The Buddha Way – बुद्ध का मार्ग
बुद्ध के अनुसार *परमार्थिक सत्ता* जैसे *आत्मा*, *परमात्मा*, *ईश्वर*, *पुनर्जन्म* और *शाश्वत कर्मफल* केवल विचारात्मक कल्पनाएँ हैं जिनका आधार केवल *अविद्या* (अज्ञान) है। ये तत्त्व जो अन्य दर्शनों में अंतिम सत्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं बुद्ध के मत में केवल मानसिक अवधारणाएँ हैं जो *दुःख* की श्रृंखला को पोषित करती हैं।
बौद्ध दृष्टिकोण में न तो *आत्मा* की कोई स्व-स्वरूप सत्ता है और न ही कोई चिरस्थायी *ईश्वर*। यहाँ *अनात्म* (अनात्मवाद) का सिद्धांत केन्द्रीय है जो यह प्रतिपादित करता है कि सभी घटनाएँ *अनित्य* (anicca) *दुःखमय* (dukkha) और *निरात्मा* (anattā) हैं।
बुद्ध का दर्शन किसी पारलौकिक रहस्यमयी सत्ता की खोज नहीं करता बल्कि वह जीवन के वास्तविक अनुभवों पर आधारित है। उन्होंने कहा *"एहि पस्सिको"* अर्थात "आओ और देखो"। उनका सम्पूर्ण मार्ग जीवन के सबसे मूलभूत प्रश्न *"दुःख"* को समझने और उससे मुक्त होने पर केन्द्रित है।
*चार आर्य सत्यों* (चत्वारि आर्यसत्यानि) के माध्यम से बुद्ध ने यह बताया कि जीवन *दुःखमय* है दुःख का कारण *तृष्णा* है उसका निरोध संभव है और उस निरोध की ओर जाने वाला मार्ग *अष्टांगिक मार्ग* है जिसमें *सम्यक दृष्टि*, *सम्यक संकल्प*, *सम्यक वाणी*, *सम्यक कर्म*, *सम्यक आजीविका*, *सम्यक प्रयास*, *सम्यक स्मृति* और *सम्यक समाधि* सम्मिलित हैं।
यह मार्ग व्यक्ति को *ध्यान* (समाधि) *नैतिक शील* (शील) और *अन्तर्दृष्टि* (प्रज्ञा) के द्वारा भीतर से रूपांतरित करता है। यहाँ मुक्ति कोई परलोक की स्थिति नहीं बल्कि यहीं इसी जीवन में संभव अनुभव है जिसे *निर्वाण* कहते हैं। यह *तृष्णा*, *क्लेश* और *अहंकार* से पूर्ण विमुक्ति की अवस्था है।
इस प्रकार बुद्ध का *सम्यक दर्शन* न केवल दार्शनिक गहराई से युक्त है बल्कि अत्यंत व्यावहारिक भी है। वह न तो परलोक की आशा पर निर्भर करता है और न ही अदृश्य सत्ता के भय पर। वह मनुष्य को उसके ही भीतर *बोधि* (ज्ञान) की संभावनाओं से परिचित कराता है और कहता है *"अप्प दीपो भव"* अर्थात "स्वयं अपना दीपक बनो।"
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