संदेश

सवाल समाज से: कहाँ गई हमारी संवेदना?

आधुनिक हिंदी साहित्य में एक कवि हुए, ‎ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना शायद अपने नाम सुना होगा।  बड़े प्रसिद्ध कवि थे, तो उनकी एक कविता है, ‎ ‎गोली खाकर ‎एक के मुँह से निकला— ‎‘राम’। ‎ ‎पर दूसरे के मुँह से निकला— ‎‘माओ’। ‎ ‎लेकिन तीसरे के मुँह से निकला— ‎‘आलू’। ‎ ‎पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है ‎कि पहले दो के पेट भरे हुए थे। ‎

गणपति उत्सव: उत्सव या उपदेश

गणपति महा उत्सव का आगमन हो चुका है। हमारे शहरों और गाँवों में एक बार फिर वही भव्य दृश्य देखने को मिलेंगे: विशालकाय मूर्तियाँ, रंग-बिरंगे पंडाल, कान फाड़ देने वाले डीजे, और लोगों का हुजूम। इन सब के बीच, हम नाचेंगे, गाएँगे, तस्वीरें लेंगे और अच्छे कपड़े पहनकर "गुड वाइब्स" का अनुभव करेंगे। खूब प्रसाद और कर्मकांड होंगे, और अंत में, गणेश जी की प्रतिमा को जुलूस के साथ ले जाकर नदी या नाले में विसर्जित कर दिया जाएगा। कभी-कभी भोजपुरी गानों के शोर में।

आधुनिकता या आदिमता

कुछ ही दिन पहले ही की बात है, मैंने संत *प्रेमानंद महाराज जी* का एक वक्तव्य सुना। वे समाज को हमेशा दार्शनिक दृष्टि से गहरी शिक्षाएँ देते हैं। अपने प्रवचन में उन्होंने आज के युवाओं की जीवनशैली खासकर live-in relationship और multiple relations पर टिप्पणी की। उनका कहना था कि यदि स्त्री और पुरुष अपने संबंधों को केवल शारीरिक आकर्षण और अस्थायी सुख तक सीमित रखेंगे, तो वे कभी भी अच्छे पति-पत्नी, जिम्मेदार जीवनसाथी और स्वस्थ परिवार का निर्माण नहीं कर सकते।

प्रत्येक विषय एक जीवन-दर्शन

कभी-कभी हम अपने बचपन की कक्षाओं को याद करते हैं। ब्लैकबोर्ड पर लिखे गए सूत्र, शिक्षक की समझाइश, किताबों की पंक्तियाँ, सब कुछ जैसे केवल परीक्षा पास करने और अंक लाने तक सीमित था। लेकिन कितनी बार हमने सोचा कि इन किताबों में सिर्फ़ परीक्षा पास करने का नहीं, बल्कि जीवन जीने का भी राज़ छुपा है? धीरे-धीरे हमारे भीतर यह धारणा बन गई कि शिक्षा का मक़सद बस इतना है कि हमें एक डिग्री मिले और फिर एक अच्छी नौकरी।

भारत

 *भारत...* 

रक्षाबंधन: बंधन से परे — धर्म, वचन और स्नेह की कहानी

श्रावण मास की पूर्णिमा का चाँद जैसे ही आकाश में मुस्कुराता है, भारत के आंगन में एक विशेष भाव जगता है—रक्षाबंधन का। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि वचन, विश्वास और स्नेह का बंधन है, जिसकी जड़ें पौराणिक कथाओं, शास्त्रीय मंत्रों और हजारों वर्षों की सांस्कृतिक स्मृतियों में गहराई से धँसी हैं।

भारतीय सरकारी नौकरी परीक्षा प्रबंधन

 *आधिकारिक (पर)पत्र* *भारतीय सरकारी नौकरी परीक्षा प्रबंधन* *भारत सरकार* *प्रेस विज्ञप्ति* विषय: देशभर में पारदर्शिता, नयापन और उम्मीदवारों की सहन-शक्ति की निरंतर जाँच हेतु “विश्वगुरु भर्ती मिशन ” के अंतर्गत नई प्रक्रियाओं का क्रियान्वयन।

धर्म, संप्रदाय, संस्कृति, परंपरा, प्रथा और कुप्रथा

धर्म, संप्रदाय, संस्कृति, परंपरा, प्रथा और कुप्रथा: एक गहन विवेचन भूमिका भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में जहां विविध धर्म, समुदाय और परंपराएँ सह-अस्तित्व में हैं, वहाँ अक्सर ये शब्द – धर्म, संप्रदाय, संस्कृति, परंपरा, प्रथा और कुप्रथा – परस्पर भ्रमित कर दिए जाते हैं। इनका प्रयोग आम जन-जीवन, नीति-निर्माण, शिक्षा, समाजशास्त्र और राजनीति तक में होता है, परंतु इनके बीच के सूक्ष्म और गहरे भेद को समझे बिना। यह लेख इन सभी अवधारणाओं को मूल से स्पष्ट करता है, जिससे एक सम्यक और संतुलित दृष्टिकोण विकसित हो सके।

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