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राष्ट्रवाद या कारोबार? सरकार के दोहरे रवैये का सच

पहलगाम में हुए आतंकी हमले को पाँच महीने भी नहीं हुए हैं। यह हमला जम्मू-कश्मीर के इतिहास में निहत्थे नागरिकों पर हुआ सबसे क्रूर हमला था, जहाँ हिंदुओं को सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया और गवाहों को जानबूझकर बख्श दिया गया ताकि देश को धर्म के आधार पर और गहरे विभाजित किया जा सके। न्यूज़ चैनलों के एंकरों और राजनीतिक नेताओं ने इस आतंकी योजना को और बढ़ावा दिया। हमले के एक हफ्ते के भीतर ही पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने बयान दिया कि हिंदुओं को निशाना बनाओ।

पूंजीवाद और समाजवाद

 कैपिटलिस्ट विचारधारा का मूल आधार यह है कि व्यक्ति को अधिक से अधिक धन अर्जित करने का अवसर मिलना चाहिए। इसके विपरीत सोशलिस्ट दृष्टिकोण यह मानता है कि संपत्ति का न्यायसंगत वितरण समाज की प्राथमिक आवश्यकता है। एक पक्ष केवल उत्पादन और कमाई पर केंद्रित रहता है, जबकि दूसरा पक्ष केवल वितरण और समानता पर। परिणामस्वरूप दोनों विचारधाराओं के बीच निरंतर संघर्ष दिखाई देता है।

चेतना और आत्मा : धर्म और विज्ञान का अनसुलझा रहस्य

‎एक औरत ऑपरेशन टेबल पर लेटी है। उसकी आंखों पर पट्टी बंधी है और कानों में ऐसी ‎मशीन लगी है जिससे उसे सिर्फ क्लिक-क्लिक ‎की तेज आवाज सुनाई दे। मतलब वो कुछ देख ‎नहीं सकती। कुछ सुन नहीं सकती। उसका दिल ‎नहीं धड़क रहा। मशीनें शांत हैं। ईसीजी की ‎लाइन एकदम सीधी हो गई है और डॉक्टर्स की ‎भाषा में वह क्लीनिकली डेड है। लेकिन ‎अचानक उसे होश आ जाता है। वो डॉक्टरों को ‎इस अनुभव के बारे में बताती है कि उसने उस ‎खास किस्म की आरी के बारे में भी उन्हें ‎बता दिया जिससे डॉक्टर उसकी खोपड़ी को काट ‎रहे थे। उसने कहा कि वह तो एक इलेक्ट्रिक ‎टूथब्रश जैसी दिखती थी। बात बिल्कुल सही ‎थी उसकी। अब सवाल यह है कि जब दिमाग बंद ‎था, आंखें बंद थी, कान उसके बंद थे तो ‎उसने ये सब देखा कैसे? ‎ ‎

सवाल समाज से: कहाँ गई हमारी संवेदना?

आधुनिक हिंदी साहित्य में एक कवि हुए, ‎ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना शायद अपने नाम सुना होगा।  बड़े प्रसिद्ध कवि थे, तो उनकी एक कविता है, ‎ ‎गोली खाकर ‎एक के मुँह से निकला— ‎‘राम’। ‎ ‎पर दूसरे के मुँह से निकला— ‎‘माओ’। ‎ ‎लेकिन तीसरे के मुँह से निकला— ‎‘आलू’। ‎ ‎पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है ‎कि पहले दो के पेट भरे हुए थे। ‎

गणपति उत्सव: उत्सव या उपदेश

गणपति महा उत्सव का आगमन हो चुका है। हमारे शहरों और गाँवों में एक बार फिर वही भव्य दृश्य देखने को मिलेंगे: विशालकाय मूर्तियाँ, रंग-बिरंगे पंडाल, कान फाड़ देने वाले डीजे, और लोगों का हुजूम। इन सब के बीच, हम नाचेंगे, गाएँगे, तस्वीरें लेंगे और अच्छे कपड़े पहनकर "गुड वाइब्स" का अनुभव करेंगे। खूब प्रसाद और कर्मकांड होंगे, और अंत में, गणेश जी की प्रतिमा को जुलूस के साथ ले जाकर नदी या नाले में विसर्जित कर दिया जाएगा। कभी-कभी भोजपुरी गानों के शोर में।

आधुनिकता या आदिमता

कुछ ही दिन पहले ही की बात है, मैंने संत *प्रेमानंद महाराज जी* का एक वक्तव्य सुना। वे समाज को हमेशा दार्शनिक दृष्टि से गहरी शिक्षाएँ देते हैं। अपने प्रवचन में उन्होंने आज के युवाओं की जीवनशैली खासकर live-in relationship और multiple relations पर टिप्पणी की। उनका कहना था कि यदि स्त्री और पुरुष अपने संबंधों को केवल शारीरिक आकर्षण और अस्थायी सुख तक सीमित रखेंगे, तो वे कभी भी अच्छे पति-पत्नी, जिम्मेदार जीवनसाथी और स्वस्थ परिवार का निर्माण नहीं कर सकते।

प्रत्येक विषय एक जीवन-दर्शन

कभी-कभी हम अपने बचपन की कक्षाओं को याद करते हैं। ब्लैकबोर्ड पर लिखे गए सूत्र, शिक्षक की समझाइश, किताबों की पंक्तियाँ, सब कुछ जैसे केवल परीक्षा पास करने और अंक लाने तक सीमित था। लेकिन कितनी बार हमने सोचा कि इन किताबों में सिर्फ़ परीक्षा पास करने का नहीं, बल्कि जीवन जीने का भी राज़ छुपा है? धीरे-धीरे हमारे भीतर यह धारणा बन गई कि शिक्षा का मक़सद बस इतना है कि हमें एक डिग्री मिले और फिर एक अच्छी नौकरी।

भारत

 *भारत...* 

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