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शारीरिक दृष्टि से अक्षम या विकलांग बालक (Physically Handicapped Or Disabled Children)

शारीरिक दृष्टि से  अक्षम या विकलांग बालक  (Physically Handicapped Or Disabled Children) ऐसे व्यक्ति जिनमें ऐसा शारीरिक दोष होता है जो किसी भी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग देने से रोकता है या उसे सीमित रखता है ऐसे व्यक्ति को हम साजिक रूप से अक्षम या विकलांग व्यक्ति कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में, विकलांग बालक शब्द से तात्पर्य किसी स्थायी शारीरिक दोष से युक्त बालकों से है। स्थायी शारीरिक दोष के कारण बालक सामान्य बालकों की सामान्य क्रियाओं में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं। अपंग, अन्धे, बहरे तथा वाणी दोष से युक्त बालक विकलांग बालकों की श्रेणी में आते हैं। विकलांग बालकों में शारीरिक दोष अवश्य होता है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि वे मानसिक दृष्टि से भी अयोग्य हों। विकलांग बालकों की मानसिक योग्यता प्रायः साधारण अथवा तीव्र होती है परन्तु शारीरिक दोष के कारण उनमें हीन भावना आ जाती है। इसलिए ऐसे बालकों की शिक्षा की उचित व्यवस्था की अत्यन्त आवश्यकता होती है। 

अधिगम अक्षमता (learning Disabled)

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अधिगम अक्षमता (learning Disabled) अधिगम अक्षमता का अर्थ - “अधिगम अक्षमता” पद दो अलग-अलग पदों  “अधिगम” और “अक्षमता” से मिलकर बना है। अधिगम शब्द का आशय “सीखने” से है तथा “अक्षमता” का तात्पर्य “क्षमता के अभाव” या “क्षमता की अनुपस्थिति” से है। अर्थात्‌ सामान्य भाषा में “अधिगम अक्षमता” का तात्पर्य “सीखने की क्षमता अथवा योग्यता” की कमी या अनुपस्थिति से है।  सीखने में कठिनाइयों को समझने के लिए हमें एक बच्चे की सीखने की क्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों का आकलन करना चाहिए। प्रभावी अधिगम के लिए मजबूत अभिप्रेरण, सकारात्मक आत्म छवि, और उचित अध्ययन प्रथाएँ एवं रणनीतियाँ आवश्यक शर्ते हैं।

मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता (Mental Retardation And Mental illnesses)

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मानसिक मंदता और मानसिक रूग्णता (Mental Retardation And Mental illnesses) सामान्य अंधविश्वास और सच्चाई - यद्यपि कि विगत दशकों में मानसिक मंदता के प्रति लोगों में जारुकता आयी है, परन्तु अभी भी प्रायः मानसिक मंदता को 'मानसिक रोग' समझा जाता है। मानसिक मंदता और मानसिक रोग दो भिन्न संकल्पनायें /अवस्था है। इस सन्दर्भ में, भारत में कानूनी विकास का अध्ययन बड़ा दिलचस्प होगा। भारत में आजादी से पूर्व इंडियन लूनासी ऐक्ट, 1912 (Indian Lunacy Act 1912) में आया। इस कानून के तहत मानसिक मंदता और मानसिक रोग दोनों को समान माना गया और समान प्रावधान किये गये। यह कानून स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग चार दशकों बाद भी लागू रहा। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे परिवर्त्तन हुए, मानसिक मंदता को मानसिक रोग से इतर मानकर दोनों के लिये अलग-अलग प्रावधान किये गये परन्तु भारत में 1986 तक दोनों में कोई कानूनी अंतर नहीं किया गया है। 1987 में पहली बार मानसिक रोग को मानसिक मंदता से अलग माना गया और मंटल हेल्थ ऐक्ट 1987 के तहत मानसिक रूग्णता के लिये अलग प्रावधान बनाये गये। यहाँ पर भी, मानसिक मंदता और मानसिक रूग...

मंद बुद्धि बालक (Mentally Retarded Children)

मंद बुद्धि बालक (Mentally Retarded Children) मंद बुद्धि बालकों से तात्पर्य उन बालकों से होता है जिनकी मानसिक योग्यता सामान्य बालकों से कम होती है। मंद बुद्धि अथवा मानसिक मंदता (Mental Retardation) को प्रायः बुद्धि परीक्षणों पर बालकों के द्वारा किये गये कार्यों (Performance) के आधार पर परिभाषित किया जाता है। वे बालक जिनकी बुद्धिलब्धि 80 या 85 से कम होती है, प्रायः मंद बुद्धि बालक कहलाते हैं। मंदबुद्धि अथवा मानसिक मंदता का संबंध व्यक्ति के मस्तिष्क के अपूर्ण विकास से है। ऐसे बालकों के समायोजन का स्तर सामान्य बालकों की अपेक्षा निम्न स्तर का होता है। मंदबुद्धि बालकों की बुद्धि लब्धि साधारण बालकों की तुलना में कम होती है और उनमें सोचने समझने व विचार करने की क्षमता भी निम्न स्तर की होती है। मानसिक मंदता, अल्प बुद्धि धीमी गति से सीखने वाले, विकल बुद्धि एवं पिछड़े बालक भी मंद बुद्धि के पर्यायवाची शब्दों के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं।

प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children)

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  प्रतिभाशाली बालक  (Gifted Children) जिन बालकों की बुद्धि या मानसिक क्षमता सामान्य बालकों से अधिक होती है, उन्हें प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। किसी भी राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति काफी हद तक उस राष्ट्र अथवा समाज के प्रतिभाशाली बालकों के ऊपर ही निर्भर करती है। प्रतिभाशाली बालकों में विकास की संभावनायें अधिक होती हैं। उच्च मानसिक योग्यता वाले बालकों को इंगित करने के लिए अनेक शब्दों जैसे - प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children), श्रेष्ठ बालक (Superior Children),निपुण बालक (Talented Children), तीव्र सीखने वाले (Rapid Learners), होशियार छात्र (Brilliant Students) तथा तीव्र छात्र (Bright Students) आदि का भी प्रयोग किया जाता है। ये सभी शब्द लगभग एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में योग्यता, उपलब्धि, क्षमता आदि में सामान्य बालकों से सार्थक रूप से अधिक योग्यता वाले बालकों के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं।

अधिगम का स्थानान्तरण (Transfer Of Learning)

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अधिगम के स्थानान्तरण की अवधारणा (Concept Of Transfer Of Learning) - प्रशिक्षण या अधिगम स्थानान्तरण एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय (Concept) है जिस पर प्रयोगात्मक मनोवैज्ञानिकों ने बहुत सारे शोध किये है। प्रशिक्षण या अधिगम स्थानान्तरण से तात्पर्य से पहले सीखे गए कौशल का वर्तमान कौशल को सीखने पर पड़ने वाले प्रभाव से होता है। शिक्षा का लक्ष्य एक पाठ्यक्रम या स्तर से दूसरे तक या विद्यालय वातावरण से जीवन के वातावरण तक ले जाना होता है। सीखने के या प्रशिक्षण के स्थानान्तरण से अभिप्राय किसी सीखी हुई क्रिया या विषय का अन्य परिस्थितयों में उपयोग करने से है । इसे यूं भी स्पष्ट किया जा सकता है कि अर्जित ज्ञान का अन्य विषयों तथा क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (Factor Affecting Learning)

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अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (Factor Affecting Learning) अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है - 1. शिक्षार्थी के आधार पर      (On The Basis Of Learner) – शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health) मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) सीखने वाले की रुचि (Learner Interest) प्रेरणा (Motivation) थकान (Fatigue) भाषा (Language) पूर्वाग्रह (Prejudice) परिपक्वता (Maturity) संवेदना और प्रत्यक्षीकरण (Sensation And Perception)

वाद विवाद विधि (Discussion Method)

वाद विवाद विधि  (Discussion Method)  इस विधि को तर्क विधि एवं चर्चा विधि के नाम से भी जाना जात है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली बाल केंद्रित है। आज यह आवश्यक है कि विद्यार्थी कक्षा में अधिक से अधिक सक्रिय रहे अर्थात् विद्यार्थी को कक्षा शिक्षण के समय अपने शिक्षक के साथ तथा अन्य साथियों के साथ विषय से सम्बन्धित परस्पर बातचीत करनी चाहिए। विद्यार्थी कक्षा में मात्र एक निष्क्रिय श्रोता नहीं है। इसलिए कक्षा में विषय से सम्बन्धित बातचीत या वाद विवाद अब शिक्षा का एक आवश्यक और लोकतान्त्रिक अंग माना जाने लगा है। यह विधि छात्रों को अपने विचारों को कहने, सुनने, शंकाओ का निवारण करने एवं प्रश्न पूछने आदि का पूरा अवसर प्रदान करती है। जिससे वे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सके। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वाद - विवाद विधि शिक्षण की वह विधि है। जिसमे शिक्षक और शिक्षार्थी परस्पर मिलकर किसी प्रकरण, प्रश्न या समस्या के सम्बन्ध में स्वतंत्रता पूर्वक सामूहिक वातावरण में विचारों का आदान प्रदान करते हैं।

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