मित्रता — एक प्रश्न, जो उत्तर नहीं चाहता

क्या दोस्ती वाकई वो है, जो हम आज रंग-बिरंगे रिबनों और हँसी-ठहाकों से मना रहे हैं?


या फिर यह वो खामोशी है,

जो युद्धभूमि में एक सारथी की आँखों से बहती है,

बिना दिखाए?


क्या दोस्ती वह है

जहाँ एक राजा किसी अपमानित योद्धा को गले लगाता है।

या वह है जहाँ एक युगपुरुष अपने प्रिय को युद्ध में खड़ा कर देता है।

यह जानते हुए कि जीत से अधिक ज़रूरी है उसका जागना?


कर्ण ने सिर्फ एक मित्र के लिए अपना सब कुछ दांव पर नहीं लगाया। 

उसने अपनी चेतना गिरवी रख दी।

उसने अपने जीवन का रथ, उस दिशा में मोड़ दिया 

जहाँ अधर्म इंतज़ार कर रहा था।

क्यों?

क्योंकि किसी ने उसे "कर्ण" कहकर सम्मान दिया था।



लेकिन क्या यह मित्रता थी?


नहीं।

मित्रता वो होती है

जो हमेशा धर्म के साथ खड़ी होती है।

न कि वहाँ, जहाँ कोई भी, 

तुम्हारे टूटे हुए अभिमान को

अपनी सत्ता की सीढ़ी बना ले।


कितना भी बड़ा सम्मान क्यों न हो,

अगर वह तुम्हारे विवेक की आवाज़ को ढँक दे,

तो वह सम्मान नहीं, स्वर-हरण है।


कर्ण ने किया वही,

जो मित्रता नहीं थी।


वरना…


द्रौपदी की हँसी, अब भी साँस लेती,

घटोत्कच किसी और युद्ध के लिए जीवित होता,

और अभिमन्यु का चक्रव्यूह सिर्फ एक कथा न होता।


क्योंकि जो मित्रता अधर्म को पुष्ट करे,

वो सिर्फ दोस्ती नहीं,

एक अंधी वफादारी है

जो भविष्य को जलाकर

अतीत का कर्ज चुकाती है।


सम्मान अगर आत्मा को मौन कर दे,

तो वह सम्मान नहीं, बंधन है।

और जो बंधन तुम्हें न्याय से दूर ले जाए,

उसका नाम मित्रता नहीं, विनाश है।


और अर्जुन?

वो तो टूटा हुआ खड़ा था।

काँपते हाथों में गांडीव लिए,

कहता था — “मैं नहीं लड़ूँगा।”

तब उसका मित्र क्या करता है?


उसे छोड़ देता?

नहीं।

वो उसे युद्ध में नहीं झोंकता,

वो उसे उसके भीतर ले जाता है,

जहाँ अर्जुन को अर्जुन से मिलाया जाता है।

यही तो मित्रता है।


दोस्ती, शायद, वो रिश्ता नहीं है जो साथ हँसता है।

बल्कि वो है जो आपकी स्व की पुकार को सुन लेता है,

उस वक़्त जब आप ख़ुद अपनी आवाज़ से अजनबी हो चुके होते हैं।


यह दोस्ती गुलाब नहीं देती,

यह घावों पर हाथ नहीं फेरती,

यह घाव दिखाती है।

और कहती है — “अब चलो।”


तो आज, जब हम "Happy Friendship Day" लिखते हैं

व्हाट्सऐप पर, इंस्टाग्राम पर, दिल के खाली कोनों में,

तो क्या हम वाकई दोस्ती को जी रहे हैं,

या बस उसका मुखौटा पहनकर किसी असली रिश्ते से भाग रहे हैं?


क्या दोस्ती वो है जो हमें अच्छा महसूस कराए,

या वो है जो हमें अच्छा बना दे?



इतिहास में फिर से खोजो 

क्या दोस्ती का चेहरा वही रहा?


क्या कभी सुना है कि चंद्रगुप्त ने चाणक्य से कहा हो ,

"तुम मेरे गुरु हो, पर दोस्त नहीं"?

नहीं कहा होगा, क्योंकि चाणक्य की मित्रता वह थी

जो सिंहासन तक नहीं,

ध्यान की गहराइयों तक पहुँचती थी।


क्या दोस्ती वह भी नहीं थी

जब विवेकानंद, रामकृष्ण के चरणों में बैठकर

ना केवल ईश्वर को ढूँढ रहे थे,

बल्कि एक ऐसे संबंध को जी रहे थे

जहाँ मौन ही सबसे बड़ी बातचीत थी?


गांधी और कस्तूरबा,

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त,

सुभाष और नेहरू


हर रिश्ता दोस्ती की एक अलग परिभाषा है,

जहाँ संघर्ष, विरोध, प्रेम और उद्देश्य

साथ चलते हैं,

कभी हाथ थामे हुए,

कभी पीठ मोड़ कर भी एक दूसरे को पुकारते हुए।





अब लौटो आज में,

जहाँ स्क्रीन की रोशनी है, 

पर आँखों में अँधेरा


अब तो दोस्ती भी 'स्टेटस' बन चुकी है।

"Seen at 4:53 PM"

इतना जान लेना काफ़ी है कि वो अब हमारे दोस्त नहीं रहे।


हमने दोस्ती को नोटिफिकेशन में बदल दिया है।

ब्लू टिक,

ग्रीन हार्ट,

GIF भेजकर हम समझ लेते हैं कि रिश्ता जिंदा है।


लेकिन क्या दोस्ती वो है जो रिप्लाई करे?

या वो है जो ख़ामोशी में भी तुम्हारी चीख़ को सुन सके?


एक वक़्त था जब ख़त लिखे जाते थे,

अब तो typing... दिखते ही धड़कन रुक जाती है,

कि बोलेगा या छोड़ देगा?


हम ऑफिस में "टीम" में होते हैं,

क्लास में "बेंचमेट्स",

सोशल मीडिया पर "followers",

पर दिल में कौन होता है?


कभी-कभी दोस्त वो होता है

जो तुम्हारी हार को जीत की तरह देखता है,

क्योंकि तुमने खुद को पा लिया।


कभी दोस्त वो भी होता है

जो तुम्हें छोड़कर चला जाता है,

ताकि तुम खुद से मिल सको।




*और अब अंत नहीं, एक मौन प्रश्न*


तो क्या मित्रता एक दिन मनाने से पूरी हो जाती है?

या फिर यह जीवन का वह मौन पाठ है

जो हर मोड़ पर दोहराया जाता है ,


जब कोई तुम्हें रोकता है,

लेकिन तुम्हारे साथ चलकर।


शायद असली दोस्ती कोई व्यक्ति नहीं,

बल्कि वह चेतना है

जो तुम्हारे भीतर उजाला भरती है,

जब पूरी दुनिया तुम्हें अंधेरे में छोड़ देती है।


इसलिए, अगली बार जब कोई पूछे,


*"आपके कितने दोस्त हैं?"*

*तो मुस्कुरा कर कहना,*

*"शायद एक... और शायद वही मैं हूँ*

*जो मुझे बार-बार गिरने से रोकता है।"*

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