धर्मशास्त्र मे धर्म का स्वरूप एवं धर्म के स्रोत (The Concept Of Dharma and Its Sources In Dharma Shastras)
सारांश - भारतीय धर्मशास्त्रों में आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार, और मन की प्रसन्नता यह चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं। प्रस्तुत लेख में धर्म का सामान्य रूप, आश्रमों और वर्गों के विशिष्ट कर्तव्यों के रूप में धर्म, राजा के धर्म, देश धर्म इत्यादि की चर्चा की गई है। इसके साथ ही धर्मशास्त्र में धर्म के स्वरूप का वर्णन किया गया है जिसके अंतर्गत वेद, स्मृति और सदाचार की चर्चा की गई है। भारतीय धर्मशास्त्रों में मानवीय आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना गया है। मनु के अनुसार वेद अखिल धर्म का मूल है। ‘आपस्तम्ब धर्मसूत्र’ की ‘उज्जवला टीका’ में धर्म के विषय में कहा गया है कि धर्म अपूर्व के माध्यम से स्वर्ग और मोक्ष का कारण बनता है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार और मन की प्रसन्नता ये चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं।