शिक्षा का लक्ष्य (Aims Of Education)

इस लेख में निम्न बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है -

• शिक्षा का उद्देश्य 
(Aim Of Education)

• शिक्षा के व्यक्तिगत और सामाजिक उद्देश्य
(Individual & Social Aims Of Education)

• शिक्षा का अंतिम और तात्कालिक उद्देश्य
(Ultimate & Immediate Aims Of Education)

• लोकतांत्रिक नागरिकता विकसित करने के शैक्षिक उद्देश्य
(Educational Aims Of Developing Democratic Citizenship)




शिक्षा का लक्ष्य
(Aims Of Education)

शिक्षा के लक्ष्य उसके कार्यक्षेत्र तक सीमित नहीं हैं। जीवन के विभिन्न लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के लक्ष्य भी भिन्न हो सकते हैं। शिक्षा के लक्ष्य तात्कालिक अथवा दीर्घकालिक हो सकते हैं। शिक्षा के तात्कालिक लक्ष्य थोड़े समय में प्राप्त किये जा सकते हैं, जैसे कि किसी अकादमिक कार्यक्रम के पूरा होने के तुरंत बाद, जबकि शिक्षा के दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति में बहुत लंबा समय लगता है। उदाहरण के लिए, किसी के लिए 'दाल - रोटी' की व्यवस्था करना तथा स्वयं के लिए सिर पर छत का होना, स्वास्थ्य, सुरक्षा सुनिश्चित करना शिक्षा के तात्कालिक लक्ष्य हैं, वहीं ‘राष्ट्रीय एकता’, ‘भावनात्मक एकीकरण’, ‘विश्वबंधुत्व’, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समझ’, आदि शिक्षा के दीर्घकालिक लक्ष्य हैं। ये शिक्षा के व्यापक लक्ष्य हैं। व्यक्तिगत आवश्यकताओं को प्राप्त करने की दृष्टि से शिक्षा के लक्ष्य विशिष्ट हो सकते हैं अथवा समाज या राष्ट्र की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए वे व्यापक हो सकते हैं।



शिक्षा के उद्देश्य तीन महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करते हैं -


  1. वे शैक्षिक प्रक्रिया को दिशा प्रदान करते हैं।
  2. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अध्येताओं को प्रेरित करते हैं।
  3. शैक्षिक प्रक्रिया की प्रभाविता का मूल्यांकन करने हेतु मानदंड प्रदान करते हैं।


स्पष्ट रूप से परिभाषित शैक्षिक उद्देश्य ऐसे शैक्षिक कार्यकलापों निर्दिष्ट कर सकते हैं जैसे वांछनीय शिक्षा के लिए प्रावधान प्रदान करना, अध्यापन अधिगम कार्यकलापों को व्यवस्थित करना तथा अध्येताओं को अधिगम कार्यकलाप तथा अनुभव प्रदान करना। किसी भी समाज में शैक्षिक उद्देश्य वांछनीय व्यवहारों के रूप में बहुमूल्य समझे जाते हैं। इस प्रकार उद्देश्य अभिप्रेरक के रूप में भी कार्य करते हैं और शैक्षिक उद्देश्यों की संप्राप्ति के लिए अध्येताओं में प्रेरणा को स्थिर रख सकते हैं। शैक्षिक प्रक्रिया की सफलता भी इस रूप में मापी जा सकती है कि अध्येताओं और अध्यापकों ने किसी सीमा तक उद्देश्यों को प्राप्त कर लिया है। अतः उद्देश्य शैक्षिक प्रक्रिया के मूल्यांकन के लिए मानदंड प्रदान करते हैं।



शिक्षा का व्यक्तिगत एवं सामाजिक लक्ष्य

(Individual & Social Aims Of Education)


इस खण्ड में हम शिक्षा के व्यक्तिगत तथा सामाजिक लक्ष्यों के विवरण पर चर्चा करेंगे।


1. शिक्षा का व्यक्तिगत लक्ष्य–


व्यक्तिपरक विचारकों के अनुसार, एक व्यक्ति समाज से बढ़कर है। अतः व्यक्तिगत लक्ष्य, व्यक्ति की पूर्ण क्षमताओं तक उसके विकास पर बल देता है। टी . पी . नन्न, जो इस लक्ष्य के प्रबल समर्थक हैं वह जोर देते हैं कि मानव के संसार में कुछ भी अच्छा प्रवेश नहीं करता सिवाय उसके जो कि पुरुषों एवं स्त्रियों के स्वतंत्र गतिविधियों के माध्यम से होता है तथा यह कि शैक्षिक अभ्यासों को अवश्य ही सत्य के अनुरूप ही गढ़ा जाना चाहिए।


उपरोक्त वक्तव्य इस बात पर बल देता है कि शिक्षा को व्यक्तियों का विकास उनकी अभिरूचियों‚ क्षमताओं तथा विशेषज्ञताओं के अनुरूप ही करना चाहिए। प्रकृतिवादी इस बात की वकालत करते हैं कि शिक्षा का अनिवार्य लक्ष्य व्यक्ति का स्वतंत्र प्रगति है। रूसो‚ पेसटॉल्जी, फॉरबेल, टी . पी . नन्न तथा अन्य ने शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य पर जोर दिया है। शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के संकीर्ण तथा व्यापक दोनों ही अर्थ हैं । आईये हम शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के संकीर्ण तथा व्यापक अर्थों को समझें। 


शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ -


शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ व्यक्ति के सर्वांगीण तथा प्राकृतिक विकास पर बल देता है। शिक्षा का व्यक्तिगत लक्ष्य शिक्षा के प्रकृतिवादी विचारों के सिद्धान्तों पर आधारित है। टी.पी. नन्न अपनी पुस्तक 'एजुकेशन' में उल्लेख करते हैं कि शिक्षा को ऐसी परिस्थतियाँ अवश्य सुनिश्चित करनी चाहिए जिनमें वैयक्तिकता सर्वाधिक पूर्णता के साथ विकसित हो। अतः शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ व्यक्ति की अभिरूचियों, क्षमताओं तथा आवश्यकताओं के अनुरूप दिये जाने पर बल देता है जिससे कि व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुरूप एक आजीविका का चयन कर सके।

इसे शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ कहते हैं‚ क्योंकि यह केवल व्यक्ति के बेहतर जीवन तथा उसकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसकें विकास पर केन्द्रित है। 


शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का व्यापक अर्थ –


इसके विपरीत, शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का व्यापक अर्थ मनुष्य के व्यक्तिगत विकास पर जोर देता है जो समाज के विकास में योगदान देता है। जैसा कि एक व्यक्ति विस्तृत समाज का एक अंग है समाज के विकास के बिना व्यक्ति के विकास का कोई अर्थ नहीं है। अतएव समाज का विकास उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि एक बच्चे का व्यक्तिगत विकास। टी.पी. नन्न ने यह रेखांकित किया कि व्यक्ति की शिक्षा का नियोजन व्यक्तिगत हित को प्राप्त करने के साथ-साथ उस समाज के हित को प्राप्त करने के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए कि जिसका कि वह एक अभिन्न अंग है। आगे टी.पी. नन्न उल्लेख करते हैं कि , 'शिक्षा को बच्चे को इस बात में सहायता करनी चाहिए कि वह मानव जीवन की रंग-बिरंगी संपूर्णता में जितनी पूर्णता से संभव हो तथा जितनी भी उसकी प्रकृति उसे अनुमति दे उस अनुसार पूर्ण लाक्षणिक रूप से अपना वास्तविक योगदान दे सके’। यह वक्तव्य इस बात पर बल देता है कि समाज के विकास में व्यक्ति का योगदान शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के व्यापक अर्थ का निर्माण करता है।


शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के समर्थन में तर्क –


निम्नलिखित तर्क शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के समर्थन में हैं- 


1. प्रत्येक व्यक्ति की अभिरूचियाँ, क्षमताएँ तथा मनोवैज्ञानिक अभिलक्षण विशिष्ट होते हैं। अतः उनकी क्षमताओं तथा अभिलक्षणों के अनुसार उनके संपूर्ण विकास के लिए सुविधाएँ एवं अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिए। मनोवैज्ञानिकों द्वारा इस अवधारणा का समर्थन किया जाता है।


2. वैज्ञानिकों ने शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का समर्थन किया है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की विकास के गति के अनुरूप बढ़ता एवं विकास करता है। व्यक्ति का जैविक विकास काफी प्राकृतिक है परन्तु इसे व्यक्ति को मदद देकर समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए।


3. प्रगतिवादियों के अनुसार व्यक्तियों द्वारा अपनी संस्कृति के संरक्षण एवं अगली पीढ़ी में उसके प्रसार के लिए समाज की रचना की जाती है जिससे कि सामाजिक प्रगति निरंतर चलती रहे। यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति का विकास समाज के विकास की ओर ले जाता है । इसलिए, समाज के विकास के लिए व्यक्ति का विकास अनिवार्य है।


4. टी.पी. नन्न, रूसो, फॉरबेल तथा पेसटॉल्जी जैसे प्रख्यात शिक्षाविद् शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य का समर्थन करते हैं। नन्न जोर देकर टिप्पणी करते हैं कि वैयक्तिकता जीवन का आदर्श है। शिक्षा की एक परियोजना को सर्वोच्च प्रकार की उत्कृष्ठता के पोषण में उसकी सफलता से आँकना चाहिए।


5. अच्छे नागरिकों के रूप में स्वयं के विकास के लिए व्यक्ति के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए, लोकतंत्र के समर्थक शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य की अवधारणा का भी समर्थन करते हैं। उनके अनुसार, अच्छे नागरिक अच्छे इंसानों से बनते हैं। अतएव , शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति की विशिष्ट क्षमताओं का विकास होना चाहिए। इसलिए शिक्षा का व्यक्तिगत लक्ष्य स्वयं व्यक्तियों के विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। 


शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के विरोध में तर्क –


निम्नलिखित तर्क शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के विरोध में हैं –

1. एक व्यक्ति समाज का एक सक्रिय सदस्य है। व्यक्ति का अस्तित्व समाज के अस्तित्व के कारण ही है। इसलिए शिक्षा का व्यक्तिगत लक्ष्य द्वितीयक है जबकि शिक्षा का सामाजिक लक्ष्य प्राथमिक जब समाज विकसित होता है, व्यक्ति का विकास स्वभाविक रूप से हो जाता है। इसलिए शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य को शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य की तुलना में कम प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 


2. हर व्यक्ति विशिष्ट होता है। मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त के अनुसार‚ जहाँ तक कि शारीरिक एवं मानसिक अभिलक्षणों की बात करें कोई भी दो व्यक्ति समान नहीं होते। यदि व्यक्तिगत लक्ष्य को महत्त्व दिया जाता है तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न पाठ्यचर्या, विधियाँ तथा तकनीकों की रूपरेखा तैयार करनी होगी, जो कि संभव नहीं है। इसलिए शिक्षा का व्यक्तिगत लक्ष्य अव्यवहारिक लगता है। 


3. शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य के कारण समाज में असंतुलन हो सकता है क्योंकि सामाजिक क्रियाकलाप के कई क्षेत्रों में कुछ लोग अधिक प्रभावशाली होंगे तथा अन्य कमजोर होंगे। व्यक्ति के ऊपर सामाजिक नियंत्रण न्यूनतम हो सकता है तथा इसके कारण समाज के शक्तिसंपन्न तथा वंचितों के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है। 


4. समाज की समावेशी प्रकृति तथा इसका समावेशी विकास समय की माँग है। यदि हम शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य पर जोर देते हैं तो यह समाज की समावेशी वृद्धि तथा विकास को बाधित कर सकता है। इसलिए, समाजिक विकास को समावेशी होना चाहिए, जिसमें समाज के सभी व्यक्ति प्रेम, आनन्द, सहानुभूति, सहयोग तथा नैतिक मूल्यों के साथ रह सकें।



2. शिक्षा का सामाजिक लक्ष्य –


कई शिक्षाविद शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य को शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य से अधिक महत्त्व देते हैं। जैसा कि व्यक्ति समाज का एक अंग है‚ समाज के विकास से व्यक्ति का विकास होगा। प्रख्यात शिक्षाविद रेमॉन्ट का दृष्टिकोण है कि एक एकाकी व्यक्ति कल्पना की एक कपोल कल्पना है, शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य की व्याख्या बहुत अच्छी तरह करता है। 


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ –


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य का संकीर्ण अर्थ इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए सर्वोत्कृष्ठ शक्ति राज्य के पास होनी चाहिए। इस बात को लेकर आशंका हो सकती है कि नागरिकों पर राज्य के अनावश्यक नियंत्रण के कारण व्यक्तिगत अधिकारों का हनन हो सकता है। यह आगे चलकर व्यक्ति की सृजनशीलता को दबा सकता है। व्यक्ति का समाज के द्वारा दमन हो सकता है क्योंकि व्यक्ति को समाज के बनाये नियमों से बंध कर रहना होगा। समाज कुछ व्यक्तियों द्वारा नियंत्रित हो सकता है जो पूरे समाज के लिए मानदंडों, नियमों तथा विनियमों का निर्धारण कर सकते हैं। समाज का यह तबका समाज में प्रमुख स्थान हासिल कर समाज के अन्य सदस्यों पर प्रभाव जमा सकता है। इसलिए, शिक्षा का सामाजिक लक्ष्य अपने संकीर्ण अर्थ में समाज को व्यक्तियों की तुलना में बहुत अधिक महत्त्व देता है। 


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य का व्यापक अर्थ –


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य का व्यापक अर्थ शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य एवं सामाजिक लक्ष्य के बीच का मार्ग लेता है। शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य को लोकतांत्रिक समाजवाद के बराबर माना जाता है। इसका अर्थ है कि समाज एवं व्यक्ति दोनों को बराबर महत्त्व दिया जाएगा। समाज आदर्श होगा तथा व्यक्ति समाज की बेहतरी के लिए कार्य करेगा उसी समय में व्यक्तिगत आवश्यकताओं को समाज द्वारा संबोधित किया जाएगा। व्यक्ति की आवश्यकताओं एव अभिरूचियों को पूरा करने के लिए समाज द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों को प्राथमिकता दी जाएगी। शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य के व्यापक अर्थ में, समाज और व्यक्ति दोनों ही एक दूसरे के विकास के लिए सहयोगपूर्ण तरीके से कार्य करते है।


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य के पक्ष में तर्क –


1. शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये गये हैं –


2. एक व्यक्ति का अस्तित्व समाज के भीतर होता है। एक व्यक्ति की पहचान उस समाज से होती है जहाँ वह रहती / रहती है। अतः समाज को व्यक्ति से अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए। 


3. मानव के बच्चे पशुवत आदतों एवं स्वभाव के साथ जन्म लेते हैं। यह समाज है जो व्यक्ति को एक सामाजिक जीव बनाता है। अतएव, समाज को व्यक्ति से अधिक मूल्यवान समझा जाता है। 


4. एक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पूर्ण करने के लिए समाज के द्वारा पोषित किया जाता है। इसलिए व्यक्ति को समाज की बेहतरी के लिए कार्य करना चाहिए। 


5. संस्कृति का विकास‚ संरक्षण तथा प्रसार समाज के तीन प्रमुख सरोकार हैं। इसलिए, हर व्यक्ति को समाज के इन तीन प्रमुख सरोकारों के लिए कार्य करना चाहिए।


6. यह समाज है जो व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है तथा आवश्कताओं की पूर्ति करता है। इसलिए यह व्यक्ति का दायित्व है कि वह अपने समाज तथा अपनी संस्कृति की रक्षा करे।


रेमॉन्ट के शब्दों में‚ एक एकाकी व्यक्ति कल्पना की एक कपोल कल्पना है। इसलिए, व्यक्तियों को चाहिए कि वे समाज को अवश्य ही स्थिर एवं व्यवस्थित बनायें।


एक कहावत है ‘एकता में शक्ति हैं’। यह सामूहिक जीवन के लाभों को प्रतिबिंबित करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को समाज में साझा सामाजिक मूल्यों साथ कार्य करना तथा रहना चाहिए। 


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य के विरूद्ध तर्क– 


शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य के विरूद्ध तर्क निम्नलिखित है –


1. शिक्षा का सामाजिक लक्ष्य मनोविज्ञान के सिद्धांतों के विरुद्ध जाता है क्योंकि मानव की क्षमता के संदर्भ में व्यक्तिगत भेद तथा मानव विकास के अन्य पहलू समाज द्वारा विचारित नहीं होते। 


2. सामाजिक विकास के वास्तविक योगदानकर्त्ता व्यक्ति है। इसलिए‚ व्यक्ति को समाज से अधिक महत्व दिया जाना चाहिए।


3. सामाजिक विकास के संकीर्ण अर्थ के अनुसार‚ समाज व्यक्ति की तुलना में एक प्रभावी भूमिका अपना लेता है। इसलिए शिक्षा के सामाजिक लक्ष्य की आलोचना की जाती है कि संभव है कि व्यक्ति तथा समाज के प्रति उसके योगदानों को स्वीकार्यता न प्रदान की जाए।


4. समाज तथा राज्य को अत्यधिक महत्त्व दिया जाना व्यक्ति के अधिकारों एवं मूल्यों को कम कर सकता है। समता एवं समानता के मूल्यों तथा शिक्षा के लोकतांत्रिक सिद्धान्तों को समाज द्वारा प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता है यदि समाज तथा राज्य व्यक्ति से अधिक प्रभावशाली हैं।


5. कोई भी समाज उसमें मौजूद व्यक्तियों के विकास के बिना विकसित नहीं हो सकता यदि व्यक्ति की क्षमताएँ‚ जैसे कि बुद्धिमत्ता‚ अभिक्षमता, रवैया, सृजनात्मकता तथा ऐसी अन्य प्रतिभाएँ उपेक्षित हो, तो कोई भी समाज विकसित नहीं हो सकता । इसलिए, शिक्षा का सामाजिक लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब शिक्षा के व्यक्तिगत लक्ष्य को प्रमुखता दी जाती है।



शिक्षा का अंतिम और तत्काल उद्देश्य

(Ultimate & Immediate Aim Of Education)


शिक्षा के परम उद्देश्यों के रूप में, बहुत सारे मूल्य प्रस्तुत किए गए हैं। जिन्हें हमें अंतिम परिणाम के रूप में प्राप्त करना चाहिए, जीवन दर्शन और स्वयं मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ही अन्तिम उद्देश्यों का स्रोत होता है। कुछ विचारकों ने आत्मानुभूति या आत्मसिद्धि को शिक्षा के अंतिम उद्देश्य के रूप में प्रस्तुत किया है। आत्मानुभूति के अंतर्गत व्यक्तियों की अंतःशक्तियों या क्षमताओं को जानना तथा तत्पश्चात् व्यक्तियों की उन अन्तःशक्तियों को प्राप्त करने में सहायता करना आता है। कुछ अन्य विचारक इस अंतिम उद्देश्य को व्यक्तियों की अंतर्जात शक्तियों के सुसंगत विकास के रूप में व्यक्त करते हैं। जो विचारक इस विचार का समर्थन करते हैं उनमें से दो व्यक्ति, महात्मा गांधी तथा पेस्ट्रालॉटसी के नाम प्रमुख हैं। 


एक सर्वव्यापी तथा अंतिम प्रकार का शैक्षिक उद्देश्य प्रस्तुत करने के प्रयास में हर्बर्ट स्पैंसर ने “संपूर्ण रूप से जीने के लिए शिक्षा” का विचार प्रस्तुत किया। आभासिक रूप से यह उद्देश्य शिक्षा के सभी उद्देश्यों को एक उद्देश्य के रूप में समाहित करने का प्रयास करता है। शिक्षा के विकास पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के प्रतिवेदन “Leaning to Be" में लिखा गया है कि "व्यक्ति का एक संपूर्ण व्यक्ति के रूप में शारीरिक, बौद्धिक, संवेगात्मक तथा नीतिपरक नैतिक) एकीकरण शिक्षा के मूलभूत उद्देश्यों की व्यापक परिभाषा है”।| इस उद्देश्य को सार्वभौमिक उद्देश्य के रूप में चित्रित किया गया है। यह एक ऐसा उद्देश्य है जो सभी कालों में सभी समाजों के लिए ठीक बैठ सकता है। हम इस शिक्षा शास्त्रीय आदर्श का वर्णन अथवा संकेत सर्वत्र इतिहास के पन्नों में लगभग सभी देशों में दार्शनिकों तथा नीतिज्ञों में तथा शिक्षा के अन्य विद्वानों तथा द्रष्टाओं में पा सकते हैं । सभी कालों में यह मानवतावादी विचारधारा के अंतर्गत मूलभूत विषयों में से एक कथ्य (Theme) रहा है। भले ही इसका उपयोग उपयुक्त रूप में न किया गया हो परन्तु यह फलदायक रहा है और इसने बहुत सारे श्रेष्ठतम उद्यमों में सहायता की है।” शिक्षा के ऐसे उद्देश्यों ने व्यक्तियों की अपनी नियति के स्वयं निर्माता बनने की क्षमता प्रदान की है।


निर्णायक या अंतिम उद्देश्य वे चरम उद्देश्य होते हैं जिनकी ओर समस्त शैक्षिक प्रक्रियाएँ अभिमुख होती हैं। कुछ विशिष्ट उद्देश्य होते हैं जो जो तात्कालिक शैक्षिक कार्यक्रम का आधार बनते हैं। ऐसे विशिष्ट उद्देश्य सदैव अंतिम उद्देश्यों के अनुरूप होने चाहिए ताकि वे लाभप्रद हो सकें। ये उद्देश्य अंतिम उद्देश्यों की खोज में सोपान या साधन का कार्य करते हैं। 


“Learning to Be" में विशिष्ट या तात्कालिक उद्देश्यों में से कुछ उद्देश्यों की सूची देते हैं , वे हैं –


  1. ज्ञान के उपकरण / साधन प्राप्त करना 
  2. भावात्मक गुणों का विकास विशेषकर व्यक्ति का दूसरे व्यक्तियों के संदर्भ में सौन्दर्यबोध का विकास 
  3. शारीरिक स्वास्थ्य का संवर्धन 


अन्य विशिष्ट उद्देश्य जिनका आजकल के प्रचलित शैक्षिक व्यवहार पर गहरा प्रभाव रहा है उनमें सम्मिलित हैं – 


  1. व्यक्तियों में व्यावसायिक दक्षता से सज्जित करना
  2. व्यक्तियों में एक अच्छे नैतिक चरित्र का विकास करना
  3.  नागरिकता के लिए प्रशिक्षित करना
  4. व्यक्तियों को अपनी संस्कृति से भली भांति परिचित कराना


लोकतांत्रिक नागरिकता के विकास के शैक्षिक उद्देश्य

(Aims Of Developing Democratic Citizenship)


एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शिक्षा के उद्देश्य निश्चित रूप से लोकतांत्रिक आदर्शों सामाजिक व्यवस्था को जारी रखने के लिए शिक्षित व प्रबुद्ध नागरिक वर्ग के निर्माण तथा व्यक्तियों के स्वयं के परितोष के लिए उनकी योग्यताओं के विकास का प्रबंध करते हैं। 


लोकतंत्र में व्यक्तिगत सम्मान के प्रति अटल निष्ठा होती है। व्यक्तियों की योग्यताओं के विकास को एक लोकतंत्र की शिक्षा के उद्देश्यों में उच्च प्राथमिकता दी जाती है, ताकि वे स्वायत्त वयस्क के रूप में, अथवा संपूर्ण मानव के रूप में विकसित हो सकें, ऐसे इंसान जो ठीक से प्यार कर सकें, ठीक से खेल सकें, ठीक से कार्य कर सकें और जिनकी अपेक्षाएँ भी उचित हों क्योंकि सम्यक व्यक्तित्व के निर्माण में स्वतंत्र वृद्धि और विकास को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उद्देश्य समझा गया है। अतः इसके आधार पर दो विशिष्ट उद्देश्य सामने आते हैं जिनके द्वारा व्यक्ति सामाजिक जीवन यापन के लिए सक्षम एवं उपयुक्त बनता है। ये दो उद्देश्य हैं -

  1. व्यावसायिक उद्देश्य
  2. चरित्र निर्माण संबंधी उद्देश्य

व्यावसायिक उद्देश्य की प्राप्ति पर व्यक्ति अपनी आजीविका कमाने में सक्षम हो जाता है तथा इस प्रक्रिया में वह समाज की उत्पादकता को बढ़ाने में योगदान देगा। इसके आधार पर व्यक्ति तथा राष्ट्र दोनों की आर्थिक स्वतंत्रता आश्वस्त हो सकेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) में इसे राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता की अंतिम गारंटी के रूप में समझा गया है। चरित्र निर्माण उद्देश्य के द्वारा नागरिकों में सुदृढ नैतिक व्यक्तित्व तथा अच्छे चरित्र के विकास के प्रयत्न किए जाएंगे। 


एक लोकतांत्रिक राष्ट्र को ऐसे कुशल नागरिकों की आवश्यकता होती है जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सकें। लोकतांत्रिक सामाजिक प्रणाली की अवस्थिति को बनाए रखने के लिए सुविज्ञ (Infomed) तथा प्रबुद्ध नागरिक वर्ग का निर्माण अत्यंत महत्वपूर्ण है। लोकतांत्रिक नागरिकता के विकास के लिए यह अनिवार्य है कि नागरिकों को उनके मूल अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों के लिए शिक्षित किया जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986 ) में स्पष्ट किया गया है कि शिक्षा के द्वारा बच्चों में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों को समझने के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। लोकतंत्र में विभिन्न क्षेत्रों के लिए अग्रणी व्यक्तियों की आवश्यकता भी पड़ती है। अतः शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में नेतृत्व की भावना का विकास करना भी अनिवार्य है। 


अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं की भांति, लोकतंत्र भी अपने आदर्श व मूल्यों के विकास के लिए प्रयत्न करता है। स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व जैसे संजोए हुए लोकतांत्रिक आदर्शों को उन मूल्यों में मुख्य स्थान दिया गया है जिन्हें बच्चों तथा नागरिकों में विकसित किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही इन आदर्शों को समाजवाद तथा पंथनिरपेक्षवाद जैसे आदर्शों के साथ घोषित किया गया है। स्पष्टतः भारत में शिक्षा का उद्देश्य इन सभी आदर्शों तथा मूल्यों का विकास करना या उन्हें प्रोन्नत करना है। किसी अन्य समाज की भांति, एक लोकतांत्रिक समाज को भी समय की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसे समय की दुराग्रही आवश्यकताओं का भी मुकाबला करना पड़ता है। आज लोकतंत्र के सामने बहुत सारी गंभीर समस्याएँ हैं तथा समाज के एक उप निकाय के रूप में शिक्षा लोकतंत्रों तथा अपने नागरिकों को इस योग्य बनाने में सक्षम हो कि वे इन समस्याओं का सामना प्रभावी रूप से कर सकें। ऐसा करने के लिए शिक्षा का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय बोध उत्पन्न करना, शांति के उद्देश्य का समर्थन करना, राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को स्थायी रखना, नागरिकों में जनसंख्या, पर्यावरण के प्रति संगत व विवेकपूर्ण अभिवृत्तियों का निर्माण करना आदि होना चाहिए।


शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य—


लोकतंत्र पर उधृत करते हुए विश्वविद्यालय शिक्षा समिति (1948-49 ) ने यह उल्लेख किया कि लोकतंत्र केवल एक राजनैतिक व्यवस्था नहीं बल्कि जीवन का एक तरीका है। यह बिना जाति, धर्म, लिंग अथवा आर्थिक स्थिति पर ध्यान दिये बिना, हर किसी को समान स्वतंत्रता व समान अधिकारों के सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत एक लोकतांत्रिक देश के शिक्षा के लक्ष्य के निर्धारण को निर्देशित करता है। एक लोकतांत्रिक देश में व्यक्तिगत आवश्यकता एवं सामाजिक आवश्कता के बीच एक संतुलन की आवश्यकता होती है। 


शिक्षा के लोकतांत्रिक लक्ष्य स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, न्याय आदि लोकतांत्रिक मूल्यों को शामिल किये हुए होते हैं, जिन्हें देश के नागरिकों द्वारा सामाजिक तथा राष्ट्रीय विकास के लिए व्यवहार में लाया जाता है। आईये हम शिक्षा के लोकतांत्रिक लक्ष्यों के कुछ पक्षों / तत्त्वों को समझें—


1. समाज के सभी सदस्यों को समान शैक्षिक अवसर दिया जाना चाहिए।


2. एक विशेष स्तर तक बच्चों को अनिवार्य अथवा सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। उदाहरण के लिए भारत में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून 2009, जो सामान्यतया शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के रूप में जाना जाता है,1 अप्रैल 2010 से लागू किया गया‚ 6-14 वर्ष (कक्षा 1 से कक्षा 8 तक) के आयु वर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करता है। यह प्रत्येक लोकतांत्रिक देश का दायित्व है कि वह अपने नागरिकों को एक विशिष्ट स्तर तक निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करे।


3. शिक्षा के लोकतांत्रिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वयस्क शिक्षा का प्रावधान होना चाहिए। वयस्क शिक्षा कार्यक्रम को लागू करने के द्वारा, वयस्क निरक्षर अधिगमकर्ताओं के कौशलों एवं कार्यक्षमता को बढ़ाया जाता है जिससे कि वे देश के विकास में योगदान दे सकें। इसलिए, रात्री पाठशाला, कौशल आधारित अल्पकालिक पाठ्यक्रम तथा अन्य आजीविका प्रशिक्षण प्रदान किये जा सकते हैं।


4. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य संस्थायी स्वायत्तता को बढ़ावा देता है। इसका अर्थ है कि शिक्षा के संस्थानों के पास अपना स्वयं की पाठ्यचर्या विकसित करने तथा अकादमिक कार्यक्रमों को प्रारंभ करने की स्वायत्तता होनी चाहिए।


5. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य शिक्षकों के व्यक्तित्व विकास तथा वृतिक विकास पर जोर देता है। इसलिए शिक्षा व्यवस्था द्वारा शिक्षकों के लिए उन्मुखीकरण, पुनश्चर्या तथा थीम आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों को आयोजित करने की आवश्कता है।


6. छात्रों के सर्वांगीण विकास को प्राप्त करना शिक्षा का अन्य लोकतांत्रिक लक्ष्य है। इसमें छात्र के सभी पक्षों का विकास शामिल है, जो है शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक।


7. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करना भी शिक्षा का एक लोकतांत्रिक लक्ष्य है। शिक्षा के इस लक्ष्य का उद्देश्य नागरिकों को लोकतंत्र राष्ट्रप्रेम के मूल्यों का अभ्यास कराना है और साथ ही उनमें वैश्विक बंधुत्त्व एवं अन्तरर्राष्ट्रीय समझ की भावना लाना है।


8. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य एक गतिशील तथा विविधतापूर्ण पाठ्यचर्या, सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करना,स्थानीय तथा आजीविका संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना तथा खाली समय में की जाने के लिए गतिविधियों का प्रावधान करना भी है।


9. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य विविध प्रकार की शिक्षण पद्धतियों तथा गतिविधियों के क्रियान्वयन पर ध्यान केन्द्रित करता है जिससे कि भिन्न क्षमता वाले छात्र शिक्षण अधिगम गतिविधियों में आसानी से भाग ले सकें तथा उससे लाभांवित हो सकें।


12. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य छात्रों के आत्म अनुशासन पर जोर देता है न कि इसे छात्रों पर आरोपित करने पर लोकतांत्रिक अनुशासन आत्म-अनुशासन पर में यकीन रखता है, न कि दमन अथवा बाध्यता पर। 


13. शिक्षा के लोकतांत्रिक लक्ष्य के अनुसार, शिक्षक को एक मित्र, एक दार्शनिक तथा एक मार्गदर्शक माना जाता है। एक शिक्षक छात्रों के एक अच्छे समर्थक की तरह प्रदर्शन करता है तथा उनकी आजीविका के मार्ग पर एक सुगमकर्ता की भूमिका निभाता है। 


14. शिक्षा का लोकतांत्रिक लक्ष्य इस बात पर जोर देता है कि विद्यालय प्रशासन द्वारा बच्चों को सक्षम एवं जिम्मेदार नागरिक बनाया जाना चाहिए तथा उन्हें भविष्य के नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।


निष्कर्ष -

       आरंभ में हमने अपनी चर्चा को शिक्षा की अवधारणा पर केन्द्रित किया। शिक्षा के अर्थ को समझ तथा उसे ग्रहण करने के लिए इस अवधारणा को हमने विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से विवेचित किया। हमने देखा कि शिक्षा को जीवन की आवश्यकता के रूप में, एक सामाजिक प्रकार्य के रूप में, एक दिशा के रूप में, और विकास के रूप में समझा जा सकता है। हमने शिक्षा शब्द की व्युत्पत्ति पर तथा कुछ अन्य परिभाषाओं पर चर्चा की। ऐसा प्रतीत हुआ कि शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है तथा विद्यालयीय शिक्षा अधिगम, प्रशिक्षण, अध्यापन एवं अनुदेशन की अवधारणा से भिन्न है। अतः हमने शिक्षा के उद्देश्यों पर जिनमें व्यक्तिगत, सामाजिक अंतिम तथा विशिष्ट प्रकार के उद्देश्य सम्मिलित हैं। अंत में हमने लोकतांत्रिक ढांचे में शिक्षा के उद्देश्यों को समझने का प्रयत्न किया।

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