शैक्षिक अवसरों की समानता (Equality Of Educational Opportunities)
भारत में सभी बच्चों को बिना किसी भेद-भाव के शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर एवं सुविधाएँ प्रदान करना ही शैक्षिक अवसरों की समानता है। समान अवसर एवं समान सुविधाओं के सम्बन्ध में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं।
भारतीय संविधान की धारा 29 (2) के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है कि राज्य द्वारा घोषित या राज्यनीति से सहायता प्राप्त करने या किसी शिक्षा संस्था में किसी नागरिक को धर्म, प्रजाति, जाति, भाषा या उनमें से किसी एक के आधार पर प्रवेश देने से नहीं रोका जाए। अतः समानता का अर्थ यह है कि विशेष अधिकार वाला वर्ग न रहे तथा सबको उन्नति के समान अवसर मिलें। शिक्षा आयोग (1964-66) के अनुसार,
"जो भी समाज सामाजिक न्याय को अत्यन्त आदर्श मानता है, जन साधारण की स्थिति में सुधार, करने तथा समस्त योग्य व्यक्तियों को शिक्षित करने को उत्सुक है, उसे यह व्यवस्था करनी होगी कि जनता के सभी वर्गों को अवसर व अधिकाधिक समता प्राप्त होती जाए. जिससे वह सुविधापूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।"
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सुविधाएँ व्यक्तियों की योग्यता के अनुसार होनी चाहिए नहीं तो व्यक्ति उन अवसरों का दुरुपयोग भी कर सकता है। सबके लिए अवसरों की समानता के अभाव में प्रजातन्त्र एक व्यर्थ अवधारणा हो सकती है। अन्तत कहा जा सकता है कि "शैक्षिक अवसरों की समानता का अर्थ है।" राज्य द्वारा देश के सभी बालकों के लिए स्थान, जाति, धर्म अथवा लिंग आदि किसी भी आधार पर भेद किए बिना एक निश्चित स्तर तक की शिक्षा अनिवार्य एवं निःशुल्क रूप से सुलभ कराना तथा शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली कठिनाईयों का निवारण करना। साथ ही साथ देश के सभी बच्चों एवं युवकों को इससे आगे की शिक्षा उनकी रुचि, रुझान, योग्यता एवं क्षमता आदि आवश्यकतानुसार सुलभ कराना तथा शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली उनकी कठिनाईयों का निवारण करना।
(Equality Of Educational Opportunities) |
शैक्षिक अवसरों की समानता की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1) देश के सभी नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार प्राप्त है। शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। अतः शिक्षा प्राप्त करने हेतु कई नियमों व कानूनों का निर्माण किया गया है।
2) प्रजातन्त्र की सफलता का आधार समानता ही है। यदि प्रजातन्त्र को सफल बनाना है तो नागरिकों को शिक्षा प्राप्त करके विकसित होने का समान अवसर उपलब्ध कराना होगा।
3) राष्ट्र का विकास नागरिकों के विकास पर निर्भर होता है तथा राष्ट्र के विकास की शक्ति शिक्षा है। इसलिए नागरिकों के प्रति भेदभाव के हीन दृष्टि को खत्म करना होगा।
4) शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जो नागरिकों के व्यक्त्तित्त्व का पूर्ण विकास करता है इसलिए सबकों शिक्षा का समान अवसर मिलना चाहिए।
समानता के क्षेत्र (Areas of Equality) -
समानता का क्षेत्र निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1) नागरिक अधिकार- इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को खतन्त्रतापूर्वक जीवन यापन करने तथा अपने अधिकारों का उपयोग करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। उसे प्रताड़ित करना, यातना देना एवं दण्ड देना निषेध है।
2) राजनीतिक अधिकार- इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को वोट डालने का अधिकार प्राप्त है वह अपनी इच्छानुसार अपने नेता का चयन कर सकता है तथा अपने अधिकारों का पूर्ण लाभ उठा सकता है।
3) आर्थिक अधिकार- प्रत्येक नागरिक को यूनियन बनाने का तथा सम्पत्ति को खरीदने 3 एवं बेचने का अधिकार है।
4) सामाजिक अधिकार- इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को समाज में अपनी इच्छानुसार किसी भी वर्ग से विवाह करने के अधिकार प्राप्त है।
5) सांस्कृतिक अधिकार- इसके अन्तर्गत व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के सामुदायिक क्रिया कलापों तथा अभियानों में स्वतन्त्रतापूर्वक भाग लेने का अधिकार है।
6) विधिक अधिकार- इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक भ्रष्टाचार के खिलाफ या सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज उठा सकता है तथा उसकी न्यायिक जाँच भी करा सकता है।
वर्तमान समय में शैक्षिक अवसरों की समानता लोकतन्त्रीय देशों के लिए अति आवश्यक है। इसके बिना लोकतन्त्र अर्थहीन हो जाएगा। हमारे लोकतन्त्रीय देश में इसकी आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है-
1) लोकतन्त्र की रक्षा के लिए- लोकतन्त्र की सफलता देश के नागरिकों की योग्यता एवं क्षमता पर निर्भर होती है हमारे देश में रेगिस्तान, पहाड एवं जगलों में रहने वालों की संख्या बहुत अधिक है, इसलिए शिक्षा सर्वसुलभ नहीं है। अतः यह आवश्यक है कि उपेक्षित निर्धन एवं दूर-दराज में रहने वालों की शिक्षण सुविधाएँ प्रदान की जाएँ, उन्हें लोकतन्त्रीय मूल्यों का ज्ञान कराया जाए तथा उनमें सोचने समझने तथा निर्णय लेने की शुक्ति कर विश्वास किया जाए तभी देश में लोकतन्त्र सफल हो सकता है।
2) व्यक्तियों के वैयक्तिक विकास के लिए- प्रत्येक व्यक्ति को उनके व्यक्त्तित्त्व के विकास का स्वतन्त्र अवसर देकर उनमें व्यक्तित्व का आदर करता है। हमारे देश की आधे से अधिक जनसंख्या पिछड़ी, निर्धन एवं अशिक्षित है। यदि सच में प्रत्येक व्यक्ति को विकास के अवसर प्रदान करने हैं तो सुभी को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर एवं सुविधाएँ प्रदान करनी होगी।
3) वर्गभेद की समाप्ति के लिए- स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले शिक्षा केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित थी जिसके कारण प्रत्येक क्षेत्र में उच्च वर्ग का अधिकार बढ़ता गया तथा निम्न वर्ग के व्यक्ति पिछड़ते गए जिससे देश में वर्ग भेद का विस्तार हो गया। इस वर्ग भेद की समाप्ति के लिए सभी वर्ग के बच्चों एवं युवकों को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर एवं सुविधाएँ प्राप्त करना आवश्यक होता है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 29 में स्पष्ट रूप से घोषणा की गई है कि राज्य द्वारा पोषित अथवा आर्थिक सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षा संस्था में किसी भी नागरिक को धर्म, जाति तथा वंश के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जाएगा।
4) समाज के उन्नयन के लिए- लोकतन्त्र पूरे राष्ट्र को एक समाज मानता है तथा उसे सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज के रूप में विकसित करने में विश्वास करता है, जब तक देश के प्रत्येक नागरिक को शिक्षित नहीं किया जाता तब तक यह सम्भव नहीं है। इसलिए देश में शैक्षिक अवसरों की समानता की बहुत ही आवश्यकता है।
5) राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए- किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास दो तुत्त्वों प्राकृतिक संसाधन तथा मानव संसाधन पर निर्भर होता है। मानव संसाधन का विकास शिक्षा द्वारा होता है तथा प्राकृतिक संसाधन की देन है। जिस देश में जितनी ही अच्छी शिक्षा व्यवस्था होगी वह राष्ट्र उतना ही तेजी से आर्थिक विकास करेगा
हमारे देश में शैक्षिक अवसरों की समानता प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए है लेकिन आज भी शिक्षा के क्षेत्र में समानता लाने के लिए अनेक कठिनाइयाँ अनुभव की जा है। अहम शैक्षिक अवसरों की समानताओं से सम्बन्धित मुद्दे एवं चिन्तालों के प्रमुख कारणों का अध्ययन निम्नलिखित प्रकार से करेंगे।
1) लैंगिक भेदभाव- भारत में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद सभी शैक्षिक स्तरों पर संख्यात्मकविकास हुआ, साथ ही साथ नारी शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया गया है। जिसके फूलस्वरूप बालिकाओं के नामांकन में भी वृद्धि हुई है। लेकिन फिर भी आज लड़कों की तुलना में लड़कियों के नामांकन का प्रतिशत बहुत कम है। नई शिक्षा नीति 1986 के समय यह स्पष्ट हुआ कि अखिल भारतीय स्तर पर स्कूल न जाने वाले 6-14 वर्ष के बालकों की संख्या 42% थी जबकि बालिकाओं की संख्या 62% थी। शहरों की अपेक्षा गाँवों में लिंगभेद का अन्तर और अधिक सोचनीय अवस्था में थी। गाँवों में बालिकाओं के स्कूल न जाने की संख्या 70% तक आँकी गई।
3) आर्थिक समस्याएँ- उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर देश की 50% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही हैं। निर्धन परिवारों के पास बच्चों के पालन-पोषण के बाद इतना धन नहीं बचता है कि वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान कर सकें। शिक्षा पर धन व्यय करने में समर्थ न होने के कारण सम्पन्न परिवार के बच्चों की अपेक्षा निर्धन परिवार के बच्चों को कम शैक्षिक अवसर उपलब्ध हो जाते हैं। गरीब परिवार अपने बच्चों को छोटी आयु में ही किसी रोजगार में लगा देना उपयुक्त समझते हैं जिसके कारण उन्हें शैक्षिक अवसर नहीं मिल पाते हैं।
4) प्रादेशिक समस्याएँ- शैक्षिक अवसरों की समानता से सम्बन्धित प्रमुख समस्या प्रादेशिक असन्तुलन है। शैक्षिक विकास सभी प्रदेशों में समान नहीं है। प्रादेशिक असन्तुलन के पीछे आर्थिक, सामाजिक भौगोलिक एवं राजनैतिक कारण भी हो सकते हैं। उदाहराणार्थ, बिहार, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ प्रदेश है।
इन क्षेत्रों पर भौगोलिक प्रमाण भी हैं। जैसे राजस्थान में रेत के टीले काफी दूर तक फैले हुए हैं जिससे आने-जाने की असुविधा होने के कारण शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती है।
5) शारीरिक दिव्यांगता- शारीरिक दिव्यांगता के कारण भी शैक्षिक अवसरों को प्राप्त करने में बाधा उत्पन्न होती है। विभिन्न प्रकार की दिव्यांगता वाले छात्रों की संख्या भी बहुत अधिक है। शारीरिक दिव्यांग बालकों में दृष्टिहीन, लूले-लंगडे, गूंगे-बहरे आदिं सम्मिलित हैं। इन बालकों को अपने शारीरिक दोषों के कारण शिक्षा के समान अवसर नहीं उपलब्ध हो पाते हैं।
6) घर का दूषित वातावरण- शैक्षिक समानता में घर का दूषित वातावरण भी बाधा उत्पन्न करता है। घर का वातावरण विभिन्न कारणों से दूषित हो जाता है जैसे निर्धनता, अशिक्षा, बच्चों की अधिक संख्या, पति-पत्नी के बीच कलह. पारिवारिक कलह, व्यभिचार आदि। दूषित वातावरण में पलने वाले बच्चे उत्तम शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। गन्दी बस्ती में रहने वाले बच्चों को शैक्षिक समानता के दायरे में ले आना था शैक्षिक अवसरों की समानता प्रदान करना एक समस्या है।
7) मानसिक असन्तुलन- जो बालक मानसिक दृष्टि से सामान्य नहीं हैं, ये शिक्षा अवसरों से वंचित रह जाते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि इनके लिए अलग विद्यालयों का अभाव है। हमारे देश में मानसिक रूप से पीडित बालकों की संख्या लगभग 20 लाख है।
उपरोक्त बिन्दुओं से स्पष्ट होता है कि शैक्षिक अवसरों में समानता लाने में विभि असमानताएँ ही बाधक तत्व रही हैं चाहे असमानताओं का कारण वातावरण हो या वशानुक्रम।
शैक्षिक अवसरों में समानता लाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
(Selection of Students on the Basis of their Abilities)- शिक्षा में समानता लाने के लिए उच्च स्तरीय शिक्षा लिए योग्यता के आधार पर चुनाव किया जाना चाहिए। किसी के साथ, जाति, भाषा रंग एवं लिंग आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाि ऐसा करने पर लोगों का उच्च शिक्षा की ओर झुकाव बढ़ेगा तथा वे अपने जीव आगे बढ़ सकते हैं।
2) सामान्य विद्यालय प्रणाली (General School System)- शिक्षा में समानता लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय माध्यमिक शिक्षा आयोग, कोठारी आयोग नई शिक्षा नीति में अनेक सुझाव दिए गए हैं। इनके अनुसार शिक्षा सरल व उर्ज दूग से प्रदान की जानी चाहिए। कोई भी संस्था प्रवेश के समय किसी भी बच्चे साथ जाति, धर्म, भाषा, रंग एवं लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगे। शैक्षिक विकास के लिए समय-समय पर नीतियों का निर्माण किया जाए जितने शिक्षा का सामान्यीकरण किया जा सके।
3) प्रौढ़ शिक्षा का प्रावधान (Provision of Adult Education)- शैक्षिक समानता लिए प्रौढ शिक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि बच्चों को शिक्षित करने के पहले उ माता-पिता को शिक्षित करने की आवश्यकता है। इस दिशा में विशेष प्रयास । जाने चाहिए प्रत्येक शिक्षित नागरिक अपने देश के विकास में अपना योगदान सकता है। शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। यदि कोई व्य किसी कारणवश शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाया है तो उसे प्रौढ़ शिक्षा द्वारा शिक्षित ॥ जा सकता है। सरकार को इसके लिए प्रौढ़ शिक्षा संस्थानों का निर्माण व चाहिए। इसके अतिरिक्त समाज सेवी संस्थाओं के द्वारा भी प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्र चलाया जा सकता है।
(Efforts for Attainment Constitutional Objectives)- शैक्षिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने के यह आवश्यक है कि इसके लिए सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है। संनि के द्वारा लोगों को शैक्षिक अधिकार की सुविधाएँ भी दी गई है। इस लक्ष्य को तक सफल नहीं बनाया जा सकता है जब तक लोग उसके प्रति जागरुक न संविधान द्वारा बनाई गई नीतियों को समय-समय पर आवश्यकतानुसार किया किया जाना चाहिए। देश के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह शिक्ष प्राप्त करने में व उसका विस्तार करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाए।
शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए सरकारी प्रयास -
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की प्रगति और विकास के लिए महत्वपूर्ण आधार है। शिक्षा के माध्यम से ही समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
भारत सरकार शिक्षा के क्षेत्र में समानता स्थापित करने के लिए अनेक प्रयास कर रही है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रयास निम्नलिखित हैं:
1. सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए):
- यह भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना है।
- उदाहरण: इस कार्यक्रम के तहत, 2022-23 में 1.16 करोड़ से अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
2. मिड-डे मील योजना:
- यह योजना सरकारी स्कूलों में 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को दिन में एक बार गर्म और पौष्टिक भोजन प्रदान करती है।
- उदाहरण: इस योजना के तहत, 2022-23 में 11.8 करोड़ से अधिक बच्चों को मिड-डे मील प्रदान किया गया था।
3. समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए):
- यह एसएसए का एक उन्नत संस्करण है, जो शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और समानता लाने पर केंद्रित है।
- उदाहरण: इस कार्यक्रम के तहत, 2022-23 में 1.5 लाख से अधिक स्कूलों में शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए धन मुहैया कराया गया था।
4. शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई):
- यह अधिनियम 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
- उदाहरण: इस अधिनियम के तहत, 2022-23 में 25% से अधिक सीटें निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के लिए आरक्षित थीं।
5. लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं:
- सरकार लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है, जैसे कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, आदि।
- उदाहरण: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत, 2022-23 में 6.4 करोड़ से अधिक लड़कियों को लाभान्वित किया गया था।
इन प्रयासों के फलस्वरूप:
- भारत में शिक्षा का स्तर बढ़ा है।
- साक्षरता दर में वृद्धि हुई है।
- लिंग अंतराल कम हुआ है।
- गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा तक पहुंच प्राप्त हुई है।
हालांकि, शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियां हैं:
- शिक्षा की गुणवत्ता में कमी
- शिक्षकों की कमी
- डिजिटल शिक्षा तक पहुंच का अभाव
- गरीबी और सामाजिक-आर्थिक असमानता
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार को और अधिक प्रयास करने होंगे:
- शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण
- स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार
- डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना
- गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा तक पहुंच प्रदान करना
शिक्षा के क्षेत्र में समानता स्थापित करने के लिए सरकार अनेक प्रयास कर रही है। इन प्रयासों के फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आए हैं।
हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां हैं जिनका सामना करने के लिए सरकार को और अधिक प्रयास करने होंगे.
यह भी ध्यान रखना होगा कि:
- शिक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्गों की सामूहिक जिम्मेदारी है।
- शिक्षा के क्षेत्र में समानता स्थापित करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।
निष्कर्ष -
शिक्षा में समानता प्राप्त करना राष्ट्रीय विकास का एक अनिवार्य आधार है। नामांकन दर में वृद्धि उत्साहजनक है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित किए बिना, सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सभी बच्चों के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त नहीं किया जा सकता। शिक्षकों के निरंतर प्रशिक्षण और स्कूली बुनियादी ढांचे के उन्नयन के साथ-साथ, डिजिटल शिक्षा को अपनाना, गरीबी कम करने के कार्यक्रम और लक्षित सामाजिक पहल समावेशी शिक्षा प्रणाली के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इसके अतिरिक्त, निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना न केवल संसाधनों में वृद्धि करेगा बल्कि नवीन शिक्षण पद्धतियों को भी प्रोत्साहित करेगा। यह बहुआयामी दृष्टिकोण शिक्षा के क्षेत्र में एक समान अवसर का मैदान तैयार करेगा, जहां प्रत्येक बच्चा अपनी क्षमता का पूरा उपयोग कर सके और अपने सपनों को साकार करने के लिए सशक्त हो सके। इस प्रकार, एक समावेशी शिक्षा प्रणाली न केवल युवाओं का भविष्य उज्जवल करेगी बल्कि राष्ट्र के समग्र विकास में भी योगदान देगी।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें