीवन और प्रकृति के संतुलन की याद दिलाने वाला दिव्य संकेत है।


तो इस पर्व के माध्यम से हम आपसे निवेदन करते हैं, अपने त्योहारों के वास्तविक अर्थ को समझें, अपनी संस्कृति और परंपराओं को समृद्ध बनाएं, और ऐसी प्रथाओं से दूर रहें जो हमारे देश, हमारे पर्यावरण और हमारी आने वाली पीढ़ियों को नुकसान पहुंचा रही हैं।


छठ हमें केवल श्रद्धा और भक्ति नहीं सिखाता, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में संतुलन, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का संदेश भी देता है। 

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