धर्म के प्रतीक : अर्थ से अनभिज्ञता तक

हम नहीं जानते कि शिवलिंग का क्या वास्तविक अर्थ है। हम यह भी नहीं जानते कि मंदिरों में बजने वाले घंटों का क्या महत्व है, गर्भगृह की बनावट ऐसी क्यों होती है, देवताओं के चार या आठ हाथ आखिर क्यों दिखाए जाते हैं और उनके हाथों में जो शस्त्र, कमल, ग्रंथ या अन्य वस्तुएँ हैं, उनका क्या प्रतीकात्मक संदेश है। हमें यह भी स्पष्ट नहीं कि ब्रह्मा के चार सिर किस ज्ञान की ओर संकेत करते हैं या ब्रह्मा और ब्रह्म में कौन सा सूक्ष्म किंतु गहरा अंतर है।


दुख इस बात का है कि जब कोई इन विषयों पर हल्की टिप्पणी कर देता है या इन प्रतीकों का मजाक बना देता है, तो हमें बुरा लग जाता है। लेकिन यदि सच पूछें तो हमें स्वयं ही इनका मर्म नहीं पता। हमारे लिए ये सारे प्रतीक मात्र कुछ अलौकिक चमत्कारिक शक्तियों के उपकरण बनकर रह गए हैं, जिनसे हम अपनी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं, अपने पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं। हमारे लिए धर्म का उद्देश्य केवल कर्मकांडों तक सीमित हो गया है। हम मंदिर भी इसी आशा से जाते हैं कि कोई अदृश्य शक्ति हमारे संकट हर लेगी, हमारे दोष धो देगी, हमारे दुख दूर कर देगी।


हमें यह नहीं पता कि हमारे धर्म ने इन अद्भुत प्रतीकों के माध्यम से हमें कितना गहन और सुंदर दर्शन दिया है। शिवलिंग, घंटा, गर्भगृह, देवताओं की अनेक भुजाएँ, उनके हाथों के आयुध — ये सब हमारे भीतर छुपी दिव्यता, शक्ति, संतुलन और चेतना के ही प्रतीक हैं। ब्रह्मा के चार मुख चार वेदों के ज्ञान, चार दिशाओं और चार युगों की सर्वज्ञता को दर्शाते हैं, तो विष्णु के हाथों में चक्र, गदा, शंख और पद्म हमारे भीतर धर्म, शक्ति, जीवन की ध्वनि और पवित्रता के सूत्रों को जगाते हैं।


लेकिन यह सब हम नहीं जानते, क्योंकि हमने कभी वेदांत को पढ़ने या समझने की कोशिश ही नहीं की। हमारे इसी अज्ञान के कारण हमारे धर्म के गहन रहस्य हमारे लिए कोरे मिथक बने रह जाते हैं। जिसने भी वेदांत को पढ़ लिया, जिसने उसके विचारों को हृदय में उतार लिया, उसके लिए ये सारे प्रतीक अपने राज खोल देते हैं। तब ये कथाएँ केवल मनोरंजन या पौराणिक किस्से नहीं रह जातीं, बल्कि जीवन का यथार्थ बनकर हमारे सामने प्रकट होती हैं।


तभी तो कहा गया है कि “ज्ञान ही वह दीपक है जो अंधकार को मिटाता है।” जब तक हम अपने धर्म के प्रतीकों के वास्तविक अर्थ को नहीं समझेंगे, तब तक हम केवल कर्मकांडों में उलझे रहेंगे और अपनी ही परंपरा को गहराई से समझे बिना, बस सतह पर तैरते रहेंगे।

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