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Agencies of Education: Meaning And Classification

Meaning of Agencies of Education : Agencies of education refer to organizations that are responsible for overseeing and regulating education within a specific jurisdiction or geographical area. The specific roles and responsibilities of these agencies vary depending on the country, but common functions include:

Learning Theory Of Bandura

Albert Bandura is a renowned psychologist and educational theorist who is best known for his Social Learning Theory, also known as the Social Cognitive Theory.

Education philosophy of Mahatma Gandhi

Mahatma Gandhi's philosophy of education was based on his belief that education should aim to cultivate the "whole person" - the body, mind, and spirit. He believed in the importance of practical skills, manual work, and self-sufficiency, as well as intellectual development and character building.

पश्चिमी दार्शनिक प्रणाली (Western Philosophical System)

  पश्चिमी दार्शनिक प्रणाली (Western Philosophical System) दर्शन सम्प्रदायों में पाश्चात्य भारतीय को दर्शन किया गया है जिसमें पाश्चात्य दर्शन के ऊर्ध्वाधर विकास का अनुसरण करता है क्योंकि पाश्चात्य दर्शन का विकास आश्चर्यजनक वस्तुओं एवं क्रियाओं को देखने से उत्पन्न कौतूहल (जिज्ञासा) को शान्त करने के प्रत्यय के रूप में हुआ है तथा पाश्चात्य दर्शन में मूल्य मीमांसा या तत्त्व मीमांसा के पहलुओं के प्रति बौद्धिक उत्सुकता पाई जाती है। पाश्चात्य दर्शन का उद्भव स्वयं को जानो से हुआ है जिसका उल्लेख अपोलो के मन्दिर में लिखे लेख में मिलता है। अतः पाश्चात्य दार्शनिक सम्प्रदायों को समझने के लिए हमें इसके इतिहास पर प्रकाश डालना अति आवश्यक है। इस अवधारणा को ध्यान में रखते हुए हम विभिन्न पाश्चात्य सम्प्रदायों के दर्शन का वर्णन आगे करने जा रहे हैं -

हिंदी शिक्षण ( Hindi Pedagogy For CTET )

भाषा (Language) भाषा हमारे विचारों को व्यक्त करने तथा दूसरों के विचारों को समझने का एक साधन है। केवल संप्रेषण का माध्यम ही नहीं इसके अन्य कुछ प्रकार्य है:  1. भाषा विचारों के आदान-प्रदान के साधन के रूप में 2. भाषा सामाजिक जीवन को सार्थक करने के रूप में 3. भाषा ज्ञान प्राप्ति के साधन के रूप में  4. भाषा साहित्य, कला, संस्कृति और सभ्यता को विकसित करने में सहायक के रूप में

माँग-आधारित परीक्षा या ऑन डिमांड परीक्षा (On Demand Exam)

माँग-आधारित परीक्षा (On Demand Exam) - ‘माँग-आधारित परीक्षा’ या ‘ऑन डिमांड परीक्षा‘ उस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है जिसके अनुसार जब एक विद्यार्थी को आवश्यकता या सुविधा हो तो उसके अनुसार उसकी माँग होने पर ही उसकी परीक्षा ली जाए। परीक्षा या आंकलन के इस वैकल्पिक स्वरूप को शुरू करने की जरूरत परंपरागत परीक्षा प्रणाली में आवश्यक लचीलापन लाने की जरूरत के कारण हो महसूस की गई। यह तो एक खुला तथ्य है कि पूर्ण वर्ष में एक निश्चित तिथि पर एक बार या दो बार परीक्षा लेने की परंपरागत प्रणाली अधिगमकर्ता के आंकलन में खुलापन और लचीलापन के मापदंड को प्राप्त नहीं कर सकती है। ऑन-डिमांड परीक्षा की अवधारणा विद्यार्थियों को जरूरी लचीलापन, खुलापन और स्वतंत्रता देने के विचार के कारण ही अस्तित्व में आई, जिससे विद्यार्थियों का अपनी अधिगम गति के अनुसार मूल्यांकन या आंकलन किया जा सके।

ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam)

  ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam) - आज तकनीकी विकास की जो गति है उसी का परिणाम है कि जीवन के अधिकांश क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, फिर भला शिक्षा का क्षेत्र इससे कैसे अछूता रह सकता है। परीक्षा कार्य को गति प्रदान करने के लिए और मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यंत आवश्यक हो गया है। 

ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System)

परिचय —  शिक्षा में छात्रों द्वारा की गई प्रगति और अधिकांश का मूल्यांकन अति आवश्यक और अनिवार्य है। अध्यापकों के लिये भी यह जानना उपयोगी और सन्तोषप्रद होता है कि उनके शिक्षण से उनके विद्यार्थी कितना लाभान्वित हुये हैं। इसके अतिरिक्त अभिभावक भी यह जानने के लिये उत्सुक रहते हैं कि उनके बच्चों ने कैसी प्रगति की है। इसे जानकर शिक्षक और अभिभावक बच्चों का सही मार्ग दर्शन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को भी अपनी शैक्षिक उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है जिससे वे अपनी शैक्षिक योजनायें उसी के अनुसार बनाते हैं। हमारे देश में वर्षों से इसके लिये परीक्षाओं की व्यवस्था होती रही है। जिसमें छात्र प्रश्न पत्रों में दिये गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं और परीक्षकों द्वारा उन्हें अंक प्रदान किये जाते रहे हैं। यह अंक 0 से 100 तक के प्राप्तांक हो सकते हैं। इनके आधार पर पूर्व निर्धारित मनचाहे विभाजन के आधार पर छात्रों को प्रथम, द्वितीय या तृतीय श्रेणी प्रदान कर दी जाती है। यह प्रणाली वर्षों से बिना किसी संशोधन या परिवर्धन के चली आ रही है, जिसका कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार नहीं है। 

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