अद्वैत वेदांत के अनुसार सृष्टि की अभिव्यक्ति (Manifestation of the Universe according to Advaita Vedanta)

अद्वैत वेदांत, एक प्रमुख भारतीय दार्शनिक प्रणाली, ब्रह्म, माया, और पंचमहाभूतों के माध्यम से सृष्टि के निर्माण की प्रक्रिया को समझाता है। यह दृष्टिकोण एक अद्वितीय तत्वमीमांसा प्रदान करता है, जिसमें ब्रह्मा से माया की उत्पत्ति होती है और माया से सम्पूर्ण सृष्टि की अभिव्यक्ति होता है।


1. ब्रह्म और माया की उत्पत्ति -

अद्वैत वेदांत के अनुसार, ब्रह्म (सर्वव्यापी, अज्ञेय, और निराकार परमात्मा) से माया की उत्पत्ति होती है। माया, एक दिव्य शक्ति है जो ब्रह्मा की छाया के रूप में कार्य करती है और जिसके तीन प्रमुख गुण होते हैं:

  • सतोगुण (Sattva): शुद्धता, ज्ञान, और सामंजस्य का प्रतीक। 
  • रजोगुण (Rajas): क्रियाशीलता, गति, और परिवर्तन का प्रतीक।
  • तमोगुण (Tamas): जड़ता, अज्ञानता, और स्थिरता का प्रतीक।

इन तीन गुणों की संयुक्त क्रिया से माया का निर्माण होता है, जो सृष्टि के निर्माण और अस्तित्व का आधार बनती है।


2. पंचमहाभूत की उत्पत्ति -

माया के प्रभाव से पंचमहाभूत उत्पन्न होते हैं, जो सृष्टि के भौतिक तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं:

  • आकाश (Akasha): स्थान और शून्यता, जिसे सभी वस्तुओं और घटनाओं के लिए स्थान प्रदान करता है।
  • वायु (Vayu): हवा और गतिशीलता, जो ऊर्जा और जीवन की गति का आधार है।
  • अग्नि (Agni): ऊर्जा, ताप, और परिवर्तन, जो जीवों की शक्ति और सृजनशीलता को नियंत्रित करता है।
  • जल (Jala): तरलता और पोषण, जो जीवन के लिए आवश्यक सभी द्रव्यों का प्रतिनिधित्व करता है।
  • पृथ्वी (Prithvi): ठोसता और स्थिरता, जो भौतिक वस्तुओं और जीवन के लिए आधार प्रदान करता है।


ये पंचमहाभूत क्रमिक रूप से उत्पन्न होते हैं: आकाश → वायु → अग्नि → जल → पृथ्वी। 



3. तन मात्राओं की उत्पत्ति -

पंचमहाभूतों के गुणों से विभिन्न तन मात्राएँ उत्पन्न होती हैं, जो भौतिक संसार की अनुभूति को संभव बनाती हैं:

  • शब्द (Sound): आकाश से उत्पन्न, जो श्रवण की अनुभूति को सक्षम बनाता है।
  • स्पर्श (Touch): वायु से उत्पन्न, जो स्पर्श की अनुभूति को नियंत्रित करता है।
  • रूप (Form): अग्नि से उत्पन्न, जो दृश्यता और रूप की अनुभूति को संभव बनाता है।
  • रस (Taste): जल से उत्पन्न, जो स्वाद की अनुभूति को संभव बनाता है।
  • गंध (Smell): पृथ्वी से उत्पन्न, जो गंध की अनुभूति को नियंत्रित करता है।

इन तन मात्राओं के संयोजन से स्थूल तत्वों का निर्माण होता है, जो भौतिक और दृश्य संसार को अनुभव करने की क्षमता प्रदान करते हैं।



4. पंच ज्ञानेंद्रियों की उत्पत्ति -

सतोगुण के प्रभाव से पांच ज्ञानेंद्रियाँ उत्पन्न होती हैं:

  • त्वचा (Skin): वायु के सतोगुण से, जो स्पर्श की अनुभूति प्रदान करती है।
  • श्रोत (Ears): आकाश के सतोगुण से, जो श्रवण की अनुभूति संभव बनाता है।
  • चक्षु (Eyes): अग्नि के सतोगुण से, जो दृष्टि और दृश्यता को नियंत्रित करता है।
  • जिव्हा (Tongue): जल के सतोगुण से, जो स्वाद की अनुभूति को सक्षम बनाता है।
  • घ्राण (Nose): पृथ्वी के सतोगुण से, जो गंध की अनुभूति प्रदान करता है।

इन ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से हम बाहरी संसार को महसूस और समझ सकते हैं।



5. अंतःकरण की उत्पत्ति -

सतोगुण के प्रभाव से अंतःकरण उत्पन्न होता है, जो मनुष्य की आंतरिक मानसिक और भावनात्मक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है:
  • मन (Manas): विचार और चिंतन की प्रक्रिया को संचालित करता है।
  • बुद्धि (Buddhi): निर्णय और विवेक की शक्ति को नियंत्रित करता है।
  • चित् (Chit): स्मृति और अनुभव का संग्राहक।
  • अहंकार (Ahamkara): आत्म- पहचान और आत्माभिमान की भावना का केंद्र।



6. पंच कर्मेंद्रियों की उत्पत्ति -

रजोगुण के प्रभाव से पांच कर्मेंद्रियाँ उत्पन्न होती हैं, जो विभिन्न क्रियाओं को अंजाम देती हैं:
  • वाक् (Speech): आकाश के रजोगुण से, जो वाक्पटुता और संवाद की क्षमता प्रदान करता है।
  • हाथ (Hands): वायु के रजोगुण से, जो क्रिया और कार्यशीलता को सक्षम बनाता है।
  • पैर (Feet): अग्नि के रजोगुण से, जो गति और आंदोलन को नियंत्रित करता है।
  • उपस्थ (Genitals): जल के रजोगुण से, जो उत्सर्जन और प्रजनन की प्रक्रिया को संचालित करता है।
  • गुदा (Anus): पृथ्वी के रजोगुण से, जो मल-मूत्र विसर्जन की क्रिया को नियंत्रित करता है।



7. पंच प्राणों की उत्पत्ति -

रजोगुण के सामूहिक प्रभाव से पांच प्राण उत्पन्न होते हैं, जो जीवन की विभिन्न शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं:
  • प्राण (Prana): जीवन शक्ति, जो श्वसन और ऊर्जा का संचालन करती है।
  • अपान (Apana)उत्सर्जन शक्ति, जो शरीर से अपशिष्ट निकालने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है।
  • व्यान (Vyana): व्याप्ति शक्ति, जो पूरे शरीर में ऊर्जा और रक्त का वितरण करती है।
  • उदान (Udan): ऊर्ध्वगमन शक्ति, जो शरीर को ऊपर उठाने और भाषण की प्रक्रिया को सक्षम बनाती है।
  • समान (Saman): सामान्य शक्ति, जो सभी प्राणों के समन्वय को बनाए रखती है।


इस तरह सम्पूर्ण जगत का निर्माण करने वाले 24 तत्वों (पंचमहाभूत, पंच ज्ञानेंद्रिय, पंच कर्मेंद्रियां, पंच प्राण, अंत:करण के चार रूप — मन, बुद्धि, चित्, अहंकार) तत्वों की रचना हुई।



8. स्थूल शरीर की उत्पत्ति -

पंचमहाभूतों के पंचीकरण  से स्थूल शरीर का निर्माण होता है, जिसमें:

  • आकाश - शून्यता और स्थान, जो शरीर की संरचना और आयामों को निर्धारित करता है।
  • वायु - गति और चालन, जो शारीरिक गतिशीलता और क्रियाशीलता को नियंत्रित करता है।
  • अग्नि -  ऊर्जा और ताप, जो शरीर की ऊर्जा और तापमान को बनाए रखता है।
  • जल - तरलता और पोषण, जो शरीर की हाइड्रेशन और पोषण को नियंत्रित करता है।
  • पृथ्वी - ठोसता और स्थिरता, जो शरीर की ठोस संरचना और स्थिरता को प्रदान करता है।



निष्कर्ष -

अद्वैत वेदांत के अनुसार, सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा और माया से हुआ, जिससे पंचमहाभूत, तन मात्राएँ, ज्ञानेंद्रिय, कर्मेंद्रिय, प्राण और स्थूल शरीर का निर्माण हुआ। यह दृष्टिकोण सृष्टि के निर्माण की जटिल प्रक्रिया को एक व्यवस्थित और समग्र दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है, जो अद्वैत वेदांत की गहराई और व्यापकता को उजागर करता है।

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