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अद्वैत वेदांत का प्रोजेक्टर-फिल्म रूपक

*अद्वैत वेदांत का प्रोजेक्टर-फिल्म रूपक* जब हम अद्वैत वेदांत जैसे गहरे विषय को समझने का प्रयास करते हैं, तो अक्सर उसकी सूक्ष्मता और निराकारता हमारे अनुभव में नहीं उतर पाती। शब्दों में कहें तो "ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है", लेकिन इसका अर्थ क्या है? इसे केवल पढ़कर नहीं, देखकर समझना ज़रूरी लगता है।

अद्वैत वेदांत को प्रोजेक्टर-फिल्म रूपक द्वारा समझना

अद्वैत वेदांत का प्रोजेक्टर-फिल्म रूपक पूर्ण रूपक: फिल्म रूपी संसार तत्व प्रतीकात्मक पहचान ब्रह्म शुद्ध प्रकाश (सत-चित-आनंद स्वरूप) माया फिल्म की रील और लेंस ईश्वर ब्रह्म की चेतन शक्ति जो माया को निर्देशित करती है जगत स्क्रीन पर चलती फिल्म जीव फिल्म का पात्र जो भूल गया कि वह प्रकाश है चरण 1: ब्रह्म = शुद्ध प्रकाश (Pure Conscious Light as Sat-Chit-Ananda) सिद्धांत: ब्रह्म ही परम तत्त्व है — सत-चित-आनंद स्वरूप: सत (Existence): वह जो कभी नहीं बदलता, नष्ट नहीं होता — नित्य सत्ता। चित (Consciousness): वह जो स्वयं प्रकाशमान है — जिससे सब कुछ जाना जाता है। आनंद (Bliss): पूर्ण शांति, संतोष और निर्बाध पूर्णता — जिसे प्राप्त कर कुछ और चाहना नहीं रह जाता। ब्रह्म निराकार , निर्विकार और निरुपाधिक है — उसमें कोई नाम, रूप, कर्म या द्वैत नहीं होता। वह स्वयं कुछ “करता” नहीं, केवल अपनी उपस्थिति से सब कुछ संभव बनाता है। उदाहरण: कल्पना करें एक प्रोजेक्टर जिसमें सिर्फ सफेद प्रकाश जल रहा है। न कोई रील, न कोई छवि — केवल स्वच्छ और उज्ज्वल प्रकाश। यह प्रकाश किस...

The Buddha Way – बुद्ध का मार्ग

 बुद्ध के अनुसार *परमार्थिक सत्ता* जैसे *आत्मा*, *परमात्मा*, *ईश्वर*, *पुनर्जन्म* और *शाश्वत कर्मफल* केवल विचारात्मक कल्पनाएँ हैं जिनका आधार केवल *अविद्या* (अज्ञान) है। ये तत्त्व जो अन्य दर्शनों में अंतिम सत्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं बुद्ध के मत में केवल मानसिक अवधारणाएँ हैं जो *दुःख* की श्रृंखला को पोषित करती हैं।

Synopsis - “आधुनिक भारतीय संदर्भ में महात्मा गांधी के शैक्षिक दर्शन का महत्व”

सिनॉप्सिस (Synopsis) के चरण — 1.  Title Page – शीर्षक पृष्ठ 2. Introduction – परिचय 3. Justification/Need of the study/problem – अध्ययन / समस्या की आवश्यकता / औचित्य 4. Review of Related literature – संबंधित साहित्य की समीक्षा 5. Statement of the problem – समस्या का कथन 6. Operational definitions of the problem – समस्या की प्रायोगिक परिभाषाएँ 7. Objectives – उद्देश्य 8. Hypothesis – परिकल्पना 9.Research methodology, sample, population, tools, techniques – शोध विधि, नमूना, जनसंख्या, उपकरण, तकनीक 10. Delimitationons – सीमाएं 11. References – संदर्भ सूची

वैश्विक शिक्षा रुझान (Global Education Trends)

आज का युग वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति का युग है, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। वैश्विक शिक्षा रुझान (Global Education Trends) उन नवीन दृष्टिकोणों, तकनीकों और नीतियों को दर्शाते हैं जो विश्व भर में शिक्षा को अधिक समावेशी, प्रभावी और भविष्योन्मुखी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यह लेख कुछ प्रमुख वैश्विक शिक्षा रुझानों पर प्रकाश डालेगा जो आज के समय में प्रासंगिक हैं और आने वाले वर्षों में शिक्षा के स्वरूप को परिवर्तित कर सकते हैं।

भारतीय तथा पश्चिमी शिक्षा प्रणाली (Indian And Western Education System)

भारतीय शिक्षा प्रणाली तथा पश्चिमी शिक्षा प्रणाली का तुलनात्मक परीक्षण शिक्षा किसी भी समाज के विकास का आधार होती है। यह न केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति का भी मार्ग प्रशस्त करती है। विश्व भर में शिक्षा प्रणालियाँ अपने-अपने देशों की संस्कृति, इतिहास और आवश्यकताओं के आधार पर विकसित हुई हैं। इस संदर्भ में, भारतीय शिक्षा प्रणाली और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की तुलना करना एक रोचक और विचारोत्तेजक विषय है। यह लेख इन दोनों प्रणालियों के प्रमुख पहलुओं जैसे संरचना, उद्देश्य, शिक्षण विधियाँ, मूल्यांकन प्रणाली और उनके प्रभावों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।

धर्मशास्त्र मे धर्म का स्वरूप एवं धर्म के स्रोत (The Concept Of Dharma and Its Sources In Dharma Shastras)

सारांश - भारतीय धर्मशास्त्रों में आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार, और मन की प्रसन्नता यह चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं। प्रस्तुत लेख में धर्म का सामान्य रूप, आश्रमों और वर्गों के विशिष्ट कर्तव्यों के रूप में धर्म, राजा के धर्म, देश धर्म इत्यादि की चर्चा की गई है। इसके साथ ही धर्मशास्त्र में धर्म के स्वरूप का वर्णन किया गया है जिसके अंतर्गत वेद, स्मृति और सदाचार की चर्चा की गई है। भारतीय धर्मशास्त्रों में मानवीय आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना गया है। मनु के अनुसार वेद अखिल धर्म का मूल है। ‘आपस्तम्ब धर्मसूत्र’ की ‘उज्जवला टीका’ में धर्म के विषय में कहा गया है कि धर्म अपूर्व के माध्यम से स्वर्ग और मोक्ष का कारण बनता है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार और मन की प्रसन्नता ये चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं।

शक्ति के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण (The Test of Character Through Power)

प्रस्तावना: मनुष्य का जीवन एक निरंतर संघर्ष है, जिसमें उसे नित नए चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ता है। जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कठिनाइयों और संघर्षों से गुजरना ही पड़ता है, चाहे वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या आर्थिक रूप से हो। परंतु, जब बात शक्ति की आती है, तो यही संघर्ष एक नया मोड़ लेता है। शक्ति से तात्पर्य केवल बाहरी साधनों, जैसे धन, प्रतिष्ठा या सामाजिक स्थिति से नहीं है, बल्कि यह आंतरिक ताकत, मानसिक साहस, और आत्मनिर्भरता से भी जुड़ी होती है। शक्ति मिलने पर व्यक्ति का असली चरित्र सामने आता है। इसे कई बार "शक्ति के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण" भी कहा जाता है। शक्ति का सही या गलत उपयोग यह तय करता है कि व्यक्ति का चरित्र क्या है और वह समाज में किस प्रकार की भूमिका निभाता है।

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