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स्कूली जीवन में लोकतंत्र (Democracy In School Life)

प्रस्तावना - कक्षाओं और स्कूल प्रांगणों के हॉल में अक्सर केवल पाठ और खेल के समय के अलावा और भी बहुत कुछ होता है। वे एक लोकतांत्रिक समाज में पनपने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कौशल और मूल्यों के लिए प्रशिक्षण आधार के रूप में भी काम कर सकते हैं। स्कूली जीवन में लोकतांत्रिक सिद्धांतों को लागू करने से छात्रों को कई लाभ मिलते हैं, न केवल जिम्मेदार नागरिकों को बढ़ावा मिलता है बल्कि आवश्यक जीवन कौशल से लैस पूर्ण व्यक्तियों को भी बढ़ावा मिलता है।

शिक्षा और संस्कृति की अवधारणा (Concept Of Education And Culture)

 प्रस्तावना - संस्कृति और शिक्षा एक-दूसरे के पर्याय हैं। संस्कृति का काम है- संस्करण अर्थात् परिष्कार करना। यही काम शिक्षा भी करती है। समाज की रचना में भी संस्कृति का विशेष योग रहता है। किसी भी सामाजिक संरचना को समझने के लिए संस्कृति एक आवश्यक तत्व है। संस्कृति समाज को संगठित रखती है। जीवन शैली के स्वरूप को प्रस्तुत करने का कार्य संस्कृति करती है। संस्कृति शब्द की व्युत्पत्ति सम् उपसर्ग कृ-धातु स्तिन प्रत्यय से हुई है। इसमें जीवन के सभी पक्षों का समन्वय है।

शिक्षा के लिए सामाजिक मांग (Social Demand For Education)

शिक्षा के लिए सामाजिक मांग - भारतीय समाज एक बहुआयामी और विविधतापूर्ण समाज है, जहाँ विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक समूहों का समावेश है। शिक्षा, इस समाज का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक विकास और प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा, मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो व्यक्तिगत और सामाजिक विकास दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शिक्षा एवं भारतीय सामाजिक संरचना से संबंध (Education And Relationship With Indian Social Structure)

शिक्षा एवं भारतीय सामाजिक संरचना से संबंध: एक विश्लेषण शिक्षा, मानव जीवन का अभिन्न अंग है। यह न केवल ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक विकास और परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा और भारतीय सामाजिक संरचना के बीच गहरा संबंध है। शिक्षा समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है, जैसे कि सामाजिक स्तरीकरण, जाति व्यवस्था, लिंगभेद, और सामाजिक न्याय।

भारतीय समाज की एक उप-प्रणाली के रूप में शिक्षा (Education As A Sub-System Of Indian Society)

प्रस्तावना — शिक्षा , भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग है। यह समाज के विकास और परिवर्तन के लिए एक महत्वपूर्ण उप-प्रणाली के रूप में कार्य करती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान का प्रसार करना नहीं, बल्कि व्यक्तित्व का समग्र विकास करना भी है। यह व्यक्ति को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से सक्षम बनाता है।

लेव वैगोत्स्की का सामाजिक का विकास का सिद्धांत (Lev Vygotsky's Sociocultural Theory Of Development)

सामाजिक विकास का सिद्धांत (वैगोत्स्की) - लेव वाइगोत्स्की, 20वीं सदी के प्रसिद्ध रूसी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत बाल विकास, खासकर संज्ञानात्मक विकास को समझने का एक नया दृष्टिकोण था। वाइगोत्स्की का मानना था कि व्यक्तिगत विकास सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में होता है, न कि किसी बच्चे के भीतर अलग-थलग होकर। इस सिद्धांत को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं:

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत (Jean Piaget's Theory Of Cognitive Developmen)

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत - जीन पियाजे, एक स्विस विकासात्मक मनोवैज्ञानिक, ने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि बच्चों का ज्ञान उनके अनुभवों के माध्यम से धीरे-धीरे बनता है, और यह विकास कुछ विशिष्ट चरणों में होता है। इन चरणों में संक्रमण होते रहते हैं, जहां बच्चे पुरानी सोच को त्यागकर नई सीख प्राप्त करते हैं।

अल्लामा मुहम्मद इकबाल का शैक्षिक दर्शन (Educational Philosophy Of Allamah Muhammad Iqbal)

अल्लामा इक़बाल का शैक्षिक दर्शन: एक विस्तृत विवरण प्रस्तावना: मुहम्मद इकबाल (1877-1938), जिन्हें अल्लामा इकबाल के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय कवि, दार्शनिक और राजनीतिक विचारक थे। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका शैक्षिक दर्शन आदर्शवादी और प्रगतिवादी विचारों का मिश्रण है।

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विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) University Education Commission

माध्यमिक शिक्षा आयोग या मुदालियर कमीशन: (1952-1953) SECONDARY EDUCATION COMMISSION

व्याख्यान विधि (Lecture Method)

विशिष्ट बालक - बालिका (Exceptional Children)

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