अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Yoga Day)
🧘♂️ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस-
हर वर्ष 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण होकर अपनी उच्च स्थिति में होता है, तब संपूर्ण विश्व योग दिवस मनाता है। यह केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि मानवता को तन, मन और आत्मा की पूर्ण शुद्धि की ओर ले जाने वाला मार्ग है।
लेकिन इस योग को शास्त्र के रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है। उन्होंने योग को केवल आसनों और श्वास तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक दार्शनिक प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया।
आइए आज इस दिवस पर उनके 'योगसूत्र' से 15 प्रमुख सूत्रों को जानें —
🔷 1. योग की परिभाषा —
*योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। (1.2)*
👉 योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (नियंत्रण) है।
📖 व्याख्या:
चित्त (मन) में उठने वाले विचारों, कल्पनाओं, स्मृतियों और प्रतिक्रियाओं को जब रोका जाता है, तब योग की सच्ची स्थिति उत्पन्न होती है। यही आंतरिक शांति और ध्यान की शुरुआत है।
🔷 2. चित्त की वृत्तियाँ —
*प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः। (1.6)*
👉 चित्त की पाँच वृत्तियाँ होती हैं – ज्ञान, भ्रम, कल्पना, निद्रा, स्मृति।
📖 व्याख्या:
हमारा चित्त निरंतर किसी न किसी रूप में सक्रिय रहता है। इन वृत्तियों को पहचानकर जब हम उन्हें नियंत्रित करते हैं, तब ध्यान और आत्मबोध संभव होता है।
🔷 3. वृत्तियों के निरोध के साधन —
*अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः। (1.12)*
👉 अभ्यास और वैराग्य से चित्तवृत्तियों का निरोध होता है।
📖 व्याख्या:
सिर्फ एक दिन ध्यान करने से मन शांत नहीं होता — नियमित अभ्यास (अभ्यास) और विषयों से मोह का त्याग (वैराग्य) दोनों साथ चलते हैं।
🔷 4. अभ्यास क्या है?
*तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यासः। (1.13)*
👉 चित्त को एकाग्र करने का लगातार प्रयास ही अभ्यास है।
📖 व्याख्या:
ध्यान या साधना केवल ज्ञान नहीं, एक निरंतर प्रयत्न है। अभ्यास ही योग का पहला सीढ़ी है।
🔷 5. वैराग्य की परिभाषा
*दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम्। (1.15)*
👉 जो इंद्रिय-विषयों से तृष्णा को छोड़ दे, वही वैराग्य है।
📖 व्याख्या:
वैराग्य का अर्थ दुनियादारी छोड़ना नहीं, बल्कि अंदर से संयम और संतुलन बनाना है।
🔷 6. ईश्वर क्या है? —
*क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः। (1.24)*
👉 जो क्लेशों, कर्मों, और फलों से अछूता है, वही ईश्वर है।
📖 व्याख्या:
पतंजलि का ईश्वर एक विशेष आत्मा है – जो कर्म, विकार और पुनर्जन्म से मुक्त है, और साधक का मार्गदर्शक है।
🔷 7. अष्टांग योग: योग के आठ अंग —
*यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधयोऽष्टावङ्गानि। (2.29)*
👉 योग के आठ अंग हैं — यही योग का सम्पूर्ण मार्ग है।
अब इन आठों अंगों को संक्षेप में समझते हैं:
*🪔 7.1 यम (सामाजिक अनुशासन)*
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह।
👉 दूसरों से कैसा व्यवहार करें — यही यम सिखाते हैं।
📖 यम का अभ्यास समाज के साथ संतुलन में जीना सिखाता है।
*🧼 7.2 नियम (व्यक्तिगत अनुशासन)*
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान।
👉 अपने आप को कैसे सुधारें — यही नियम बताते हैं।
📖 नियम आत्म-संयम और व्यक्तिगत उन्नति के लिए अनिवार्य हैं।
*🪑 7.3 आसन (शारीरिक स्थिरता)*
*स्थिरसुखमासनम्। (2.46)*
👉 जो आसन स्थिर और सुखद हो — वही योग के लिए उपयुक्त है।
📖 शरीर के बिना चित्त स्थिर नहीं होता, इसलिए आसन पहला व्यावहारिक चरण है।
*🌬️ 7.4 प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)*
*श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः। (2.49)*
👉 श्वास की गति को नियंत्रित करने से प्राण शक्ति जागृत होती है।
📖 यह जीवन ऊर्जा का साक्षात प्रयोग है, जिससे मन और शरीर संतुलित होते हैं।
*👁️ 7.5 प्रत्याहार (इंद्रियों का संयम)*
*इन्द्रियाणां प्रत्याहारः। (2.54)*
👉 जब इंद्रियाँ विषयों से हटकर भीतर लौटती हैं, तब प्रत्याहार होता है।
📖 यह ध्यान की तैयारी है — बाहर से भीतर की यात्रा।
*🎯 7.6 धारणा (एकाग्रता)*
👉 मन को एक ही बिंदु या विचार पर स्थिर करना ही धारणा है।
📖 यह ध्यान की नींव है — चित्त की शक्ति को एकत्र करना।
*🧘♂️ 7.7 ध्यान (Meditation)*
👉 धारणा की निरंतरता ही ध्यान है — जब मन बिना विचलन के एक ही विषय पर टिके।
📖 यह आत्मा और ब्रह्म के मिलन की ओर पहला कदम है।
*🔔 7.8 समाधि (पूर्ण ध्यान, आत्म-बोध)*
*तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्। (1.3)*
👉 जब साधक आत्मा में स्थित होता है, वही समाधि है।
📖 यह योग की चरम अवस्था है — द्वैत मिटता है और केवल स्व शेष रह जाता है।
🔷 8. क्लेश – बंधन के कारण
*अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः। (2.3)*
👉 अज्ञान, अहंकार, राग, द्वेष, मृत्यु भय — ये पाँच क्लेश हैं।
📖 यही क्लेश हमें संसार में बाँधते हैं और योग का लक्ष्य है – इनसे मुक्ति।
🔷 9. कैवल्य – अंतिम मोक्ष
*तदा विवेकनिम्नं कैवल्यप्राग्भारं चित्तम्। (4.26)*
👉 जब विवेक जागृत होता है, तब चित्त मोक्ष की ओर बढ़ता है।
📖 कैवल्य का अर्थ है – पूर्ण स्वतंत्रता। न मन का बंधन, न शरीर का, न जन्म का।
🌺 निष्कर्ष
महर्षि पतंजलि ने योग को आंतरिक क्रांति का मार्ग बनाया। यह दर्शन आज के तनावपूर्ण जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य और आत्म-उत्थान का सबसे सटीक विज्ञान है।
🙏 इस योग दिवस पर हम संकल्प लें:
केवल शरीर के योग तक सीमित न रहें,
बल्कि चित्त, आत्मा और ईश्वर के मिलन की ओर बढ़ें।
🕯️ यही ऋषि पतंजलि को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
*योगेन चित्तस्य पदेन वाचां।*
*मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ॥*
*योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां ।*
*पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि।।*
_"जो योग के द्वारा चित्त की वृत्तियों को, व्याकरण के द्वारा वाणी को और वैद्यक के द्वारा शरीर के मल को दूर करते हैं, उन श्रेष्ठ मुनि पतंजलि को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ"।_
*🌿 "योग: कर्मसु कौशलम्" — श्रीमद्भगवद्गीता*
🙏 योग दिवस की मंगलकामनाएँ!
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