शिक्षा के माध्यम (Agencies Of Education)

इस लेख में निम्न बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है -

• शिक्षा के माध्यम
  (Agencies Of Education)

• शिक्षा के औपचारिक माध्यम
  (Formal Agencies Of Education)

• शिक्षा के अनौपचारिक माध्यम
   (Informal Agencies Of Education

• शिक्षा के औपचारिकता विहीन माध्यम
   (Non Formal Agencies Of Education)




शिक्षा के माध्यम
(Agencies Of Education)

किसी व्यक्ति का व्यवहार अन्य कई व्यक्तियों तथा समूहों से प्रभावित व निर्मित होता है। व्यवहार का कुछ अंश वह अपने परिवार से सीखता है, उसका कुछ अन्य अंश वह अपने साथियों से तथा कुछ अंश वह विद्यालय से सीखता है। विद्यालय में बच्चा अपने अध्यापकों, समकक्ष साथियों और दूसरे उन व्यक्तियों के साथ अन्योन्यक्रिया करता है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में उसके चिंतन व व्यवहार को प्रभावित करते हैं। इसके साथ–साथ बच्चे का व्यवहार समुदाय तथा जनसंचार माध्यम जैसे टी.वी., रेडियो, सिनेमा आदि से भी प्रभावित होता है। ये सभी और इसी तरह के दूसरे स्रोतों को, जहाँ से बच्चा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करता है, शिक्षा के माध्यम (एजेंसी) की संज्ञा दी जाती है। इन सभी माध्यमों से बच्चा अपनी संस्कृति के लोकाचार तथा सामाजिक मूल्य विकसित करता है। इसके अतिरिक्त बच्चा अपने आसपास की दुनिया का ज्ञान प्राप्त करता है और अपने पर्यावरण के प्रति कुछ अभिवृत्तियों का विकास कर लेता है।
 
एजेंसी (माध्यम) शब्द का अर्थ है– 

संचालन या क्रिया कर्त्ता। माध्यम से हमारा तात्पर्य उस व्यक्ति या वस्तु से हे जो शक्तियों का प्रयोग करता है। अतः शिक्षा के माध्यम वे कारक, स्रोत, स्थान या संस्थाएँ हैं जो बच्चे पर एक शैक्षिक प्रभाव डालते हैं।शिक्षा स्कूल तथा कालेजों में ही दी जाती है परन्तु स्कूल तथा कालेजों के अतिरिक्त भी शिक्षा प्रदान करने के अनेक साधन है। समाज ने प्राचीनकाल से ही शिक्षा को क्रियान्वित रूप देने के लिए विभिन्न संस्थाओं को अपनाया है तथा उनका विकास किया है। ये संस्थाएँ ही शिक्षा के साधन कहलाती है।

रेमान्ट के कथनानुसार,

“अध्यापक ही केवल शिक्षा नहीं देता केवल स्कूल तथा कालेज ही शिक्षण संस्थाएँ नहीं हैं,
वरन ऐसी कई संस्थाएँ हैं जिनका प्रभाव शैक्षिक होता है।”

वैसे शाब्दिक अर्थ के अनुसार साधन शब्द अंग्रेजी शब्द Agency का हिन्दी रूपान्तर है। Agency का तात्पर्य है ‘एजेन्ट’ (Agent) का कार्य। एजेन्ट से तात्पर्य उस तत्व माध्यम, वस्तु या व्यक्ति से है जो कोई कार्य सम्पादित करता है अथवा प्रभाव डालता है। शिक्षा के साधन का तात्पर्य – उस वस्तु, स्थान, तत्व या संस्था से है जो बालक को शिक्षा प्रदान करती है अर्थात् उस पर शैक्षिक प्रभाव डालती है।

सार गार्डफ्रे थामसन (Sir Godfrey Thomson) के शब्दों में, 

“सम्पूर्ण वातावरण व्यक्ति की शिक्षा का साधन है किन्तु इस वातावरण में कुछ तत्वों जैसे
 घर, स्कूल, चर्च, प्रेस, व्यवसाय सार्वजनिक जीवन आनन्द के साधन का विशेष महत्व है।”


शिक्षा के विभिन्न साधन इस प्रकार है –

1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)
2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)
3. औपचारिकता विहीन अथवा अनुषांगिक शिक्षा (Non Formal Education)


1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education) -
                             
औपचारिक शिक्षा से तात्पर्य ऐसी शिक्षा से है जो पारस्परिक ढंग से स्थापित विद्यालय में दी जाती है जो कि विभिन्न प्रकार के ज्ञान को प्रदान करने, संगठित करने तथा प्रसार करने का कार्य संपन्न करते हैं इस प्रकार की शिक्षा हमारे स्कूलों, कालेजों तथा विश्वविद्यालयों इत्यादि में दी जाती है।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, 
औपचारिक शिक्षा का तात्पर्य उस शिक्षा से है जो जान-बूझकर दी जाती है। औपचारिक शिक्षा प्रदान करने का सबसे महत्वपूर्ण स्थान विद्यालय है। विद्यालय द्वारा ही मातृ-भाषा, विज्ञान, गणित, भूगोल, इतिहास आदि विषयों की शिक्षा दी जाती है जो औपचारिक शिक्षा है। औपचारिक शिक्षा को प्रदान करने के लिए नियमित रूप से अभिकरण स्थापित होते है व पाठ्यक्रम बनाया जाता है। पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिए सुनियोजित कार्यक्रम बनाए जाते है। जिसके आधार पर बालक शिक्षा ग्रहण करता है । अंत में छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है। निजी ट्यूशन के द्वारा भी औपचारिक शिक्षा दी जाती है। औपचारिक शिक्षा वह है जिसको पूर्व आयोजन, नियोजन व सम्प्रत्यंशील उपायो से प्रदान किया जाये। औपचारिक शिक्षा के लिये उद्देश्य‚ पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों का भी सुनिश्चित आयोजन किया जाता है। औपचारिक शिक्षा व्यवस्थित रूप से प्रदान की जाती है।


औपचारिक शिक्षा की विशेषताएँ - 
औपचारिक शिक्षा की निम्न विशेषताएँ होती है -
  1. यह शिक्षा स्कूलों द्वारा प्रदान की जाती है।
  2. औपचारिक शिक्षा में सुनियोजित व्यवस्था की आवश्यकता होती है।
  3. औपचारिक शिक्षा अप्राकृतिक, कृत्रिम व जटिल होती है।
  4. औपचारिक शिक्षा बहुत ही कष्टसाध्य है तथा परिश्रम चाहती है।
  5. इस प्रकार की शिक्षा में निशिचत पाठ्यक्रम को निश्चित समय में पूर्ण किया जाता है।
  6. यह शिक्षा जीवन पर्यन्त चलती रहती है।
  7. औपचारिक शिक्षा भौतिक होती है।
  8. औपचारिक शिक्षा के उद्देश्य सुनिष्श्वित होते है। 


2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) -
                                 
ऐसी शिक्षा जो प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्रदान करती है तथा संस्कारों में रूपांतर लाती है। यह शिक्षा बिना किसी योजना के विद्यालय शिक्षा के आकस्मिक ढंग से ही विद्यार्थी को प्राप्त हो जाती है। 
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, विद्यालयों में बालक केवल कुछ ही विषयो का ज्ञान प्राप्त कर पाते है। पढ़ना, लिखना या ज्ञान प्राप्त करना ही शिक्षा नही है। शिक्षा विस्तृत व व्यापक है। हम अपने अच्छे व बुरे अनुभवो व ज्ञानेन्द्रयो के अनुभव से शिक्षा ग्रहण करते हैं। शिक्षा सभी प्रकार के अनुभवों का योग है। जिसे मनुष्य अपने जीवन काल में प्राप्त करता है। औपचारिक साधनों के द्वारा जो शिक्षा प्राप्त होती है‚ वह 'औपचारिक शिक्षा' कहलाती है तथा जो शिक्षा अनोपचारिक साधनों से प्राप्त होती है वह अनोपचारिक शिक्षा कहलाती है।

इस प्रकार की शिक्षा के उदाहरण है -

मित्र मंडली के संपर्क में आने से सीखना, संघ या समूह गोष्ठियों में सम्मिलित होने से अनौपचारिक ढंग से अपनी आदतों में तथा विचारों का परिवर्तन ले आकर सीखना। धर्म‚ समुदाय तथा समाज की परंपरायें इत्यादि आकस्मिक ढंग से ही शिक्षा प्रदान कर देती हैं। व्यक्ति धर्म का पालन करना, अपने माता-पिता को देखकर ही करने लगता है। वह घर में पूजा होते देखता है और पूजा करने लगता है। यह अनौपचारि ढंग से ही सीखना है किंतु यहां यह याद रखना चाहिए किया अनौपचारिक शिक्षा के साधन औपचारिक शिक्षा के भी साधन उस समय बन जाते हैं जब अप्रत्यक्ष रूप से तथा संगठित संस्थाओ द्वारा प्रयास करते हैं। जैसे धार्मिक संस्थाएं धार्मिक शिक्षा के केंद्र स्थापित करके शिक्षा का आयोजन करते हैं या परिवार प्रत्यक्ष रूप से बालक को सिखाने की चेष्टा करते हैं।
                                                    
अनौपचारिक शिक्षा की विशेषताये - 
अनौपचारिक शिक्षा की निम्न विशेषताएँ होती है -
  1. अनोपचारिक शिक्षा के लिए किसी व्यवस्था की आवश्यकता नही पड़ती है।
  2. अनोपचारिक शिक्षा स्वाभविक , सरल तथा प्राकृतिक रूप में होती है।
  3. अनोपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालयो की आवश्यकता नही हैं।
  4. अनोपचारिक शिक्षा चारो और के वातावरण,परिवार, समाज व पड़ोस आदि से प्राप्त होती है।
  5. अनोपचारिक शिक्षा मानव की मूल परवर्तियों तथा उसकी रुचि पर निर्भर करती है।
  6. यह शिक्षा जन्म से मृत्यु तक चलती है यह जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।

3.औपचारिकता विहीन अथवा अनुषांगिक शिक्षा 
     (Non Formal Education) -
                                                   
ऐसी शिक्षा जो ज्ञान तो औपचारिक ढंग से ही प्रदान करने की चेष्टा करती है किंतु ज्ञान प्रदान करने के साधन औपचारिकतविहीन होते हैं। इस प्रकार की शिक्षा में समय, स्थान और अनिवार्य हाजिरी के बंधन नहीं होते हैं। खुले विद्यालय (Open School), खुले विश्वविद्यालय (Open Universities), दूरस्थ शिक्षा केंद्र, पत्राचार विद्यालय इस प्रकार की शिक्षा प्रदान करने की संस्थाएं हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो, औपचारिक व अनोपचारिक शिक्षा की कमियों को देखते हुए शिक्षा का एक नया रूप विकसित किया गया है जो न तो पूरी तरह औपचारिक शिक्षा के समान बन्धनयुक्त, व्यवस्थित, कृत्रिम तथा अव्यवहारिक ही था और न अनोपचारिक शिक्षा के समान पूर्व स्वाभविक, मुक्त, तथा प्राकृतिक ही था।यह शिक्षा का नया स्वरूप दोनों शिक्षा का मिला जुला रूप था जिसे 'निरोपचारिक शिक्षा' के नाम से जाना जाता है।निरोपचारिक शिक्षा में बंधनो के साथ-साथ स्वतंत्रता भी होती है इसमें शिक्षा का एक निश्चित कार्यक्रम रहता है। लेकिन वह स्थान, वातावरण‚ वर्ग, उम्र आदि के बंधनों से मुक्त रहता है।

निष्कर्ष -
            
हमने यहाँ तीनों प्रकार की शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट करने की चेष्टा की है। इनमें विभेद भी किया है किन्तु यह विभेद कोई बहुत गम्भीर या गहरे नहीं हैं। अनेकों दशाओं में औपचारिक शिक्षा के साधन अनौपचारिक शिक्षा के केन्द्र बन जाते हैं और अनेकों बार अनौपचारिक शिक्षा के साधन औपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान करने लगते हैं। इसी प्रकार औपचारिकताविहीन साधनों तथा औपचारिक साधनों में भी बदलाव होता रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इन तीनों साधनों में अदल-बदल की सम्भावना रहती है। किन्तु फिर भी इन तीनों के दार्शनिक तथा साभाजिक आधारों में विभेद किया जा सकता है।

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