भय बिनु होइ न प्रीति — सत्ता और जनता के संबंध की अनकही सच्चाई

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति। गोस्वामी तुलसीदास जी की यह चौपाई केवल धार्मिक संदर्भ नहीं है, बल्कि सत्ता, समाज और नागरिकता के शाश्वत संबंध की गहरी व्याख्या है। जब समझाने और विनम्र निवेदन से भी कोई अन्याय या जड़ता नहीं टूटती, तब श्री राम कहते हैं, बिना भय के न प्रेम टिकता है, न मर्यादा।