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महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi)

  महात्मा गांधी का शिक्षा दर्शन  (Educational Philosophy Of Mahatma Gandhi) महात्मा गांधी का जीवन परिचय —  महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ था। महात्मा गांधी बचपन का नाम मोहनदास था। महात्मा गांधी के पिता श्री कर्मचन्द गांधी पोरबन्दर रियासत के दीवान थे और महात्मा गांधी की माता श्रीमती पुतलीबाई थी। महात्मा गांधी जी को पोरबन्दर के प्राथमिक स्कूल में प्रवेश दिलाया। जब गांधी जी की आयु सात वर्ष की थी तो वे अपने माता-पिता के साथ राजकोट हाईस्कूल में प्रविष्ट हो गए और यहीं से महात्मा गांधी 1887 ई0 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। 

मदन मोहन मालवीय जी का शिक्षा दर्शन ( Education Philosophy Of Madan Mohan Malviya Ji )

‘ मदन मोहन मालवीय जी के शैक्षिक विचार ’ ( मदन मोहन मालवीय जी का शिक्षा दर्शन ) ( प्रश्न ) पं० मदन मोहन मालवीय के शिक्षा सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए। ‘या’ पं० मदन मोहन मालवीय के शिक्षा दर्शन को स्पष्ट कीजिए। ( उत्तर )

मदन मोहन मालवीय जी का जीवन - दर्शन (Life Philosophy Of Madan Mohan Malaviya Ji)

मालवीयजी का जीवन - दर्शन  पं० मदन मोहन मालवीय हिन्दू धर्म के अनन्य भक्त एवं उपासक थे और उनका वेदों, स्मृतियों, पुराणों, उपनिषदों, शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों की बातों में पूर्ण विश्वास था। वे किसी एक वाद या सिद्धान्त से बँधे नहीं थे बल्कि वे सभी सम्प्रदायों की अच्छी बातों पर विश्वास करते थे। पं० मालवीय के जीवन - दर्शन से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्य हैं —

राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration )

(प्रश्न) राष्ट्रीय एकीकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए ?

शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण (National Integration Through Education)

( प्रश्न ) शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण कैसे संभव है ? ‘या’ राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षा किस प्रकार सहायक हो सकती है?  ( उत्तर ) शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकीकरण - राष्ट्रीय भावना का विकास शिक्षा द्वारा संभव है, क्योंकि राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना का संचार शिक्षा के द्वारा प्रभावशाली ढंग से होता है। शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय भावना या राष्ट्रीय एकीकरण विकसित करने के निम्नलिखित उपाय हैं

पं० मदन मोहन मालवीय (PT. MADAN MOHAN MALVIYA)

  भारतीय चिंतक पं० मदन मोहन मालवीय   INDIAN THINKERS PT. MADAN MOHAN MALVIYA  (1861-1946 )  पं० मदन मोहन मालवीय जी के जीवन और कार्य  जीवन और कार्य — पं० मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद के अहियापुर मुहल्ला (इसे अब मालवीय नगर कहते हैं।) में 25 दिसम्बर, 1861 ई ० में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० ब्रजनाथ व्यास और माता का नाम श्रीमती मूना देवी था। इनका परिवार साधारण था, पिता कथा वार्ता से जीवन निर्वाह करते थे। वे बड़े धर्मनिष्ठ, कट्टर एवं मृदुभाषी थे। इनकी माता बड़े सरल, उदार एवं कोमल हृदय वाली थी, जिससे सारे मुहल्ले में वे लोकप्रिय थीं। यह छाप पं० मदन मोहन मालवीय पर भी पड़ी। घर पर ही इनको नागरी और संस्कृत को शिक्षा शुरू में मिली। बुद्धि के तेज होने से इन्होंने बहुत से श्लोक कंठस्थ का लिये। बाद में पं० हरदेवजी की धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला और फिर पं० देवकीनन्दजी द्वारा व्यवस्थापित विद्या धर्म प्रवर्द्धनी सभा की पाठशाला में इन्हें संस्कृत और धर्म की शिक्षा मिली। संस्कृत पढ़ते हुए पं० मदन मोहन को अंग्रेजी पढ़ने का शौक हुआ। आर्थिक कठिनाई होते हुए भी पिता ने इनको अंग्रेज...

Project Methool (योजना विधि)

योजना  (Project) किसी भी काम को करने से पहले उसका भौतिक या गैर भौतिक रूप से उसका रूपरेखा तैयार कर लेना ही योजना कहलाती हैं। योजना भविष्य के लिए कार्रवाई के एक विशेष पाठ्यक्रम को तय करने का एक व्यवस्थित प्रयास है, यह समूह गतिविधि के उद्देश्यों और उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदमों के निर्धारण की ओर जाता है। इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि योजना तथ्यों का चयन से संबंधित है और भविष्य में प्रस्तावित गतिविधियों के दृश्य और निरूपण के संबंध में मान्यताओं के निर्माण और उपयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children)

अस्थि बाधित बालक (Orthopedically Disabled Children) परिचय — शारीरिक अशक्तता वाले बच्चों में अंग संचालन की समस्यायें पाई जाती हैं। अंग संचालन के दोषों का सम्बन्ध मांसपेशियों और शरीर के जोड़ों से है, जो अंगों अथवा हाथ पाँवों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की विषमताओं वाले विद्यार्थियों को, शिक्षण की उन गतिविधियों में, जिसमें शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है, सीखने में कठिनाई होती है। यद्यपि उनमें कक्षा के दूसरे बच्चों के समान ही अनुदेश द्वारा सीखने की मानसिक क्षमता होती है, परन्तु शारीरिक विषमता के कारण उन्हें अपने अध्ययन के समय विशेष समस्याओं का सामना करना  पड़ता है। उदाहरण के लिये यदि किसी बच्चे की उंगलियों की मांसपेशियाँ कठोर हो गई हैं, तो उसे लिखने में निश्चय ही कठिनाई होती है। कुछ बच्चों में बैठने आदि की मुद्रा को लेकर समस्याएं हो सकती हैं, जिससे वे शीघ्र ही थक जाते हैं। उन्हें सीखने में कठिनाई आती है ,और कुछ निश्चित क्रियाओं के सम्पादन में अधिक समय लेते हैं। प्रायः ऐसे बच्चों में कक्षा में समायोजन की समस्यायें भी पाई जाती हैं। अनेक बार कक्षा के अपने ही सहपाठी इन्हें नहीं ...

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