पाठ्यक्रम और जेण्डर संवेदनशीलता (Curriculum And Gender Sensitivity)

प्रश्न - पाठ्यक्रम किस प्रकार से जेण्डर संवेदनशील बनाने में सहायक हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।


उत्तर-    पाठ्यक्रम सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का मूलाधार है। बिना पाठ्यक्रम के हम किसी भी शैक्षिक उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकते। पाठ्‌यक्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति सम्बन्धी उद्देश्यों एवं शैक्षिक सेवाओं के वितरण के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। पाठ्यक्रम शिक्षा के उद्देश्य, विषय- वस्तु, पाठ प्रदर्शन की अवधि एवं तरीकों तथा शिक्षाशास्त्रियों को कैसे विषय-वस्तु पढ़ानी है एवं कैसे शैक्षिक परिणामों का मूल्यांकन करना है आदि को निर्धारण सम्बन्धी मार्गदर्शन प्रदान करता है। राष्ट्रीय पाठ्यक्रम प्रचलित सामाजित एवं लैंगिक विभिन्नताओं को एवं परम्परागत लैंगिक रूढ़िवादों को अव्यक्त रूप से परिपुष्ट कर अधिगम विभिन्नताओं सम्बन्धी आवश्यकताओं की उपेक्षा कर और साथ ही साथ पूरे देश में लड़कियों एवं लड़कों पर आधारित अधिगम शैली को प्रोत्साहित करता है। वैकल्पिक रूप से राष्ट्रीय पाठ्यक्रम महिलाओं एवं पुरुषों के मध्य समानता के बारे में सकारात्मक संदेश को विकसित करने का एक वाहक हो सकता है। 


शिक्षाशास्त्रियों के लिए पाठ्यक्रम विसंयोजन एक प्रमुख मुद्दा है। विश्वभर में लड़के एवं लड़कियाँ अलग-अलग अध्ययन आधारित विषय चुन रहे हैं। जैसे कि लड़के इंजीनियरिंग, विज्ञान एवं कृषि आधारित विषयों में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जबकि लड़कियों का स्वास्थ्य एवं शिक्षा अध्ययन सम्बन्धी विषयों की तरफ ध्यान केन्द्रित है। ये पाठ्यक्रम आधारित लैंगिक विभिन्नताएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये 'भावी रोजगार एवं आय आधारित सार्थक परिणाम व्यक्त करती हैं। कुछ मामलों में अनिवार्य पाठ्यक्रम 'सेक्स' के आधार पर भिन्न होता है, जैसेकि गृहविज्ञान तथा अर्थशास्त्र लड़कियों के लिए एवं कृषि तकनीकी लड़कों के लिए तथा इसी प्रकार साधारणतया लिंग आधारित संवेदनशीलता और प्रासंगिक विषय-सामग्री एवं अध्ययन की विधियाँ, अध्यापकों की अपेक्षाएँ आर्थिक विषय एवं सामाजिक मूल्य आदि सभी विद्यार्थियों के चुनाव को प्रभावित करते हैं।


पाठ्यक्रम दो मुख्य लैंगिकता सम्बन्धी आधारों पर संरचित किया जाता है- 

1. विभिन्न विषय पुरुषत्व एवं नारीत्व से सम्बन्धित होते हैं।

2. अध्यापक, लड़का या लड़की होने सम्बन्धी आधार पर अलग-अलग विषय एवं अलग- अलग व्यवहार तरीकों से अध्ययन करवाते हैं। 


अधिकांश पाठ्यक्रम क्षेत्र, एक लिंग या दूसरे लिंग क्षेत्रों से सम्बन्धित होता है। उदाहरण के लिए बहुत-से पश्चिमी देशों से गणित एवं विज्ञान के साथ-साथ तकनीकी पुरुषत्व आधारित विषय के रूप में देखे जाते हैं। मानविकी एवं भाषाएँ (राष्ट्रीय भाषाएँ तथा आधुनिक विदेशी भाषाएँ) नारीत्व आधारित विषय स्वीकार किए जाते हैं। यह पाठ्यक्रम आधारित विशिष्टता उपलब्धि से सम्बन्धित नहीं होती। उदाहरण के लिए लड़कों एवं लड़कियों में गणित आधारित उपलब्धि लगभग समान है। जबकि गणित दृढ़ता से पुरुषत्व के रूप में चिह्नित किया जाता है। व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी विशेषतः दृढ़तापूर्वक लैंगिकता आधारित है। इसका परिणाम यह है कि जहाँ पर विद्यार्थी व्यावसायिक विषयों का चुनाव करते हैं, वहाँ पर उनको एक या एक से अधिक एकल सेक्स आधारित कक्षाओं तक पहुँचने में शिक्षित किया जा रहा है।

यहाँ पर यह समझना बहुत महत्त्वपूर्ण है कि यह लैंगिक अंकन अपरिवर्तनीय नहीं है जिसको समाज के द्वारा मध्यस्थता प्रदान की जाती है। इस प्रकार यह पाठ्यक्रम उच्च स्तर आधारित विषय पुरुषत्व से सम्बन्धित एवं निम्न स्तर आधारित विषय नारीत्व से सम्बन्धित प्रदर्शित करता है।

इस लैंगिक आधारित पाठ्यक्रम का यह परिणाम हुआ कि यदि युवा लोग अन्य लिंग नामांकित विषयों में सफलता प्राप्त कर लेते थे तो वे असहज महसूस करते थे। इसका कारण उनकी उपलब्धि बाधित हुई एवं इसके साथ ही वे विद्यार्थी इन विषयों के अतिरिक्त जल्द से जल्द जो विषय उनके लिए थे उनका चुनाव करने हेतु निर्देशित हुए। इससे सबसे बड़ी समस्या यह पैदा हुई कि लड़कियाँ एवं युवा महिलाएँ गणित, विज्ञान एवं तकनीकी आधारित विषयों की तरफ कम प्रवृत्त हुईं, परिणामस्वरूप उनके लिए उच्च स्तर एवं बाद में बेहतर कैरियर के रास्ते बन्द हो गए। इसी प्रकार से लड़के मानविकी एवं आधुनिक विदेशी भाषाओं के अतिरिक्त विषय चुनाव की तरफ प्रवृत्त हुए, जिससे उनके लिए इस विषय सम्बन्धी विकल्प समाप्त हो गए।


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