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वैश्विक शिक्षा रुझान (Global Education Trends)

आज का युग वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति का युग है, जिसने शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं। वैश्विक शिक्षा रुझान (Global Education Trends) उन नवीन दृष्टिकोणों, तकनीकों और नीतियों को दर्शाते हैं जो विश्व भर में शिक्षा को अधिक समावेशी, प्रभावी और भविष्योन्मुखी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। यह लेख कुछ प्रमुख वैश्विक शिक्षा रुझानों पर प्रकाश डालेगा जो आज के समय में प्रासंगिक हैं और आने वाले वर्षों में शिक्षा के स्वरूप को परिवर्तित कर सकते हैं।

भारतीय तथा पश्चिमी शिक्षा प्रणाली (Indian And Western Education System)

भारतीय शिक्षा प्रणाली तथा पश्चिमी शिक्षा प्रणाली का तुलनात्मक परीक्षण शिक्षा किसी भी समाज के विकास का आधार होती है। यह न केवल व्यक्तिगत उन्नति का साधन है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति का भी मार्ग प्रशस्त करती है। विश्व भर में शिक्षा प्रणालियाँ अपने-अपने देशों की संस्कृति, इतिहास और आवश्यकताओं के आधार पर विकसित हुई हैं। इस संदर्भ में, भारतीय शिक्षा प्रणाली और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की तुलना करना एक रोचक और विचारोत्तेजक विषय है। यह लेख इन दोनों प्रणालियों के प्रमुख पहलुओं जैसे संरचना, उद्देश्य, शिक्षण विधियाँ, मूल्यांकन प्रणाली और उनके प्रभावों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।

धर्मशास्त्र मे धर्म का स्वरूप एवं धर्म के स्रोत (The Concept Of Dharma and Its Sources In Dharma Shastras)

सारांश - भारतीय धर्मशास्त्रों में आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार, और मन की प्रसन्नता यह चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं। प्रस्तुत लेख में धर्म का सामान्य रूप, आश्रमों और वर्गों के विशिष्ट कर्तव्यों के रूप में धर्म, राजा के धर्म, देश धर्म इत्यादि की चर्चा की गई है। इसके साथ ही धर्मशास्त्र में धर्म के स्वरूप का वर्णन किया गया है जिसके अंतर्गत वेद, स्मृति और सदाचार की चर्चा की गई है। भारतीय धर्मशास्त्रों में मानवीय आचार एवं गुणों को धर्म माना गया है। वे मनुष्य के लिए पालनीय है। धर्म के इस रूप का स्रोत वेदों को माना गया है। मनु के अनुसार वेद अखिल धर्म का मूल है। ‘आपस्तम्ब धर्मसूत्र’ की ‘उज्जवला टीका’ में धर्म के विषय में कहा गया है कि धर्म अपूर्व के माध्यम से स्वर्ग और मोक्ष का कारण बनता है। मनु ने धर्म का लक्षण करते हुए कहा है कि वेद, स्मृति, आचार और मन की प्रसन्नता ये चार धर्म के साक्षात् लक्षण हैं।

शक्ति के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण (The Test of Character Through Power)

प्रस्तावना: मनुष्य का जीवन एक निरंतर संघर्ष है, जिसमें उसे नित नए चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ता है। जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की कठिनाइयों और संघर्षों से गुजरना ही पड़ता है, चाहे वह शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या आर्थिक रूप से हो। परंतु, जब बात शक्ति की आती है, तो यही संघर्ष एक नया मोड़ लेता है। शक्ति से तात्पर्य केवल बाहरी साधनों, जैसे धन, प्रतिष्ठा या सामाजिक स्थिति से नहीं है, बल्कि यह आंतरिक ताकत, मानसिक साहस, और आत्मनिर्भरता से भी जुड़ी होती है। शक्ति मिलने पर व्यक्ति का असली चरित्र सामने आता है। इसे कई बार "शक्ति के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण" भी कहा जाता है। शक्ति का सही या गलत उपयोग यह तय करता है कि व्यक्ति का चरित्र क्या है और वह समाज में किस प्रकार की भूमिका निभाता है।

वास्तविक शिक्षा का स्वरूप (Nature Of Real Education)

प्रस्तावना - परंपरागत रूप से मनुष्य को प्राप्त होने वाले ज्ञान और संस्कारों को शिक्षा कहते हैं। साथ ही इसे अगली पीढ़ी को स्थानांतरित करना भी शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया होती है। अर्थात शिक्षा कर्म के साथ क्रिया भी होती है। हालाँकि अभी तक हमने सिर्फ शिक्षा और उसकी प्रक्रिया के संबंध में बात की है परंतु यह निबंध वास्तविक शिक्षा विषय वस्तु पर केंद्रित है। शिक्षा के साथ वास्तविक शब्द को जोड़ना इसे विशेष अर्थ प्रदान करता है। वास्तविक शिक्षा इस बात पर जोर देती है कि पाठ्यक्रम एवं उसकी प्रचलित विधियों से इतर शिक्षा क्या है? शिक्षा मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है, जो न केवल ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक, मानसिक और नैतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह व्यक्ति को जीवन की वास्तविक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए। वास्तविक शिक्षा का स्वरूप वह है, जो न केवल अकादमिक विषयों तक सीमित हो, बल्कि व्यक्ति की सोच, समझ, और संस्कारों का भी निर्माण करे। इसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता, नैतिक मूल्य, और समा...

सोशल मीडिया: स्वार्थपरायणता का एक मंच (Social Media: A Platform Of Self Interest)

  मेरी राय में, सोशल मीडिया को उस सीमा तक विनियमित किया जाना चाहिये जहाँ तक वह जनहित को नुकसान पहुँचाता हो — एलोन मस्क सोशल मीडिया अंतर्निहित रूप से एक स्वार्थपरायण माध्यम है। प्रस्तावना - सोशल मीडिया आज के डिजिटल युग में एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी इसका गहरा प्रभाव है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, और टेलीग्राम ने दुनिया को एक साथ जोड़ने का कार्य किया है, जहां लोग अपने विचार, भावनाएँ और घटनाएँ दुनिया भर के साथ साझा कर सकते हैं। लेकिन इन सभी सकारात्मक पहलुओं के बावजूद, सोशल मीडिया के अंतर्निहित स्वार्थपरायणता का भी एक बड़ा पहलू है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता अक्सर अपनी छवि, प्रसिद्धि और पहचान को बढ़ावा देने के लिए इस प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं। स्वार्थपूर्ण प्रवृत्तियों, जैसे 'लाइक्स', 'फॉलोअर्स', और 'शेयर' की संख्या में वृद्धि, इस माध्यम के एक अनजाने पहलू को उजागर करती है। यह प्रवृत्ति कभी-कभी वास्तविकता से अधिक आभासी दुनिया को प्र...

जी.डी.पी. वृद्धि: विकास का मापदंड (GDP Growth: A Measure Of Development)

 क्या जी.डी.पी. में वृद्धि देश के सम्पूर्ण विकास का सूचक है? प्रस्तावना -  भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, यानी 70% ग्रामीण आबादी वाले देश के सम्पूर्ण विकास का जब भी संदर्भ आएगा, गाँवों को प्राथमिकता मिलनी ही चाहिये। सीधे अर्थ में कहूँ तो आत्मनिर्भर और शहरी सुविधाओं से पूर्ण गाँवों की उपस्थिति ही सम्पूर्ण विकास की द्योतक हो सकती है। साथ ही, शहरों में उभरते मध्यम वर्ग की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी विकसित भारत का एक आवश्यक अंग होना चाहिये। यह सर्वविदित है कि आँकड़ों में अभी भारत विश्व की सबसे तेज़ी से वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है और चीन भी फिलहाल जी.डी.पी. प्रतिशत वृद्धि में हमसे पीछे है। अब सवाल यह उठाता है कि पिछली दो दशकों में हुई जी.डी.पी. वृद्धि या भविष्य में होने वाली अपेक्षित तीव्र वृद्धि सम्पूर्ण भारत के विकसित स्वरूप को बयाँ करती है या फिर इससे सिर्फ "इंडिया" ही लाभान्वित हो रहा है और इसके मुकाबले "भारत" कहीं पीछे छूट गया है।

सोशल मीडिया और युवा (Social Media And Youth)

सोशल मीडिया युवाओं में 'छूटने का डर' पैदा कर रहा है, जिसके कारण उनमें अवसाद और अकेलापन बढ़ रहा है1  सोशल मीडिया, जो प्रारंभ में एक सकारात्मक संचार एवं सूचनाओं के प्रेषण का माध्यम था, वर्तमान समय में युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। "छूटने का डर" या FOMO (Fear of Missing Out) एक ऐसा मनोवैज्ञानिक प्रभाव है, जो सोशल मीडिया पर अत्यधिक और लगातार उपस्थिति से उत्पन्न हो रहा है। इसके कारण वर्तमान युवा पीढ़ी में अवसाद, तनाव और अकेलापन जैसी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। इस निबंध में हम इस समस्या के कारणों, प्रभावों और संभावित समाधान पर चर्चा करेंगे। आपका समय सीमित है, इसे किसी और का जीवन जीने में बर्बाद न करें। -स्टीव जॉब्स

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विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग या राधाकृष्णन कमीशन (1948-49) University Education Commission

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व्याख्यान विधि (Lecture Method)

विशिष्ट बालक - बालिका (Exceptional Children)