संदेश

सरदार वल्लभभाई पटेल (31 अक्टूबर 1875 – 15 दिसंबर 1950)

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आज़ादी के बाद जब एक ओर कुछ कट्टरपंथी विचारधाराएँ धर्म और मज़हब के नाम पर देश को बाँटने की साज़िश रच रही थीं, जब एक ऐसा राष्ट्र, पाकिस्तान, बनाया गया जो विविधता को नहीं, बल्कि एकरूपता की संकीर्ण सोच को पूजता था। तब दूसरी ओर खड़े थे भारत के लौह पुरुष, सरदार वल्लभभाई पटेल। वे उस विचार के प्रतीक थे, जो कहता था - “भारत किसी एक मज़हब का नहीं, बल्कि उन सबका है जो इसकी मिट्टी से प्रेम करते हैं।”

लोक आस्था का महापर्व — छठ

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हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की छठी तिथि आते ही भारत के कई हिस्सों— बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक एक साथ सूर्य को नमन करते हैं।

भय बिनु होइ न प्रीति — सत्ता और जनता के संबंध की अनकही सच्चाई

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विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति। गोस्वामी तुलसीदास जी की यह चौपाई केवल धार्मिक संदर्भ नहीं है, बल्कि सत्ता, समाज और नागरिकता के शाश्वत संबंध की गहरी व्याख्या है। जब समझाने और विनम्र निवेदन से भी कोई अन्याय या जड़ता नहीं टूटती, तब श्री राम कहते हैं, बिना भय के न प्रेम टिकता है, न मर्यादा।

Engineers — वो हाथ, जो दुनिया को बेहतर बनाते हैं।

Engineers — Beyond structures, they remain the silent architects of tomorrow, shaping not only technology but the very future of humanity.

राष्ट्रवाद या कारोबार? सरकार के दोहरे रवैये का सच

पहलगाम में हुए आतंकी हमले को पाँच महीने भी नहीं हुए हैं। यह हमला जम्मू-कश्मीर के इतिहास में निहत्थे नागरिकों पर हुआ सबसे क्रूर हमला था, जहाँ हिंदुओं को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया और गवाहों को जानबूझकर बख्श दिया गया ताकि देश को धर्म के आधार पर और गहरे विभाजित किया जा सके। न्यूज़ चैनलों के एंकरों और राजनीतिक नेताओं ने इस आतंकी योजना को और बढ़ावा दिया। हमले के एक हफ्ते के भीतर ही पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने बयान दिया कि हिंदुओं को निशाना बनाओ।

पूंजीवाद और समाजवाद

 कैपिटलिस्ट विचारधारा का मूल आधार यह है कि व्यक्ति को अधिक से अधिक धन अर्जित करने का अवसर मिलना चाहिए। इसके विपरीत सोशलिस्ट दृष्टिकोण यह मानता है कि संपत्ति का न्यायसंगत वितरण समाज की प्राथमिक आवश्यकता है। एक पक्ष केवल उत्पादन और कमाई पर केंद्रित रहता है, जबकि दूसरा पक्ष केवल वितरण और समानता पर। परिणामस्वरूप दोनों विचारधाराओं के बीच निरंतर संघर्ष दिखाई देता है।

चेतना और आत्मा : धर्म और विज्ञान का अनसुलझा रहस्य

‎एक औरत ऑपरेशन टेबल पर लेटी है। उसकी आंखों पर पट्टी बंधी है और कानों में ऐसी ‎मशीन लगी है जिससे उसे सिर्फ क्लिक-क्लिक ‎की तेज आवाज सुनाई दे। मतलब वो कुछ देख ‎नहीं सकती। कुछ सुन नहीं सकती। उसका दिल ‎नहीं धड़क रहा। मशीनें शांत हैं। ईसीजी की ‎लाइन एकदम सीधी हो गई है और डॉक्टर्स की ‎भाषा में वह क्लीनिकली डेड है। लेकिन ‎अचानक उसे होश आ जाता है। वो डॉक्टरों को ‎इस अनुभव के बारे में बताती है कि उसने उस ‎खास किस्म की आरी के बारे में भी उन्हें ‎बता दिया जिससे डॉक्टर उसकी खोपड़ी को काट ‎रहे थे। उसने कहा कि वह तो एक इलेक्ट्रिक ‎टूथब्रश जैसी दिखती थी। बात बिल्कुल सही ‎थी उसकी। अब सवाल यह है कि जब दिमाग बंद ‎था, आंखें बंद थी, कान उसके बंद थे तो ‎उसने ये सब देखा कैसे? ‎ ‎

सवाल समाज से: कहाँ गई हमारी संवेदना?

आधुनिक हिंदी साहित्य में एक कवि हुए, ‎ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना शायद अपने नाम सुना होगा।  बड़े प्रसिद्ध कवि थे, तो उनकी एक कविता है, ‎ ‎गोली खाकर ‎एक के मुँह से निकला— ‎‘राम’। ‎ ‎पर दूसरे के मुँह से निकला— ‎‘माओ’। ‎ ‎लेकिन तीसरे के मुँह से निकला— ‎‘आलू’। ‎ ‎पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है ‎कि पहले दो के पेट भरे हुए थे। ‎

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